आनुवंशिक विज्ञान को समझने के लिए कुछ शब्दावली का प्रयोग आवश्यक हैं जो निम्नलिखित हैं –
आनुवंशिक विज्ञान में संकरण के प्रयोग में जो पौधे प्रयोग किए जाते हैं , उन्हें जनक पौधे तथा पीढ़ी को जनक पीढ़ी कहते हैं |
दो जनको के मध्य संकरण कराने के फलस्वरूप उत्पन्न पीढ़ी को F1 पीढ़ी कहते हैं | जैसे – शुद्ध लम्बे (TT) तथा शुद्ध बौने (tt) पौधों के बीच क्रास कराने पर F1 पीढ़ी में सभी पौधे संकर लम्बे (Tt) प्राप्त होते हैं |
F1 पीढ़ी के सदस्यों के मध्य क्रास कराने पर उत्पन्न सन्तति को F2 पीढ़ी कहते हैं | संकर लम्बे (Tt) पौधों के मध्य क्रास कराने पर F2 पीढ़ी में लम्बे तथा बौने पौधे 3 : 1 के फीनोटाइप तथा 1 : 2 : 1 के जीनोटाइप के अनुपात में प्राप्त होते हैं |
गुणसूत्र पर स्थित D.N.A. अणु का वह खण्ड जो आनुवंशिक लक्षणों का वहन करता हैं , जीन कहलाता हैं | जीन को आनुवंशिकीय विज्ञान की मूल ईकाई कहते हैं | मेंण्डल ने जीन शब्द का प्रयोग न करके फैक्टर शब्द का प्रयोग किया | जैसे – एक पौधे की लम्बाई |
अगुणित (haploid) गुणसूत्रों का वह पूर्ण समुच्चय जो एक ईकाई या युग्मक (gamete) के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत होते हैं , जीनोम कहलाते हैं | इसे मुख्यत: n गुणसूत्र से प्रदर्शित करते हैं |
किसी एक लक्षण के जीनिक प्रदर्शन को जीनोटाइप कहते हैं | जैसे – लाल रंग के फूल वाले पौधे का समयुग्मजी जीनोटाइप (RR) तथा विसमयुग्मजी जीनोटाइप (Rr) हैं |
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किसी लक्षण का वाह्य या भौतिक रूप से प्रदर्शित होना फीनोटाइप कहलाता हैं | यह समयुग्मजी या विसमयुग्मजी हो सकता हैं | जैसे – पौधे का लम्बा या बौना होना |
जब भिन्न-भिन्न लक्षणों वालो दो जनकों के मध्य क्रास कराया जाता हैं तो उत्पन्न संतति को संकर संतति कहते हैं | जैसे – जब शुद्ध लम्बे तथा शुद्ध बौने पौधे के बीच संकरण या क्रास कराया जाता हैं तो संकर लम्बे पौधे प्राप्त होते हैं |
ईच्छित लक्षणों की संतान प्राप्ति हेतु आनुवंशिक रूप से भिन्न दो प्राणियों के मध्य अपनायी जाने वाली कृत्रिम परपरागण की क्रियाविधि को संकरण (hybridization) कहते हैं |
किसी भी जीव की आकारिकी (morphology) या शरीर क्रिया (physiology) में पर्यावरण के कारण होने वाले परिवर्तन के उपरांत उत्पन्न लक्षणों को उपार्जित लक्षण कहते हैं | ये सामान्यत: वंशागत नहीं होते हैं |
जब तुलनात्मक लक्षणों वाले पौधों या जीवों के मध्य संकरण कराया जाता हैं तो प्रथम पीढ़ी में प्रदर्शित लक्षण को प्रभावी लक्षण कहते हैं | जैसे – लम्बेपन (T) या लाल रंग (R) का गुण |
जब तुलनात्मक लक्षणों वाले पौधों या जीवों के मध्य संकरण कराया जाता हैं तो प्रथम पीढ़ी में जो लक्षण प्रदर्शित नहीं हो पता, उसे अप्रभावी लक्षण कहते हैं | जैसे – बौनेपन (t) या सफेद रंग (r) का गुण |
तुलनात्मक लक्षणों वाले जीन जोड़े को एेलिल कहते हैं | ये गुणसूत्र के एक ही स्थल (Locus) पर स्थित होते हैं | जैसे – पौधे की लम्बाई के लिए लम्बा (T) तथा बौना (t) लक्षण आदि |
जब किसी लक्षण के जोड़े के दोनों जीन समान होते हैं, तो उन्हें समयुग्मजी (Homozygous) पौधे कहते हैं | जैसे – लम्बाई के लिए दोनों प्रभावी जीन (TT) या दोनों अप्रभावी जीन (Tt) एक साथ हो |
जब किसी लक्षण के जोड़े के दोनों जीन असमान या भिन्न-भिन्न होते हैं, तो उन्हें विसमयुग्मजी (Heteroygous) पौधे कहते हैं | जैसे – लम्बे और बौने पौधे के जीन (Tt) एक साथ हो |
जब विसमयुगम्की संकर सन्तान तथा उनके समयुगम्की जनको के मध्य संकरण या क्रास कराया जाता हैं , तो इस प्रकार के संकरण को संकर पूर्वज संकरण कहते हैं | जैसे – F1 पीढ़ी में प्राप्त संकर सन्तान (Tt) का संकरण जनक पीढ़ी के किसी भी पौधे (प्रभावी या अप्रभावी) से कराने की क्रियाविधि को |
F1 पीढ़ी की संकर सन्तान तथा अप्रभावी जनक के बीच कराया जाने वाले संकरण की क्रियाविधि को परीक्षण संकरण कहते हैं | जैसे – जनक पीढ़ी (P) की अप्रभावी जनक (tt) तथा F1 पीढ़ी की संकर संतान (Tt) के मध्य होने वाला संकरण |
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Pratham pidhi me prapt poodhe me svapragan karane par dvitiy pidhi f2 me prapt safed pusp vale poodhe ka pratisat btaiye