KheJadli Balidan Diwas खेजड़ली बलिदान दिवस

खेजड़ली बलिदान दिवस



GkExams on 09-06-2022


सही उत्तर : 31 अगस्त


आपकी बेहतर जानकारी के लिए बता दे की यह घटना राजस्थान में जोधुपर जिले के खेजड़ली गांव में महाराजा अभय ¨सह के राज्य काल में 1787 भादवा सुदी 10वीं मंगलवार को हुई थी। तभी से बिश्नोई समाज द्वारा यह दिन बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है। 31 अगस्त को यह बलिदान दिवस है।


KheJadli-Balidan-Diwas


चिपको आन्दोलन के बारें में (Chipko Movement In Hindi) :




सबसे पहले तो आपको चिपको शब्द के बारें में बताते है - दोस्तों यह शब्द “चिपकने” अथवा “लिपटने” से बना है। ध्यान रहे की पेड़ों से चिपककर या लिपटकर उन्हें काटे जाने का विरोध करने की विधि को “चिपको” नाम दिया गया, जिससे यह विधि वृक्ष रक्षा में लोकप्रिय हो सके।


चिपको आंदोलन कब शुरू हुआ?




इसकी लोकप्रियता एवं प्रभावशीलता के कारण ही चिपको (chipko movement pdf) ने एक जन-आंदोलन का रूप लिया तथा यह “चिपको आंदोलन” के नाम से मशहूर आंदोलन बन गया। वृक्षों से चिपककर सर्वप्रथम अपने प्राणों की आहूति देने की घटना सितम्बर 1730 में (chipko movement was started in) राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली (अब खेतड़ी) गांव में घटित हुई।


दरअसल हुआ यूँ की उस समय दिल्ली के मुगल सम्राट औरंगजेब का शासन था तथा राजस्थान में जोधपुर के राजा थे - अजीत सिंह। जोधपुर के राजा अजीत सिंह को आलीशान महल (chipko movement essay) बनाने की इच्छा हुई किंतु जब महल में ईंटों की पकाई हेतु ईंधन की आवश्यकता हुई तो सभी चिंतित हो गए क्योंकि उस मरुभूमि क्षेत्र में वनों का अभाव था।


इसी समय किसी ने राजा अजीत सिंह का खेजड़ली गांव के हरे-भरे वनों की ओर ध्यान आकृष्ट कराया। तत्काल खेजड़ली के वनों को काटने के लिए राज्य कर्मचारी अपनी-अपनी कुल्हाड़ियां लेकर रवाना हो गए। वर्षा ऋतु का समय होने से गांव के लगभग सभी पुरुष खेतों में गए हुए थे।


चिपको आंदोलन में महिलाओं की भूमिका :




जब वे कर्मचारी पेड़ काटने (role of women in chipko movement) की तैयारी में थे तभी श्रीमती अमृता देवी तथा उनकी तीन पुत्रियों — आसु बाई, रतनी बाई तथा भागु बाई ने पेड़ काटने आए कर्मचारियों से प्रार्थना की कि वे हरे पेड़ न काटे क्योंकि हरे पेड़ काटना धर्म के खिलाफ है। अमृता देवी ने कहा कि- यदि सर कट जाए और पेड़ बच जाए तो यह सस्ता सौदा है।


अमृता देवी अपने धर्म की रक्षा के लिए पेड़ से लिपट गई। कुल्हाड़ियों के प्रहार से उसका क्षत-विक्षत शरीर जमीन पर गिर पड़ा। अमृता देवी के पश्चात् उनकी तीन मासूम कन्याएं भी पेड़ से लिपट गई और उनके शीश भी धड़ से अलग कर दिए गए।


फिर क्या था यह दुःखद समाचार सुनकर ग्रामीण विश्नोई समाज एकत्रित हो गए। उन्होंने हरे वृक्षों के कटाव को रोकने के लिए तथा धर्म की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर करने की शपथ ली। हरे वृक्षों को बचाने के लिए इस स्थान पर कुल 363 व्यक्ति शहीद हुए। मरने वाले सभी विश्नोई जाति के थे।




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Comments Manish bishnoi on 05-05-2023

अमृता देवी के माता पिता का नाम क्या था और उनके पति का नाम क्या था

Bintu on 15-04-2022

Khejdli divas kb Mnaya jata h

Suresh vishnoi on 20-05-2021

Amarta devi ka Janm kab huya






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