Rajasthani Bhasha Ki कहावतें राजस्थानी भाषा की कहावतें

राजस्थानी भाषा की कहावतें



GkExams on 12-01-2019

सीख उणां नै देइजो, ज्यां नै सीख सुहाय।
सीख न देइजो बांदरा, घर बया को जाय।।


सीख तो उनको देनी चाहिए, जिनको सीख सुहाती है। बंदरों को सीख कभी मत देना, क्योंकि बंदरों को सीख देने पर बया का अपना घर गंवाना पड़ा था। अर्थात मुफ़्त की सीख देने से बचना चाहिये... पता नहीं कौन कब बंदर बन जाये और आप ही का नुकसान कर दे।

किसी जंगल में एक पेड़ पर एक बये का घोंसला था। संध्या समय बया बयी उसमें मौज से बैठे थे। बरसात का मौसम थ। बादल घिर आए। बिजली चमकने लगी। बड़ी बडी बूंदे पडऩी शुरू हुई। धीरे-धीरे मूसलाधार पानी गिरने लगा। लेकिन अपने मजबूत घोंसले में बैठे होने की वजह से वे दोनों बेफिक्र थे। इसी बीच एक बंदर पानी से बचने के लिए उस पेड़ पर चढा। पेड़ के पत्ते वर्षा से उसकी रक्षा करने में असमर्थ थे। कभी वह नीचे जाता, कभी वह ऊपर आता। इतने में ओले गिरने आरंभ हो गए। ठंड के मारे बंदर किंकिंयाने लगा। बये से रहा नहीं गया।वह बोला कि मानुस के से हाथ पांव मानुस की सी काया, चार महीने बरखा होवै,छप्पर क्यों नहिं छाया? देखो, हम तो तुमसे छोटे जीव है, लेकिन कैसा घोंसाला बनाकर आराम से रहते हैं। तुम भी हाथ पैर हिलाते तो क्या कुछ बना न पाते? इस सीख पर बंदर बुरी तरह बिगड़ा और लपकर एक हाथ से बये का घोंसला नोच डाला। बया और बयी उडक़र दूसरे पेड की डाल पर जा बैठे। उन्हें मालूम नहीं था कि सीख देने का यह अंजाम होगा कि अपने ही घर से हाथ धोना पड़ेगा।


अति सीतल म्रिदु वचन सूं, क्रोध अगन बुझ जाय।
ज्यों ऊफणतै दूध नै, पाणी देय समाय।।


‘‘अत्यन्त शीतल और मधुर-मृदुल वचनों से अगले व्यक्ति की क्रोध रूपी आग बुझ जाती है। ठीक वैसे ही जैसे उफनते हुए दूध को पानी शांत कर देता है।’’

गांव ठाकुर की एक बहन थी जो बाल विधवा थी। वह बड़ी झगड़ालू थी और अपने भाई के घर ही रहा करती थी। वह सबेरे ही गांव की स्त्रियों से झगड़ा करने के लिए निकल जाती और बिना मतलब कलह करके शाम को घर आ जाती।गांव के लोग उसके कारण बड़े तंग थे। आखिर उन लोगों से कहा नहीं गया और सब मिलकर ठाकुर साहब के पास पहुंचे। उन्होंने ठाकुर से प्रार्थना की कि किसीतरह बुआजी को रोका जाए, हम बहुत ही परेशान हैं। ठाकुर ने उनकी बात सुनकर कहा कि मैं स्वयं इसके कारण बहुत हैरान हूं, लेकिन कोई उपाय नहीं सूझता। या करू? आखिर सब गांव वालों ने मिलकर सलाह-मशविरा किया और एक योजना बनाई कि बुआजी नित्य बारी-बारी से एक-एक घर में जाया करें और वहीं कलह कर लिया करें। गांव में तीन सौ साठ घर थे, अत: प्रत्येक घर की बारी एक वर्ष में आने लगी और गांव के लोगों को राहत मिली। समयबीतता रहा । एक दिन जिए जाट के घर में बुआजी के आने की बारी भी उसीदिन जाट के बेटे की बहू गौना लेकर आई थी। लेकिन उसकी सास इस बात से बहुत चिंतित थी कि आज ही वह दुष्टा भी कलह करने के लिए आएगी। बहू नेसास को चिंता में पड़े देखा तो पूछा कि या बात हैं? तब सास ने सारी बात उसे बताई। सारी बात जानकर बहू ने घर के सब लोगों को खेत पर भेज दिया औरबोली कि आज मैं बुआजी से स्वयं निपट लूंगी। सब लोग तो खेत पर चले गए और घर में बहू अकेली रह गई। बहू आंगन में बैठ गई और चरखे पर सूत कातनेलगी। आखिर बुआ वहां आ ही गई। बुआ ने बकवास करनी शुरू की, लेकिन बहू एक शद भी नहीं बोली। बुआ ने उसे उकसाने की बहुत कोशिश की।बुआजी चाहती थी कि बहू उससे बराबर लड़े और दोनों का वाक् युद्ध शाम तक चलता रहे तब आनंद आए। लेकिन बहू के न बोलने से वह जल्दी ही परेशान हो गई और बहू से बोली कि आज तू जीती और मैं हारी। आज से मैं कलह नहीं किया करूंगी। तब उठकर बहू बुआजी के पांवों लगी और बोली कि जीती तो आप ही हैं, मैं तो आपकी सेविका हूं। मुझे तो आपका आशीर्वाद चाहिए। उसी दिन से बुआ ने गांव में जाना और कलह करना बंद कर दिया।




अकल सरीरां मांय, तिलां तेल घ्रित दूध में।
पण है पड़दै मांय, चौड़े काढ़ो चतरसी।।


‘‘जिस प्रकार तिलों में तेल और दूध में घी होता है, उसी प्रकार मनुष्य में अक्ल होती है। लेकिन वह एक पर्दे के पीछे छुपी होती है इसलिए उसे बाहर निकालना चाहिए, उसका उपयोग लेना चाहिए।’’

एक सेठ के यहां एक जाट नौकर था। उसका दिमाग बहुत तेज था। सेठ नित्य राजदरबार में जाया करता था। एक दिन जाट ने सेठ से कहां कि मैं भी आपके साथ चला करूंगा। सेठ ने कहा कि वह बादशाह का दरबार है और तुम जट्ट हो। वहां तुम कहीं बेअदबी कर बैठे तो लेने के देने पड़ जाएंगे। तुम राजदरबार के कायदे तो जानते हो नहीं, कहीं मूर्खता कर बैठोगे, इसलिए तुहें साथ ले जाना ठीक नहीं होगा। तब जाट ने सेठ से कहा कि मैं राजदरबार में कुछ भी नहीं बोलूंगा। आप मुझे एक बार ले जाकर तो देखिए! कुछ सोचविचार कर वह जाट को राजदरबार में ले गया। वह वाकई कुछ नहीं बोला, राजदरबार की गतिविधियां चुपचाप देखता रहा। सेठ को जाट पर भरोसा हो गया कि यह राजदरबार में कोई मूर्खता नहीं करेगा। अब जाट सेठ के साथ बराबर दरबार में जाने लगा। दरबार में दोपहर की एक काजी बादशाह को कुरान पढक़र सुनाया करता था। एक दिन काजी ने बादशाह से कहा कि हुजूर, आज के सातवें दिन कयामत होगी। काजी की बात सुनकर सबके मुंह बंद हो गए। दरबार में सन्नाटा छा गया। लेकिन जाट से रहा नहीं गया। वह बोल पड़ा कि काजी झूठ कहता हैं, कयामत नहीं होगी। बादशाह को जाट की बात नागवार गुजरी। सेठ तो भय से कांपने लगा कि अब बादशाह ने जाने या करेंगे? लेकिन जाट अपनी बात पर अड़ा रहा। आखिर में दोनों के बीच यह शर्त तय हुई कि यदि कयामत हो जाए तो दस हजार रूपये जाट काजी को दे और यदि कयामत न हो तो काजी जाट को दस हजार रूपये दे। काजी की ओर से बादशाह ने रूपयों की हां भर ली। लेकिन सेठ ने जाट की हां नहीं भरी। तब जाट ने सेठ को अलग ले जाकर समझाते हुए कहा कि इस सौदे में अपने लिए कोई घाटा नहीं है। यदि प्रलय हो गई तो न काजी बचेगा और न हम, फिर कौन किससे रूपये लेगा? और यदि प्रलय नहीं हुई तो हमको दस हजार रूपये मिल जाएंगे। बात सेठ की समझ में आ गई। उसने जाट की ओर से रूपये देने की हां भर ली। सातवें दिन न प्रलय होनी थी और न हुई। सेठ को शर्त के दस हजार रूपये मिल गए।




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