Gramin Samasya MaRaathi ग्रामीण समस्या मराठी

ग्रामीण समस्या मराठी



Pradeep Chawla on 22-10-2018

भारत की 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है । अत: ग्रामीण क्षेत्रों की हालत ही हमारे देश का वास्तविक प्रतिबिम्ब है । सम्प्रति ग्रामीण अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज के विभिन्न पहलुओं पर नजर डालना आवश्यक हो गया है ।


इसका कारण यह है कि भारतवर्ष उस गति से तरक्की नहीं कर पा रहा जिस गति से उसे करनी चाहिए । एक सौ इक्कीस करोड़ लोगों के देश में लगभग 40 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे हैं । और यह आबादी अधिकांश रूप से गांवों में ही है ।


हमारी आर्थिक प्रगति की दर 8 प्रतिशत के आसपास रही है, पर इसका पूरा लाभ गांवों को नहीं मिला है । इसके अलावा, बेरोजगारी, भुखमरी, महिलाओं पर अत्याचार, जमीन के झगड़े, कम उत्पादन व उत्पादकता और ठंडे पडे शेयर बाजार इस तथ्य के द्योतक हैं कि भारत का आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक समीकरण किसी खास नतीजे को जन्म देने वाला नहीं है । आखिर क्या है इस पिछड़ेपन का कारण? आइये हम भारत के ग्रामीण परिपेक्ष्य पर विचार करके कुछ समस्याओं से रूबरू होते हैं ।


हमारे गांवों में सबसे बड़ी समस्या गरीबों की है । छोटे किसान हमेशा कर्जदार रहते हैं । वे बड़े किसानों पर निर्भर रहते हैं । आखिरकार, बडे जमींदार छोटे किसानों की जमीनों को हड़प कर जाते हैं । आबादी में वृद्धि के कारण जमीन का बटवारा भी होता जा रहा है ।


भाई आपस में मिल कर नहीं रहना चाहते और स्वेच्छा से निर्णय लेना चाहते हैं । अत: जमीन जायदाद के टुकडे हो जाते हैं । छोटे टुकड़े फलदायी नहीं रहते और उनके मालिक कृषि करके घाटा उठाते हैं । वे अपने टुकड़े बेच कर शहरों की ओर रुख करते हैं । वहां तो समस्याओं का अन्त ही नहीं है ।


जो लोग गांवों में रह कर खून पसीना एक करते हैं उन पर प्रकृति की विपदायें अपना हुकुम चलाती है । बाढ़, सूखा, तूफानी हवायें, मृदा की नंपुसकता (Soil Infertility), पानी का अभाव इत्यादि कुछ ऐसी परेशानियां हैं जिन पर मानव का कोई बस नहीं है ।


वर्ष 2002 में पिछले 100 वर्षों का भीषणतम सूखा पड़ा था; भारत के 13 राज्य इस सूखे की चपेट में थे । वर्ष 2003 में इन्द्र देवता की कुछ ज्यादा ही कृपा रही । असम, बिहार, उड़ीसा तथा बंगाल जलमग्न हो गए । गरीब ग्रामीण किसानों ने इन वर्षों मे काफी कष्ट उठाये ।


अगली विकट समस्या है शिक्षा की । भारत में नारी साक्षरता प्रतिशत मात्र 65.46 प्रतिशत है । जाहिर है कि यह राष्ट्रीय औसत है और गांवों में तो शिक्षा की हालत और भी खराब है । यहां महिलाओं के साथ ही पुरुष भी अशिक्षित ही रह जाते हैं ।


अत: वे गरीबी के कुचक्र (Vicious Cycle of Poverty) को इसलिए नहीं तोड़ पाते । क्योंकि वे शिक्षा के द्वारा आगे बढ़ने के सभी मौके खो देते हैं । उनके बच्चे भी शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते यह सत्य है कि बच्चों को स्कूलों में निःशुल्क शिक्षा दी जाती है?


परन्तु उस शिक्षा का अर्थ ही क्या जिसको प्राप्त करके एक ग्रामीण कुछ कार्य ही न कर सके । इसी तथ्य से प्रभावित हो कर सरकार ने व्यावसायिक शिक्षा देना आरम्भ किया है । परन्तु अधिकतर ग्रामीण क्षेत्र शिक्षा के इस व्यावहारिक रूप से वंचित हैं । और यदि किसी ग्रामीण युवक या बाला को शिक्षा प्राप्त करनी होती है तो उसका रूख शहर की ओर हो जाता है । नतीजतन, गांव वैसे का वैसा रह जाता है ।


ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं की कमी है । हम यह नहीं कहेंगे कि इस संदर्भ में मूलभूत सुविधायें नहीं हैं । प्राइमरी हेल्थ सेन्टर तो देश के प्रत्येक जिले में है । परन्तु उनमें दी जाने वाली दवाइयां और डॉक्टरी परामर्श को देखते हुए यह कहना होगा कि गांवों के मरीज तो मध्यकालीन युग में जी रहे है । इसका कारण भी साफ है-ग्रामीण अपनी चिकित्सा पर अधिक खर्च नहीं कर सकते । सरकार खर्च तो करती है परन्तु उसकी भी सीमायें हैं क्योंकि अन्य मदों पर भी तो खर्च करना है ।


अत: सरकार उच्चकोटि की स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवायें नहीं दे पाती; और भुगतना पड़ता है ग्रामीण महिलाओं और बच्चों को । इसी कारण हमारे गांवों में जच्चा मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate) और नवजात मृत्यु दर (Infant Mortality Rate) काफी अधिक हैं । गांवों में झोलाछाप डॉक्टरों और दाइयों का धन्धा खूब पनपता है । इनको अपना भगवान मान कर ग्रामीण धन और समय बर्बाद करते हैं । कई बार तो मरीज की जान को भी खतरा पैदा हो जाता है ।


शिक्षा के अभाव में ग्रामीण भाई व बहन मानसिक रूप से विकसित नहीं हो पाते । कनाडा के जमीदारों के पास कृषि के लिए आधुनिकतम उपकरण हैं । वहां तो गांवों में भी इन्टरनेट है । भारत में ग्रामीण पुरातन युग के कृषि उपकरण का इस्तेमाल कर रहे हैं । इन्टरनेट भारत के कई गांवों में आ चुका है परन्तु इसे चलाने के लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान चाहिए । कम्यूटर का इस्तेमाल करना भी आना चाहिए ।


हमारे ग्रामीण इन नई तकनीकों को बहुत धीमी गति से अपना रहे हैं । परिणामस्वरूप, वे पश्चिमी देशों के ग्रामीणों से पिछड़ रहे है । आधुनिक उपकरण पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में प्रयोग में लाये जाते है । शेष भारत में आधुनिक उपकरणों की कमी है । तमिलनाडु व कर्नाटक में तो पानी ही नहीं है; वहां यदि सिंचाई उपकरण लगा भी दिये जाएं तो क्या लाभ होगा?


अगली समस्या है अच्छी अवसंरचना के अभाव की । हमारे गांवों में अच्छे स्कूलों व कॉलेजों की कमी है । यह बात नहीं है कि स्कूल और कॉलेज इन क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं हैं । उनके मौजूद होने से क्या फायदा यदि छात्रों के बैठने व शिक्षा प्राप्त करने के लिए उचित प्रबन्ध नहीं किए जाएंगे इसके अलावा, सभी ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल प्राप्त करने की आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं ।

ADVERTISEMENTS:

तालाबों, कुओं और नहरों / नदियों का जल पीने लायक नहीं होता । हमारे ग्रामीण अधिकतर इसी जल को प्रयोग में लाते हैं और बीमारियो को आमंत्रण देते हैं । आर.ओ. फिल्टर तो दूर, गांवों में साधारण फिल्टर भी नहीं हैं । इन हालातों में पेट, यकृत, त्वचा और गुर्दों की बीमारियां जन्म लेती हैं । ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को पथरी की बीमारी आम तौर पर पाई जाती है।


भारतीय संदर्भ में एक और समस्या है बेरोजगारी की । खेतों में अन्न व सब्जियां उगाये जाते हैं । इनको उगाने के लिए एक निश्चित चक्र होता है । बीज बो कर तथा जानी दे कर फसलों को उगने के लिए छोड़ दिया जाता है । अब किसान क्या करे? वह फसलों को छोड कर जा नहीं सकता । न ही वह कोई अन्य कार्य कर सकता है । अत: आंशिक बेरोजगारी (Parital Unemployment) कृषि जीवन का अभिन्न अंग बन कर रह गई है ।


इसी कारणवश अनेक युवक गांवों को छोड़ नगरों में आ कर काम की तलाश करते हैं । उनमें से अधिकतर उचित काम प्राप्त करने के कार्यों में असफल ही रहते हैं । मानसिक परिपक्वता के अनुराप समुचित कार्य न मिलने के कारण ये युवक तनाव ग्रस्त हो जाते हैं । अगर वे अपने गांवों की ओर चल पडते है तो वहा पर भी उनकी मदद करने वाला कोई नहीं होता । निराश हो कर वे शहरों में वापस आ जाते हैं और छोटे-मोटे कार्य करके अपने या अपने परिवार के पेट भरते हैं । उनके जीवन में स्थिरता नहीं आ पाती ।


ग्रामीण क्षेत्रों में एक और विकट समस्या का जन्म हुआ है यह समस्या है बढती आत्महत्या की । पंजाब, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और उड़ीसा में आत्महत्याओं के कई मामले प्रकाश में आए हैं । पजाब के किसानों ने आत्महत्या इसलिए की क्योंकि वे समय पर साहूकारों का कर्ज नहीं चुका पाए । आधुनिक समाज के सभी साधन इन किसानों या उनके बिगडे हुए बच्चों ने खरीद लिए । इनमें कार, केबल टी॰वी॰, वीडियो, शानदार फार्म हाउस, विदेश यात्रा आदि शामिल हैं ।


जब धन लौटाने का समय आया तो इन परिवारों ने पाया कि आमदनी (कृषि उपज) कम थी और खर्चे ज्यादा थे । अत: कई किसानों ने आत्महत्या की । आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र व उडीसा में किसानों ने सूखे के कारण आत्महत्या की । जिसका दुष्चक्र अभी भी जारी है । वे अपने ऊपर चढ़े हुए कर्ज के बोझ को उतार नहीं पा रहे हैं ।


किसान क्रेडिट कार्ड स्कीम भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत किसान बैंकों से ऋण ले सकते हैं । इस स्कीम के लागू हो जाने से ग्रामीणों, खास तौर पर किसान वर्ग, को राहत मिली है । परन्तु यह क्रेडिट कार्ड सभी ग्रामीण किसानों तक पहुंचाना अति आवश्यक है अन्यथा भोले भाले किसान भूख से या कर्ज के बोझ तले दब कर मरते ही रहेंगे । कैसी विडम्बना है-जो किसान भारतवासियों के पेट पाल रहे हैं वही दाने-दाने के मोहताज हैं ।


यदि भारत के गांव शहरों की तरह उन्नति करना चाहते हैं तो ग्रामीणों को शिक्षा ग्रहण करनी होगी । ग्रामीण क्षेत्रों में भी कुछ अच्छे स्कूल खोले जाने चाहिए । ये स्कूल नगरीय स्कूलों की तर्ज पर चलाये जाने चाहिएं । इसके अलावा, भारत के प्रत्येक गांव में बिजली, पानी व पेयजल की व्यवस्था करना सरकार का कर्त्तव्य है । वैश्वीकरण की लहर के चलते ये कार्य निजी क्षेत्र को भी सौंपे जा सकते हैं । परन्तु सरकार को उनके कार्यकलापों पर नजर रखनी होगी क्योंकि ग्रामों को उन्नत बनाना सरकार का कर्त्तव्य है ।


इस बात की आशा की जा रही है कि बिजली, पानी व अच्छे गृहों की व्यवस्था सन् 2020 तक हो जाएगी । भारत इस वर्ष तक विश्व का विकसित देश (Developed Country) बनने का स्वप्न देख रहा है । अत: ग्रामीण क्षेत्रों को विकसित करना ही होगा । उन तक मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाये बिना भारत का एक विकसित देश बनना लगभग असंभव है । हर्ष का विषय है कि रेलमार्ग और सडकें पूरे भारत के गांवों को जोड़ रही हैं ।


जहां पक्की सड़कें नहीं हैं वहां कच्ची सड़कें हैं । इनको पक्का किया जाना चाहिए । कई राज्यों में प्रत्येक गांव मे बिजली पहुंचाई जा चुकी है । परन्तु कई राज्य इस क्षेत्र में अभी भी पिछडे हुए हैं । सरकार को चाहिए कि वह बिजली-रहित गांवों की भी सुध ले । इतने विशाल स्तर पर विद्युत से सम्बद्ध अवसंरचना का निर्माण व प्रबन्धन निजी क्षेत्र के बूते की बात नहीं है ।


हमने यहां ग्रामीण क्षेत्रों की कुछ ज्वलन्त समस्याओं पर विचार किया है । समस्यायें तो कई हैं । उनका निदान करने के लिए ग्रामीणों और पंचायतों को आगे आना होगा । सरकार की प्रकट व परोक्ष भूमिका की दरकार है । जहा पर हो सके, निजी क्षेत्र के उपक्रमों को भी इस विशाल कार्य में सम्मिलित किया जाना चाहिए ।


उनके ग्रामीण क्षेत्रों में पदार्पण से विकास की गति बढ़ेगी । हाल ही में बी॰एच॰ई॰एल॰ ने कई गांवों के निर्माण व सुधार का जिम्मा लिया है जिसे Village Adoption कहा जाता है । इस प्रकार के कदम निजी क्षेत्र की कम्पनियों को भी उठाने चाहिए ।





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