Tirthankar = तीर्थंकर() (Teerthankar)
तीर्थंकर संज्ञा पुं॰ [सं॰ तीर्थङ्गर]
१. जौनियों के उपास्य देव जो देवताओं से भी श्रेष्ठ और सब प्रकार के दोषों से रहित, मुक्त और मुक्तिदाता माने जाते हैं । इनकी मूर्तियाँ दिगंबर बनाई जाती हैं और इनकी आकृति प्रायः बिलकुल एक ही होती है । केवल उनका वर्ण और उनके सिंहासन का आकार ही एक दूसरे से भिन्न होता है । विशेष—गत उत्सर्पिणी में चौबीस तीर्थकर हुए थे जिनके नाम ये हैं—
१. केवलज्ञानी ।
२. निर्वाणी ।
३. सागर ।
४. महाशय ।
५. विमलनाथ ।
६. सर्वानुभूति ।
७. श्रीधर ।
८. दत्त ।
९. दामोदर ।
१०. सुतेज ।
११. स्वामी ।
१२. मुनिसुव्रत ।
१३. सुमति ।
१४. शिवगति ।
१५. अस्ताग ।
१६. नेमीश्वर ।
१७. अनल ।
१८. यशोधर ।
१९. कृतार्थ ।
२०. जिनेश्वर ।
२१. शुद्धमति ।
२२. शिवकर ।
२३. स्यंदन और ।
२४. संप्रति । वर्तमान् अवसर्पिणी के आरंभ में जो चौबीस तीर्थकर हो गए हैं उनके नाम ये हैं—
१. ऋषभदेव ।
२. अजितनाथ ।
३. संभवनाथ ।
४. अभिनंदन ।
५. सुमतिनाथ ।
६. पद्मप्रभ ।
७. सुपार्श्वनाथ ।
८. चंद्रप्रभ ।
९. सुबुधिनाथ ।
१०. शीतलनाथ ।
११. श्रेयांसनाथ ।
१२. वासुपूज्य स्वामी ।
१३. विमलनाथ ।
१४. अनंतनाथ ।
१५. धर्मनाथ ।
१६. शांतिनाथ ।
१७. कुंतुनाथ ।
१८. अमरनाथ ।
१९. मल्लिनाथ ।
२०. मुनि सुव्रत ।
२१. नमिनाथ ।
२२. नेमिनाथ ।
२३. पार्श्वनाथ ।
२४. महावीर स्वामी । इनमें से ऋषभ, वासुपूज्य और नेमिनाथ की मूर्तियाँ योगाभ्यास में बैठी हुई और बाकी सब की मूर्तियाँ खड़ी बनाई जाती हैं ।
२. विष्णु (को॰) ।
३. शास्त्रकर्ता (को॰) ।
जैन धर्म में तीर्थंकर (अरिहंत, जिनेन्द्र) उन २४ व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो स्वयं तप के माध्यम से आत्मज्ञान (केवल ज्ञान) प्राप्त करते है। जो संसार सागर से पार लगाने वाले तीर्थ की रचना करते है, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थंकर वह व्यक्ति हैं जिन्होनें पूरी तरह से क्रोध, अभिमान, छल, इच्छा, आदि पर विजय प्राप्त की हो)। तीर्थंकर को इस नाम से कहा जाता है क्योंकि वे "तीर्थ" (पायाब), एक जैन समुदाय के संस्थापक हैं, जो "पायाब" के रूप में "मानव कष्ट की नदी" को पार कराता है। आत्मज्ञान प्राप्त करने
तीर्थंकर meaning in english
24 तीर्थंकर जीवन परिचय
हम है तीर्थंकर श्याम वर्ण के बताअो हमारा नाम
२४ तीर्थंकर स्टोरीज
तीर्थंकर का कौनसा शरीर होता है
जैन धर्म के पहले तीर्थंकर के रूप में किसे माना जाता है ?