पृष्ठभूमि पिछले वर्ष एसोचैम तथा एक अन्य संस्था द्वारा कराए गए संयुक्त सर्वेक्षण से यह पता चला था कि देश में हर साल 18.5 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा निकल रहा है और यदि यही रफ्तार जारी रही तो 2018 में इस कचरे का उत्सर्जन 30 लाख टन की सीमा पार कर जाने की आशंका है। पर्यावरण मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार हम प्रतिवर्ष लगभग 17 लाख टन ई-कचरा तैयार करते हैं और इसमें प्रतिवर्ष 5 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। इस सर्वे से यह भी पता चला कि 1 लाख 20 हज़ार टन ई-कचरा उत्पन्न करके मुंबई शीर्ष पर रहा और इसके बाद 98 हज़ार टन के साथ दिल्ली-एनसीआर रहा| इसके बाद चेन्नई 67 हज़ार टन, कोलकाता 55 हज़ार टन, अहमदाबाद 36 हज़ार टन, हैदराबाद 32 हज़ार टन और पुणे ने 26 हज़ार टन ई-कचरे का योगदान दिया है| इस स्थिति के मद्देनज़र कह सकते हैं कि देश के सभी बड़े शहर ई-कचरे के बोझ तले कराह रहे हैं और यह भी उतना ही चिंताजनक है कि पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिये बेहद घातक ई-कचरे के प्रति हमारे देश में जागरूकता का बेहद अभाव है| |
क्या है ई-कचरा?
ई-कचरे के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव
मीनामाता कन्वेंशन: पारा जहरीली और भारी तरल धातु है, जो लगातार पानी के जरिए मछलियों में और फिर मनुष्य को प्रभावित करता है तथा कई घातक बीमारियाँ इसकी वज़ह से हो सकती हैं| हवा, पानी और ज़मीन में पारे के उपयोग और उत्सर्जन को कम करने वाले मीनामाता कन्वेंशन पर भारत सहित 140 देशों ने अपनी सहमति दी है| यह कन्वेंशन पारे के प्राथमिक खनन पर प्रतिबंध लगाता है। कानूनी रूप से बाध्यकारी इस संधि के तहत कोयला आधारित बिजली संयंत्रों, सोने की खदानों और सीमेंट उत्पादन में पारे के उपयोग को कम करने की रणनीति तैयार की गई है। उल्लेखनीय है कि दुनिया के आधे पारे का उत्सर्जन जहाँ एशिया में होता है, वहीं अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में भी पारे का उत्सर्जन बढ़ रहा है। इसका मुख्य कारण सोने की खदानों में विषाक्त तत्त्वों का इस्तेमाल और कोयला आधारित बिजली संयंत्र बताए गए हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अध्ययन के अनुसार भारतीय कोयले में पारे की मात्रा 0.09 पीपीएम से 4.87 पीपीएम तक होती है। ताप बिजली संयंत्रों में पारे के स्तर पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अध्ययन के अनुसार 60% पारे का उत्सर्जन गैस के रूप में और 30% फ्लाई ऎश के रूप में होता है। (टीम दृष्टि इनपुट) |
ई-कचरे के निस्तारण की चुनौतियाँ हम देश में उत्सर्जित ई-कचरे से ही नहीं निबट पा रहे हैं, ऊपर से विकसित देश भारत को अपने ई-कचरे का डंपिंग ग्राउंड बना रहे हैं| विकसित देशों में पैदा होने वाला अधिकतर ई-कचरा पुनर्चक्रण के लिये एशिया और पश्चिमी अफ्रीका के गरीब अथवा अल्प-विकसित देशों में भेज दिया जाता है| एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार बाहर का कचरा तो जाने दीजिये, हम देश में उत्पन्न होने वाले कुल ई-कचरे का केवल 2.5% प्रतिशत ही पुनःचक्रित कर पाते हैं| मई, 2015 में एक संसदीय समिति ने देश में ई-कचरे के चिंताजनक रफ्तार से बढ़ने की बात को रेखांकित करते हुए इस पर लगाम लगाने के लिये विधायी एवं प्रवर्तन तंत्र स्थापित करने की सिफारिश की थी। इसे एक उदाहरण से और स्पष्ट करते हैं: लगभग 15 साल पुरानी है यह घटना, जब दिल्ली स्थित एशिया के सबसे बड़े कबाड़ बाज़ार मायापुरी में कोबाल्ट का रेडियोधर्मी विकिरण फैल गया था, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हुई थी व अन्य पाँच जीवनभर के लिये बीमार हो गए थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के रसायन विभाग ने एक बेकार पड़े उपकरण को कबाड़ में बेच दिया तथा कबाड़ी ने उससे धातु निकालने के लिये उसे जलाने का प्रयास किया था। यह मामला उच्च न्यायालय तक गया था। (टीम दृष्टि इनपुट) |
ई-कचरा प्रबंधन नियम-2016
ई-कचरे की बढ़ती चुनौती और खतरे के मद्देनज़र पिछले वर्ष मार्च में ई-कचरा प्रबंधन नियम (प्रबंधन तथा निपटान) अधिसूचित किये थे|
केंद्र सरकार ने वर्ष 2016 में कचरा प्रबंधन नियमों के अंतर्गत निम्नलिखित 6 नियम अधिसूचित किये थे:
1. प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम 2016
2. ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016
3. बायो मेडिकल कचरा प्रबंधन नियम, 2016
4. निर्माण और विध्वंस कचरा प्रबंधन नियम, 2016
5. खतरनाक और अन्य कचरा (प्रबंधन और सीमापार परिवहन) नियम, 2016
6. ठोस कचरा प्रबंधन नियम, 2016
प्लास्टिक कचरा एक बड़ी समस्या
एक अनुमान के अनुसार, देश में प्रतिदिन 15 हज़ार टन प्लास्टिक कचरा सृजित होता ही, जिसमें से केवल 9 हज़ार टन कचरे का एकत्रण और शोधन हो पाता है। इस प्रकार रोज़ एकत्र न हो पाने वाला 6000 टन प्लास्टिक कचरा एक बड़ी पर्यावरणीय समस्या बन गया है| इसके मद्देनज़र केंद्र सरकार ने प्लास्टिक कचरा (प्रबंधन एवं संचालन) नियम, 2011 के स्थान पर प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 अधिसूचित किये।
कचरा प्रसंस्करण/पुनःचक्रण नियम
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निष्कर्ष: ई-कचरे से उत्पन्न होने वाले खतरों से परिचित होने के बावजूद अभी तक इसे रोकने के लिये देश में जागरूकता का पूर्णतः अभाव है| इसका समाधान समय रहते नहीं निकाला गया तो प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ की भारी कीमत हम सबको चुकानी पड़ सकती है| ई-कचरे से निपटने का सबसे अच्छा तरीका—रिड्यूस, रीयूज़ और रीसाइकलिंग है। हमारे देश में बहुत कम ऐसी कम्पनियाँ हैं, जो ई-कचरे का निपटान आधुनिक तकनीक से करती हैं| अतः अपने बेकार उपकरण कबाड़ी को न देकर, इन कंपनियों को दें। नया इलेक्ट्रानिक उपकरण खरीदते समय इस बात पर ध्यान दें कि कौन सी कंपनियां पुराने उपकरणों को लेती हैं तथा किन कंपनियों के पास ऐसे कचरे के निस्तारण की व्यवस्था है।
ई-कचरे से निपटने के तकनीकी समाधान कमोबेश देश में मौजूद हैं, लेकिन कानूनी ढाँचे, ई-कचरा संग्रहण आदि के मामले में अभी काफी कुछ किया जाना शेष है|
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