Electronic Kachra Par Nibandh इलेक्ट्रॉनिक कचरा पर निबंध

इलेक्ट्रॉनिक कचरा पर निबंध



Pradeep Chawla on 16-10-2018


  • देश में हो रहे विकास तथा तकनीकी प्रगति के इस दौर में लोग पर्यावरण के प्रति सजग तो अवश्य हुए हैं, लेकिन अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर ध्यान दिया जाना बेहद ज़रूरी है। पर्यावरण से जुड़ा एक ऐसा ही गंभीर पहलू है ई-कचरा यानी निष्प्रयोज्य हो चुके इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों और इनसे निकलने वाले रसायन जो स्वास्थ्य के प्रति बेहद हानिकारक होते हैं|

पृष्ठभूमि


पिछले वर्ष एसोचैम तथा एक अन्य संस्था द्वारा कराए गए संयुक्त सर्वेक्षण से यह पता चला था कि देश में हर साल 18.5 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा निकल रहा है और यदि यही रफ्तार जारी रही तो 2018 में इस कचरे का उत्सर्जन 30 लाख टन की सीमा पार कर जाने की आशंका है। पर्यावरण मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार हम प्रतिवर्ष लगभग 17 लाख टन ई-कचरा तैयार करते हैं और इसमें प्रतिवर्ष 5 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। इस सर्वे से यह भी पता चला कि 1 लाख 20 हज़ार टन ई-कचरा उत्पन्न करके मुंबई शीर्ष पर रहा और इसके बाद 98 हज़ार टन के साथ दिल्ली-एनसीआर रहा| इसके बाद चेन्नई 67 हज़ार टन, कोलकाता 55 हज़ार टन, अहमदाबाद 36 हज़ार टन, हैदराबाद 32 हज़ार टन और पुणे ने 26 हज़ार टन ई-कचरे का योगदान दिया है| इस स्थिति के मद्देनज़र कह सकते हैं कि देश के सभी बड़े शहर ई-कचरे के बोझ तले कराह रहे हैं और यह भी उतना ही चिंताजनक है कि पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिये बेहद घातक ई-कचरे के प्रति हमारे देश में जागरूकता का बेहद अभाव है|

क्या है ई-कचरा?

  • देश में जैसे-जैसे डिजिटाइजेशन बढ़ा है, उसी अनुपात में बढ़ा है ई-कचरा| इसकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों में तकनीक तथा मनुष्य की जीवन शैली में आने वाले बदलाव शामिल हैं|
  • कंप्यूटर तथा उससे संबंधित अन्य उपकरण तथा टी.वी., वाशिंग मशीन तथा फ्रिज़ जैसे घरेलू उपकरण (इन्हें White Goods कहा जाता है) और कैमरे, मोबाइल फोन तथा उससे जुड़े अन्य उत्पाद जब चलन/उपयोग से बाहर हो जाते हैं तो इन्हें संयुक्त रूप से ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है|
  • ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल जैसी चीजें हम जो रोज़मर्रा इस्तेमाल में लाते हैं, उनमें भी पारे जैसे कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं , जो इनके बेकार हो जाने पर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं|
  • इस कचरे के साथ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ तो जुड़ी हैं ही, इसके साथ ही चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसने घरेलू उद्योग का स्वरूप ले लिया है और घरों में इसके निस्तारण का काम बड़े पैमाने पर होने लगा है|
  • चीन में प्रतिवर्ष लगभग 61 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है और अमेरिका में लगभग 72 लाख टन और पूरी दुनिया में कुल 488 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न हो रहा है|

ई-कचरे के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव

  • ई-कचरे में शामिल विषैले तत्त्व तथा उनके निस्तारण के असुरक्षित तौर-तरीकों से मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और तरह-तरह की बीमारियाँ होती हैं।
  • माना जाता है कि एक कंप्यूटर के निर्माण में 51 प्रकार के ऐसे संघटक होते हैं, जिन्हें ज़हरीला माना जा सकता है और जो पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य के लिये घातक होते हैं|
  • इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों को बनाने में काम आने वाली सामग्रियों में ज़्यादातर कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, एंटीमोनी, आर्सेनिक, बेरिलियम और पारे का इस्तेमाल किया जाता है। ये सभी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये घातक हैं।

मीनामाता कन्वेंशन: पारा जहरीली और भारी तरल धातु है, जो लगातार पानी के जरिए मछलियों में और फिर मनुष्य को प्रभावित करता है तथा कई घातक बीमारियाँ इसकी वज़ह से हो सकती हैं| हवा, पानी और ज़मीन में पारे के उपयोग और उत्सर्जन को कम करने वाले मीनामाता कन्वेंशन पर भारत सहित 140 देशों ने अपनी सहमति दी है| यह कन्वेंशन पारे के प्राथमिक खनन पर प्रतिबंध लगाता है। कानूनी रूप से बाध्यकारी इस संधि के तहत कोयला आधारित बिजली संयंत्रों, सोने की खदानों और सीमेंट उत्पादन में पारे के उपयोग को कम करने की रणनीति तैयार की गई है।


उल्लेखनीय है कि दुनिया के आधे पारे का उत्सर्जन जहाँ एशिया में होता है, वहीं अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में भी पारे का उत्सर्जन बढ़ रहा है। इसका मुख्य कारण सोने की खदानों में विषाक्त तत्त्वों का इस्तेमाल और कोयला आधारित बिजली संयंत्र बताए गए हैं।


केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अध्ययन के अनुसार भारतीय कोयले में पारे की मात्रा 0.09 पीपीएम से 4.87 पीपीएम तक होती है। ताप बिजली संयंत्रों में पारे के स्तर पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अध्ययन के अनुसार 60% पारे का उत्सर्जन गैस के रूप में और 30% फ्लाई ऎश के रूप में होता है।


(टीम दृष्टि इनपुट)

  • एक कम्प्यूटर में लगभग 3.8 पौंड सीसा, फासफोरस, केडमियम व मरकरी जैसे घातक तत्त्व होते हैं, जो जलाए जाने पर सीधे वातावरण में घुलते हैं।
  • बच्चों के आधुनिक खिलौनों में जो बैटरी इस्तेमाल होती है, वह घातक रसायनों (विषैले तत्त्वों) के सम्मिश्रण से तैयार की जाती है और तोड़ने पर पर्यावरण को बुरी तरह प्रदूषित करती है|
  • जब इस कचरे का पुनःचक्रण (Recycle) किया जाता है यानी उसे अलग किया जाता है तो ये सभी पदार्थ बाहर निकलते हैं| ऐसे में इस काम में लगे लोग इससे बुरी तरह प्रभावित होते हैं|
  • जब यह ई-कचरा सेनेटरी लैंडफिल में जाकर अन्य प्रकार के कचरे के साथ मिलता है तो इसके और भी हानिकारक प्रभाव होते हैं|
  • ई-कचरे के पुनर्चक्रण के दौरान निकलने वाले घातक पदार्थों में पारे और प्लास्टिक का निस्तारण करना बेहद कठिन होता है| ऐसे में देश में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 10 किलो प्लास्टिक का उपयोग एक बड़ी चुनौती है|
  • ई-कचरे में से तांबा, सीसा, चाँदी तथा सोना जैसी कीमती धातुएँ भी निकलती हैं और इन्हें निकालने का काम समाज के निचले तबके के लोग करते हैं, जो इससे उत्पन्न होने वाले विषैले तत्त्वों से पूर्णतः अनजान होते हैं| सीसे की चपेट में आकर दुनियाभर में लाखों लोग प्रतिवर्ष जान से हाथ धो बैठते हैं|
  • विशेषज्ञों के अनुसार, ई-कचरे के निस्तारण की प्रक्रिया में इसे तोड़ने के काम में खतरा अपेक्षाकृत कम है, लेकिन जब इसे पुनःचक्रित किया जाता है तो जलाने और एसिड आदि का उपयोग होने के कारण खतरा कई गुना बढ़ जाता है| इसे जलाने के दौरान ज़हरीला धुआँ निकलता है, जो कि काफी घातक होता है।
  • पुनर्चक्रण के प्रक्रिया के दौरान काफी चीजें तो यह काम करने वाली कंपनियाँ ले जाती हैं, लेकिन कुछ चीज़ें नगर निगम के कचरे में चली जाती हैं, जो हवा, मिट्टी और भूमिगत जल में मिलकर बेहद घातक धुएँ और धूल के कारण फेफड़े व किडनी दोनों को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
  • इसके अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड तथा क्लोरो-फ्लोरो कार्बन भी पुनःचक्रण की प्रक्रिया में जनित होती है, जो वायुमण्डल व ओजोन परत के लिये हानिकारक हैं।

ई-कचरे के निस्तारण की चुनौतियाँ


हम देश में उत्सर्जित ई-कचरे से ही नहीं निबट पा रहे हैं, ऊपर से विकसित देश भारत को अपने ई-कचरे का डंपिंग ग्राउंड बना रहे हैं| विकसित देशों में पैदा होने वाला अधिकतर ई-कचरा पुनर्चक्रण के लिये एशिया और पश्चिमी अफ्रीका के गरीब अथवा अल्प-विकसित देशों में भेज दिया जाता है| एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार बाहर का कचरा तो जाने दीजिये, हम देश में उत्पन्न होने वाले कुल ई-कचरे का केवल 2.5% प्रतिशत ही पुनःचक्रित कर पाते हैं|


मई, 2015 में एक संसदीय समिति ने देश में ई-कचरे के चिंताजनक रफ्तार से बढ़ने की बात को रेखांकित करते हुए इस पर लगाम लगाने के लिये विधायी एवं प्रवर्तन तंत्र स्थापित करने की सिफारिश की थी।


इसे एक उदाहरण से और स्पष्ट करते हैं:


लगभग 15 साल पुरानी है यह घटना, जब दिल्ली स्थित एशिया के सबसे बड़े कबाड़ बाज़ार मायापुरी में कोबाल्ट का रेडियोधर्मी विकिरण फैल गया था, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हुई थी व अन्य पाँच जीवनभर के लिये बीमार हो गए थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के रसायन विभाग ने एक बेकार पड़े उपकरण को कबाड़ में बेच दिया तथा कबाड़ी ने उससे धातु निकालने के लिये उसे जलाने का प्रयास किया था। यह मामला उच्च न्यायालय तक गया था।


(टीम दृष्टि इनपुट)

ई-कचरा प्रबंधन नियम-2016


ई-कचरे की बढ़ती चुनौती और खतरे के मद्देनज़र पिछले वर्ष मार्च में ई-कचरा प्रबंधन नियम (प्रबंधन तथा निपटान) अधिसूचित किये थे|

  • अब इन नियमों को और अधिक कठोर बनाया गया है तथा सीएफएल और मरकरी वाले अन्य बल्ब इत्यादि व ऐसे उपकरण ई-कचरा नियमों में शामिल किये गए हैं।
  • इन नियमों के तहत विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व के अंतर्गत इनके उत्पादकों को लाया गया है और इनके लिये लक्ष्य भी तय किये गए हैं।
  • उत्पादकों को ई–कचरा इकट्ठा करने और आदान-प्रदान के लिये जिम्मेदार बनाया गया है और इसकी आवाजाही के लिये भी कड़े नियम बनाए गए हैं|
  • इन नियमों के तहत बड़े उपभोक्ताओं को कचरा इकट्ठा करना होता है और अधिकृत रूप से पुनर्चक्रण करने वालों को देना होता है।
  • ई-कचरे को नष्ट करने तथा पुनःचक्रित करने के काम में शामिल श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कौशल विकास सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की है।
  • नियमों के उल्लंघन करने पर दण्ड का भी प्रावधान किया गया है।

केंद्र सरकार ने वर्ष 2016 में कचरा प्रबंधन नियमों के अंतर्गत निम्नलिखित 6 नियम अधिसूचित किये थे:
1. प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम 2016
2. ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016
3. बायो मेडिकल कचरा प्रबंधन नियम, 2016
4. निर्माण और विध्वंस कचरा प्रबंधन नियम, 2016
5. खतरनाक और अन्य कचरा (प्रबंधन और सीमापार परिवहन) नियम, 2016
6. ठोस कचरा प्रबंधन नियम, 2016


प्लास्टिक कचरा एक बड़ी समस्या


एक अनुमान के अनुसार, देश में प्रतिदिन 15 हज़ार टन प्लास्टिक कचरा सृजित होता ही, जिसमें से केवल 9 हज़ार टन कचरे का एकत्रण और शोधन हो पाता है। इस प्रकार रोज़ एकत्र न हो पाने वाला 6000 टन प्लास्टिक कचरा एक बड़ी पर्यावरणीय समस्या बन गया है| इसके मद्देनज़र केंद्र सरकार ने प्लास्टिक कचरा (प्रबंधन एवं संचालन) नियम, 2011 के स्थान पर प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 अधिसूचित किये।

  • इनके तहत प्लास्टिक के कैरी बैग्स की न्यूनतम मोटाई 40 से बढ़ाकर 50 माइक्रोन कर दी गई|
  • नियमों पर अमल के दायरे को नगरपालिका क्षेत्र से बढ़ाकर ग्रामीण क्षेत्रों तक कर दिया गया है, क्योंकि प्लास्टिक ग्रामीण क्षेत्रों में भी पहुँच गया है|
  • प्लास्टिक कैरी बैग के उत्पादकों, आयातकों एवं इन्हें बेचने वाले वेंडरों के पूर्व-पंजीकरण के माध्यम से प्लास्टिक कचरा प्रबंधन शुल्क के संग्रह की शुरुआत की गई है|

कचरा प्रसंस्करण/पुनःचक्रण नियम

  • इन नियमों के तहत प्रसंस्करण/पुन:चक्रण सुविधा का परिचालक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अथवा प्रदूषण नियंत्रण समिति से अनुमति प्राप्त करेगा।
  • प्रसंस्करण/पुन:चक्रण स्थल रिहायशी बस्तियों, वन क्षेत्रों, जल निकायों, स्मारकों, राष्ट्रीय उद्यानों, दलदली भूमि और सांस्कृतिक, ऐतिहासिक अथवा धार्मिक हितों से संबंधित स्थानों से दूर होंगे।
  • प्रतिदिन पाँच टन से अधिक प्रसंस्करण/पुन:चक्रण करने वाली सुविधा के आस-पास किसी भी प्रकार का विकास न होने संबंधी बफर जोन बरकरार रखा जाएगा।

निष्कर्ष: ई-कचरे से उत्पन्न होने वाले खतरों से परिचित होने के बावजूद अभी तक इसे रोकने के लिये देश में जागरूकता का पूर्णतः अभाव है| इसका समाधान समय रहते नहीं निकाला गया तो प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ की भारी कीमत हम सबको चुकानी पड़ सकती है| ई-कचरे से निपटने का सबसे अच्छा तरीका—रिड्यूस, रीयूज़ और रीसाइकलिंग है। हमारे देश में बहुत कम ऐसी कम्पनियाँ हैं, जो ई-कचरे का निपटान आधुनिक तकनीक से करती हैं| अतः अपने बेकार उपकरण कबाड़ी को न देकर, इन कंपनियों को दें। नया इलेक्ट्रानिक उपकरण खरीदते समय इस बात पर ध्यान दें कि कौन सी कंपनियां पुराने उपकरणों को लेती हैं तथा किन कंपनियों के पास ऐसे कचरे के निस्तारण की व्यवस्था है।


ई-कचरे से निपटने के तकनीकी समाधान कमोबेश देश में मौजूद हैं, लेकिन कानूनी ढाँचे, ई-कचरा संग्रहण आदि के मामले में अभी काफी कुछ किया जाना शेष है|




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Ayush chauhan on 12-05-2019

Nibhand on e waste

charu on 12-05-2019

E waste pr anuched ?





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