आक (Aak) = Giant calotrope
Category: plant
आक ^1 संज्ञा पुं॰ [सं॰ अर्क, प्रा॰ अक्क] मंदार । अकौप्रा । अकवन । उ॰— (क) पुरवा लागि भूमि जल पूरी । आक जवास भई तस झूरी । — जायसी ग्रं॰, पृ॰ 153 । (ख) कबिरा चंदन बीरवै, बेधा ऐक पलाश । आप सरीख कर लिया, जो होते उन पास । — कबीर (शब्द॰) । (ग) देत न अघात रीझि जात पात आक ही के भीलानाथ जोगी अब औढर ढ़रत हैं । - तुलसी ग्रं॰ पृ॰ 237 । मुहावरा— आक की बुढ़िया = (1) मदार का घूआ । (1) बहुत बूढी़ स्त्री । आक ^2 पुं॰ वि॰ [सं॰ अक =दुख] दुखी । उ॰ — ताक करम भेषज विदित, लखात नहीं मतिहीन । तुलसी सठ अकवस बिहठि दिन दिन दीन मलीन । —स॰ सप्तक, पृ 47 ।
आक ^1 संज्ञा पुं॰ [सं॰ अर्क, प्रा॰ अक्क] मंदार । अकौप्रा । अकवन । उ॰— (क) पुरवा लागि भूमि जल पूरी । आक जवास भई तस झूरी । — जायसी ग्रं॰, पृ॰ 153 । (ख) कबिरा चंदन बीरवै, बेधा ऐक पलाश । आप सरीख कर लिया, जो होते उन पास । — कबीर (शब्द॰) । (ग) देत न अघात रीझि जात पात आक ही के भीलानाथ जोगी अब औढर ढ़रत हैं । - तुलसी ग्रं॰ पृ॰ 237 । मुहावरा— आक की बुढ़िया = (1) मदार का घूआ । (1) बहुत बूढी़ स्त्री ।
मदार (वानस्पतिक नाम:Calotropis gigantea) एक औषधीय पादप है। इसको मंदार', आक, 'अर्क' और अकौआ भी कहते हैं। इसका वृक्ष छोटा और छत्तादार होता है। पत्ते बरगद के पत्तों समान मोटे होते हैं। हरे सफेदी लिये पत्ते पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं। इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है। फूल पर रंगीन चित्तियाँ होती हैं। फल आम के तुल्य होते हैं जिनमें रूई होती है। आक की शाखाओं में दूध निकलता है। वह दूध विष का काम देता है। आक गर्मी के दिनों में रेतिली भूमि पर होता है। चौमासे में पानी बरसने पर सूख जाता है। आक के पौधे शुष्क, उसर और ऊँची भूमि में प्रायः सर्वत्र देखने को मिलते हैं। इस वनस्पति के विषय में साधारण समाज में यह भ्रान्ति फैली हुई है कि आक का पौधा विषैला होता है, यह मनुष्य को मार डालता है। इसमें किंचित सत्य जरूर है क्योंकि आयुर्वेद संहिताओं में भी इसकी गणना उपविषों में की गई है। यदि इसका सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाये तो, उल्दी दस्त होकर मनुष्य की मृत्यु हो सकती है। इसके विपरीत यदि आक का सेवन उचित मात्रा में, योग्य तरीके से, चतुर वैद्य की निगरानी में किया जाये तो अनेक रोगों में इससे बड़ा उपकार होता है। अर्क इसकी तीन जातियाँ प
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