विदेशी व्यापार के लाभ -
विभिन्न वस्तुओं की उपलब्धि- ऐसी वस्तुए जिनका विदेशों में उत्पादन हो रहा है किन्तु जिन्हें हमारे देश में उत्पन्न नहीं किया जा सका है, उनका उपभोग भी विदेशी व्यापार के कारण किया जा सकता है।
अतिरिक्त उत्पत्ति से विदेशों मुद्रा की प्राप्ति- देश में आवश्यकता से अधिक उत्पादन को विदेशों में बेचकर विदेशी मुद्रा प्राप्त की जा सकती है।
प्राकृतिक साधनों का पूर्ण उपभोग- विदेशी व्यापार के कारण बाजारों का विस्तार हो जाता है, जिससे अतिरिक्त उत्पादनों को विदेशी मंडियों में आसानी से बेचा जा सकता है। न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन करके प्राकृतिक साधनों का पूर्ण उपभोग किया जाता है।
क्षेत्रीय श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण- अधिकतर राष्ट्र अपने देश की जलवायु तथा प्राकृतिक साधनों की उपलब्धि के अनुरूप ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, जिनके उत्पादन में उन्हें पूर्ण कुशलता प्राप्त हो। परिणामस्वरूप ऐसे उत्पादन की मात्रा बढ़ाकर क्षेत्रीय श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण के लाभ उठाने लगते हैं।
जीवन-स्तर तथा आय में वृद्धि- विदेशी व्यापार के कारण सभी उपभोक्ताओं को सस्ती, सुन्दर, टिकाऊ वस्तुए मिलने से उनका जीवन-स्तर ऊॅंचा उठाने लगता है तथा उनकी वास्तविक आय में वृद्धि होती है।
उत्पादन विधि में सुधार- विदेशी व्यापार में प्रतिस्पर्धा होने के कारण कम लागत पर अच्छा माल उत्पन्न करने के लिए उत्पादन विधियों में समय-समय पर सुधार किये जाते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को अच्छा माल मिलने लगता है।
संकट में सहायक- बाढ़, भूकम्प, सूखा आदि प्राकृतिक संकटों के आने पर विदेशों से खाद्य सामग्री आयात कर इन संकटों का सामना किया जा सकता है। भारत ने विगत वर्षों में खाद्य संकट आने पर विदेशों से भारी मात्रा में खाद्य सामग्री का आयात किया था।
अन्तर्राष्ट्रीय श्शान्ति एवं सद्भावना- विदेशी व्यापार के कारण वस्तुओं के साथ-साथ विचारों के आदान-प्रदान के भी अवसर प्राप्त होते रहते हें, जिससे ज्ञान एवं संस्कृति का भी आदान’-प्रदान होता रहता है तथा सद्भावना का जन्म होता है।
औद्योगिकरण को प्रोत्साहन- विदेशी व्यापार से बाजार का विस्तार हो जाने के कारण नये-नये उद्योगों का जन्म होता है एवं पुराने उद्योगों का विकास हाने े लगता है।
यातायात के साधनों में वृद्धि- विदेशी व्यापार के कारण वायु, जल एवं थल यातायात के साधनों में पर्याप्त वृद्धि होने लगती है। नये-नये परिवहन एवं संचार साधनों का विकास होता है।
मूल्य में स्थायित्व- वस्तुओं की पूर्ति में कमी होने के कारण बाजार में वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि हो जायेगी, परिणामत: विदेशों से वस्तुओं का आयात प्रारंभ हो जाएगा। वस्तुओं की पूर्ति में वृद्धि के कारण भाव पुन: कम हो जायेंगे। इस प्रकार विदेशी व्यापार से वस्तुओं के मूल्यों में स्थिरता बनी रहती है।
उपर्युक्त लाभों के अतिरिक्त विदेशी कार्यकुशलता एवं रोजगार में वृद्धि, एकाधिकार की समाप्ति, श्शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक विकास में विदेशी व्यापार सहायक होता है।
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