Balakon Me Bhasha Vikash Ke Charan बालकों में भाषा विकास के चरण

बालकों में भाषा विकास के चरण



Pradeep Chawla on 31-10-2018


भाषा विकास क्रमागत बिन्दुओं पर आधारित है- 1. बाल्यावस्था 2. पूर्व शैशवास्था 3. मध्य एवं अपरांह शैशवावस्था 4. किशोरावस्था।

1. शैशवावस्था-

यह तथ्य सर्वविदित है कि शैशवावस्था मनुष्य की सबसे सक्रिय कम- अवधि है। इस अवस्था में मस्तिष्क की सतर्कता, ज्ञानेन्द्रियों की तेजी, सीखने और समझने की अधिकता अपने चरमोत्कर्ष पर होती है। फ्रायड के अनुसार मनुष्य शिशु जो कुछ बनता है जीवन के प्रारम्भिक चार-पांच वर्षो में ही बन जाता है। भाषा को क्रमानुसार प्रस्तुत किया जा सकता है।
  1. रूदन - चूंकि बोलना एक लम्बी एवं जटिल प्रक्रिया के बाद सीखा जाता है, अतएव उसका प्रारूप हमें रूदन अथवा चीखने-चिल्लाने में मिलता है। रिबिल के अनुसार रूदन प्रारम्भ में संकटकालीन होता है। यह अनियमित तथा अनियंत्रित होता है। अत: रूदन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो शिशु अकारण ही करता है। स्टीवर्ट के अनुसार जीवन के प्रारम्भिक दिनों में शिशु रूदन भिन्न मात्रा में पाया जाता है और वह दूसरे सप्ताह में प्रकट होता है। तीसरे सप्ताह में स्वार्थवश रूदन कम हो जाता है। रूदन तीव्रता तथा शिशु के विचारों तथा भावों को अभिव्यक्त करता है। यह रूदन पीड़ा, तेज रौशनी, तीक्ष्ण आवाज, थकान, भूख आदि के कारण हो सकता है।
  2. बलबलाना - इरविन महोदय के अनुसार रूदन में सुस्पष्ट आवाजें पायी जाती है। यह ध्वनि चौथे पांचवें मास के पश्चात स्पष्ट होना प्रारम्भ हो जाती है। बलबलाने में जीवन के प्रथम वर्ष में स्वर ध्वनि सुनार्इ देती है। अ-आ-इ-र्इ-ए-ऐ इसके साथ ही इसी समय तक जबकि आगे के कुछ दांत आ जाते हैं जो होठों के मेल से शिशु ब, ल, त, द, म जैसे व्यंजनों को प्रकट करता है।
  3. इंगित करना- भाषाविदो ने इंगित करने को भाषा विकास का ततश् ीय सोपान कहा। जरसील्ड मैकाथ्र्ाी ने अपने अध्ययन के आधार पर बताया है कि इसके द्वारा शिशु दूसरे को अपने भाव विचार समझाता है। इसे लेरिक ने सम्पूर्ण शरीर की भाषा भी माना है। शिशु ‘हां’ या ‘ना’ की मुद्रा में गर्दन हिला कर भी उत्तर देता है।
  4. बोलना- भाषा प्रयोग की यह अन्तिम अवस्था है। इसका आरम्भ एक डेढ़ वर्ष के करीब होता है। भाषा बोलना भी एक कौशल है अत: इसे अभ्यास की आवश्यकता होती है। यह शरीरिक अवयवों की पुष्टता पर निर्भर करता है। शुरू में निरर्थक शब्द बोले जाते हैं जैसे वा, ला, मा, दा, ना इत्यादि। परन्तु क्रमश: साहचर्य के नियमों के कारण निरर्थक शब्दों में सार्थकता आ जाती है और वे सोद्देश्य प्रयुक्त होते हैं। शब्द बोलने में एक समस्या उच्चारण की होती है। शुरू में बालक अनुकरण से ही उच्चारण सीखता है। शैशवावस्था में उच्चारण योग्यता लचीली मानी जाती है।
  5. भाषा के ध्वनि की पहचान - जैसे पहले स्पष्ट किया जा चुका है कि शब्दों को सीखने से पहले शिशु भाषा की ध्वनि में अन्तर करना सीख जाता है। जैसे रा तथा ला में अन्तर स्पष्ट कर लेते हैं।
  6. प्रथम शब्द - 8 से 12 माह की आयु में बच्चा प्रथम शब्द बाले ता है। इससे पूर्व वह बलबलाना, इंगन आदि अन्य भाव भंगिमाओं के द्वारा अपनी भावाभिव्यक्ति करता है। ब्रेकों के अनुसार बोलना शिशु के सम्प्रेषण की विभिन्न अवस्थाओं का अगला पड़ाव है। शिशु सर्वप्रथम अपने परिवार से जुडे व्यक्तियों जिसमें उसका भावनात्मक लगाव होता है उनको पुकारना प्रारम्भ करता है जैसे बड़ों को दादा, पालतू जानवर को किटी, खिलौनों को टाम खाने को दूध इत्यादि।
  7. शब्द युग्म का उच्चारण - 18 से 24 माह की आयु तक शिशु पा्रय: शब्दों युग्मों को बोलना प्रारम्भ कर देता है यह शब्द युग्म वे अपनी इंगन, कुशलता, शारीरिक इंगन तथा सिर के विभिन्न मुद्राओं के साथ बोलते है। कुछ उदाहरण इस प्रकार है।
स्थान पहचानना - वहाँ पुस्तक
दोहराना - दूध और
किसी वस्तु के प्रति विशेष लगाव - मेरा खिलौना
वस्तु की पहचान - कार बड़ी
क्रिया प्रतिक्रिया - तुम्हें मारूंगा
क्रिया वस्तु - चाकू काटो
प्रश्न - बाल कहाँ
शिशुओं की शब्दावली का अध्ययन विभिन्न मनोवैज्ञानिकों (स्मिथ एवं सीशोर) द्वारा हुआ है तथा कुछ इस प्रकार के निष्कर्ष प्राप्त हुये हैं।


आयुशब्द संख्या
8 मास 0
10 मास1
1 वर्ष3
1-3 वर्ष19
1-6 वर्ष22
1-9 वर्ष118
2 वर्ष272
4 वर्ष1550 (स्मिथ)
4 वर्ष1560 (सीशोर)
5 वर्ष2072 (स्मिथ)
5 वर्ष9600 (सीशोर)
6 वर्ष2562 (स्मिथ)



उपर्युक्त तालिका से शैशवावस्था में शब्दों की संख्या मालूम होती है जो शिशु प्राय: उच्चारित करता है।

बाल्यावस्था में भाषा विकास

बाल्यावस्था जन्मोपरान्त मानव विकास की दूसरी अवस्था है जो शैशवावस्था की समाप्ति के उपरान्त प्रारम्भ होती है। बाल्यावस्था में प्रवेश करते समय बालक अपने वातावरण से काफी सीमा तक परिचित हो जाता है। इस अवस्था में वह व्यक्तिगत तथा सामाजिक व्यवहार करना सीखना प्रारम्भ करता है तथा उसकी औपचारिक शिक्षा का प्रारम्भ भी इसी अवस्था में होता है। बाल्यावस्था में भाषा विकास तीव्र गति से होता है। शब्द भण्डार में वश्द्धि होती है। बालकों की अपेक्षा बालिकाओं में भाषा का विकास तेजी से होता है। वाक्य रचना एवं वाक पटुता में भी बालिकाएं श्रेष्ठ होती है।

सीशोर ने बालक-बालिकाओं के शब्द भण्डार का अध्ययन करके बताया कि उनके शब्दों की संख्या 10-12 साल तक 35,000 के लगभग पहुंच जाती है।

आयुशब्दों की संख्या
7 साल 21200
8 साल26300
10 साल34300
12 साल50500

उपर्युक्त सारिणी देखने से ज्ञात होता है कि बाल्यावस्था में क्रमश: एक वाक्य में अधिक शब्द होते है। बालक अब मिश्रित एवं संयुक्त वाक्यों का प्रयोग अधिक करता है न कि सरल वाक्यों का।




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