HariKrishna Premi Ke Natak हरिकृष्ण प्रेमी के नाटक

हरिकृष्ण प्रेमी के नाटक



GkExams on 12-05-2019

नाटय रचनाएँ

प्रेमी जी ने सामाजिक नाटक भी लिखे हैं। बंधन (1940 ई.) में मजदूरों और पूँजीपति के संघर्ष का चित्रण है। समस्या का हल गाँधी जी की हृदय-परिवर्तन की नीति पर आधारित है। छाया (1941 ई.) में एक साहित्यकार के आर्थिक संघर्ष का चित्रण है। ममता में दाम्पत्य जीवन की समस्याओं का उद्घाटन है। प्रेमी जी की एकांकी रचना बेड़ियाँ में भी इसी समस्या को लिया गया है। प्रेमी जी के दो एकांकी संग्रह मंदिर (1942 ई.) और बादलों के पार (1942 ई.) भी प्रकाशित हुए है। पहले संग्रह की सभी रचनाएँ नयी संज्ञा देकर नये संग्रह में भी है। बादलों के पार, घर या होटल, वाणी मंदिर, नया समाज, यह मेरी जन्म भूमि है, और पश्चात्ताप एकांकियों में आज की सामाजिक समस्याओं का चित्रण है। यह भी एक खेल है, प्रेम अंधा है, रूप शिखा, मातृभूमि का मान और निष्ठुत न्याय, ऐतिहासिक एकांकी हैं। इनमें प्रेम के आर्दशवादी और विद्रोही स्वरूप को प्रस्तुत किया गया है।[1]



प्रेमी जी ने इधर गीति-नाट्य की शैली के कई प्रयोग किये हैं। सोहनी महीवाल, सस्सी पुन्नू, मिर्जा साहिबा, हीर राँझा और दुल्लाभट्टी। ये सभी पंजाब में प्रसिद्ध प्रेम-गाथाओं पर आधारित रेडियों के लिए लिखित संगीत रूपक हैं। प्रेम के एकनिष्ठ और विद्रोही रूपको इनमें भी उपस्थित किया गया है। देवदासी संगीत-रूपक में भी काल्पनिक कथा को लेकर प्रेम को मनुष्य का स्वाभाविक गुणधर्म दिखाया गया है। मीराँबाई में व्यक्तिगत जीवन की कठोरताओं से प्रेरित होकर गिरिधर गोपाल की माधुरी उपासना में आश्रय लेने वाली मीराँ की जीवन-कथा है।



रिकृष्ण जी का हिंदी नाटककारों में अपना विशिष्ट स्थान है। मध्यकालीन इतिहास से कथा प्रसंगो को लेकर उन्होंने हमें राष्ट्रीय जागरण, धर्म निरपेक्षता तथा विश्व-बंधुत्व के महान् संदेश दिये हैं। उनके नाटकों में स्वच्छंदवादी शैली का बड़ा संयमित और अनुशासनपूर्ण उपयोग है, इसलिए उनके नाटक रंगमच की दृष्टि से सफल हैं। उनके सामाजिक नाटकों में वर्तमान जीवन की विषमंताओं के प्रति तीव्र आक्रोश और विद्रोह का स्वर सुनने को मिलता है। किसी समस्या का चित्रण करते हुए वे उसका हल अवश्य देते हैं और इस सम्बंध में गाँधी जी के जीवन-दर्शन का उन पर विशेष प्रभाव है।





कविता-संग्रह

प्रेमी जी का कविता-संग्रह आँखों में (1930 ई.) प्रेम के विरह-विदग्ध वेदनामय स्वरूप स्वरूप की अभिव्यक्ति है।

जादूगरनी (1932 ई.) में कबीर की माया महाठगिनी के मोहक प्रभाव का वर्णन एवं रहस्यात्मक अनुभूतियों की व्यंजना है।

अनंत के पथ पर (1932 ई.) रहस्यानुभूमि को औरघनीभूत रूप में उपस्थित करता है।

अग्निगान (1940 ई.) में कवि अनल वीणा लेकर राष्ट्रीय जागरण के गीत या उठा है।

रूप दर्शन में गजल और गीति-शैली के सम्मिलित विधान में सौंदर्य के मोहक प्रभाव को वाणी मिली है।

प्रतिभा में प्रेमी का प्रणय-निवेदन बड़ा मुखर हो उठा है।

वंदना के बोल में गाँधी जी और उनके जीवन दर्शन पर लिखित रचनाएँ हैं।

रूप रेखा में गजल के बन्द का सशक्त प्रयोग और प्रेमी के हृदय की आकुल पुकार है प्रेमी जी ने मुक्त छंद में भी कुछ रचनाएँ की हैं।

करना है संग्राम, बेटी की विदा और बहन का विवाह- ये सभी संस्मरणात्मक हैं और इनमें प्रेमी जी के विद्रोही दृष्टिकोण, नवीन मान्यताओं और नूतन आदर्शों की बड़ी प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति है।


GkExams on 12-05-2019

नाटय रचनाएँ

प्रेमी जी ने सामाजिक नाटक भी लिखे हैं। बंधन (1940 ई.) में मजदूरों और पूँजीपति के संघर्ष का चित्रण है। समस्या का हल गाँधी जी की हृदय-परिवर्तन की नीति पर आधारित है। छाया (1941 ई.) में एक साहित्यकार के आर्थिक संघर्ष का चित्रण है। ममता में दाम्पत्य जीवन की समस्याओं का उद्घाटन है। प्रेमी जी की एकांकी रचना बेड़ियाँ में भी इसी समस्या को लिया गया है। प्रेमी जी के दो एकांकी संग्रह मंदिर (1942 ई.) और बादलों के पार (1942 ई.) भी प्रकाशित हुए है। पहले संग्रह की सभी रचनाएँ नयी संज्ञा देकर नये संग्रह में भी है। बादलों के पार, घर या होटल, वाणी मंदिर, नया समाज, यह मेरी जन्म भूमि है, और पश्चात्ताप एकांकियों में आज की सामाजिक समस्याओं का चित्रण है। यह भी एक खेल है, प्रेम अंधा है, रूप शिखा, मातृभूमि का मान और निष्ठुत न्याय, ऐतिहासिक एकांकी हैं। इनमें प्रेम के आर्दशवादी और विद्रोही स्वरूप को प्रस्तुत किया गया है।[1]



प्रेमी जी ने इधर गीति-नाट्य की शैली के कई प्रयोग किये हैं। सोहनी महीवाल, सस्सी पुन्नू, मिर्जा साहिबा, हीर राँझा और दुल्लाभट्टी। ये सभी पंजाब में प्रसिद्ध प्रेम-गाथाओं पर आधारित रेडियों के लिए लिखित संगीत रूपक हैं। प्रेम के एकनिष्ठ और विद्रोही रूपको इनमें भी उपस्थित किया गया है। देवदासी संगीत-रूपक में भी काल्पनिक कथा को लेकर प्रेम को मनुष्य का स्वाभाविक गुणधर्म दिखाया गया है। मीराँबाई में व्यक्तिगत जीवन की कठोरताओं से प्रेरित होकर गिरिधर गोपाल की माधुरी उपासना में आश्रय लेने वाली मीराँ की जीवन-कथा है।



रिकृष्ण जी का हिंदी नाटककारों में अपना विशिष्ट स्थान है। मध्यकालीन इतिहास से कथा प्रसंगो को लेकर उन्होंने हमें राष्ट्रीय जागरण, धर्म निरपेक्षता तथा विश्व-बंधुत्व के महान् संदेश दिये हैं। उनके नाटकों में स्वच्छंदवादी शैली का बड़ा संयमित और अनुशासनपूर्ण उपयोग है, इसलिए उनके नाटक रंगमच की दृष्टि से सफल हैं। उनके सामाजिक नाटकों में वर्तमान जीवन की विषमंताओं के प्रति तीव्र आक्रोश और विद्रोह का स्वर सुनने को मिलता है। किसी समस्या का चित्रण करते हुए वे उसका हल अवश्य देते हैं और इस सम्बंध में गाँधी जी के जीवन-दर्शन का उन पर विशेष प्रभाव है।





कविता-संग्रह

प्रेमी जी का कविता-संग्रह आँखों में (1930 ई.) प्रेम के विरह-विदग्ध वेदनामय स्वरूप स्वरूप की अभिव्यक्ति है।

जादूगरनी (1932 ई.) में कबीर की माया महाठगिनी के मोहक प्रभाव का वर्णन एवं रहस्यात्मक अनुभूतियों की व्यंजना है।

अनंत के पथ पर (1932 ई.) रहस्यानुभूमि को औरघनीभूत रूप में उपस्थित करता है।

अग्निगान (1940 ई.) में कवि अनल वीणा लेकर राष्ट्रीय जागरण के गीत या उठा है।

रूप दर्शन में गजल और गीति-शैली के सम्मिलित विधान में सौंदर्य के मोहक प्रभाव को वाणी मिली है।

प्रतिभा में प्रेमी का प्रणय-निवेदन बड़ा मुखर हो उठा है।

वंदना के बोल में गाँधी जी और उनके जीवन दर्शन पर लिखित रचनाएँ हैं।

रूप रेखा में गजल के बन्द का सशक्त प्रयोग और प्रेमी के हृदय की आकुल पुकार है प्रेमी जी ने मुक्त छंद में भी कुछ रचनाएँ की हैं।

करना है संग्राम, बेटी की विदा और बहन का विवाह- ये सभी संस्मरणात्मक हैं और इनमें प्रेमी जी के विद्रोही दृष्टिकोण, नवीन मान्यताओं और नूतन आदर्शों की बड़ी प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति है।


GkExams on 12-05-2019

नाटय रचनाएँ

प्रेमी जी ने सामाजिक नाटक भी लिखे हैं। बंधन (1940 ई.) में मजदूरों और पूँजीपति के संघर्ष का चित्रण है। समस्या का हल गाँधी जी की हृदय-परिवर्तन की नीति पर आधारित है। छाया (1941 ई.) में एक साहित्यकार के आर्थिक संघर्ष का चित्रण है। ममता में दाम्पत्य जीवन की समस्याओं का उद्घाटन है। प्रेमी जी की एकांकी रचना बेड़ियाँ में भी इसी समस्या को लिया गया है। प्रेमी जी के दो एकांकी संग्रह मंदिर (1942 ई.) और बादलों के पार (1942 ई.) भी प्रकाशित हुए है। पहले संग्रह की सभी रचनाएँ नयी संज्ञा देकर नये संग्रह में भी है। बादलों के पार, घर या होटल, वाणी मंदिर, नया समाज, यह मेरी जन्म भूमि है, और पश्चात्ताप एकांकियों में आज की सामाजिक समस्याओं का चित्रण है। यह भी एक खेल है, प्रेम अंधा है, रूप शिखा, मातृभूमि का मान और निष्ठुत न्याय, ऐतिहासिक एकांकी हैं। इनमें प्रेम के आर्दशवादी और विद्रोही स्वरूप को प्रस्तुत किया गया है।[1]



प्रेमी जी ने इधर गीति-नाट्य की शैली के कई प्रयोग किये हैं। सोहनी महीवाल, सस्सी पुन्नू, मिर्जा साहिबा, हीर राँझा और दुल्लाभट्टी। ये सभी पंजाब में प्रसिद्ध प्रेम-गाथाओं पर आधारित रेडियों के लिए लिखित संगीत रूपक हैं। प्रेम के एकनिष्ठ और विद्रोही रूपको इनमें भी उपस्थित किया गया है। देवदासी संगीत-रूपक में भी काल्पनिक कथा को लेकर प्रेम को मनुष्य का स्वाभाविक गुणधर्म दिखाया गया है। मीराँबाई में व्यक्तिगत जीवन की कठोरताओं से प्रेरित होकर गिरिधर गोपाल की माधुरी उपासना में आश्रय लेने वाली मीराँ की जीवन-कथा है।



रिकृष्ण जी का हिंदी नाटककारों में अपना विशिष्ट स्थान है। मध्यकालीन इतिहास से कथा प्रसंगो को लेकर उन्होंने हमें राष्ट्रीय जागरण, धर्म निरपेक्षता तथा विश्व-बंधुत्व के महान् संदेश दिये हैं। उनके नाटकों में स्वच्छंदवादी शैली का बड़ा संयमित और अनुशासनपूर्ण उपयोग है, इसलिए उनके नाटक रंगमच की दृष्टि से सफल हैं। उनके सामाजिक नाटकों में वर्तमान जीवन की विषमंताओं के प्रति तीव्र आक्रोश और विद्रोह का स्वर सुनने को मिलता है। किसी समस्या का चित्रण करते हुए वे उसका हल अवश्य देते हैं और इस सम्बंध में गाँधी जी के जीवन-दर्शन का उन पर विशेष प्रभाव है।





कविता-संग्रह

प्रेमी जी का कविता-संग्रह आँखों में (1930 ई.) प्रेम के विरह-विदग्ध वेदनामय स्वरूप स्वरूप की अभिव्यक्ति है।

जादूगरनी (1932 ई.) में कबीर की माया महाठगिनी के मोहक प्रभाव का वर्णन एवं रहस्यात्मक अनुभूतियों की व्यंजना है।

अनंत के पथ पर (1932 ई.) रहस्यानुभूमि को औरघनीभूत रूप में उपस्थित करता है।

अग्निगान (1940 ई.) में कवि अनल वीणा लेकर राष्ट्रीय जागरण के गीत या उठा है।

रूप दर्शन में गजल और गीति-शैली के सम्मिलित विधान में सौंदर्य के मोहक प्रभाव को वाणी मिली है।

प्रतिभा में प्रेमी का प्रणय-निवेदन बड़ा मुखर हो उठा है।

वंदना के बोल में गाँधी जी और उनके जीवन दर्शन पर लिखित रचनाएँ हैं।

रूप रेखा में गजल के बन्द का सशक्त प्रयोग और प्रेमी के हृदय की आकुल पुकार है प्रेमी जी ने मुक्त छंद में भी कुछ रचनाएँ की हैं।

करना है संग्राम, बेटी की विदा और बहन का विवाह- ये सभी संस्मरणात्मक हैं और इनमें प्रेमी जी के विद्रोही दृष्टिकोण, नवीन मान्यताओं और नूतन आदर्शों की बड़ी प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति है।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments divya kumari on 12-05-2019

Hari kirisn premi ke natak ka nam

Muzaina on 06-05-2019

Raksha bandan summary in hindi stanza by stanza written by hari Krishnan prami





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