Major DhyanChand Kis Jati Ke The मेजर ध्यानचंद किस जाति के थे

मेजर ध्यानचंद किस जाति के थे



Pradeep Chawla on 12-05-2019

मेजर ध्यानचंद सिंह (29 अगस्त, 1905 -3 दिसंबर, 1979) भारतीय फील्ड हॉकी के भूतपूर्व खिलाड़ी एवं कप्तान थे। भारत एवं विश्व हॉकी के सर्वश्रेष्ठ खिलाडड़ियों में उनकी गिनती होती है। वे तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे ( जिनमें 1928 का एम्सटर्डम ओलोम्पिक, 1932 का लॉस एंजेल्स ओलोम्पिक एवं 1936 का बर्लिन ओलम्पिक)। उनकी जन्मतिथि को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के के रूप में मनाया जाता है। उनके छोटे भाई रूप सिंह भी अच्छे हॉकी खिलाड़ी थे जिन्होने ओलम्पिक में कई गोल दागे थे।



उन्हें हॉकी का जादूगर ही कहा जाता है। उन्होंने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे। जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। उन्हें 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा बहुत से संगठन और प्रसिद्ध लोग समय-समय पर उन्हे भारतरत्न से सम्मानित करने की माँग करते रहे हैं किन्तु अब केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार होने से उन्हे यह सम्मान प्रदान किये जाने की सम्भावना बहुत बढ़ गयी है।



अनुक्रम



1 जीवन परिचय

2 खिलाडी जीवन

3 ओलंपिक खेल

3.1 एम्सटर्डम (1928)

3.2 लास एंजिल्स (1932)

3.3 बर्लिन (1936)

4 हिटलर व ब्रैडमैन

5 सम्मान

6 सन्दर्भ

7 बाहरी कड़ियाँ



जीवन परिचय



मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त सन्‌ 1905 ई. को इलाहाबाद मे हुआ था। उनके बाल्य-जीवन में खिलाड़ीपन के कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते थे। इसलिए कहा जा सकता है कि हॉकी के खेल की प्रतिभा जन्मजात नहीं थी, बल्कि उन्होंने सतत साधना, अभ्यास, लगन, संघर्ष और संकल्प के सहारे यह प्रतिष्ठा अर्जित की थी। साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की अवस्था में 1922 ई. में दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रेजीमेंट में सेना में एक साधारण सिपाही की हैसियत से भरती हो गए। जब फर्स्ट ब्राह्मण रेजीमेंट में भरती हुए उस समय तक उनके मन में हॉकी के प्रति कोई विशेष दिलचस्पी या रूचि नहीं थी। ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का श्रेय रेजीमेंट के एक सूबेदार मेजर तिवारी को है। मेजर तिवारी स्वंय भी प्रेमी और खिलाड़ी थे। उनकी देख-रेख में ध्यानचंद हॉकी खेलने लगे देखते ही देखते वह दुनिया के एक महान खिलाड़ी बन गए। सन्‌ 1927 ई. में लांस नायक बना दिए गए। सन्‌ 1932 ई. में लॉस ऐंजल्स जाने पर नायक नियुक्त हुए। सन्‌ 1937 ई. में जब भारतीय हाकी दल के कप्तान थे तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया। जब द्वितीय महायुद्ध प्रारंभ हुआ तो सन्‌ 1943 ई. में लेफ्टिनेंट नियुक्त हुए और भारत के स्वतंत्र होने पर सन्‌ 1948 ई. में कप्तान बना दिए गए। केवल हॉकी के खेल के कारण ही सेना में उनकी पदोन्नति होती गई। 1938 में उन्हें वायसराय का कमीशन मिला और वे सूबेदार बन गए। उसके बाद एक के बाद एक दूसरे सूबेदार, लेफ्टीनेंट और कैप्टन बनते चले गए। बाद में उन्हें मेजर बना दिया गया।

ध्यानचंद की प्रतिमा

खिलाडी जीवन



ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है। गेंद इस कदर उनकी स्टिक से चिपकी रहती कि प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को अक्सर आशंका होती कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं। यहाँ तक हॉलैंड में उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़ कर देखी गई। जापान में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक से जिस तरह गेंद चिपकी रहती थी उसे देख कर उनकी हॉकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात कही गई। ध्यानचंद की हॉकी की कलाकारी के जितने किस्से हैं उतने शायद ही दुनिया के किसी अन्य खिलाड़ी के बाबत सुने गए हों। उनकी हॉकी की कलाकारी देखकर हॉकी के मुरीद तो वाह-वाह कह ही उठते थे बल्कि प्रतिद्वंद्वी टीम के खिलाड़ी भी अपनी सुधबुध खोकर उनकी कलाकारी को देखने में मशगूल हो जाते थे। उनकी कलाकारी से मोहित होकर ही जर्मनी के रुडोल्फ हिटलर सरीखे जिद्दी सम्राट ने उन्हें जर्मनी के लिए खेलने की पेशकश कर दी थी। लेकिन ध्यानचंद ने हमेशा भारत के लिए खेलना ही सबसे बड़ा गौरव समझा। वियना में ध्यानचंद की चार हाथ में चार हॉकी स्टिक लिए एक मूर्ति लगाई और दिखाया कि ध्यानचंद कितने जबर्दस्त खिलाड़ी थे।



जब ये ब्राह्मण रेजीमेंट में थे उस समय मेजर बले तिवारी से, जो हाकी के शौकीन थे, हाकी का प्रथम पाठ सीखा। सन्‌ 1922 ई. से सन्‌ 1926 ई. तक सेना की ही प्रतियोगिताओं में हाकी खेला करते थे। दिल्ली में हुई वार्षिक प्रतियोगिता में जब इन्हें सराहा गया तो इनका हौसला बढ़ा। 13 मई सन्‌ 1926 ई. को न्यूजीलैंड में पहला मैच खेला था। न्यूजीलैंड में 21 मैच खेले जिनमें 3 टेस्ट मैच भी थे। इन 21 मैचों में से 18 जीते, 2 मैच अनिर्णीत रहे और और एक में हारे। पूरे मैचों में इन्होंने 192 गोल बनाए। उनपर कुल 24 गोल ही हुए। 27 मई सन्‌ 1932 ई. को श्रीलंका में दो मैच खेले। ए मैच में 21-0 तथा दूसरे में 10-0 से विजयी रहे। सन्‌ 1935 ई. में भारतीय हाकी दल के न्यूजीलैंड के दौरे पर इनके दल ने 49 मैच खेले। जिसमें 48 मैच जीते और एक वर्षा होने के कारण स्थगित हो गया। अंतर्राष्ट्रीय मैचों में उन्होंने 400 से अधिक गोल किए। अप्रैल, 1949 ई. को प्रथम कोटि की हाकी से संन्यास ले लिया।

ओलंपिक खेल

एम्सटर्डम (1928)



1928 में एम्सटर्डम ओलम्पिक खेलों में पहली बार भारतीय टीम ने भाग लिया। एम्स्टर्डम में खेलने से पहले भारतीय टीम ने इंगलैंड में 11 मैच खेले और वहाँ ध्यानचंद को विशेष सफलता प्राप्त हुई। एम्स्टर्डम में भारतीय टीम पहले सभी मुकाबले जीत गई। 17 मई सन्‌ 1928 ई. को आस्ट्रिया को 6-0, 18 मई को बेल्जियम को 9-0, 20 मई को डेनमार्क को 5-0, 22 मई को स्विट्जरलैंड को 6-0 तथा 26 मई को फाइनल मैच में हालैंड को 3-0 से हराकर विश्व भर में हॉकी के चैंपियन घोषित किए गए और 29 मई को उन्हें पदक प्रदान किया गया। फाइनल में दो गोल ध्यानचंद ने किए।

लास एंजिल्स (1932)



1932 में लास एंजिल्स में हुई ओलम्पिक प्रतियोगिताओं में भी ध्यानचंद को टीम में शामिल कर लिया गया। उस समय सेंटर फॉरवर्ड के रूप में काफ़ी सफलता और शोहरत प्राप्त कर चुके थे। तब सेना में वह लैंस-नायक के बाद नायक हो गये थे। इस दौरे के दौरान भारत ने काफ़ी मैच खेले। इस सारी यात्रा में ध्यानचंद ने 262 में से 101 गोल स्वयं किए। निर्णायक मैच में भारत ने अमेरिका को 24-1 से हराया था। तब एक अमेरिका समाचार पत्र ने लिखा था कि भारतीय हॉकी टीम तो पूर्व से आया तूफान थी। उसने अपने वेग से अमेरिकी टीम के ग्यारह खिलाड़ियों को कुचल दिया।

बर्लिन (1936)

1936 के बर्लिन ओलम्पिक के समय ध्यानचन्द

चित्र:Dhyan Chand 1936 final.jpg

1936 के बर्लिन ओलम्पिक के हॉकी के निर्णायक मैच में जर्मनी के विरुद्ध गोल दागते हुए ध्यानचन्द



1936 के बर्लिन ओलपिक खेलों में ध्यानचंद को भारतीय टीम का कप्तान चुना गया। इस पर उन्होंने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा- मुझे ज़रा भी आशा नहीं थी कि मैं कप्तान चुना जाऊँगा खैर, उन्होंने अपने इस दायित्व को बड़ी ईमानदारी के साथ निभाया। अपने जीवन का अविस्मरणिय संस्मरण सुनाते हुए वह कहते हैं कि 17 जुलाई के दिन जर्मन टीम के साथ हमारे अभ्यास के लिए एक प्रदर्शनी मैच का आयोजन हुआ। यह मैच बर्लिन में खेला गया। हम इसमें चार के बदले एक गोल से हार गए। इस हार से मुझे जो धक्का लगा उसे मैं अपने जीते-जी नहीं भुला सकता। जर्मनी की टीम की प्रगति देखकर हम सब आश्चर्यचकित रह गए और हमारे कुछ साथियों को तो भोजन भी अच्छा नहीं लगा। बहुत-से साथियों को तो रात नींद नहीं आई। 5 अगस्त के दिन भारत का हंगरी के साथ ओलम्पिक का पहला मुकाबला हुआ, जिसमें भारतीय टीम ने हंगरी को चार गोलों से हरा दिया। दूसरे मैच में, जो कि 7 अगस्त को खेला गया, भारतीय टीम ने जापान को 9-0 से हराया और उसके बाद 12 अगस्त को फ्रांस को 10 गोलों से हराया। 15 अगस्त के दिन भारत और जर्मन की टीमों के बीच फाइनल मुकाबला था। यद्यपि यह मुकाबला 14 अगस्त को खेला जाने वाला था पर उस दिन इतनी बारिश हुई कि मैदान में पानी भर गया और खेल को एक दिन के लिए स्थगित कर दिया गया। अभ्यास के दौरान जर्मनी की टीम ने भारत को हराया था, यह बात सभी के मन में बुरी तरह घर कर गई थी। फिर गीले मैदान और प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण हमारे खिलाड़ी और भी निराश हो गए थे। तभी भारतीय टीम के मैनेजर पंकज गुप्ता को एक युक्ति सूझी। वह खिलाड़ियों को ड्रेसिंग रूम में ले गए और सहसा उन्होंने तिरंगा झण्डा हमारे सामने रखा और कहा कि इसकी लाज अब तुम्हारे हाथ है। सभी खिलाड़ियों ने श्रद्धापूर्वक तिरंगे को सलाम किया और वीर सैनिक की तरह मैदान में उतर पड़े। भारतीय खिलाड़ी जमकर खेले और जर्मन की टीम को 8-1 से हरा दिया। उस दिन सचमुच तिरंगे की लाज रह गई। उस समय कौन जानता था कि 15 अगस्त को ही भारत का स्वतन्त्रता दिवस बनेगा।[10]

हिटलर व ब्रैडमैन



ध्यानचंद ने अपनी करिश्माई हॉकी से जर्मन तानाशाह हिटलर ही नहीं बल्कि महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन को भी अपना क़ायल बना दिया था। यह भी संयोग है कि खेल जगत की इन दोनों महान हस्तियों का जन्म दो दिन के अंदर पर पड़ता है। दुनिया ने 27 अगस्त को ब्रैडमैन की जन्मशती मनाई तो 29 अगस्त को वह ध्यानचंद को नमन करने के लिए तैयार है, जिसे भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। ब्रैडमैन हाकी के जादूगर से उम्र में तीन साल छोटे थे। अपने-अपने फन में माहिर ये दोनों खेल हस्तियाँ केवल एक बार एक-दूसरे से मिले थे। वह 1935 की बात है जब भारतीय टीम आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के दौरे पर गई थी। तब भारतीय टीम एक मैच के लिए एडिलेड में था और ब्रैडमैन भी वहाँ मैच खेलने के लिए आए थे। ब्रैडमैन और ध्यानचंद दोनों तब एक-दूसरे से मिले थे। ब्रैडमैन ने तब हॉकी के जादूगर का खेल देखने के बाद कहा था कि वे इस तरह से गोल करते हैं, जैसे क्रिकेट में रन बनते हैं। यही नहीं ब्रैडमैन को बाद में जब पता चला कि ध्यानचंद ने इस दौरे में 48 मैच में कुल 201 गोल दागे तो उनकी टिप्पणी थी, यह किसी हॉकी खिलाड़ी ने बनाए या बल्लेबाज ने। ध्यानचंद ने इसके एक साल बाद बर्लिन ओलिम्पिक में हिटलर को भी अपनी हॉकी का क़ायल बना दिया था। उस समय सिर्फ हिटलर ही नहीं, जर्मनी के हॉकी प्रेमियों के दिलोदिमाग पर भी एक ही नाम छाया था और वह था ध्यानचंद।[11]

सम्मान



उन्हें 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। ध्यान चंद को खेल के क्षेत्र में 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उनका जन्म 29 अगस्त 1905 इलाहाबाद, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत में हुआ था। उनके जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है। इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। भारतीय ओलम्पिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया था। फिलहाल ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग भी की जा रही है। [12] भारत रत्न को लेकर ध्यानचंद के नाम पर अब भी विवाद जारी है।[




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Sanjay on 05-12-2022

ध्यानचंद किस समाज से ही

Sanjay on 05-12-2022

कुशवाहा समाज में kon kon se sur bir ate he

Rahul Sing on 30-11-2022

Major Dayanchand from SAINI RAJPUT FAMILY.
Saini Rajputs don’t belong to Malis caste who acquired Saini surnames after 1937. Mali’s are not belongs to Saini historically or traditionally.


Sunny on 19-09-2022

कुशवाह समाज से आते है जो की ओबीसी मैं आते है इनमे ये माली समाज से ताल्लुक रखते है ।।इनमे मौर्य ,कुशवाह ,सैनी ,शाक्य , फुले , आदि ।। इसी कास्ट की जातियां है


Ramautar kushwaha on 31-08-2022

Mejar dhyanchan kis jaati se aate hai

Sachin on 30-08-2022

Ashok samrat kon thi

Singh on 02-01-2022

Kushwaha is a Agricultural caste and kachhawaha is a rajput caste. Dont mix . Major dhyanchand singh bais rajput


Kajal on 04-12-2021

Kya vo rajput Hai



डीके कुशवाह, समाज विश्लेषक, धौलपुर, राजस्थान on 29-08-2018

श्री मेज़र ध्यानचंद जी भगवान श्री राम जी एवं श्री लव-कुश महाराज के सूर्यवंशी सूरमाओं के वंशज सौमेश्वरसिह कुशवाह इलाहाबादीजी के घर में पैदा हुए। इनकी जाति क्षत्रिय कुशवाहा/कछवाहा है। इनकी कुशवाहा कछवाहा समाज (जाति)में शहीद रामसिंह कुशवाह धौलपुर(1857), शहीद पंचमसिंह कुशवाह, स्वतंत्रता सेनानी श्री कल्लाराम कुशवाह, स्वतंत्रता सेनानी वकील श्री गैदाराम कुशवाह टहरी का पुरा धौलपुर राजस्थान (1946-1947 एवं तसीमौकाण्ड 11.08.1947) एवं राजानल नरवरगढ,राजामनसिह जयपुर, नारायण सिंह कुशवाह ग्वालियर, केशव प्रसाद मौर्य, यूपी, उपेन्द्र सिंह कुशवाह बिहार,राजानैमीचंदकुशवाह नैनीताल, बाबूसिंह कुशवाहा यूपी, बीएल कुशवाह धौलपुर राजस्थान,क्षगनभुजबल महाराष्ट्र, प्रवीन तोगड़िया विश्व हिन्दू परिषद आदि व्यक्ति विशेष की जो जाति है वहीं सूर्यवंशी सूरमाओं की जाति होकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जाति है जो " श्री कुशवाहा/कछवाहा"के नाम से जानी जाती हैं, वर्तमान में ये जाति भारत देश में अन्य पिछड़ा वर्ग में गिनी जाती है।इस श्री कुशवाहा समाज का देश की आजादी में 1857 से लेकर देश की आजादी 1947 तक प्रमुख भूमिका निभाई है। क्योंकि श्री कुशवाहा समाज के सूर्यवंशी लव-कुश महाराज के वंशज भारत देश के मूल निवासी हैं और सच्चे देशभक्त रहे हैं और आज भी है। दोस्तों अब तो समझ में आया कि सूर्यवंशी सूरमाओं के वंशज सौमेश्वरसिह कुशवाह इलाहाबादीजी के पुत्र मेजर ध्यानचंद कुशवाह होकी के जादूगर और भारतीय सेना के जवान एवं होकी के जादूगर विश्व चैंपियन के विजेता " श्री कुशवाहा/कछवाहा (मौर्य)" क्षत्रिय कुशवाहा कछवाहा हिन्दू जाति के सूर्यवंशी भगवान श्री राम जी एवं श्री लव-कुश महाराज जी का सूरवीर और तेजस्वी श्री सौमेश्वरसिह कुशवाह इलाहाबादीजी की पहली संतान थी । भारत में उनके और उनके छोटे भाई के नाम से स्टेडियम जैसे " अन्तर्राष्ट्रीय हाकी मेज़र ध्यानचंद स्टेडियम दिल्ली, मेजर रूप सिंह कुशवाह स्टेडियम ग्वालियर "है।
इनकी जाति " कुशवाहा/कछवाहा" जाति है जो एक विशुद्ध भारतीय हिन्दू जाति है।... समाज की सेवा में... डी के कुशवाह, समाज विश्लेषक, धौलपुर राजस्थान मोबाइल.9785247495


डी के कुशवाह, सामाजिक विश्लेषक, धौलपुर राजस्थान। on 30-08-2018

मेजर ध्यानचंद कुशवाह होकी के जादूगर क्षत्रिय कुशवाहा समाज के सूर्यवंशी सूरमाओं के वंशज सौमेश्वरसिह कुशवाह इलाहाबादीजी के पुत्र थे। जिस जाति के संबंध में तसीमोकाण्ड में शहीद श्रीपंचमसिंह कुशवाह जी के शहीद होने की तिथि निर्धारित है वो 11.08.1947 की जगह 11.04.1947 है।


Aman kumar on 24-09-2018

Major Dhyan Chand kis Jati ke the

Vikashkumaryadav on 24-02-2019

Sabse pahle mai is Bharat ke lal ko sadar pranam karta hun. Sach me Kya bataun is lekh ko padhne ke bad mujhe aankh se khusi ke aansu nikal pade. E hoti hai desh bhakti.aaj ke log hai jo doctor,scientist ban jate hai aur paise ke lobhe me ma(desh) ko chodker chale jate hai..


Gyanaram dudi on 12-05-2019

मेजर ध्यानचंद किस जाति के थे

KISHANLALDAMOR on 12-05-2019

Mejar dhyan chand kid jati se he

Sultan on 12-05-2019

मेजर ध्यांचन्द किस वर्ग से थे ।

Roshni kushvaha on 29-08-2021

Mejar dyanchand konsi cast ke the



नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment