चोप (Chop) = Chop
चोप पु ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ चाव]
१. चाह । इच्छा । ख्वाहिश ।
२. चाव । शौक । रुचि । उ॰— दै उर जेब जवाहिर का पुनि चोप सो चूँदरि लै पहिरावत । —सुंदरी सिंदूर (शब्द॰) ।
३. उत्साह । उमंग । उ॰— (क) अरुन नयन भृकुटी कुटिल चितवत नृपन्ह सकोप । मनहु मत्त गजगन निरखि सिंघ किसोरहि चोप — मानस १ । २६७ । (ख) चीर के चोंच चकोरन की मनो चोप ते चंग चुवावत चारे । — (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰ — चढ़ना ।
४. बढ़ावा । उत्तेजना । क्रि॰ प्र॰ — देना । चोप ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ चूना (—टपकना)] कच्चे आम की ढेपनो का वह रस जो उसमें से सींके तोड़ते समय बहता है । विशेष— इसका असर तेजाब का सा होता है । शरीर में जहाँ लग जाता है, वहाँ छाला पड़ जाता है । चोप ^३ संज्ञा स्त्री॰ [फ़ा॰ चोब] दे॰ 'चोब' ।
चोप पु ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ चाव]
१. चाह । इच्छा । ख्वाहिश ।
२. चाव । शौक । रुचि । उ॰— दै उर जेब जवाहिर का पुनि चोप सो चूँदरि लै पहिरावत । —सुंदरी सिंदूर (शब्द॰) ।
३. उत्साह । उमंग । उ॰— (क) अरुन नयन भृकुटी कुटिल चितवत नृपन्ह सकोप । मनहु मत्त गजगन निरखि सिंघ किसोरहि चोप — मानस १ । २६७ । (ख) चीर के चोंच चकोरन की मनो चोप ते चंग चुवावत चारे । — (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰ — चढ़ना ।
४. बढ़ावा । उत्तेजना । क्रि॰ प्र॰ — देना । चोप ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ चूना (—टपकना)] कच्चे आम की ढेपनो का वह रस जो उसमें से सींके तोड़ते समय बहता है । विशेष— इसका असर तेजाब का सा होता है । शरीर में जहाँ लग जाता है, वहाँ छाला पड़ जाता है ।
चोप पु ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ चाव]
१. चाह । इच्छा । ख्वाहिश ।
२. चाव । शौक । रुचि । उ॰— दै उर जेब जवाहिर का पुनि चोप सो चूँदरि लै पहिरावत । —सुंदरी सिंदूर (शब्द॰) ।
३. उत्साह । उमंग । उ॰— (क) अरुन नयन भृकुटी कुटिल चितवत नृपन्ह सकोप । मनहु मत्त गजगन निरखि सिंघ किसोरहि चोप — मानस १ । २६७ । (ख) चीर के चोंच चकोरन की मनो चोप ते चंग चुवावत चारे । — (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰ — चढ़ना ।
४. बढ़ावा । उत्तेजना । क्रि॰ प्र॰ — देना ।
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