19वीं शताब्दी में भारत नवजागरण की जिन प्रवृत्तियों के दौर से गुजर रहा था, उन्हें “समाज सुधार आन्दोलन (Social Reform Movements)” की संज्ञा दी जाती है. विभिन्न संस्थाओं तथा संगठनों ने धार्मिक तथा सामजिक सुधार के माध्यम से वैज्ञानिक तथा आधुनिक वैचारिक प्रवृत्तियों को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. आज हम 19वीं शताब्दी में धर्म तथा समाज सुधार आन्दोलन (Religion and Social Reform Movements) के महत्त्वपूर्ण तथ्यों को एक-एक कर के आपके सामने रखेंगे. इस पूरे पोस्ट को पढ़ने के बाद आप इस Quiz को जरुर खेलें> धर्म तथा समाज सुधार आन्दोलन
इस आन्दोलन के प्रणेता हेनरी विवियन डेरोजियो/Henry Louis Vivian Derozio थे. इनके पिता पुर्तगाली एवं माता भारतीय थीं.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस (1836-86) की स्मृति में 1 मई, 1897 को की. सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत वर्ष 1909 में मिशन का औपचारिक पंजीकरण कराया गया.
थियोसॉफिकल सोसाइटी की स्थापना मैडम वलाव्त्सकी तथा कर्नल हेनरी स्टील आलकाट/Madam Valavtski and Henry Steel Olcott ने वर्ष 1875 में अमेरिका में की.
गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन (अकाली आन्दोलन) वर्ष 1920 में भ्रस्ट सिख महंतों के विरुद्ध हुआ. वर्ष 1922 में सिख गुरुद्वारा अधिनियम (Sikh Gurdwaras Act) पास हुआ जो वर्ष 1925 में संशोधित किया गया. तत्पश्चात् शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की स्थापना हुई.
उन्नीसवीं शताब्दी में समय-समय पर मुस्लिम धर्म सुधारकों ने अनेक धर्म सुधार आन्दोलन चलाये. इनकी प्रवृत्ति मुख्यतः दो प्रकार की थी. एक पुनरुत्थान (वहाबी, फराजी, तैयूनी) तथा दुसरे आधुनिकीकरण युक्त आन्दोलन; जैसे – अलीगढ़ आन्दोलन थे.
इस आन्दोलन का उद्देश्य “दारुल हर्ब” को “दर-उल-इस्लाम” में बदलना था. इस विचारधारा को आन्दोलनकारी रूप रायबरेली के “सैय्यद अहमद बरेलवी” तथा “मिर्जा अजीज” ने दिया.
30 मई, 1866 को मुहम्मद कासिम ननौत्वी तथा रशीद अहमद गंगोही ने सहारनपुर के पास देवबंद में दारुल उलूम (Darul Uloom) की स्थापना की.
ब्रह्म समाज की गतिविधियों के प्रभाव, केशवचंद्र सेन की प्रेरणा तथा ईसाई मिशनरियों के प्रक्रिया के परिणामस्वरूप वर्ष 1864 में धरलू नायडू वेद समाज की स्थापना मद्रास में हुई.
केरल में श्री नारायण गुरु ने वर्ष 1927 में “नारायण धर्म परिपालन योगम (Narayana Dharma Paripalana Sabha)” की स्थापना की. अद्वैत वेदान्त के साथ ही श्री नारायण गुरु ने समाज में व्याप्त अस्पृश्यता तथा जातिवाद का विरोध किया.
संगठन | संस्थापक | स्थान | वर्ष |
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दीनबंधु सार्वजनिक सभा | ज्योतिबा फूले | महाराष्ट्र | 1884 |
देव समाज | शिवनारायण अग्निहोत्री | लाहौर | 1887 |
इंडियन नेशनल सोशल कांफ्रेंस | रानाडे | बम्बई | 1887 |
विधवा आश्रम | डीके कर्वे | पूना | 1899 |
सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी | गोखले | बम्बई | 1905 |
पूना सेवा सदन | रमाबाई रानाडे | पूना | 1909 |
सोशल सर्विस लीग | एनएम जोशी | बम्बई | 1911 |
सेवा समिति | एचएन कुंजरु | इलाहाबाद | 1914 |
विश्व भारती | रबीन्द्रनाथ टैगोर | बंगाल | 1918 |
हरिजन सेवक संघ | महात्मा गांधी | अहमदाबाद | 1932 |
उन्नीसवीं सदी में क्षेत्रीय स्तर पर बंगाल से प्रारम्भ होने वाले समाज सुधार आंदलनों की राजा राममोहन राय की धारा, डेरेजियो, देवेन्द्रनाथ, केशवचन्द्र सेन आदि के माध्यम से आगे बढ़ी. यह बंगाल की सीमा को छोड़कर महाराष्ट्र, मद्रास, पंजाब जैसे प्रान्तों में भी फैली. यह क्रम “रामकृष्ण मिशन” के साथ, जिसका कार्य क्षेत्र लगभग अखिल भारतीय था, आगे बढ़ा. विभिन्न क्षेत्रों तथा वर्गों तक इस आन्दोलन ने अपनी पहुँच बनाई. पश्चिमोत्तर भारत के साथ दक्षिण भारत में भी समाज सुधार आन्दोलनों को अत्यधिक प्रसार मिला. दक्षिण भारत में जातिवाद का विरोध अधिक मुखरता के साथ सुधार आन्दोलन का हिस्सा बना था.
अधिनियम | वर्ष | गवर्नर जनरल | विषय |
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शिशु वध प्रतिबंध/ Infanticide Prevention Act | 1802 | वेजली | शिशु हत्या पर प्रतिबंध |
सती प्रथा प्रतिबंध/Sati (Prevention) Act | 1829 | लॉर्ड विलियम बैंटिक | सती प्रथा पर पूर्ण प्रतिबंध (राजा राममोहन के प्रयास से) |
बाल विवाह निषेध विधेयक/The Prohibition of Child Marriage Act | 1829 | लॉर्ड विलियम बैंटिक | 18 वर्ष से कम आयु के लड़कों के विवाह पर प्रतिबंध |
दास प्रथा प्रतिबंध/Slavery Act | 1843 | एलनबरो | 1843 में दासता प्रतिबंध |
हिन्दू विधवा पुनर्विवाह/Hindu Widows' Remarriage Act | 1856 | लॉर्ड कैनिंग | विधवा विवाह की अनुमति (विद्यासागर के प्रयास से) |
नेटिव मैरिज एक्ट/Native Marriage Act | 1872 | नॉर्थब्रुक | अंतर्जातीय विवाह (केशवचंद्र सेन के प्रयास से) |
एज ऑफ़ कंसेंट एक्ट/Age of Consent Act | 1891 | लैंसडाउन | विवाह की आयु 21 वर्ष लड़कियों के लिए निर्धारित (बहरामजी मालाबारी के प्रयास से) |
शारदा एक्ट/Sharada Act | 1930 | इरविन | विवाह की आयु 18 वर्ष लड़कों के लिए निर्धारित (हरविलास शारदा के प्रयास से) |
इन्फेंट मैरिज प्रिवेंशन एक्ट/Infant Marriage Prevention Act | 1931 | इरविन | बाल विवाह प्रतिबंध |
प्राचीनकाल से ही भारत एक धर्मप्रधान देश रहा है. परन्तु प्रारम्भ में हमारे देश में आदर्श धर्म देखने को मिलता था, जिसमें आडम्बरों और अंधविश्वासों का कोई स्थान नहीं था. इसलिए भारतीय समाज का विकास भी स्वस्थ परम्परा के अनुसार ही हो रहा था. लेकिन विदेशियों के आगमन के साथ ही धीरे-धीरे सामजिक और धार्मिक क्षेत्र में बुराइयों का प्रवेश प्रारम्भ हो गया और भारत में अंग्रेजी शासन के कायम होने तक ये बुराईयाँ अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई थीं. अंग्रेजी राज्य की स्थापना के बाद हिन्दू धर्म अनेक कुरीतियों का शिकार हो गया जिसका प्रभाव समाज पर भी पड़ा. सम्पूर्ण देश में अंधविश्वास और रूढ़िवादिता का अन्धकार छा गया. सती-प्रथा, बाल विवाह, बहु विवाह, जाति प्रथा, बाल हत्या इत्यादि अनेक कुरीतियाँ समाज में व्याप्त हो गयीं.
इन बुराइयों का अंत करने के लिए एक संगठित धर्म तथा समाज सुधार आन्दोलन प्रारंभ हुआ. इसी दौरान एक समाज एवं धर्म सुधारक भारत के रंगमंच पर प्रकट हुए जिन्होंने इस आन्दोलन को व्यापक रूप प्रदान किया. समाज सुधारकों में राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, ईश्वरचंद्र विद्यासागर आदि प्रमुख हैं. धर्म एवं समाज सुधार आन्दोलन के पीछे कई कारण थे जैसे यूरोपीय सभ्यता का प्रभाव, नवीन मध्यम वर्ग का उदय, सामजिक गतिशीलता, सुधारकों का प्रभाव इत्यादि. अंग्रेजी सरकार ने भी इन बुराइयों को दूर करने में भारतीय सुधारकों के साथ सहयोग किया. जिसका परिणाम हुआ कि हमारा समाज कई अंधविश्वासों और कुरीतियों से बिल्कुल मुक्त हो गया.
यद्यपि 19वीं सदी में ही धर्म और समाज सुधार का कार्य प्रारम्भ हो गया था, लेकिन उस समय यह केवल व्यक्तिगत प्रयत्नों तक ही सीमित रहा. किन्तु धीरे-धीरे संगठित रूप से समाज सुधार के प्रयत्न शुरू हो गए. बाल विवाह और बहु विवाह को जड़ से उखाड़कर फेक दिया गया. समाज में जात-पात का बंधन भी ढीला पड़ने लगा. राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, ईश्वरचंद विद्यासागर आदि समाज सुधारकों ने धार्मिक तथा सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जेहाद छेड़ दिया. सुधार आन्दोलन से न केवल धर्म एवं समाज में ही सुधार हुआ बल्कि शिक्षा और साहित्य की भी प्रगति हुई, लोग नयी-नयी भाषा और साहित्य के सम्पर्क में आये. कला और विज्ञान तथा औद्योगिक विकास हुआ. सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि राष्ट्रीयता की भावना का उदय भी इन्हीं सुधारों की वजह से हुआ, इसलिए यह सुधार आन्दोलन अंततः राष्ट्र को स्वतंत्र कराने में सहायक सिद्ध हुआ.
Germany Mein Dharm Sudhar Andolan
Dharm sudhar aandolan se aap kya samjhte h
Dharm sudhar andolan ke Karan
Development of the sikh movement
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