वैतरणी (Vaitarnni) = Styx
वैतरणी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] एक प्रसिद्ध पौराणिक नदी जो यम के द्वार पर मानी जाती है । विशेष—कहते हैं, यह नदी बहुत तेज बहती है, इसका जल बहुत ही गरम और बदबूदार है और उसमें हडि्डयाँ, लहू तथा बाल आदि भरे हुए हैं । यह भी माना जाना है कि प्राणी को मरने पर पहले यह नदी पार करनी पड़ती है, जिसमें उसे बहुत कष्ट होता है । परंतु यदि उसने अपनी जीवितावस्था में गोदान किया हो, तो वह उसी गौ की सहायता से सहज में इस नदी के पार उतर जाता है । पुराणों में लिखा है कि जब सती के वियोग में महादेव जो रोने लगे, तब उनके आँसुओं का प्रवाह देखकर देवता लोग बहुत डरे और उन्होंने शनि से प्रार्थना की कि तुम इस प्रवाह को ग्रहण करके सोख लो । शनि ने उस धारा को ग्रहण करना चाहा, पर उसे सफलता नहीं हुई । अंत में उसी धारा से यह वैतरणी नदी बनी । इसका विस्तार दो योजन माना गया है । पापियों को यह नदी पार करने में बहुत कष्ट होता है ।
२. उड़ीसा की एक नदी का नाम जो बहुत पवित्र मानी जाती है ।
वैतरणी पुराणों में वर्णित नरकलोक की नदी। गरुड़ पुराण, शंखलिखित स्मृति आदि कुछ ग्रंथों के अनुसार यह शत योजन विस्तीर्ण, तप्त जल से भरी हुई रक्त-पूय-युक्त, मांस-कर्दम-संकुल एवं दुर्गंधपूर्ण है। इस नदी में पापी प्राणी मरने के बाद (प्रेतशरीर धारण कर) रोते हुए गिरते हैं और भयंकर जीव जंतुओं द्वारा दंशि एवं त्रासित होकर रोते रहते हैं। पापियों के लिए इसके पार जाना अत्यंत कठिन माना गया है। यमलोक में स्थित इस नदी को पार करने के लिए धर्मशास्त्र में कुछ उपाय भी कहे गए हैं। महाभारत में यह सूचना भी मिलती है कि भागीरथी गंगा ही जब पितृलोक में बहती है तब वह वैतरणी कहलाती है। 'वैतरणी' नाम की एक भौतिक नदी भारत के ओडिशा राज्य में है जो बालासोर जिला और कटक जिला की सीमा बनाती है।
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