Prakritik Chayan Ki Prakriya Ko Samjhana प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया को समझना

प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया को समझना



Pradeep Chawla on 24-10-2018


अपने अध्ययन के आरंभिक वर्षों में ही, डार्विन जीव विकास संबंधी अपनी दो महत्त्वपूर्ण अवधारणाओं का विकास कर चुके थे । ये दो अवधारणाएं- ‘ प्राकृतिक चयन’ (Natural Selection) और ‘योग्यतम का बचाव’ (Survival of the fittest) थी । डार्विन की अवधारणाओं ने यह पक्के तौर पर सिद्ध कर देना था कि प्रकृति पल-पल बदलती है । यह अपने आरम्भकाल से एकसमान नहीं रही जैसाकि उस समय की धार्मिक शिक्षाओं में बताया जाता था । डार्विन को पता था कि उसकी खोजों का समाज के कठमुल्लों की तरफ से भयंकर विरोध किया जायेगा । कुछ इस डर की वजह से और कुछ अपनी खोजों को प्रमाणिक तौर पर और मजबूत बनाने के लिए प्रकृति में से तथ्य इकट्ठे करने और अध्ययन करने के कारण डार्विन 1859 तक अपनी इस क्रान्तिकारी खोज को प्रकाशित न कर सके ।


1856 के शुरुआती दिनों में चार्ल्स डार्विन के दोस्त चार्ल्स लिल को एक और विज्ञानी अल्फ्रेड वालेस का पत्र मिला जिस में वालेस ने डार्विन की अवधारणाओं के साथ मिलती जुलती बातें कहीं । इसके बाद लिल ने डार्विन को अपनी खोजों को छपवाने के लिए कहा और उसके कहने पर डार्विन ने, जीवों की प्रजातिओं की उत्पत्ति’ (Origin of Species) से सम्बंधित एक खोज पत्र लिखना शुरू किया । जून, 1858 में डार्विन को वालेस का पत्र मिला जिसमें उसने ‘प्राकृतिक चयन’ की धारणा का जिक्र किया । 1859 में 1 जुलाई के दिन , डार्विन और वालेस ने इकट्ठे ही अपनी खोजों के बारे में खोज पत्र पढने का निर्णय किया, पर अपने बेटे की मृत्यु की वजह से डार्विन इसमें शामिल न हो सके । आखिरकार नवम्बर में डार्विन की पुस्तक’ जीवों की उत्पत्ति’ (Origin of Species) छप कर लोगों में पहुँच गयी ।


जैसाकि उम्मीद ही थी, किताब की काफी प्रशंसा हुई और कुछ ही दिनों में इसके पहले संस्करण की सारी प्रतियाँ बिक गयीं । वैज्ञानिकों में बहुतों ने डार्विन की उपलब्धियों के साथ सहमती प्रकट की, चाहे कुछ वैज्ञानिकों ने डार्विन की अवधारणाओं का सख्त विरोध भी किया । सबसे ज्यादा भयानक विद्रोह धार्मिक कठमुल्लों और कट्टरपंथियों ने किया और डार्विन के भद्दे कार्टून बना कर बांटे गये । जब डार्विन नें यह रहस्योदघाटन किया कि मनुष्य का विकास बंदरों की एक नसल एप (Ape) से हुआ है तो इसका प्रचंड विरोध हुआ । डार्विन का चेहरा बन्दर के धड़ के ऊपर लगा कर उसकी खिल्ली उड़ाई गयी । लेकिन उनकी खोजों के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए कट्टरपंथी चर्च ने अब उसकी खोजों को अपने धार्मिक लबादे में फिट करना शुरू कर दिया ।


अपने खोज कार्य जारी रखते हुए, डार्विन ने इसके बाद ‘मनुष्य की उत्पत्ति’ (Descent of Man) और अन्य कई किताबें लिखीं । 19 अप्रैल, 1882 के दिन 73 वर्ष की उम्र में इस महान विज्ञानी की मृत्यु हो गयी जो अपने पीछे छोड़ गया मानवता को अपनी बेमिसाल उपलब्धियां ।




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Comments Sundar Singh pendro on 22-12-2021

Kya pahle janan ke baad hi keeton ke vibhin rango ki apekchik sankhya me bahut jyada anter dekhne ko milta hai?

Aarti.kashyap on 07-01-2021

Prakritik chane ko soharna samjhe

Mukesh on 17-01-2020

Obserwation table ko bhariye class 10 th ka


Jjkkkkkk Jjjjjjk on 11-01-2019

Jjkkkkkk

पायल on 23-12-2018

पायल, बंजारे, गांवप,छाती, धमतरी

Chhotu on 07-11-2018

प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया को समझाना

Subaru Suhani on 05-11-2018

Phसकेल मे अमल और छार के पबलता को समझाना का project
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