फसल एवं त्योहार
बैसाखअक्ती इसी दिन से नई फसल वर्ष की शुरुआत होती है। बीज की तैयारी की जाती है। बीज निकालना और एक-दूसरे को बीज आदान-प्रदान करना।
जेठआ गया जेठ। इस महीने में खेत की सफाई की जाती है। उसके बाद धान बोवाई की जाती है।
आषाढ़-सावनहरेली का त्योहार - अन्न गर्भ पूजा के रुप में मानते हैं। छत्तीसगढ़ में इस त्योहार में मिट्टी के बैल बनाए जाते हैं तथा उनकी पूजा की जाती है।
सावन-भादोपोला - इस त्योहार को भी अन्न गर्भ पूजा के रुप में मनाते हैं। मिट्टी के बैलों को पूजा चढ़ाते हैं।
कुवारनवा खाई - इस महीने में नई फसल की कटाई की जाती है। नए अन्न की पूजा की जाता है। और उसके बाद ही उसेखाया जाता है। इसीलिये इसे कहते हैं, नवा खाई।
कार्तिकगौरा गौरी
अगहनजेठौनी - धान की मिंजाई करते हैं इस महीने में। गाँव के सभी लोग घर से धान की बाली लाते हैं और गाँव के देवता को चढ़ाते हैं। इसके बाद ही मिंजाई आरम्भ करते हैं।
पूष-माघछेर छेरा - धान की मिंजाई खत्म होने के बाद गाँव के बच्चे घर-घर जाते हैं और छेर छेरा गीत गा-गाकर अनाज बीज मांग कर इकट्ठे करते हैं। कटाई होती है उतेरा फसल की।
माघ-फागुनहोली - होली का त्योहार मनाते हैं। उतेरा फसल मिंजाई करते हैं।
चैतचैतरई - इस वक्त खेत की मरम्मत करते हैं। मेढ़ बनाने का कार्य करते हैं।
त्योहार एक नाम अनेक : मकर संक्रांति, पोंगल, लोहड़ी मनाने की एक खास वजह
By: Shweta Mishra | Publish Date: Fri 13-Jan-2017 01:27:03 PM (IST)
लोहड़ी:यह त्योहार पंजाब में मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले मनाया जाता है। पंजाब के अलावा हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली जैसे शहरों में भी इसकी धूम रहती है। यह त्योहर आज यानी कि 13 जनवरी को देश के बड़े भाग में मनाया जाता है। इस त्योहार पर लोग रंग-बिरंगे कपड़े पहनते हैं। लोग एक जगह पर एकत्रित होकर ढोल पर भांगड़ा करते हैं। यह नृत्य लगभग पूरी रात चलता है। इस दिन अग्िन देवता की भी पूजा होती है। लोग अग्िन में चिवड़ा, तिल, मेवा, गजक आदि की आहूति देते हैं। इसके अलावा लोग इसके किनारे फेरे लगाते हैं। वहीं महिलाएं घर पर अलाव जलाकर आंगन में पूजा करती हैं। प्रसाद में तिल, गजक, गुड़, मूंगफली तथा मक्के दाने दिए जाते हैं। इस त्योहार पर लोग नाच गाने के साथ लोग स्वादिष्ट व्यंजनों का मजा लेते हैं।
पोंगल: यह त्योहार दक्षिण भारत में पोंगल के रूप में तीन दिन तक मनाया जाता है। इस पर्व में सूर्य की पूजा होती है। इसकी पूजा में चावल, दूध, घी, शक्कर से भोजन तैयार कर सूर्यदेव को भोग लगाते हैं। इसके अलावा यहां पर पशुओं की भी पूजा होती है। यहां पर तमिलनाडु के कुछ भाग में पोंगल पर जल्लीकट्टू भी मनाया जाता है। जिसमें सांड को गले लगाया जाता है। इसके लिए उसे कंट्रोल करना होता है। वहां पर सांड को काबू करने का यह रिवाज करीब 2,500 साल पुराना कहा जाता है। इस दौरान सांड को काफी तकलीफों से गुजरना पड़ता है। हालांकि वहां पशु प्रेमियों की दायर याचिका की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फिलहाल रोक लगा रखी है।
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