पंडवानी (Pandwani) = Pandawani
पंडवानी छत्तीसगढ़ का वह एकल नाट्य है जिसका अर्थ है पांडववाणी - अर्थात पांडवकथा, यानी महाभारत की कथा। ये कथाएं छत्तीसगढ़ की परधान तथा देवार छत्तीसगढ़ की जातियों की गायन परंपरा है। परधान गोंड की एक उपजाति है और देवार धुमन्तू जाति है। इन दोनों जातियों की बोली, वाद्यों में अन्तर है। परधान जाति के कथा वाचक या वाचिका के हाथ में "किंकनी" होता है और देवारों के हाथों में र्रूंझू होता है। परधानों ने और देवारों ने पंडवानी लोक महाकाव्य को पूरे छत्तीसगढ़ में फैलाया। तीजन बाई ने पंडवानी को आज के संदर्भ में ख्याति दिलाई, न सिर्फ हमारे देश में, बल्कि विदेशों में। गोंड जनजाति के लोग पूरे छत्तीसगढ़ में फैले हैं। ऐसा भी कहते हैं, कि देवार जाति, गोंड बैगा भूमिया जातियों से बनी है। देवता के पुजारी को भी बैगा कहा जाता है। वैसे बैगा भी एक जाति ही होती है। ये बैगा झाड़ फूँक में माहिर होते हैं तथा जड़ी बूटियों के बारे में उनका ज्ञान गहरा होता है। मण्डला क्षेत्र में जो ग्राम पुजारी होते हैं, वे अपने आपको बैगा नहीं कहते हैं। वे अपने आप को देवार कहते हैं। देवार गायक भी पंडवानी रामायणी महाकाव्य गाते हैं। देवार लोग कैसे घुमन्तु जीवन अपना लिया, इसके बारे में अलग अलग मत है। परधान जाति के गायक अपने यजमानों के घर में जाकर पंडवानी सुनाते थे। इसी प्रकार पंडवानी शनैः शनैः छत्तीसगढ़ के लोगों के दिलों में बसती चली गई। परधान गायक हमेशा गोंड राजाओं की स्तुतियां और वीरगाथाएं ही गाया करते थे। उनके गीतों के माध्यम से गोंडो के अतीत जीवित रही है। कुछ लोग परधान को गोंडो के चारण कवि कहते हैं। उनके गोंडवानी और करम सैनी गोंड जनजाति के अतीत के बारे में है जिसमें इतिहास एवं मिथकों की झलके हैं। परधान जाति की पण्डवानी महाभारत पर आधारित होने के साथ-साथ गोंड मिथकों का मिश्रण है। जहां महाभारत का नायक अर्जुन है वहीं पण्डवानी का नायक है भीम। भीम ही पाण्डवों की सभी विपत्तियों से रक्षा करता है। पण्डवानी मं कुन्ती को माता कोतमा कहा गया है और गान्धारी को गन्धारिन। गन्धारिन के इक्कीस बेटे बताए गए हैं। पण्डवानी में जिस क्षेत्र को दिखाया गया है, वह छत्तीसगढ़ ही है। पाण्डव जहाँ रहते थे उसे जैतनगरी कहा गया है। कौरवों के निवास स्थान को हसना नगरी कहा गया है। पण्डवानी में पाण्डव तथा कौरव - दोनों पशुपालक है
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