Radha Swami Ka Itihas राधा स्वामी का इतिहास

राधा स्वामी का इतिहास



GkExams on 26-03-2022


राधास्वामी मत के संस्थापक सेठ शिव दयाल सिंह जी महाराज है। इनका जन्म 25 अगस्त 1818 को पन्नी गली, आगरा में हुआ था। आप बचपन से ही शब्द योग के अभ्यास में लीन रहते थे। इन्होंने किसी को गुरु नहीं किया। वर्ष 1861 से पूर्व राधास्वामी मत का उपदेश बहुत चुने हुए लोगों को ही दिया जाता था। लेकिन राधास्वामी मत के दूसरे आचार्य की प्रार्थना पर स्वामी जी महाराज ने 15 फ़रवरी सन 1861 को बसन्त पंचमी के रोज राधास्वामी मत आम लोगो के लिये जारी कर दिया।


राधास्वामी मत की दयालबाग शाखा के वर्तमान आचार्य सत्संगी साहब ( डा प्रेम सरन सत्सन्गी) है। इनका निवास स्थान आगरा में दयालबाग है। राधास्वामी मत की स्वामीबाग शाखा में जहाँ पवित्र समाधि स्थित है, वहाँ वर्तमान में कोई आचार्य नहीं है। राधास्वामी मत की हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा शाखा के वर्तमान आचार्य अगम प्रसाद माथुर है।


राधास्वामी मत की ब्यास (पंजाब) शाखा के वर्तमान आचार्य बाबा गुरिंदर सिंह जी है। इसके अतिरिक्त राधास्वामी मत की भारत वर्ष और विदेशों में अनेक शाखायें और उपशाखायें हैं जिनके आचार्य अलग - अलग हैं।


कैसे पड़ा नाम ?


यहाँ सत्संग का नाम राधा स्वामी रखने के पीछे कई मान्यताएं हैं, जैसे एक तो राधा स्वामी यानि भगवान श्री कृष्ण और दूसरा यह भी कहा जाता है कि इस मत के संस्थापक शिव दयाल की अर्धांगिनी का नाम भी राधा था। हालांकि इस मत पर थोड़ा संशय है। खैर जो भी हो, वा सब इतिहास की बातें हैं। मूल बात यही है कि राधा स्वामी के नाम से प्रभु का सिमरन आगरा से शुरू हुआ था। इस मत के सबसे पहले गुरु बाबा शिव दयाल 15 जून 1878 को अपनी सांसारिक भूमिका पूरी करने के बाद प्रभुचरणों में लीन हो गए।


इसके 11 साल बाद 1889 में सेना से रिटायर उनके शिष्य जयमल सिंह ने पंजाब आकर यहां ब्यास नदी के किनारे कुटिया बनाई और भक्तों को नामदान देना शुरू कर दिया। 1903 तक उन्होंने राधा स्वामी के नाम से सत्संग किया। भक्तों की संख्या बढ़ती ही चली गई।


आखिर वर्ष 1839 में जन्मे बाबा जयमल सिंह भी लगभग 64 साल की आयु में भक्तों से विदा ले गए, जिसके बाद सत्संग की कमान उनके शिष्य सावन सिंह ने संभाली। 27 जुलाई 1958 को जन्मे सावन सिंह भी 2 अप्रैल 1948 को स्वधाम चले गए। इसके बाद राधा स्वामी सत्संग ब्यास के चौथे गुरु के रूप में सावन सिंह के शिष्य बाबा जगत सिंह ने जिम्मेदारी संभाली, जिसे वह सिर्फ और सिर्फ 3 साल ही निभा सके।


बाबा सावन सिंह के गद्दीनशीं होते हुए राधा स्वामी सत्संग तीन अलग-अलग विचारधाराओं में विभाजित हो गया। 1925 में सावन सिंह के शिष्य तारा चंद ने हरियाणा के भिवानी में राधा स्वामी सत्संग की शुरुआत की, लेकिन एक अलग नाम के साथ। तब से भिवानी में राधा स्वामी दिनोद के नाम से एक बड़ी धार्मिक संस्था चल रही है।


इसके बाद 1948 में जहां दूसरे शिष्य कृपाल सिंह ने दिल्ली में सवान कृपाल मिशन की शुरुआत की, वहीं 2 अप्रैल 1949 को एक और शिष्य बाब खेमामल, जिन्हें हम बाबा मस्ताना शाह के नाम से भी जानते हैं, ने हरियाणा के सिरसा में सच्चा सौदा के नाम से छोटी सी कुटिया में सत्संग शुरू किया था।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Sushil kumar on 11-09-2021

Radha Swami ji mera swal yh hai ki muje ek saal phle naam daan ki vksish hui sb kuch teek tha pr me rasta bhatk gya or mene shrab or meet maash kha liya or ab me bhut jyada pachtaava kr rha hn man hi man baba ji se maafi bi maag li or ab me baba ji ke btaye raste pe chl rha hn toh kya baba ji ne muje maaf kr diya hoga...


हेमराज on 11-04-2021

क्या-क्या पांच नाम का सिमरन जोकि व्यास गद्दी से मिलता है क्या यह वही नाम है जो हजूर स्वामी जी महाराज ने बाबा जयमल सिंह जी को दिया था


Sikesh kumar on 30-08-2020

Radhaswami ka jiwni


मनोज on 28-05-2020

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