Samajik Dharmik Andolan सामाजिक धार्मिक आंदोलन

सामाजिक धार्मिक आंदोलन



GkExams on 06-02-2019

नवजागरण की शुरुआत

भारत में ब्रिटिश सत्ता के पैर जमने के बाद यहाँ का जनमानस पाश्चात्य शिक्षा एवं संस्कृति के सम्पर्क में आया, परिणामस्वरूप नवजागरण की शुरुआत हुई। भारतीय समाज की आंतरिक कमज़ोरियों का पक्ष उजागर हुआ। अंग्रेज़ी शिक्षा ने भारत के धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किया। अंग्रेज़ी शिक्षा व संस्कृति का प्रभाव सर्वप्रथम भारतीय मध्यम वर्ग पर पड़ा। तत्कालीन भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं वाह्म आडम्बरों को समाप्त करने में पाश्चत्य शिक्षा ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस शिक्षा के प्रभाव में आकर ही भारतीयों ने विदेशी सभ्यता और साहित्य के बारे में ढेर सारी जानकारियाँ एकत्र कीं तथा अपनी सभ्यता से उनकी तुलना कर सच्चाई को जाना। प्रारम्भ में अर्थात् 1813 ई. तक कम्पनी प्रशासन ने भारत के सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक मामलों में अहस्तक्षेप की नीति का पालन किया, क्योंकि वे सदैव इस बात से सशंकित रहते थे कि, इन मामलों में हस्तक्षेप करने से रूढ़िवादी भारतीय लोग कम्पनी की सत्ता के लिए ख़तरा उत्पन्न कर सकते हैं। परन्तु 1813 ई. के बाद ब्रिटिश शासन ने अपने औद्योगिक हितों एवं व्यापारिक लाभ के लिए सीमित हस्तक्षेप प्रारम्भ कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप कालान्तर में सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलनों को जन्म हुआ। 'हीगल' के मतानुसार-"पुनर्जागरण के बिना कोई भी धर्म सम्भव नहीं।"

हिन्दू सुधार आन्दोलन

इसके अंतर्गत हिन्दू धर्म तथा समाज में सुधार हेतु कई आन्दोलनों को चलाया गया, जिनमें से कुछ इस प्रकार से हैं-

ब्रह्मसमाज

ब्रह्मसमाज हिन्दू धर्म से सम्बन्धित प्रथम धर्म-सुधार आन्दोलन था। इसके संस्थापक राजा राममोहन राय थे, जिन्होंन 20 अगस्त, 1828 ई. में इसकी स्थापना कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में की थी। इसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन हिन्दू समाज में व्याप्त बुराईयों, जैसे- सती प्रथा, बहुविवाह, वेश्यागमन, जातिवाद, अस्पृश्यता आदि को समाप्त करना। राजा राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का पिता माना जाता है। राजा राममोहन राय पहले भारतीय थे, जिन्होंने समाज में व्याप्त मध्ययुगीन बुराईयों को दूर करने के लिए आन्दोलन चलाया। देवेन्द्रनाथ टैगोर ने भी ब्रह्मसमाज को अपनी सेवाएँ प्रदान की थीं। उन्होंने ही केशवचन्द्र सेन को ब्रह्मसमाज का आचार्य नियुक्त किया था। केशवचन्द्र सेन का बहुत अधिक उदारवादी दृष्टिकोण ही आगे चलकर ब्रह्मसमाज के विभाजन का कारण बना। राजा राममोहन राय को भारत में पत्रकारिता का अग्रदूत माना जाता है। इन्होंने समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता का समर्थन किया था। भारत की स्वतंत्रता के बारे में उनका मत था कि, भारत को तुरन्त स्वतंत्रता न लेकर प्रशासन में हिस्सेदारी लेना चाहिए।

आदि ब्रह्मसमाज

आदि ब्रह्मसमाज की स्थापना ब्रह्मसमाज के विभाजन के उपरान्त आचार्य केशवचन्द्र सेन द्वारा की गई थी। आदि ब्रह्मसमाज की स्थापना कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में हुई थी। ब्रह्मसमाज का 1865 ई. में विखण्डन हो चुका था। केशवचन्द्र सेन को देवेन्द्रनाथ टैगोर ने आचार्य के पद से हटा दिया। फलतः केशवचन्द्र सेन ने 'भारतीय ब्रह्म समाज' की स्थापना की, और इस प्रकार पूर्व का ब्रह्मसमाज 'आदि ब्रह्मसमाज' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


प्रार्थना समाज की स्थापना वर्ष 1867 ई. में बम्बई (महाराष्ट्र) में आचार्य केशवचन्द्र सेन की प्रेरणा से महादेव गोविन्द रानाडे, डॉ. आत्माराम पांडुरंग, चन्द्रावरकर आदि द्वारा की गई थी। जी.आर. भण्डारकर प्रार्थना समाज के अग्रणी नेता थे। प्रार्थना समाज का मुख्य उद्देश्य जाति प्रथा का विरोध, स्त्री-पुरुष विवाह की आयु में वृद्धि, विधवा-विवाह, स्त्री शिक्षा आदि को प्रोत्साहन प्रदान करना था।

आर्य समाज

10 अप्रैल सन् 1875 ई. में बम्बई में दयानंद सरस्वती ने 'आर्य समाज' की स्थापना की। इसका उद्देश्य वैदिक धर्म को पुनः शुद्ध रूप से स्थापित करने का प्रयास, भारत को धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक रूप से एक सूत्र में बांधने का प्रयत्न, पाश्यात्य प्रभाव को समाप्त करना आदि था। 1824 ई. में भारत का मुख्य उद्देश्य धर्म को आधार बनाकर समाज सेवा करना, धार्मिक एवं भाईचारे की भावना को फैलाना, प्राचीन दर्शन एवं भारत में हुए सभी परिवर्तनों तथा सुधारों के विरुद्ध थे। उनकी इच्छा उत्तर प्रदेश) से की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए धार्मिक नेता तैयार करना, विद्यालय के पाठ्यक्रमों में अंग्रेज़ी शिक्षा एवं पश्चिमी संस्कृति को प्रतिबन्धित करना, मुस्लिम सम्प्रदाय का नैतिक एवं धार्मिक पुनरुद्धार करना तथा अंग्रेज़ सरकार के साथ असहयोग करना था।






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19 वीं सदी में भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन
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