डीवी ने दर्शन के विभिन्न पक्षों पर दूरगामी प्रभाव वाले कार्य किए हैं।अत: कुछ ही बिन्दुओं की चर्चा डीवी के कार्यों के साथा न्याय नहीं है। फिरभी सुविधा की दृष्टि से हम महत्वपूर्ण बिन्दुओं की चर्चा करसकते हैं-
1. विमर्शात्मक या विवेचनात्मक जाँच
जॉन डीवी ने समस्याओं को समझने एवं उनके समाधान हेतु विमर्शात्मकया विवेचनात्मक जाँच पर सर्वाधिक जोर दिया। समस्या का समाधान कैसेकिया जाय या किसी समस्या में क्या निहित है? या आलोचनात्मक अन्वेषणक्या है? मानव-संर्दभों में बुद्धि का प्रयोग कैसे किया जाये? अपने इन प्रश्नोंका उत्तर डीवी ने अपनी पुस्तकों ‘हाउ टू थिंक’ और ‘लॉजिक: दि थ्योरी ऑफइन्क्वायरी’ में दिया। उन्होंने विमर्शात्मक चिन्तन के सोपानबताये -
- समस्या का आभास: इस चरण में कुछ गलत होने की अनुभूतिहोती है। हमारे किसी विचार पर प्रश्न चिन्ह लगता अनुभव होताहै या इस पर कार्य करने से द्वन्द्व या भ्रम की स्थिति का आभासहोता है।
- द्वितीय सोपान में समस्या का स्पष्टीकरण होता है। विश्लेषण औरनिरीक्षण के द्वारा हम पर्याप्त तथ्य संग्रहित करते हैं जिससेसमस्या को समझा जा सकता है और परिभाषित किया जा सकताहै।
- समस्या को स्पष्ट करने के बाद समाधान हेतु परिकल्पनाओं कानिर्माण किया जाता है।
- चतुर्थ चरण में निगनात्मक विवेचना द्वारा विभिन्न परिकल्पनाओं केनिहितार्थ को समझने का प्रयास करते हैं और उस परिकल्पना तकपहुँचते हैं जो सबसे उपयुक्त हो तथा जिसका वास्तव में परीक्षणकिया जाये।
- पाँचवा पद जाँच का है जब परिकल्पना के स्वीकार किए जाने कीसंभावना का निरीक्षण या प्रयोग द्वारा निर्धारण होता है। अबपरिस्थिति या असमंजस की जगह- समाधान या स्पष्टता मिलजाती है।
2. अनुभव
डीवी के विचारों के केन्द्र में अनुभव है जो कि बार-बार उसके लेखनमें दिखता है। उसने अपने कार्यों इक्सपिअरेन्स एण्ड नेचर, आर्ट इज इक्सपिअरेन्सया इक्सपिअरेन्स एण्ड एडुकेशन जैसे अपने कार्यों में अनुभव पर अत्यधिकजोर दिया। उनके लिए मानव का ब्रह्माण्ड से सम्बन्ध या व्यवहार का हर पक्षअनुभव है। प्रकृति एवं वस्तुओं की अन्तर्क्रिया को महसूस करना अनुभव है।
रूढ़िवादी दृष्टिकोण अनुभव को ज्ञान से सम्बन्धित मानता है पर डीवीइसे जीवित प्राणी एवं उसके सामाजिक एवं प्राकृतिक वातावरण के मध्य कीअन्तर्क्रिया मानते हैं। रूढ़िवादी इसे आत्मनिष्ठ, आन्तरिक तत्व मानते हैं जोवस्तुनिष्ठ वास्तविकता से भिन्न है। पर डीवी ने वस्तुनिष्ठ विश्व को महत्वदिया है जो मानव की क्रिया एवं पीड़ा में प्रवेश करता है और मानव के द्वारावह परिवर्तित भी किया जा सकता है। डीवी दिए हुए तथ्य या परिस्थिति मेंपरिवर्तन का पक्षधर है ताकि मानव के उद्देश्य पूरे हो सकें। डीवी अनुभव कोभविष्य से जोड़ता है। अगर हम परिवर्तन चाहते हैं तो हमें भविष्य की ओरउन्मुख होना होगा अत: अनुस्मरण की जगह प्राज्ञान या पूर्वाभास पर जोरदेना चाहिए। अत: डीवी ने अनुमान पर जोर दिया है।
3. ज्ञान
डीवी परम्परागत ज्ञानशास्त्र, जिसमें जानने वाले को संसार से बाहरमानकर सम्भावनायें, विस्तार तथा ज्ञान की वैद्यता के बारे में पूछा जाता है, कोअस्वीकार करता है। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि जाननेवाला तथ्यों के सहीविवरण देता है या नहीं वरन् महत्वपूर्ण यह है कि वह अनुभवों के एक समूहका अन्य परिस्थितियों में कैसे प्रयोग करता है।
डीवी की दृष्टि में ज्ञान को समस्यागत या अनिश्चित परिस्थितियोंतथा चिन्तनशील अन्वेषण के संदर्भ में रखा जाना चाहिए। तथ्यों का संकलनसे ज्ञान अधिक है। ज्ञान हमेशा अनुमान सिद्ध होता है तथा समस्या यह होतीहै कि किसी तरह अनुमान की प्रक्रिया को विश्वसनीय या सही निष्कर्ष प्राप्तकरने हेतु निर्देशित किया जाये। इसमें नियंत्रित निरीक्षण, परीक्षण तथा प्रयोगकिये जाते हैं। यह अन्वेषण की उपज है। डीवी ने बेकन के विचार ‘ज्ञानशक्ति है’ को माना और उसके अनुसार इसकी जाँच सामाजिक प्रगति कामूल्यांकन कर किया जा सकता है।
4. दर्शन
‘दि नीड फॅार ए रिकवरी ऑफ फिलासफी’ में डीवी दर्शन को दर्शनकी समस्याओं के अध्ययन का शास्त्र के रूप में उपयोग करने की जगहमानव की समस्याओं के अध्ययन की विधि बनाने पर जोर देता है। डीवी केअनुसार मानव की समस्यायें लगभग सभी परम्परागत समस्याओं एवं अनेकउभरती समस्याओं को समाहित करता है।
‘रिकंसट्रक्सन ऑफ फिलासफी’ में डीवी दर्शन के सामाजिक कार्योंपर बल देता है। दर्शन का कार्य सामाजिक एवं नैतिक प्रश्नो पर मानव कीसमझ बढ़ाना है, नैतिक शक्तियों का विकास करना है तथा मानव कीआकांक्षाओं को पूरा करने में योगदान कर अधिक व्यवस्थित मानसिकप्रसन्नता प्राप्त करना है।
डीवी की दृष्टि में दर्शन मानव संस्कृति की उपज है। साथ ही वह एकसाधन है मानव संस्कृति की आलोचना और विश्लेषण कर उसे एक दिशाऔर रूप देने का। ‘इक्सपीरियन्स एण्ड नेचर’ में वह दर्शन को ‘आलोचना कीआलोचना’ कहता है- यह आलोचना के एक सिद्धान्त का रूप ले लेती है-मूल्यों एवं विश्वासों के मूल्यांकन का अनेक माध्यम प्रदान करती है। हमआलोचना करते हैं कि ताकि बेहतर मूल्यों का विकास कर सकें। दर्शन कीसभी शाखायें इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अपनी विशिष्ट भूमिका निभातीहैं।
जीव विज्ञानी दृष्टिकोण - डीवी ने आनुवंशिक (जेनेटिक) दृष्टिकोण पर बलदिया। दूसरा, उनका मानना था कि जाँच का एक जीव विज्ञानी साँचा यामैट्रिक्स होता है। डार्विन और जेम्स के अध्ययन से डीवी को यह स्पष्ट हुआकि जीवित प्राणियों का पर्यावरण से अनुकूलन या समायोजन अत्यन्त महत्वपूर्णहै तथा बुद्धि व्यवहार का विशेष प्रकार है। यह भविष्य की आवश्यकताओं कोपूरा करने हेतु उपयुक्त साधन से सम्बन्धित है। मस्तिष्क पर्यावरण (वातावरण)को नियन्त्रित करने का साधन जीवन प्रक्रिया के उद्देश्यों के संदर्भ में है।डार्विन का दर्शन पर प्रभाव को दर्शाते हुए डीवी कहते है कि दर्शन वस्तुत:समाधान के लिए उपायों को प्रक्षेपित (प्रोजेक्ट) करना है।
5. प्रयोगवाद
यह डीवी के प्रक्षेपित जाँच से सम्बन्धित है- जिसके लिए परिकल्पना,प्रयोग तथा भविष्यवाणी केन्द्रीय है। प्रयोग कार्य की योजना है जो परिणामको निर्धारित करती है। बुद्धि को परिणाम में शामिल करने की यह एकविधि है। सामाजिक योजना या शिक्षा में भी डीवी प्रयोग की जरूरत बतातेहैं।
6. उपकरणवाद (इन्स्ट्रुमेन्टलिज्म)
विचार बाह्य वस्तु की प्रतिकृति नहीं है वरन् उपकरण या साधन है।यह किसी जीव के व्यवहार को सुगम बनाने का साधन है। तात्विक याअन्तरस्थ एवं कारक (इन्स्ट्रमेन्टलिज्म) का अन्तर करना नैतिक या तात्विकअच्छाइयों को दिन प्रतिदिन के जीवन से और दूर करना है।
7. सापेक्षवाद
डीवी का सापेक्षवाद निरपेक्षवाद के विपरीत है तथा यह एक संदर्भ,परिस्थिति एवं सम्बंध के महत्व पर जोर देता है किसी वस्तु या तथ्य को संदर्भसे हटाकर देखना उसे उसके मूल्य या अर्थ से अलग कर देना है। निरपेक्ष याअसीम को उन्होंने कोर्द स्थान नहीं दिया है तथा अबाधित सामान्यीकरणगलत दिशा में ले जा सकता है। एक विशेष परिस्थिति में एक आर्थिक नीतिया योजना अच्छी हो सकती है- जो इसे वांछनीय बनाता है पर दूसरीपरिस्थिति में हो सकता है वह अवांछनीय हो जाय। एक चाकू पेन्सिल कोछीलने हेतु अच्छा हो सकता है पर रस्सी काटने के लिए बुरा हो सकता है।लेकिन उसे बिना प्रतिबन्ध अच्छा या बुरा कहना अनुचित होगा।
8. सुधारवाद
डीवी ‘रिकंसट्रक्सन इन फिलासफी’ में कहते हैं कि पूर्ण अच्छा या बुराकी जगह जोर वर्तमान परिस्थिति में सुधार या प्रगति पर होना चाहिए।
9. मानवतावाद
डीवी के दर्शन में अलौकिकता एवं धार्मिक रूढ़िवादिता का कोर्इ स्थाननहीं है। ए कॉमन फेथ में डीवी कहते है कि सभ्यता में सर्वाधिक मूल्यवानचीजें निरन्तर चला आ रहा मानव समुदाय है जिसकी हम एक कड़ी हैं तथाहमारा यह कर्तव्य है कि हम अपने मूल्यों की परम्परा को सुरक्षित रखें,हस्तान्तरित करें, सुधार करें और इसको विस्तृत भी करें ताकि हमारे उपरांतजो पीढ़ी आती है वह इसे अधिक उदारता तथा विश्वास भाव से अपना सके।हमारा सामूहिक विश्वास इसी उत्तरदायित्व पर आधारित है।
डीवी का मानवतावाद उसके प्रजातांत्रिक दृष्टिकोण से भी स्पष्ट होताहै। जीवन जीने के तरीके के रूप में प्रजातंत्र मानव स्वभाव की सम्भावनाओंपर आधारित है। डीवी ने विमर्श, आग्रह, परामर्श सम्मेलन एवं शिक्षा कोमतभेद समाप्त करने का साधन माना जो कि प्रजातंत्र और मानवतावाद दोनोंके लिए समाचीन है। उसने शक्ति और दंड के आधार पर किसी मत कोथोपने का हर संभव विरोध किया।
10. राजनीतिक दर्शन
डीवी के अनुसार सर्वाधिक ‘विकास’ महत्वपूर्ण है। सर्वांग उत्तम उद्देश्यनहीं है। ‘‘संपूर्णता अंतिम लक्ष्य नहीं है, बल्कि संपूर्णता की ओर अग्रसरसमझदारी और बेहतरी जीवन का लक्ष्य है।’’ अच्छा होने का यह अर्थ नहींहै कि आज्ञाकारी और हानि न पँहुचाने वाला हो; बिना योग्यता के अच्छार्इविकलांग है। बुद्धि नहीं हो तो संसार की कोर्इ शक्ति हमें नहीं बचा सकतीहै। अज्ञानता सुखद नहीं है, यह मूढ़ता तथा दासता है; केवल बुद्धि ही हमेंअपने भाग्य के निर्माण में कर्ता बना सकता है। हमारा जोर विचारों पर होनाचाहिए न कि भावनाओं पर।
डीवी ने प्रजातांत्रिक पद्धति को स्वीकार किया, यद्यपि वह इसकीकमियों से अवगत थे। राजनीतिक व्यवस्था का उद्देश्य व्यक्ति को अधिकतमविकास में सहायता पँहुचाना है। यह तभी संभव है जब व्यक्ति अपनी योग्यताके अनुसार, अपने समूह की नीति को निश्चित करने तथा भविष्य को निर्धारितकरने में भूमिका निभाये। अभिजात तंत्र तथा राजतंत्र अधिक कार्यकुशल है परसाथ ही अधिक खतरनाक भी है। डीवी को राज्य पर संदेह था। वह एकसामूहिक व्यवस्था पर विश्वास करता था जिसमें जितना अधिक संभव होकार्य स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा की जानी चाहिए। उन्होंने संस्थाओं, दलों, श्रमसंगठनों आदि की बहुलता में व्यक्तिवाद का समन्वय किया।
डीवी की दृष्टि में राजनीतिक पुनर्संरचना तभी संभव है जब हमसामाजिक समस्याओं के समाधान में भी प्रयोगवादी विधि तथा मनोवश्त्ति काप्रयोग करे जो कि प्राकृतिक विज्ञानों में बहुत हद तक सफल रहा है।हमलोग अभी भी राजनीतिक दर्शन के आध्यात्मिक स्तर पर ही हैं।
हमलोग सामाजिक बीमारियों को बड़े-बड़े विचारों, शानदार सामान्यीकरणोंजैसे व्यक्तिवाद या समाजवाद, प्रजातंत्र या अधिनायकवाद या सामन्तवादआदि से समाप्त नहीं कर सकते। हमलोग को प्रत्येक समस्या को विशिष्टपरिकल्पना से समाधान करने का प्रयास करना चाहिए न कि शाश्वतसिद्धान्तों से। सिद्धान्त जाल है जबकि उपयोगी प्रगतिशील जीवन को त्रुटिएवं सुधार पर निर्भर करना चाहिए।
डीवी का शिक्षा दर्शन
विमर्शक अन्वेषण या खोज डीवी के सम्पूर्ण विचार क्षेत्र का महत्वपूर्णपक्ष है। डीवी के अनुसार शिक्षा समस्या समाधान की प्रक्रिया है। हम कर केसीखते हैं। वास्तविक जीवन परिस्थितियों में क्रिया या प्रतिक्रिया करने काअवसर प्राप्त है। खोज शिक्षा में केन्द्रीय स्थान रखता है। केवल तथ्यों कासंग्रह नहीं वरन् समस्या समाधान में बुद्धि का प्रयोग सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।शिक्षा को प्रायोगिक होना चाहिए न कि केवल आशुभाषण या व्याख्यान।
डीवी के अनुसार शिक्षा में पुनर्रचनात्मक उद्देश्य उतना ही महत्वपूर्ण हैजितना अनुभव में कहीं भी। डीवी ने डेमोक्रेसी एण्ड एजुकेशन में कहा है‘‘शिक्षा लगातार अनुभव की पहचान तथा पुनर्रचना है।’’ वर्तमान अनुभव इसतरह से निर्देशित हो कि भावी अनुभव अधिक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी हो।शिक्षा में यदि भूतकाल के मूल्य एवं ज्ञान दिए जाते हैं तो इस तरह से दिएजाने चाहिए कि वे विस्तृत, गहरे तथा बेहतर हो सके। शिक्षा में आलोचना,न कि निष्क्रिय स्वीकृति आवश्यक है। डीवी ने शिक्षा एवं विकास को समानमाना है। अध्यापक के रूप में हम बच्चे के साथ वहाँ से शुरू करते है जहाँवह अभी है, उसकी रूचि एवं ज्ञान में विस्तार कर हम उसे समुदाय एवंसमाज में योग्य व्यक्ति बनाते है। वह अपने विकास के लिए उत्तरदायित्व केसाथ कार्य करना सीखता है तथा समाज के सभी सदस्यों के विकास मेंसहयोग प्रदान करता है। शिक्षा किसी और चीज का साधन नहीं होनाचाहिए। यह केवल भविष्य की तैयारी नहीं होनी चाहिए। विकास की प्रक्रियाआनन्दप्रद तथा आंतरिक रूप से सुखद होनी चाहिए, ताकि शिक्षा के लिएमानव को अभिप्रेरित करें। डीवी का शिक्षा दर्शन शिक्षा की सामाजिक प्रकृतिपर जोर देता है, प्रजातंत्र से इसका घनिष्ठ एवं बहुआयामी सम्बन्ध है।
स्पेन्सर की मांग ‘शिक्षा में अधिक विज्ञान और कम साहित्य’ से आगेबढ़कर डीवी ने कहा विज्ञान किताब पढ़कर नहीं सीखना चाहिए वरन्उपयोगी व्यवसाय/कार्य करते हुए आना चाहिए।’ डीवी के मन में उदारशिक्षा के प्रति बहुत सम्मान नहीं था इसका उपयोग एक स्वतंत्र व्यक्ति कीसंस्कृति का द्योतक है- एक आदमी जिसने कभी काम नहीं किया हो इसतरह की शिक्षा एक अभिजात्य तंत्र में सुविधा प्राप्त सम्पन्न वर्ग के लिए तोउपयोगी है पर औद्योगिक एवं प्रजातांत्रिक जीवन के लिए नहीं। डीवी केअनुसार अब हमें वह शिक्षा चाहिए जो व्यवसाय/पेशे से मिलती है न किकिताबों से। विद्वत संस्कृति अहंकार को बढ़ाता है पर व्यवसाय/कार्य में साथमें मिलकर काम करने से प्रजातांत्रिक मूल्यों का विकास होता है। एकऔद्योगिक समाज में विद्यालय एक लघु कार्यशाला और एक लघु समुदायहोना चाहिए- जो कार्य या व्यवहार तथा प्रयास एवं भूल (भूल एवं सुधार)द्वारा सिखाये। कला एवं अनुशासन जो कि सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्थाके लिए आवश्यक है, की शिक्षा दी जानी चाहिए। विद्यालय केवल मानसिकवृद्धि का साधन प्रदान कर सकता है, शेष चीजें हमारे द्वारा अनुभव को ग्रहणएवं व्याख्या करने पर निर्भर करता है। वास्तविक शिक्षा विद्यालय छोड़ने परप्रारम्भ होती है- तथा कोर्इ कारण नहीं है कि ये मृत्यु के पूर्व रूक जाये।