शिवाजी का राजस्व प्रशासन अहमद नगर राज्य में मलिक अम्बर द्वारा अपनाई गई रैयतवाड़ी प्रथा पर आधारित थी।
-शिवाजी ने भूमि के ठेके पर देने की प्रथा छोड़कर भूमि की पैदाइश के आधार पर उत्पादन का अनुमान लगाया जाता था, तथा किसान से लगान निर्धारित होता था। केन्द्रीय अधिकारी द्वारा राजस्व एकत्र किया जाता था।
-लगान व्यवस्था के लिए शिवाजी का राज्य 16 प्रांतों में बांटा गया था। प्रांतों को तर्फ एवं मौजों में बांटा गया था। तर्फ का प्रधान कारकून कहलाता था। और प्रान्त का अधिकारी सूबेदार कहलाता था।
-गांव के प्राचीन पैतृक अधिकारी पाटिल होते थे और जिले के अधिकारी देशमुख या देशपाण्डे होते थे।
-शिवाजी के निर्देशानुसार 1669 में अन्नाजी दत्तों ने एक विस्तृत भू सर्वेक्षण करवाया, जिसके आधार पर राजस्व निर्धारण किया गया।
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शिवाजी की लगान व्यवस्था
-आरम्भ में शिवाजी ने पैदावार का 33 प्रतिशत लगान वसूल करवाया, परंतु बाद में स्थानीय करों और चुंगियों को माफ करने के बाद इसे बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया।
-राजस्व नकद या वस्तु (अनाज) के रूप में चुकाया जा सकता था। नए इलाके बसाने को प्रोत्साहन देने के लिए किसानों को लगान मुक्त भूमि प्रदान की जाती थी।
-भूमि की पैदाइश रस्सी के स्थान पर काठी या जरीब से किया जाता था। खेतों का विवरण रखने के लिए भूस्वामियों से कबूलियत ली जाती थी।
-राज्य कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए तकाबी ऋण देकर और बेकार भूमि पर खेती करने के लिए कोई न कोई कर लगाकर प्रोत्साहित किया जाता था।
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चौथ और सरदेशमुखी कर
मराठा कराधान प्रणाली में दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण कर चौथ और सरदेशमुखी थे।
चौथ
चौथ के बारे में इतिहासकार एकमत नहीं हैं। रानाडे के अनुसार चौथ सैन्यकर था जो तीसरी शक्ति के आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करने के एवज में वसूल किया जाता था। सरदेसाई के अनुसार यह विजित क्षेत्रों से वसूल किया जाता था। वहीं यदुनाथ सरकार के अनुसार यह मराठा आक्रमण से बचने के एवज में वसूल किया जाने वाला कर था। चौथ विजित राज्यों के क्षेत्रों के उपज के एक चौथाई भाग के रूप में लिया जाता था।
सरदेशमुखी
यह आय या उपज का 10 प्रतिशत होता था। जो अतिरिक्त कर के रूप में होता था। शिवाजी के अनुसार देश के वंशानुगत सरदेशमुख (प्रधान मुखिया) होने के नाते और लोगों के हितों की रक्षा करने के बदले उन्हें सरदेशमुखी लेने का अधिकार है।