Sooksmjeev Mitra Aivam Shatru सूक्ष्मजीव मित्र एवं शत्रु

सूक्ष्मजीव मित्र एवं शत्रु



GkExams on 06-02-2019

वैसे छोटे जीव जो बिना सूक्ष्मदर्शी के दिखाई नहीं देते हैं सूक्ष्मजीव कहलाते हैं। सूक्ष्मजीव इतने छोटे होते हैं कि उन्हें नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता है। सूक्ष्मजीव सभी जगह उपस्थित होते हैं। सूक्ष्मजीव हवा में पानी में पेड़ों पर जंतुओं पर तथा उनके अंदर प्राय: सभी जगहों पर पाये जाते हैं। जैसे जीवाणु, रोगाणु, कवक, आदि। सूक्ष्मजीव सभी परिस्थितियों में जीवित रह सकते हैं जैसे बहुत अधिक तथा बहुत कम तापमान दोनों में।


चूँकि सूक्ष्मजीवों को बिना सूक्ष्मदर्शी के नहीं देखा जा सकता है, अत: वे सूक्ष्मजीव कहे जाते हैं। सूक्ष्मजीव को अंग्रेजी में माइक्रोऑर्गेनिज्म (Microorganism) कहा जाता है।


सूक्ष्मजीव हमारे शत्रु भी हैं तथा मित्र भी। वास्तव में कुछ सूक्ष्मजीव हमारे मित्र हैं अर्थात हमारे लिए लाभकारी हैं जबकि कुछ सूक्ष्मजीव (माइक्रोऑर्गेनिज्म) हमारे शत्रु हैं अर्थात हमारे लिए हानिकारक हैं।

सूक्ष्मजीवों का वर्गीकरण

सूक्ष्मजीवों को उनके विशेष गुणों के आधार पर चार भागों में बाँटा जा सकता है। ये चार भाग या वर्ग हैं जीवाणु (बैक्टीरीया), कवक (फंजाई), प्रोटोजोआ तथा कुछ शैवाल (एल्गा)। इनके अलावे रोगाणु (वायरस) भी सूक्ष्मजीव हैं।

जीवाणु (बैक्टीरीया)

जीवाणु को अंग्रेजी में बैक्टीरीया कहा जाता है। जीवाणु (बैक्टीरीया) एक एककोशिकीय जीव होते हैं। कुछ जीवाणु (बैक्टीरीया) हमारे लिए अच्छे हैं तथा कुछ खराब। बैक्टीरीया का आकार छड़नुमा, स्पाइरल, गोल आदि अनेक तरह का हो सकता है। बैक्टीरीया धरती पर जीव का प्रथम रूप था। राइजोबियम, बैसाइलस, क्लोरोफ्लेक्सी आदि बैक्टीरीया के कुछ उदाहरण हैं।


टायफाइड, क्षयरोग (टीoबीo) आदि रोग जीवाणुओं (बैक्टीरीया) के कारण होते हैं।

कवक (फंजाई)

कवक को अंग्रेजी में फंजाई कहा जाता है। कवक (फंजाई) एककोशिकीय तथा बहुकोशिकीय दोनों तरह के होते हैं। कवक (फंजाई) को पौधे से अधिक जीव माना जाता है। मशरूम, राइजोप्स (ब्रेड मोल्ड), पेनिसीलिएम, आदि कवक (फंजाई) के कुछ उदाहरण हैं।


कवक (फंजाई) एक प्रकार का परजीवी होता है, जो मरे हुए तथा विघटित हो रहे जैव पदार्थों पर अंकुरित होते तथा पलते हैं। कवक (फंजाई) को प्राकृतिक विघटनकारी कहा जाता है। ये जैव पदार्थों को विघटित करते हैं। कवक (फंजाई) मरे हुए जीवों पर अंकुरित होकर उसपर एक प्रकार का पाचन रस छोड़ते हैं, जिसके कारण जैविक पदार्थ द्रव में बदलने लगते हैं उस द्रव का अवशोषण कर कवक (फंजाई) पोषण प्राप्त करते हैं।

प्रोटोजोआ

प्रोटोजोआ एककोशिकीय जीव होते हैं। अमीबा, पैरामीशियम आदि प्रोटोजोआ के कुछ उदाहरण हैं। अतिसार, मलेरिया आदि रोग प्रोटोजोआ के कारण होते हैं।

शैवाल (एल्गा)

शैवाल को अंग्रेजी में एल्गा (Algae) कहा जाता है। शैवाल को पानी गिरने के स्थान, रूके हुए जल आदि में आसानी से देखा जा सकता है। क्लेमाइडोमोनास, स्पाइरोगाइरा आदि कवक (फंजाई) के कुछ उदाहरण हैं।

विषाणु (वायरस)

विषाणु को अंग्रेजी में वायरस कहा जाता है। विषाणु (वायरस) अन्य सूक्ष्मजीवों से थोड़ा अलग होते हैं। विषाणु (वायरस) परजीवी होते हैं। ये केवल दूसरे जैव पदार्थों में ही गुणन करते हैं। विषाणु (वायरस) अधिकांशतया रोग के कारण होते हैं। जुकाम, इंफ्लुएंजा (फ्लू), पोलियो, खसरा आदि रोग विषाणु (वायरस) के कारण होते हैं।

सूक्ष्मजीव कहाँ रहते हैं?

सूक्ष्मजीव हर जगह रहते हैं तथा सभी प्रकार की परिस्थितियों में जीवित रह सकते हैं। ये तपते रेगिस्तान से लेकर समुद्र की गहराइयों तथा बर्फ में रह सकते हैं। सूक्ष्मजीव मनुष्य सहित सभी जंतुओं के शरीर के अंदर भी पाये जाते हैं।


कुछ सूक्ष्मजीव स्वतंत्र रूप से तथा कुछ सूक्ष्मजीव दूसरे पर आश्रित रहते हैं। दूसरे पर आश्रित रहने वाले सूक्ष्मजीवों को परजीवी कहते हैं। कवक जैसे सूक्ष्मजीव दूसरे पर आश्रित रहते हैं जबकि अमीबा जैसा सूक्ष्मजीव अकेले पाये जाते हैं। कवक तथा जीवाणु समूह में रहते हैं।

सूक्ष्मजीव और हम

सूक्ष्मजीवों का हमारे जीवन में बहुत ही अधिक महत्व है। अभी तक की जानकारी के अनुसार बैक्टीरीया, जो कि सूक्ष्मजीव हैं, ही धरती के पहले जीव हैं अर्थात जीवन की शुरूआत धरती पर इन्हीं सूक्ष्मजीवों के रूप में हुई थी।


कुछ सूक्ष्मजीव हमारे लिए काफी लाभदायक हैं अर्थात हमारे मित्र हैं जबकि कुछ सूक्ष्मजीव हमारे लिए शत्रु हैं अर्थात हानिकारक हैं।

मित्रवत सूक्ष्मजीव

बहुत सारे सूक्ष्मजीव हमारे लिए काफी लाभदायक हैं अर्थात हमारे मित्र हैं।


यीस्ट, जो एक बैक्टीरिया है, का उपयोग ब्रेड एवं केक बनाने में किया जाता है।

प्राचीन काल से यीस्ट का उपयोग एल्कोहॉल बनाने में किया जाता है। यीस्ट डालने से फलों के रस, ब्रेड तथा केक बनाने के लिये गूँथा गया मैदा में किण्वण (फर्मंटेशन) होता है। यीस्ट नामक बैक्टीरीया के तीव्रता से जनन करके श्वसन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन होता। कार्बन डायऑक्साइड के गैस के बुलबुले खमीर वाले मैदे का आयतन बढ़ा देते हैं जिसके कारण केक तथा ब्रेड सॉफ्ट हो जाता है।


सूक्ष्मजीवों का उपयोग पर्यावरण को स्वच्छ रखने में भी किया जाता है। जैसे कि कार्बनिक अवशिष्ट यथा सब्जियों के छिलके, जंतु अवशेष, बिष्ठा इत्यादि का जीवाणुओं द्वारा अपघटन कर इन्हें हनिरहित पदार्थों में बदल दिया जाता है।


जीवाणुओं का उपयोग औषधि उत्पादन तथा नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में होता है।

दूध से दही का बनना

लैक्टोबैसाइलस नाम का जीवाणु दूध में जनन कर उसे दही में बदल देते हैं।

सूक्ष्मजीवों का वाणिज्यिक उपयोग

सूक्ष्मजीवों का बड़े स्तर पर एल्कोहॉल, शराब, एसिटिक एसिड आदि के उत्पादन में किया जाता है। जौ, गेहूँ, चावल एवं फलों के रस में प्राकृतिक रूप से शर्करा पाया जाता है। इन रसों को जब कुछ दिनों के लिए थोड़ा गर्म स्थान में छोड़ दिया जाता है तो इनमें यीस्ट नाम का सूक्ष्मजीव का अंकुरण हो जाता है जो इन्हें एल्कोहॉल में बदल देता है।


फलों के रसों आदि का जीवाणु द्वार एल्कोहॉल में बदला जाना किण्वण (फर्मंटेशन) कहलाता है।

किण्वन की खोज

लुई पाश्चर, जो एक फ्रांसिसि वैज्ञानिक थे, ने किण्वन की खोज 1857 में की थी। लुई पाश्चर ने किण्वन के साथ साथ दूध को संरक्षित रखने की विधि की भी खोज की थी। लुई पाश्चर की प्रतिष्ठा में दूध को संरक्षित रखने वाली विधि को पाश्च्युराइजेशन कहा जाता है।

सूक्ष्मजीवों के औषधीय उपयोग

सूक्ष्मजीवों द्वारा तैयार औषधी को प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक कहा जाता है। प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक बीमारी पैदा करनेवाले सूक्ष्मजीवी को नष्ट कर देते हैं। प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक टैबलेट, कैप्सूल या इंजेक्शन के रूप में बाजार में उपलब्ध है, जिसे जरूरत के अनुसार बीमार व्यक्ति को दिया जाता है।


आजकल जीवाणु और कवक से अनेक तरह के प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक का उत्पादन हो रहा है। इन प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक को विशेष प्रकार के सूक्ष्मजीव का संवर्धन कर बनाया जाता है। स्ट्रेप्टोमाइसिन, टेट्रासाइक्लिन, एरिथ्रोमाइसिन आदि प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक के कुछ उदाहरण हैं।


प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक को पशु आहार तथा कुक्कुट आहार में भी मिलाया जाता है। इन प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक मिले पशु आहार तथा कुक्कुट आहार का उपयोग पशुओं में सूक्ष्मजीवों का संचरण रोकने के लिए किया जाता है। पशु आहार तथा कुक्कुट आहार का उपयोग कुछ पौधों में होने वाले रोग के नियंत्रण के लिए भी किया जाता है।

प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक की खोज

सर अलेक्जेंडर फ्लेमिंग, जो एक ब्रिटिश वैज्ञानिक थे, ने प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक की खोज 1929 में की थी।


सर अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने जीवाणु रोगों से बचाव हेतु एक संवर्धन प्रयोग के क्रम में अचानक पाया कि संवर्धन तश्तरी में हरे रंग की फफूँद हो गये हैं जो जीवाणु की बृद्धि को रोक रहे थे। उन्होंने पाया कि ये फफूँद जीवाणु की बृद्धि को रोकने में सक्षम हैं क्योंकि इसकी बृद्धि के कारण बहुत सारे जीवाणु मारे गये थे। इसी घटना से उन्होंने फफूँद से पेनसिलिन बनाई जिसे प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक के जाना गया।


प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक की खोज के लिए उन्हें नॉबल पुरस्कार दिया गया था।

वैक्सिन (टीका)

जबकभी रोगकारक सूक्ष्मजीव हमारे शरीर में प्रवेश करता है प्रतिरक्षी बनाता है, जो बाहर से आये रोगकारक सूक्ष्मजीवों से लड़कर हमारे शरीर को बीमारी से बचाता है। प्रतिरक्षी को अंग्रेजी में एंटीबॉडीज (Antibodies) कहते हैं।


उसी सूक्ष्मजीवी के पुन: शरीर में प्रवेश करने पर उससे किस प्रकार लड़ा जाना है यह भी हमारा शरीर याद रखता है। शरीर की इसी सिद्धांत पर कार्य प्रणाली के आधार पर वैक्सीन (टीका) बनाया गया है। यदि मृत अथवा निष्क्रिय सूक्ष्मजीवों को स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रविष्ट कराया जाता है तो शरीर की कोशिकाएँ उसी के अनुसार लड़ने के लिए प्रतिरक्षी (एंटीबॉडीज) उत्पन्न कर रोगकारक सूक्ष्मजीवी को नष्ट कर देती है। ये प्रतिरक्षी (एंटीबॉडीज) हमारे शरीर में सदा के लिए बने रहते हैं तथा उस रोगकारक सूक्ष्मजीवी से हमारी रक्षा करते हैं।

वैक्सीन (टीका) जो एक प्रकार की दवा के द्वारा विशेष रोगकारक मृत अथवा निष्क्रिय सूक्ष्मजीवों को हमारे शरीर में प्रवेश कराकर हमारे शरीर को उस खास प्रकार की बीमारी से सुरक्षित रखने में हमारे शरीर को सक्षम बनाता है।


हैजा, क्षय, चेचक, हेपेटाइटिस, पोलिओ आदि बीमारी को वैक्सिन (टीके) से रोका जा सकता है।


छोटे बच्चों को अनेक तरह के वैक्सिन (टीके) दिये जाते हैं ताकि उसे बीमारियों से बचाया जा सके। चेचक तथा पोलियो के विरूद्ध विश्व स्वास्थ्य संगठन [World Health Organisation (WHO)] द्वारा विश्वव्यापी अभियान चलाकर लगभग इन बीमारियों को लगभग खत्म कर दिया गया है।

चेचक के वैक्सीन (टीके) की खोज

श्री एडवर्ड जेनर, जो एक अंग्रेज वैज्ञानिक थे ने सन 1798 में चेचक के वैक्सीन (टीके) की खोज की। चेचक के टीके के कारण करोड़ों लोगों को इस जानलेवा बीमारी से बचाया जा सका तथा लगभग पूरे विश्व से इस बीमारी का उन्मूलन हो सका। चेचक के वैक्सीन (टीके) की खोज से पूर्व यह एक महामारी थी।

मिट्टी की उर्वरता में बृद्धि

कुछ सूक्ष्मजीव मिट्टी की उर्वरता बनाये रखने में सहयोग देते हैं। कुछ जीवाणु तथा शैवाल वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं। ये सूक्ष्मजीव नाइट्रोजन को वायुमंडल से अवशोषित कर उन्हें मिट्टी में घुलनशील रूप में उपलब्ध कराते हैं। पौधे मिट्टी के इस नाइट्रोजन का अवशोषण कर पोषक तत्वों का संश्लेषण करते हैं। इस तरह मिट्टी में नाइट्रोजन का संवर्धन होता है तथा मिट्टी की उर्वरता में बृद्धि होती है।


सूक्ष्मजीवी द्वारा मिट्टी में नाइट्रोजन उपलब्ध कराने की इस प्रक्रिया को जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण तथा इन सूक्ष्मजीवों को जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकारक़ कहते हैं।

पर्यावरण का शुद्धिकरण

कुछ सूक्ष्मजीव मृत जीव जंतुओं तथा पादपों को विघटित कर उन्हें साधारण पदार्थ में बदल देते हैं। साधारण रूप में परिवर्तित ये पदार्थ बाद जंतुओं तथा पौधों द्वारा आवश्यकता के अनुसार उपयोग कर लिए जाते हैं।


सूक्ष्मजीव चूँकि प्राकृतिक रूप से अपघटनकारी (natural decomposer) होते हैं यही कारण है कि मृत जीव तथा पौधे धीरे धीरे कुछ समय बाद मिट्टी में विलुप्त हो जाते हैं। इन मृत जीवों के विघटित होकर विलुप्त होने से पर्यावरण शुद्ध हो जाता है।


अत: सूक्ष्मजीव पर्यावरण को शुद्ध कर हमारी सहायता करते हैं।






सम्बन्धित प्रश्न



Comments



नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment