मध्य प्रदेश के धार ज़िले के एक गाँव में कुछ महिलाओं को सरकार से मिलने वाली वृद्धावस्था पेंशन कई साल से नहीं मिल पा रही थी. एक दिन उन्होंने गाँव के सूचनालय में जाकर पाँच रूपए ख़र्च करके ई-मेल के ज़रिए अपनी शिकायत संबंधित अधिकारी के पास भेज दी. तुरंत जाँच हुई और पता चला कि गाँव के ही कुछ लोग धाँधली करके उन महिलाओं की पेंशन खुद खा जाते थे. उनकी पेंशन फिर से मिलने लगी. ये सबकुछ अब संभव हो रहा है ज्ञानदूत परियोजना की बदौलत. ज्ञानदूत सूचना परियोजना शुरू होने के बाद कोई भी किसान गाँव में लगे सूचनालय में ई-मेल के ज़रिए कोई भी प्रमाण-पत्र लेने के लिए आवेदन कर सकता है या किसी भी सरकारी अधिकारी की धाँधलियों की शिकायत कर सकता है. सरकार ऐसे अनुरोधों और शिकायतों पर तेज़ी से काम करती है और एक सप्ताह के अंदर संबंधित व्यक्ति को संतोषजनक सूचना मिल जाती है.
ज्ञानदूत परियोजना को आकार देने और इसे शुरू करने वाले अधिकारी डॉक्टर राजेश राजौरा बताते हैं कि इस परियोजना के आरंभ में धार ज़िले के 36 गाँवों में सूचनालय बनाए गए थे और इन्हें ज़िला स्तर पर बनाए गए एक सर्वर से इंटरनेट के ज़रिए जोड़ा गया था. सूचनाएं इन सूचनालयों में मंडियों के ताज़ा भाव और सरकारी तंत्र से संबंधित तमाम जानकारियाँ होती हैं जिनके आधार पर किसान अपने उत्पाद को बेचने या नहीं बेचने के बारे में फ़ैसला कर सकते हैं. इतना ही नहीं इन्हीं सूचनालयों के ज़रिए अब गाँव में ही किसी अधिकारी की लापरवाही और भ्रष्टाचार की भी शिकायत की जा सकती है. ज्ञानदूत परियोजना की उपयोगिता को देखते हुए अब इसे मध्यप्रदेश के आठ अन्य ज़िलों में और देश के अन्य क्षेत्रों में भी शुरू किया जा रहा है.
अगर कोई अधिकारी रिश्वत की माँग करता है या अपना काम करने में ज़रूरत से ज़्यादा देर लगाता है तो ई-मेल के ज़रिए ही उसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से की जा सकती है जिस पर तुरंत कार्रवाई होती है और उसकी सूचना भी ई-मेल के ज़रिए शिकायत करने वाले व्यक्ति को दे दी जाती है. डॉक्टर राजौरा कहते हैं कि इस परियोजना के ज़रिए दरअसल ई- गवर्नेंस यानि इंटरनेट के ज़रिए सरकार का संचालन करने की अवधारणा का सफल प्रयोग हुआ है. समस्याएं सरकार के दावे के उलट आम ग्रामीण लोग और किसान शिकायत करते हैं कि ज्ञानदूत परियोजना के तहत सुविधाएं अभी सब लोगों को आसानी से उपलब्ध नहीं हैं. दूसरी समस्या ये भी है कि गाँवों में टेलीफ़ान लाइनें ठीक तरह से काम नहीं करतीं और बिजली भी नहीं आती जिसके कारण सूचनालय सुचारू रूप से काम नहीं करते. एक समस्या ये भी सामने आ रही है कि लोगों को इन सुविधाओं के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है जिससे वे इनका समुचित फ़ायदा नहीं उठा पाते. इसमें कोई शक नहीं कि ज्ञानदूत के ज़रिए अब सरकार तक लोगों की सीधी पहुँच होने की संभावनाएं बढ़ीं हैं लेकिन ज़रूरत ये भी है कि ये सूचनालय सुचारू रूप से काम करें और लोगों को इनकी पर्याप्त जानकारी भी हो. भारत एक कृषि प्रधान देश है और ज़्यादातर आबादी गाँवों में ही रहती है इसलिए कृषि क्षेत्र को और ख़ासतौर से गाँवों में रहने वाले लोगों को भी सूचना प्रौद्योगिकी का फ़ायदा मिलना ही चाहिए. ज्ञानदूत से ये आशा जगी है कि सरकार तक जिनकी पहुँच नहीं होती उनकी बात अब सरकार तक आसानी से पहुँचने लगेगी. विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसी ही सुविधाएं देश के बाक़ी हिस्सों में भी तेज़ी से शुरू किए जाने की ज़रूरत है. साथ ही ये भी सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि इनका फ़ायदा सही मायने में ग्रामीणों और किसानों को मिल सके. |
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