किन (Kin) = Qin
किन ^१ सर्व॰ [हिं॰] किस; का बहुवचन । उ॰—अक्रूर कहावत क्रूरमति बात करत बनि साधु अति । किन नाम कीन्ह तुव दान पति है नितही नादान पति । —गोपाल (शब्द॰) । किन पु ^२ क्रि॰ वि॰ [सं॰ किम + न] क्यों न । उ॰—(क) बिनु हरि भक्ति मुक्ति नहिं होई । कोहि उपाय करो किन कोई । — सूर (शब्द॰) । (ख) बिगरी बात बैन नहीं लाख करो किन कोय । रहिमन बिगरे दूध को मथे माखन होय । —रहीम (शब्द॰) । किन ^३ पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ किण] किसी वस्तु के लगने चुभने वा रगड़ पहुँचने का चिह्न । दाग । घट्ठाल । उ॰—ध्वजकुसि अंकुश कंजयुत बन फिरत कंटक किन लहे । —तुलसी (शब्द॰) ।
किन ^१ सर्व॰ [हिं॰] किस; का बहुवचन । उ॰—अक्रूर कहावत क्रूरमति बात करत बनि साधु अति । किन नाम कीन्ह तुव दान पति है नितही नादान पति । —गोपाल (शब्द॰) । किन पु ^२ क्रि॰ वि॰ [सं॰ किम + न] क्यों न । उ॰—(क) बिनु हरि भक्ति मुक्ति नहिं होई । कोहि उपाय करो किन कोई । — सूर (शब्द॰) । (ख) बिगरी बात बैन नहीं लाख करो किन कोय । रहिमन बिगरे दूध को मथे माखन होय । —रहीम (शब्द॰) ।
किन ^१ सर्व॰ [हिं॰] किस; का बहुवचन । उ॰—अक्रूर कहावत क्रूरमति बात करत बनि साधु अति । किन नाम कीन्ह तुव दान पति है नितही नादान पति । —गोपाल (शब्द॰) ।
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