जरदोजी (Zardoji) = Jardozi
जरदोजी संज्ञा पुं॰ [फ्रा॰] एक प्रकार की दस्तकारी जो कपड़ों पर सुनहले कलाबत्तू या सलमें सितारे आदि में की जाती है । उ॰—सुबरन साज जीन जरदोजी । जगमगात तन अगनित ओजी । —हम्मीर॰, पृ॰ ३ ।
ज़रदोज़ी फारसी एवं उर्दु: زردوزی) का काम एक प्रकार की कढ़ाई होती ह ऐ, जो भारत एवं पाकिस्तान में प्रचलित है। यह काम भारत में ऋगवेद के समय से प्रचलित है। यह मुगल बादशाह अकबर के समय में और समृद्ध हुई, किंतु बाद में राजसी संरक्षण के अभाव और औद्योगिकरण के दौर में इसका पतन होने लगा। वर्तमान में यह फिर उभरी है। अब यह भारत के लखनऊ, भोपाल और चेन्नई आदि कई शहरों में हो रही है। ज़रदोज़ी का नाम फासरी से आया है, जिसका अर्थ है: सोने की कढ़ाई। यह काम बनारस में भी प्रचलित हो रहा है। जरदोजी का काम बनारस की अपनी अलग परम्परा नहीं है परन्तु अब लोगों ने बनारसी साड़ी में भी जरदोजी का काम करना प्रारम्भ कर दिया है। बनारस में बनारसी साड़ी तथा वस्र के अलावा अन्य साड़ी, सूट के कपड़े, ड्रेस मैटीरियल्स, पर्दा, कुशन कवर आदि में भी अधिकांशतः मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग (कलाकार) लगे हुए हैं। जरदोजी बहुत ही कलात्मक तथा धैर्य का काम है। इसकी बारीकी को समझने के लिए यह जरुरी है कि इसे कम उम्र से ही सीखा जाए। फलतः जरदोजी के पेशे में बच्चे तथा औरतें भी लगे हुए हैं। चर्खे का सहारा ताग को सही करने तथा बिनने की प्रक्रिया सुगम बनाने के लिए किया जाता है। जब तक तागा (धागा) करघे के पास बिनने के लिए न आ जाए। ताग के अलावा जड़ी के ताग को भी चरखे पर ही ठीक किया जाता है। परम्परागत चर्खा लकड़ी तथा बांस की फड़ी (पट्टी) से बना होता है। हालांकि आजकल साईकिल का पिछला चक्का, चेन, तथा गीयर को भी चरखा बनाकर उससे चरखे का काम लिया जाता है। इसके सम्बन्ध में बिनकरों का कहना है कि एक तो साईकिल वाला मजबूत होता है जिससे यह ज्यादा दिन तक चलता है, दूसरा, चूंकि इसका पहिया चेन तथा गीयर से लगा होता है अतः यह लकड़ी वाले चर्खा की तुलना में ज्यादा गतिशील हो जाता है जिससे कम समय में ज्यादा से ज्यादा ताग लपेटा जाता है। पहले शुद्ध सोने तथा चांदी से जरी बनाया जाता था। अतः जब साड़ी पहनने लायक नहीं भी रहती थी तो जलाकर खासी मात्रा में सोना या चांदी इकट्ठा कर लिया जाता था। यकायक १९७७ में चांदी के भाव बहुत बढ़ गया। बढ़े भाव के चांदी से जरी बनाना बड़ा
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