Kavi KripaRam खिड़िया कवि कृपाराम खिड़िया

कवि कृपाराम खिड़िया



GkExams on 13-01-2019

कृपाराम बारहठ राजस्थानी कवि एवं नीतिकार थे। उन्होने 'राजिया रा दूहा' नामक नीतिग्रन्थ की रचना की। वे राव राजा देवी सिंह के समय में हुए थे।


कवि कृपाराम जी तत्कालीन मारवाड़ राज्य के खराडी गांव के निवासी खिडिया शाखा के चारण जाति के जगराम जी के पुत्र थे |वे राजस्थान में शेखावाटी क्षेत्र में सीकर के राव राजा देवीसिंह के दरबार में रहते थे. पिता जगराम जी को नागौर के कुचामण के शासक ठाकुर जालिम सिंह जी ने जसुरी गांव की जागीर प्रदान की थी. वहीं इस विद्वान कवि का जन्म हुआ था | राजस्थानी भाषा डिंगल और पिंगल के उतम कवि व अच्छे संस्कृज्ञ होने नाते उनकी विद्वता और गुणों से प्रभावित हो सीकर के राव राजा लक्ष्मण सिंह जी ने महाराजपुर और लछमनपुरा गांव इन्हे वि.स, 1847 और 1858 में जागीर में दिए थे.



राजिया रा सौरठा


नीति सम्बन्धी राजस्थानी सोरठों में "राजिया रा सौरठा" सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है भाषा और भाव दोनों दृष्टि से इनके समक्ष अन्य कोई दोहा संग्रह नही ठहरता | संबोधन काव्य के रूप में शायद यह पहली रचना है | इन सौरठों की रचना राजस्थान के प्रसिद्ध कवि कृपाराम जी ने अपने सेवक राजिया को संबोधित करते हुए की थी. किंवदंती है कि अपने पुत्र विहीन सेवक राजिया को अमर करने के लिए ही विद्वान कवि ने उसे संबोधित करते हुए नीति सम्बन्धी दोहों की रचना की थी. माना जाता है कि कृपाराम रचित सोरठों की संख्या लगभग 500 रही है, लेकिन अब तक 170 दोहे ही सामने आये हैं. इनमें लगभग 125 प्रामाणिक तौर पर उनकी रचना हैं।


राजिया कृपाराम का नौकर था. उसने कवि कृपाराम की अच्छी सेवा की थी. उसकी सेवा से प्रसन्न होकर कवि ने उससे कहा कि मैं तेरा नाम अमर कर दूंगा. ऐसा भी प्रसिद्ध है कि राजिया के कोई संतान नहीं थी, जिससे वह उदास रहा करता था उसकी उदास आकृति देखकर कृपाराम ने उसकी उदासी का कारण पूछा. तब राजिया ने कहा "मेरे कोई संतान नहीं हैं और संतान के आभाव में मेरा वंश आगे नहीं चलेगा और मेरा नाम ही संसार से लुप्त हो जाएगा."इस पर कवि ने उससे कहा- 'तू चिंता मत कर तेरा नाम लुप्त नहीं होगा, मैं तेरा नाम अमर कर दूंगा.


फिर कवि कृपा राम ने नीति के दोहों की रचना की और उनके द्वारा उन्होंने रजिया का नाम सचमुच अमर कर दिया है. इन दोहों की रचना कवि ने रजिया को सम्बोधित करते हुए की. प्रत्येक दोहे के अंत में 'राजिया' (हे राजिया ) सम्बोधन आता है। ये दोहे भी राजिया के दोहे या राजिया रे सौरठे नाम से ही प्रसिद्ध हुए. किसी कवि ने अपने नाम की बजाय अपने सेवक का नाम प्रतिष्ठित करने के लिए कृति रची हो, इसकी केवल यही मिसाल है।






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Comments Rajkumar meena on 02-01-2021

Kavi Surdas ji ke jivani ke bare mein batao train ka janm kahan hua kab hua inhone kaun kaun si raha hun likhi tatha hi ne kitne Kavya Granth ki Rachna ki ISRO shreshth kabhi kis prakar manaya jaate Hain aapko bhi hoti hai ya nahin Hoti hai sahab kaviyon ki Rachna kabhi hone ki

Dishant jain on 04-10-2018

kriparam G khidiya ka birth kb hua tha





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