Whirlwind = भटकटैया() (BhatKataiya)
भटकटैया संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ कण्टकारि, हिं॰ कटेरी या कटाई] एक छोटा और काँटेदार क्षुप जो बहुधा औषध के काम में आता है । विशेष—इसके पत्तों पर भी काँटे होते हैं । इसके फूल बैगनी होते हैं और फूल का जीरा पीला होता है । कहीं कहीं सफेद फूल की भी भटकटैया मिलती है । इसमें एक प्रकार के छोटे फल भी लगते हैं जो पहले कच्चे रहते हैं, पर पकने पर पीले हो जाते हैं । वैद्यक में इसे सारक, कड़वी, चरपरी, रूखी, हलकी, अग्निदीपक तथा खाँसी, ज्वर, कफ, वात, पीनस तथा हृदय रोग का नाश करनेवाली माना है । पर्या॰—कटकारी । कुली । क्षुद्रा । कासघ्नी । कंटतारिका । स्पृही । धावानिका । व्याघ्री । दुःस्पर्शी । दुप्प्रघर्षिणी । कंटश्रेणी । चित्रफला । बहुकंटा । प्रयोदिनी । भंटाकी । घावनी । सिंही ।
भटकटैया या कंटकारी (वैज्ञानिक नाम : Solanum xanthocarpum; अंग्रेजी नाम : Yellow Berried Night shade) का फैलने वाला, बहुवर्षायु क्षुप होता है। इसके पत्ते लम्बे काँटो से युक्त हरे होते है ; पुष्प नीले रंग के होते है ; फल क्च्चे हरित वर्ण के और पकने पर पीले रंग के हो जाते है। बीज छोटे और चिकने होते है। यह पश्चिमोत्तर भारत मे शुष्कप्राय स्थानों पर होती है। कंटकारी एक अत्यंत परिप्रसरी क्षुप हैं जो भारवतर्ष में प्राय: सर्वत्र रास्तों के किनारे तथा परती भूमि में पाया जाता है। लोक में इसके लिए भटकटैया, कटेरी, रेंगनी अथवा रिंगिणी; संस्कृत साहित्य में कंटकारी, निदग्धिका, क्षुद्रा तथा व्याघ्री आदि; और वैज्ञानिक पद्धति में, सोलेनेसी कुल के अंतर्गत, सोलेनम ज़ैंथोकार्पम (Solanum xanthocarpum) नाम दिए गए हैं। इसका लगभग र्स्वागकंटकमय होने के कारण यह दु:स्पर्श होता है। काँटों से युक्त होते हैं। पत्तियाँ प्राय: पक्षवत्, खंडित और पत्रखंड पुन: खंडित या दंतुर (दाँतीदार) होते हैं। पुष्प जामुनी वर्ण के, फल गोल, व्यास में आध से एक इंच के, श्वेत रेखांकित, हरे, पकने पर पील और कभी-कभी श्वेत भी होते हैं। यह लक्ष्मणा नामक संप्रति अनिश्चित वनौषधि का स्थानापन्न माना है। आयुर्वेदीय चिकित्सा में कटेरी के मूल, फल तथा पंचाग का व्यवहार होता है। प्रसिद्ध औषधिगण 'दशमूल' और उसमें भी 'लंघुपंचमूल' का यह एक अंग है। स्वेदजनक, ज्वरघ्न, कफ-वात-नाशक तथा शोथहर आदि गुणों के कारण आयुर्वेदिक चिकित्साके कासश्वास, प्रतिश्याय तथा
भटकटैया meaning in english