Vikash Ke Mile Ke Patthar विकास के मील के पत्थर

विकास के मील के पत्थर



GkExams on 03-04-2023


विकास के मिल के पत्थर : जन्म के समय शिशु असहाय अवस्था में होता है। वह मानसिक क्षमता में भी पूर्ण अविकसित होता है। आयु की वृद्धि एवं विकास के साथ-साथ बालकों की मानसिक योग्यता में भी वृद्धि होती है। इस पर वंशानुक्रम एवं पर्यावरण दोनों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।

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एक बच्चा वृद्धि और विकास करते समय कई विकासात्मक चरणों से गुजरता है। इन चरणों में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवाद और भावनात्मक वृद्धि और विकास शामिल हैं। हालाँकि इन विकासात्मक चरणों का समय और गति समस्त बच्चों में अलग-अलग हो सकती है।



बालकों में भाषा विकास के मुख्य चरण :




1. रूदन :


चूंकि बोलना एक लम्बी एवं जटिल प्रक्रिया (language development stages) के बाद सीखा जाता है, अतएव उसका प्रारूप हमें रूदन अथवा चीखने-चिल्लाने में मिलता है। रूदन प्रारम्भ में संकटकालीन होता है। यह अनियमित तथा अनियंत्रित होता है। अत: रूदन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो शिशु अकारण ही करता है।


2. बलबलाना :


रूदन में सुस्पष्ट आवाजें (language development in early childhood) पायी जाती है। यह ध्वनि चौथे पांचवें मास के पश्चात स्पष्ट होना प्रारम्भ हो जाती है। बलबलाने में जीवन के प्रथम वर्ष में स्वर ध्वनि सुनाई देती है। अ-आ-इ-ई-ए-ऐ इसके साथ ही इसी समय तक जबकि आगे के कुछ दांत आ जाते हैं जो होठों के मेल से शिशु ब, ल, त, द, म जैसे व्यंजनों को प्रकट करता है।


3. इंगित करना :


इसके द्वारा शिशु दूसरे को अपने भाव विचार समझाता (language development in psychology) है। शिशु ‘हां’ या ‘ना’ की मुद्रा में गर्दन हिला कर भी उत्तर देता है।


4. बोलना :


भाषा प्रयोग की यह अन्तिम अवस्था है। इसका आरम्भ एक डेढ़ वर्ष के करीब होता है। भाषा बोलना भी एक कौशल है अत: इसे अभ्यास की आवश्यकता होती है। यह शरीरिक अवयवों की पुष्टता पर निर्भर करता है। शुरू में निरर्थक शब्द बोले जाते हैं जैसे वा, ला, मा, दा, ना (characteristics of language development) इत्यादि। परन्तु क्रमश: साहचर्य के नियमों के कारण निरर्थक शब्दों में सार्थकता आ जाती है और वे सोद्देश्य प्रयुक्त होते हैं। शब्द बोलने में एक समस्या उच्चारण की होती है।


5. भाषा के ध्वनि की पहचान :


जैसे पहले स्पष्ट किया जा चुका है कि शब्दों को सीखने से पहले शिशु भाषा की ध्वनि (importance of language development) में अन्तर करना सीख जाता है। जैसे रा तथा ला में अन्तर स्पष्ट कर लेते हैं।


6. प्रथम शब्द :


8 से 12 माह की आयु में बच्चा प्रथम शब्द बाले ता है। इससे पूर्व वह बलबलाना, इंगन आदि अन्य भाव भंगिमाओं के द्वारा अपनी भावाभिव्यक्ति करता है। शिशु के सम्प्रेषण की विभिन्न अवस्थाओं का अगला पड़ाव है। शिशु सर्वप्रथम अपने परिवार से जुडे व्यक्तियों जिसमें उसका भावनात्मक लगाव होता है उनको पुकारना प्रारम्भ करता है जैसे बड़ों को दादा, पालतू जानवर को किटी, खिलौनों को टाम खाने को दूध इत्यादि।


7. शब्द युग्म का उच्चारण :


18 से 24 माह की आयु तक शिशु पा्रय: शब्दों युग्मों को बोलना प्रारम्भ कर देता है यह शब्द युग्म वे अपनी इंगन, कुशलता, शारीरिक इंगन तथा सिर के विभिन्न मुद्राओं के साथ बोलते है।


बाल्यावस्था का अर्थ (childhood meaning in hindi) :




कई देशों में, एक बालिग होने की उम्र होती है जब बचपन आधिकारिक तौर पर समाप्त होता है और व्यक्ति क़ानूनी तौर पर वयस्क हो जाता है। लेकिन खैर अलग-अलग देशों की अलग-अलग सोच। वैसे आपकी बेहतर जानकारी के लिए बता दे की बचपन (early childhood) को ही "बाल्यावस्था" कहते हैं।


ध्यान रहे की बाल्यावस्था मे छात्रों की स्मरण चेतना का विकास होता हैं। बाल्यावस्था को 6 से 12 वर्ष तक माना जाता हैं, जिसमें छात्र नवीन वस्तुओं के संबंध में जानने हेतु जिज्ञासु होते हैं। यह विकास की वह अवस्था होती है जिसमें बालक के व्यक्तित्व एवं चरित्र का विकास तीव्र गति से होता हैं। आमतौर पर बचपन को जन्म से आरंभ हुआ माना जाता है। अवधारणा के रूप में कुछ लोग बचपन को खेल और मासूमियत से जोड़ कर देखते हैं, जो किशोरावस्था (child development) में समाप्त होता है।


बाल्यावस्था की विशेषताएं :




यहाँ हम आपको निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा बाल्यावस्था की विशेषताओं से अवगत करा रहे है, जो इस प्रकार है...


  • स्थायित्व
  • प्रबल जिग्यास प्रवृति
  • संचय की प्रवृति
  • वास्तविक जगत में प्रवेश
  • रचनात्मक एवं क्रियाशीलता का विकास
  • अनुकरण की प्रवृति
  • बहिर्मुखी व्यक्तित्व
  • सामूहिक प्रवृति की प्रबलता
  • सामूहिक खेलो में रूचि
  • भ्रमण की प्रवृति
  • सामूहिक गुणों का विकास
  • रुचियों में विभिन्नता
  • मानसिक विकास
  • नैतिक गुणों का विकास
  • दुराग्रह एवं उपद्रव की प्रवृति



  • शैक्षिक दृष्टि से बाल विकास की अवस्थाएं :




    1. शैशवावस्था
    2. बाल्यावस्था
    3. किशोरावस्था


    जानकारी के लिए बता दे की शैशवावस्था के बाद बाल्यावस्था का आरंभ होता है। यह अवस्था बालक के व्यक्तित्व के निर्माण में होती है। बालक में इस अवस्था में विभिन्न आदतों, रुचि एवं इच्छाओं के प्रतिरूपों का निर्माण होता है। बाल्यावस्था का काल 6 से 12 वर्ष को आयु (childhood age) का माना जाता है।


    इसके अलावा जब कोई बालक 12 वर्ष (childhood essay) का हो जाता है तब उसमे समझने की क्षमता पहले की तुलना में तीव्र गति में बढ़ने लग जाती है। और फिर क्या सही है क्या गलत है इसका मतलब वो बालक समझने लग जाता है।



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