राजतरंगिणी (Rajatrangini) = Rajatarangini
राजतरंगिणी संज्ञा पुं॰ [सं॰ राजतरड्गिणी] कल्हण कृत काश्मीर का एक प्रसिद्ध इतिहास का ग्रंथ जो संस्कृत में है और जिसमें पीछे कई पंडितों ने वृत्तांत बढ़ाए । इसकी रचना अब तक होती जाती है ।
राजतरंगिणी, कल्हण द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रन्थ है। 'राजतरंगिणी' का शाब्दिक अर्थ है - राजाओं की नदी, जिसका भावार्थ है - 'राजाओं का इतिहास या समय-प्रवाह'। यह कविता के रूप में है। इसमें कश्मीर का इतिहास वर्णित है जो महाभारत काल से आरम्भ होता है। इसका रचना काल सन ११४७ से ११४९ तक बताया जाता है। भारतीय इतिहास-लेखन में कल्हण की राजतरंगिणी पहली प्रामाणिक पुस्तक मानी जाती है। इस पुस्तक के अनुसार कश्मीर का नाम "कश्यपमेरु" था जो ब्रह्मा के पुत्र ऋषि मरीचि के पुत्र थे। राजतरंगिणी के प्रथम तरंग में बताया गया है कि सबसे पहले कश्मीर में पांडवों के सबसे छोटे भाई सहदेव ने राज्य की स्थापना की थी और उस समय कश्मीर में केवल वैदिक धर्म ही प्रचलित था। फिर सन 273 ईसा पूर्व कश्मीर में बौद्ध धर्म का आगमन हुआ। १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में औरेल स्टीन (Aurel Stein) ने पण्डित गोविन्द कौल के सहयोग से राजतरंगिणी का अंग्रेजी अनुवाद कराया। राजतरंगिणी एक निष्पक्ष और निर्भय ऐतिहासिक कृति है। स्वयं कल्हण ने राजतरंगिणी में कहा है कि एक सच्चे इतिहास लेखक की वाणी को न्यायाधीश के समान राग-द्वेष-विनिर्मुक्त होना चाहिए, तभी उसकी प्रशंसा हो सकती है-राजतरंगिणी में आठ तरंग (अर्थात, अध्याय) और संस्कृत में कुल ७८२६ श्लोक हैं। इस पुस्तक के प्रथम तीन अध्याय कश्मीर की पीढ़ी-दर-पीढ़ी से आ रही मौखिक परंपराओं का चित्रण है। अगले तीन अध्याय भी इतिवृत्तात्मक ही हैं। केवल अंतिम दो अध्याय कल्हण की व्यक्तिगत जानकारी एवं ग्रंथावलोकन पर आधारित हैं। कल्हण की इस पुस्तिका के तीन घोषित उद्देष्य हैं-स्पष्ट है पुस्तक के मूल उद्देश्य इतिहासेतर हैं। आश्चर्य नहीं, ए॰एल॰ वैशम की टिप्पणी है कि कल्हण राजतरंगिणी में तथ्यों से कम नैतिकता से अधिक संबंधित है। लेकिन इतना जरूर कहना होगा कि राजतरंगिणी भारतीय इतिहास-लेखन का प्रस्थान-बिन्दु है। राजतरंगिणी में वर्णित कश्मीर के राजाओं की सूची नीचे दी गयी है। कोष्टक में पहले 'तरंग संख्या और फिर श्लोक संख्या लिखी गयी है, जैसे (IV.678) का अर्थ है तरंग ४ एवं श्लोक 678। सारांश जे सी दत्त के अनुवाद से
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