मात (Maat) = The beat
मात ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ मातृ]
१. जननी । माता । उ॰— तात को न मात को न भ्रात को कहा कियो । — पद्माकर (शब्द॰) ।
२. कोई पूज्य या आदरणीय बड़ी महिला । उ॰— को जान मात विंझती पीर । सौति को साल सालै सरीर । —गृ॰ रा॰, १ । ३७५ । मात ^२ संज्ञा स्त्री॰ [अ॰] पराजय । हार । उ॰— रविकुल रवि प्रताप के आगे रिपुकुल मानत मात । — राधाकृष्णदास (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—करना । —देना । मात ^३ वि॰ [अ॰] पराजित । उ॰—(क) तुव दृग सतरँज बाज सों मेरो वस न बसति । पातसाह मन को करै छवि सह देकर मात । —रसनिधि (शब्द॰) । (ख) देख्यौ बादशाह् भाव, कूद परे गहे पाव, देखि करामात मात भए सव लोक हैं । —विश्व- नाथ सिंह (शब्द॰) । (ग) जासों मातलि मात अरुग गति जाति सदा रुक । — गोपाल (शब्द॰) । मात पु ^४ वि॰ [सं॰ मत्त] मदमस्त । मतवाला । (क्व॰) । उ॰— वदन प्रभा सय चंचल लोचन, आनंद उर न समात । मानहुँ भौंह जुवा रथ जीते, ससि नचवत मृग मात । — सूर॰, १० । १८०५ । मात † ^५ संज्ञा स्त्री॰[सं॰ मात्रा] मात्रा । परिमाण । उ॰— आयौ खेजड़ लै असुर मेछ परक्खण मात । — रा॰ रू॰, पृ॰ ३३० ।
मात ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ मातृ]
१. जननी । माता । उ॰— तात को न मात को न भ्रात को कहा कियो । — पद्माकर (शब्द॰) ।
२. कोई पूज्य या आदरणीय बड़ी महिला । उ॰— को जान मात विंझती पीर । सौति को साल सालै सरीर । —गृ॰ रा॰, १ । ३७५ । मात ^२ संज्ञा स्त्री॰ [अ॰] पराजय । हार । उ॰— रविकुल रवि प्रताप के आगे रिपुकुल मानत मात । — राधाकृष्णदास (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—करना । —देना । मात ^३ वि॰ [अ॰] पराजित । उ॰—(क) तुव दृग सतरँज बाज सों मेरो वस न बसति । पातसाह मन को करै छवि सह देकर मात । —रसनिधि (शब्द॰) । (ख) देख्यौ बादशाह् भाव, कूद परे गहे पाव, देखि करामात मात भए सव लोक हैं । —विश्व- नाथ सिंह (शब्द॰) । (ग) जासों मातलि मात अरुग गति जाति सदा रुक । — गोपाल (शब्द॰) । मात पु ^४ वि॰ [सं॰ मत्त] मदमस्त । मतवाला । (क्व॰) । उ॰— वदन प्रभा सय चंचल लोचन, आनंद उर न समात । मानहुँ भौंह जुवा रथ जीते, ससि नचवत मृग मात । — सूर॰, १० । १८०५ ।
मात ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ मातृ]
१. जननी । माता । उ॰— तात को न मात को न भ्रात को कहा कियो । — पद्माकर (शब्द॰) ।
२. कोई पूज्य या आदरणीय बड़ी महिला । उ॰— को जान मात विंझती पीर । सौति को साल सालै सरीर । —
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