Lokpal And Lokayukt
भ्रष्टाचार राष्ट्र का कोढ़ है। भ्रष्टाचार प्रशासन की एक प्रमुख समस्या बन गया है। भ्रष्टाचार को मिटाने और दूर करने के लिए विभिन्न देशों में समय-समय पर अनेक कदम उठाये गये है। स्वीडन में सर्वप्रथम 1809 में संविधान के अन्तर्गत ओम्बुड्समैन की स्थापना की गयी। भारत में आम्बुड्समैन को लोकपाल के नाम से जाना जाता है। फिनलैण्ड में 1918में, डेनमार्क में 1954में, नार्वे में 1961 में व ब्रिटेन में 1967में ओम्बुड्समैन (लोकपाल) की स्थापना भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए की गई। विभिन्न देशों में ओम्बुड्स को विभिन्न नामों से जाना जाता है। इंगलैण्ड में इसे संसदीय आयुक्त, सेवियत संघ में ‘वक्ता‘ अथवा प्रोसिक्युटर व डेनमार्क एंव न्युजीलैण्ड में इंगलैण्ड की तरह संसदीय आयुक्त के नाम से जानते है एवं भारत में इसे लोकपाल के नाम से जाना जाता है।
सन 1967 के मध्य तक ओम्बुड्समैन (लोकपाल) संस्था 12 देशों मेंफैल गई थी। भारत में भारतीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने प्रशासन के विरूद्व नागरिको की शिकायतो को सुनने एंव प्रशासकीय भ्रष्टाचार रोकने के लिए सर्वप्रथम लोकपाल संस्था की स्थापना का विचार रखा था जिसे स्वीकार नही किया गया। भारत में सन 1971 में लोकपाल विधेयक प्रस्तुत किया गया जो पाँचवी लोकसभा के भंग हो जाने से पारित न हो सका। राजीव गाँधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद लोकपाल विधेयक 26 अगस्त1985 को संसद में प्रस्तुत किया गया और 30 अगस्त 1985 को संसद में इस विधेयक के प्रारूप को पुनर्विचार के लिए संयुक्त प्रवर समिती को सौंप दिया, जो पारित न हो सका।
वर्तमान में समाजसेवी अन्ना हजारे लोकपाल विल लाने के लिए देशवासियों को प्ररित कर रहे है एवं राजनीतिज्ञों से मिल रहे है लेकिन अन्ना हजारे व कपिल सिब्बल के बीच आम सहमति न बन पाने के कारण यह विधेयक चर्चां के घेरे में है। प्रशन यह है कि भारत में लोकपाल विधेयक के दायरे में राष्टपति, उपराष्टपति, प्रधानमंत्री, केन्द्रिय मंत्रीयो, शीर्ष न्यायपालिका व लोकसभा अध्यक्ष आदि को रखा जाए। इसके लिए हमें विभिन्न देशों में विधमान ओम्बुड्समैन (लोकपाल) के दायरे में आने वाले मंत्रीयो, लोकसेवकों व न्यायपालिका के सन्दर्भ की परिस्थितयों का अध्ययन करके भारतीय संविधान का आदर करते हुए, भारतीय परिस्थितयों के अनुकूल लोकपाल के दायरे में लोकसेवको व मंत्रीयो आदि को रखा जाए।
लोकपाल का एक अध्यक्ष होगा जो या तो भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश या फिर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज या फिर कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति हो सकते हैं I
• लोकपाल में अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से आधे न्यायिक पृष्ठभूमि से होने चाहिए I
• इसके अलावा कम से कम आधे सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होने चाहिएI
लोकपाल का अधिकार क्षेत्रः
लोकपाल कुशासन, अनुचित लाभ पहुंचाने या भ्रष्टाचार से संबंधित मामले जो किसी मंत्री या केंद्र या राज्य सरकार के सचिव के अनुमोदन से की गई प्रशासनिक कार्रवाई के खिलाफ में पीड़ित व्यक्ति द्वारा लिखित शिकायत किए जाने पर या स्वतः संज्ञान लेते हुए, जांच कर सकता है। लेकिन लोकपाल पीड़ित व्यक्ति को अदालत या वैधानिक न्यायाधिकरण से मिली किसी भी फैसले के संबंध में किसी प्रकार की जांच नहीं कर सकता है।
लोकायुक्त के कार्य –
(1) कुशासन की वजह से न्याय और परेशानी संबंधी नागरिकों की शिकायतों की जांच।
(2) सरकारी कर्मचारी के खिलाफ पद का दुरुपयोग, भ्रष्टाचार या ईमानदारी में कमी के आरोपों की जांच करना। शिकायतों और भ्रष्टाचार उन्मूलन के संबंध में इस प्रकार के अतिरिक्त कार्य की जानकारी राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट अधिसूचना से दी जा सकती है।
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