प्रकाशन (Prakashan) = publishing
प्रकाशन ^1 वि॰ प्रकाश करनेवाला । चमकीला । दीप्तिवान् । प्रकाशन ^2 संज्ञा पुं॰
1. विष्णु का एक नाम ।
2. प्रकाशित करने का काम । प्रकाश मे लाने का काम ।
3. किसी पुस्तक के छप जाने पर उसको सर्वसाधारण में प्रचलित करने का काम । जैसे, पुस्तक प्रकाशन । पत्र प्रकाशन । यौ॰— प्रकाशनाधिकार = पुस्तकादि के प्रकाशन का शर्तनामा । दे॰ 'कापीराइट' ।
प्रकाशन ^1 वि॰ प्रकाश करनेवाला । चमकीला । दीप्तिवान् ।
प्रकाशन निर्माण की वह प्रक्रिया है जिसके द्बारा साहित्य या सूचना को जनता के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। अनेक बार लेखक स्वयं ही पुस्तक का प्रकाशक भी होता है। प्रकाशन का शाब्दिक अर्थ है 'प्रकाश में लाना'। यह संस्कृत की "प्रकश" धातु से बना है, जिसका अर्थ है फलाना, विकसित करना। उसी से बना 'प्रकाशन', जिसका शाब्दिक अर्थ हुआ फैलाने या विकसित करने की क्रिया। आधुनिक संदर्भ में इसकी परिभाषा यों की जा सकती है : लिखित विषय का चुनाव, मुद्रण और वितरण। प्रकाशन का कार्य आज के युग में मुद्रण और कागज पर पूर्णत: निर्भर है, यद्यपि यह दोनों ही चीज़ों से पुराना है। लकड़ी के ब्लाकों से छपाई करने का अविष्कार नवीं शताब्दी के पूर्वार्धं में चीन में हुआ था। टाइप से छपाई का आरंभ भी वहीं शताब्दी के मध्य में हुआ था। लेकिन इसे अधिक महत्व नहीं दिया गया। यही सोचा गया कि पांडुलिपियों की नकल करते समय अच्छे कातिबों से जो गलतियाँ हो जाती हैं, वे मुद्रण में नहीं होंगी। यूरोप में, टाइप से छपाई के काम का आरंभ 15वीं शताब्दी के मध्य में आरंभ हुआ। किंतु चीन की भाँति वहाँ भी मुद्रण का प्रयोग केवल धार्मिक ग्रंथों और शासकीय कागजों को शुद्ध छापने में किया गया। एशिया या यूरोप, कहीं भी सोच तक नहीं गया कि मुद्रण की सहायता से राजनीतिक, बौद्धिक या धार्मिक साहित्य का विस्तृत प्रसार किया जा सकता है। पूर्व और पश्चिम दोनों में सदियों तक धार्मिक संस्थाएँ, सरकार, विश्वविद्यालय तथा अन्य शक्तिशालिनी संस्थाएँ अपने ही विचारों और सूचनाओं के प्रसार में मुद्रण का उपयोग करती रहीं और उन्होंने ज्ञान के प्रसार में उसके उपयोग का निरंतर विरोध किया। बाद में, आखिरकार आत्मिक एवं बौद्धिक विकास संबंधी अथवा धार्मिक एवं वैज्ञानिक साहित्य के प्रकाशन में मुद्रण का शत प्रतिशत सहयोग मिलने ही लगा। मुद्रण के आ
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Prakashan meaning in Gujarati: પ્રકાશન
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