die
= मरना() (Marna)
मरना क्रि॰ अ॰ [सं॰ मरण]
१. प्राणियों या वनस्पितियों के शरीर में ऐसा विकार होना जिससे उनकी सब शारीरिक क्रियाएं बंद हा जायँ । मृत्यु को प्राप्त होना । उ॰—(क) साई यों मत जानियो प्रीति घटें मम चित्त । मरूं तो तुम सुमिरत मरूं जीवन सुमिरों नित्त । —कबीर (शब्द॰) । (ख) कर गहि खंग तीर बध करिहौं सुनि मारिच डर मान्यो । रामचंद्र के हाथ मरूँगी परम पुरुष फल जान्यो । —सूर (शब्द॰) । (ग) लघु आनन उत्तर देत बड़े लरिहैं मरिहैं करिहैं कछु साके । — तुलसी (शब्द॰) । (घ) मरिबे को साहस कियो बढ़ा बिरह की पीर । दौरति ह्वै समुहै ससी सरसिज सुरभि समीर । — बिहारी (शब्द॰) । (ड़) मरल गौ कई बार जियाया । —कबीर सा॰, पृ॰ १५११ । मुहा॰—मरना जीना=शादी गमी । शुभाशुभ अवसर । सुख दुःख । मनने की छुट्टी न होना या न मिलना=बिलकुल छुट्टी न मिलना । अवकाश का अभाव होना । दिन रात कार्य में फँसा होना । मरता क्या न करता=जीवन से निराश व्यक्ति का सब कुछ करने को तैयार हो जाना । पराजय या असफलता को जान लेनेवाले व्यक्ति का सब कुछ करने को तैयार होना । मरते गिरते=किसी तरह । गिरते पड़ते । मरते जीते=दे॰ 'मरते गिरते' । मरते दम तक=दे॰ 'मरते मरते' । मरते मरते'=आखिरी दम तक । अँतिम समय़ तक । मरा सा= अत्यंत दुर्बल । क्षीणाकाय । मरे या मरते को मारना=पीड़ि त को और पीड़ा पहुँचाना । उ॰— मरे की मारे शाह मदार (बोल॰) ।
२. बहुत अधिक कष्ट उठाना । बहुत दुःख सहना । पचना । उ॰— (क) एक बार मरि मिलैं जो आए । दूसरा वार मरै कित जाए । —जायसी (शब्द॰) । (ख) तुलसी भरोसी न भवेस भोरानाथ को तो कोटिक कलेस करो मरो छार छानि सो । — तुलसी (शब्द॰) । (ग) तुलसी तेहि सेवत कौन मरैं, रज ते लधु को करै मेरु से भारै । —तुलसी (शब्द॰) । (घ) कठिन दुहूँ विधि दीप को सुन हो मोत सुजान । सब निसि बिनु् देखे जरे मरै लखै मुख भान । —रसनिधि (शब्द॰) । मुहा॰—किसी के लिये मरना=हैराना होना । कष्ट सहना । किसी पर मरना =लुब्ध होना । आसक्त होना । मर पचना= अत्यंत कष्ट सहना । मर मरकर=बहुत अधिक कष्ट उठाकर । उ॰—२३ मील पहाड़ी यात्रा थी, किंतु कल तो मर मरकर मै पैदल ही २१ मील चला आया था । — किन्नर॰, पृ॰ ३४ । किसी की बात पर मरना या किसी बात के लिये मरना= दुःख सहना । मर मिटना=श्रम करते करते विनष्ट हो जाना । उ॰— सबने मर मिटने की ठान ली थी । —इन्शा (शब्द
मरना meaning in english
अमरनाथ झा पुरस्कार का सम्बन्ध किस क्षेत्र से है ?