Taral Padarth Ki Paribhasha
तरल पदार्थ हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं। पृथ्वी का दो तिहाई हिस्सा जल मग्न है। मानव शरीर भी जल से ही बना है तथा इसकी लगभग सारी प्रक्रियाएँ जल द्वारा ही नियंत्रित होती हैं। पेड़ – पौधे भी जल से ही पोषक तत्वों का आदान प्रदान करते हैं।
चूंकि तरल पदार्थों का हम पर इतना प्रभाव है, इनके बारे में पढ़ना आवश्यक है।
परिभाषा – जो पदार्थ बह सकें, वे तरल (fluids) कहलाते हैं, जैसे गैस व लिक्विडस बह सकते हैं तथा तरल कहलाते हैं।
जब हम लकड़ी में काँठी लगाते हैं तो वह सरलता से अंदर चली जाती है। परंतु यदि उसी लकड़ी में पेन डालना चाहें,तो वह नहीं जाएगी।
इसी प्रकार एक हाथी धरती पर पड़ी लकड़ी को पल भर में कुचल सकता है। इन उदाहरणों से ज्ञात होता है कि लगने वाला बल, तथा बल लगने का क्षेत्र, दोनो ही महत्वपूर्ण हैं।
इन दोनों परिमाणों को ध्यान में रखते हुए- यदि दबाव ‘P’ है, बल ‘F’ तथा क्षेत्र ‘A’, तब
P = F/A
जहाँ बल क्षेत्र बल के अधोलम्ब (पेरपेंडिकुलर) है। इसे Nm2 में नापा जाता है।
किसी भी स्थिर तरल में डूबे हुए पिंड पर दबाव उसके हर बिंदु के अधोलम्ब ही होता है। ऐसा इस लिए क्योंकि यदि बल का कोई भी अंश पिंड के समानांतर ( पैरेलल ) हुआ तो वह पिंड पर क्षैतिज बल लगाएगा।
न्यूटन के तीसरे कानून अनुसार पिंड भी तरल पर बल लगाएगा जिस कारणवश तरल भी हिलने लगेगा। परंतु हमने तो तरल को स्थिर माना था। इसलिए, बल पिंड के अधोलम्ब ही होगा।
कथन- स्थिर तरल में एक ही ऊँचाई पर हर बिंदु पर एक समान दबाव लगता है। यदि उसी तरल के किसी कण पर ध्यान दें, जो तरल के अंदर है, तो उस कण पर हर दिशा में एक समान दबाव ही लगता है।
उदाहरण स्वरूप यदि किसी लोहे की पट्टी को स्थिर तरल में डाल दिया जाए और वह थोड़ा नीचे जा के तरल में संतुलित हो जाए, तब उसके दोनों तरफ समान दबाव ही होगा। अन्यथा तरल तथा लोहे ही पट्टी दोनो हिलने लगेंगे, जो नहीं हो सकता क्योंकि तरल स्थिर है।
मान लीजिए ‘h’ ऊँचाई तथा ‘A’ क्षेत्र के तले वाला एक उसी तरल से भरा सिलिंडर तरल के भीतर स्थिर है। 1 तथा 2 पर लगने वाला बल सिलिंडर के भार को संभालता है। इसलिए –
( P2 – P1 )A = mg — (1)
जहाँ m तरल का भार है तथा g गुरुत्वाकर्षण त्वरण।
यदि तरल का घनत्व ∆ है तथा वॉल्यूम V, तब
m = ∆V
और V = A*h —(2)
(2) को (1) में प्रयोग करें, तब –
( P2 – P1 ) = ∆gh —(3)
यह समीकरण ये दर्शाती है कि किसी भी तरल में दबाव में बदलाव केवल ऊँचाई से आता है। क्षेत्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
यदि इस सिलिंडर को थोड़ा ऊपर सतह तक ले आए जिससे वह वातावरण के संपर्क में हो, तब P1 = Pa ( वायुमंडलीय दबाव – atmospheric pressure) हो जाता है।
तो (3) से
P2 = Pa + ∆gh
जहाँ ∆gh अधिक मात्रा में है। इसे गेज दबाव कहेंगे।
पास्कल के कानून से हम जानते हैं कि एक ऊँचाई पर तरल में एक ही समान दबाव होता है। इसी तरह यदि किसी बंद पतीले में रखे तरल पर बाहरी दबाव लगाया जाए, तो वह दबाव पूरी तरह से , बिना कम हुए तरल में फैल जाता है।
इसे पास्कल का तरल दबाव हस्तांतरण कानून (law of transmission of fluid pressure) कहते हैं। इसी संकल्पना का प्रयोग कर हैड्रॉलिक यंत्र बनाए गए हैं, जिनसे भारी वस्तुएँ, जैसे गाड़ियों को उठाया जाता है।
एक बंद पाइप के दोनों सिरे ऊपर की ओर खुले होते हैं। एक तरफ़ पिस्टन होता है तथा दूसरी ओर रैंप, जिसपर गाड़ी होती है।
मान लेते हैं की पिस्टन का पार अनुभागीय क्षेत्र (cross sectional area) ‘a’ है और रैंप का ‘A’.
A > a
यदि पिस्टन पर f बल लगाया जाए, तो उसपर f/a दबाव पड़ेगा।
क्योंकि दबाव बिना काम हुए फैलता है, रैंप पर भी इतना ही दबाव पड़ेगा। मान लेते हैं रैंप पर F बल लगा।
F/A = f/a
तो F = f ( A/a )
जो कि f से ज़्यादा है। इस तरह कम बल अपने आप बाद हो जाता है तथा हमे यांत्रिक लाभ प्राप्त होता है।
इसे हैड्रॉलिक ब्रेक में भी प्रयोग किया जाता है।
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