बाढ़ और सूखा: मिट्टी का कटाव मिट्टी के प्रवाह को बढ़ाता है जिसके कारण बाढ़ और सूखा का विशिष्ट चक्र शुरू होता है।
पहाड़ी ढलानों पर जंगलों को काटना मैदानों की ओर नदियों के प्रवाह को रोकता है जिसका पानी की दक्षता पर असर पड़ता है फ़लस्वरूप पानी तेजी से नीचे की ओर नहीं आ पाता।
वनों की कटाई की वजह से भूमि का क्षरण होता है क्योंकि वृक्ष पहाड़ियों की सतह को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा तेजी से बढ़ती बारिश के पानी में प्राकृतिक बाधाएं पैदा करते हैं। नतीजतन नदियों का जल स्तर अचानक बढ़ जाता है जिससे बाढ़ आती है।
मिट्टी की उपजाऊ शक्ति की हानि: जब ईंधन की मात्रा अपर्याप्त हो जाती है तो गाय का गोबर और वनस्पति अवशेषों को ईंधन के रूप में भोजन बनाने के लिए उपयोग में लिया जाता है। इस वजह से पेड़ों के हर हिस्से को धीरे-धीरे इस्तेमाल में लिया जाता है परन्तु मिटटी को पोषण नहीं मिल पाता। बार-बार इस प्रक्रिया को दोहराने से मिट्टी की उत्पादकता प्रभावित होती है जिससे यह मिट्टी-उर्वरता के क्षरण का कारण बनता है।
वनों की कटाई के साथ जमीन के ऊपर उपजाऊ मिट्टी बारिश के पानी से उन जगहों पर बह जाती है जहां इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
वायु प्रदूषण: वनों की कटाई के परिणाम बहुत गंभीर हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान वायु प्रदूषण के रूप में देखने को मिलता है। जहां पेड़ों की कमी होती है वहां हवा प्रदूषित हो जाती है और शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या सबसे ज्यादा है। शहरों में लोग कई बीमारियों से पीड़ित हैं विशेष रूप से अस्थमा जैसी साँस लेने की समस्याओं से।
विलुप्त होती प्रजातियां: वनों के विनाश के कारण वन्यजीव खत्म हो रहा है। कई प्रजातियां गायब हो गई हैं (जैसे एशियाटिक चीता, नामदाफा उड़ान गिलहरी, हिमालयी भेड़िया, एल्विरा चूहा, अंडमान श्रू, जेनकिंस श्रू, निकोबार चिड़िया आदि) और कई विलुप्त होने के कगार पर हैं।
ग्लोबल वार्मिंग: वनों की कटाई का प्राकृतिक जलवायु परिवर्तन पर सीधा प्रभाव पड़ता है जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है। जंगलों के घटते क्षेत्र के साथ बारिश भी अनियमित हो रही है। इन सबके कारण 'ग्लोबल वार्मिंग' में इजाफा होता है जिससे मनुष्यों पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
रेगिस्तान के फैलाव: जंगलों के क्षेत्र में निरंतर कमी और भूमि के क्षरण के कारण रेगिस्तान एक बड़े पैमाने पर फैल रहा है।
जल संसाधन में कमी: आज नदियों का पानी उथला, कम गहरा और प्रदूषित हो रहा है क्योंकि उनके किनारों और पहाड़ों पर पेड़ों और पौधों की अंधाधुंध कटाई के कारण। इस वजह से अपर्याप्त वर्षा होती है जिससे जल स्रोत दूषित हो रहा है और पर्यावरण भी प्रदूषित और सांस लेने में घातक साबित हो रहा है।
औद्योगीकरण के दुष्प्रभाव: पेड़ों और पौधों ने वातावरण में फैलने वाली इन विषैली गैसों को रोकने और वातावरण में राख आदि के कण को रोक कर पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया है। आजकल शहरों, यहां तक कि कस्बों और गांवों में भी रोज़ नए-नए उद्योग लग रहें हैं। उन से निकलने वाला धुआं विभिन्न प्रकार की विषाक्त गैसों के साथ पर्यावरण में मिलता है।
ओजोन परत को नुकसान: वनों की कटाई के परिणामस्वरूप पृथ्वी का सामान्य रहने वाला वातावरण प्रदूषित हो गया है। यह ओजोन परत के लिए गंभीर खतरा है जो पूरी पृथ्वी की रक्षा के लिए आवश्यक है। उस बुरे दिन की कल्पना भी करना बेहद खतरनाक है (ईश्वर करे वह कभी न आए) जब ओजोन परत गायब हो जाएगी।
आदिवासियों की घटती संख्या: जंगल के लिए आदिवासियों का अस्तित्व आवश्यक है। आधुनिक समाज की सोच ने जीवन को लाभ का उद्देश्य बना दिया है लेकिन आदिवासियों के लिए जंगल एक पूर्ण जीवन शैली है। यह उनकी आजीविका का साधन है। वन संरक्षण में उनका दृष्टिकोण बहुत महत्वपूर्ण है जो न तो लागू किया गया है और न ही इसे मान्यता प्राप्त है। वे अपने पूर्वजों के समय से ही जंगल की सुरक्षा कर रहे हैं। आदिवासियों को जितना ज़मीन जरूरी है वे उतना ही लेते हैं और बदले में वे उन्हें कुछ देते हैं। उनके मन में वन के प्रति गहरा सम्मान है। जंगल के उपयोग में आदिवासियों के तरीके और नियम स्वाभाविक रूप से स्थायी हैं क्योंकि वन संरक्षण उनके रक्त में है।
यह उल्लेखनीय है कि वन केवल आदिवासियों का आर्थिक आधार ही नहीं बल्कि इससे वे अपनी बीमारियों के उपचार में जंगली जड़ी-बूटियों का भी उपयोग करते हैं। मंडला और दिंडोरी जिलों के 'बागी आदिवासियों' का ज्ञान पूरे देश में जड़ी-बूटियों और हर्बल उपचारों के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
बागी आदिवासी मातृत्व (प्रसव) के दौरान पेड़ों की छाल का उपयोग करते हैं। छाल हटाने से पहले वे वृक्षों को चावल, दाल की भेटं देते हैं और फिर वे वृक्ष भगवान की प्रशंसा में धूप और मंत्रों के साथ पेड़ की पूजा करते हैं। इसके बाद वे अपने औज़ार से वृक्ष की केवल इतनी ही छाल निकालते है जिसे दवा के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। आदिवासियों के इस नियम के अनुसार इस तरह से केवल थोड़ी ही छाल निकाली जाती है। उनका मानना है कि अगर इस नियम के बिना छाल को हटा दिया जाता है तो लोग इसका प्रयोग स्वनिर्धारित रूप से शुरू कर देंगे।
हर्बल दवाओं की अनुपलब्धता: आज वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण पहाड़ और जंगल वीरान हो गए हैं। इस कारण औषधीय वनस्पति प्राप्त करना दुर्लभ हो गया है।
वृक्षारोपण की कमी के कारण अनमोल प्राकृतिक संपत्ति तेजी से नष्ट हो रही है। यह जीवन और पर्यावरण के संतुलन को खराब कर रहा है। पत्थरों की मांग के लिए पहाड़ों की चट्टानों को तोड़ा जा रहा है और आसपास के इलाकों में वर्षा भी कम हो रही है।
बेघर पशु: अंतहीन वनों की कटाई के कारण निराश्रित जानवर गांवों में शरण ले रहे हैं। नतीजतन देश के गांवों और कस्बों में प्रवेश करने वाले जंगली जानवरों की घटनाएं बहुत आम हो रही हैं जो मानव जीवन के लिए एक गंभीर खतरा है।
निष्कर्ष: आज जंगलों को अंधाधुंध रूप से काटा जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप मौसमी परिवर्तन, मिट्टी में गर्मी, ओजोन परत की कमी आदि में वृद्धि हुई है। हमारी विकास प्रक्रिया ने हजारों लोगों को पानी, जंगलों और भूमि से विस्थापित कर दिया है। इस महत्वपूर्ण स्थिति में जंगल की रक्षा करना न केवल हमारा कर्तव्य होना चाहिए बल्कि हमारा धर्म भी होना चाहिए। आइए हम सब पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोकने की प्रतिज्ञा ले और जंगल को बचाने में एक अमूल्य योगदान करे। यदि वास्तव में हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए जंगल की विरासत की रक्षा करनी है तो हमें उनसे लाभ प्राप्त करने की सोच की बजाए जीवन के लिए जंगलों को बचाने की सोच का विकास करना होगा। हमें सीखना होगा कि जंगल का सम्मान कैसे करें और हमारे सोचने के तरीके को कैसे बदले।
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Bhawana
पेड़ हमारे लिए क्यों जरूरी है
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Van vinash