मुग़ल काल में अकबर के समय तक बंगाल शैली की छत राजपूत शैली का हिस्सा बन चुकी थी। बाबर द्वारा भारत में प्रचलित की गयी भवन, उद्यान व फव्वारों की ईरानी-चार-बाग़ पद्धति की व्यवस्था ने हिन्दू रियासतों के भवनों को एक नया रूप प्रदान किया।
मध्य काल में खासतौर पर हिन्दू वास्तुकला में दो प्रवृतियाँ समानान्तर रूप से मौजूद थी। एक परंपरा के अर्न्तगत पूर्णतया प्राचीन परम्पराओं के अनुसार निर्माण होते थे। दूसरी ओर मिश्रित शैली को भी अपनाया गया। यद्यपि विक्टोरिया युग में वास्तुकला का विकास हुआ, परन्तु मध्य काल के ताज महल, हुमायूं का मकबरा, बीजापुर की गोल गुम्बद, डीग के जल महल और भरतपुर के दुर्ग का कोई सानी नहीं है।
भरतपुर के शासक कुशल शासक ही नहीं थे, वरन अच्छे कला-प्रेमी एवं कला संरक्षक थे। उनके समय में हुए निर्माण वास्तुकला के अद्भुत नमूने हैं। बदन सिंह को सौन्दर्य कला, स्थापत्य कला और वास्तु का अच्छा ज्ञान था। डीग के भवनों एवं उद्यानों के विन्यास से यह स्पष्ट हो जाता है।उन्होंने डीग के किले में सुन्दर भवन बनाये जिनको पुराना महल नाम से जाना जाता है। 18 वीं सदी में जबकि मुग़ल शैली या मिश्रित शैली में काम हुआ, तब हिन्दू शैली का स्थान बनाये रखने का सार्थक प्रयास बदन सिंह एवं सूरजमल ने किया। मुग़ल शासकों की स्थिति उस समय अच्छी नहीं थी। मुग़ल सल्तनत भारी उथल पुथल का शिकार था। मुग़ल दरबारों से कारीगर काम छोड़-छोड़ कर जा रहे थे। उन दिनों ठाकुर बदन सिंह कुम्हेर की गढ़ी में रहते थे। वहीं रहते हुए उन्होंने सन 1725 में प्रथम जाट राजधानी 'डीग' की स्थापना की। उसके बाद 1733 में भरतपुर राजधानी की स्थापना सूरजमल ने की।
जैसे-जैसे भरतपुर राज्य की राजनैतिक व आर्थिक स्थिति मजबूत हुई वैसे-वैसे भरतपुर अंचल में वास्तुकला का विकास हुआ। कुम्हेर की गढ़ी, डीग के जल महल फिर भरतपुर दुर्ग का निर्माण उसी विकास के सोपान हैं। महाराजा बदन सिंह ने डीग के भवनों की योजना तैयार की और उस योजना को साकार रूप दिया महाराजा सूरजमल ने। यही योजनायें महाराजा बदनसिंह के सौन्दर्य बोध की परिचायक हैं।
कला के क्षेत्र में महाराजा सूरजमल की अभिरुचि दुर्ग, महल एवं मंदिर निर्माण में थी। यद्यपि उनके शासन काल में सभी जाट किलों की मरम्मत एवं पुनर्निमाण का कार्य जारी रहा, परन्तु स्वयं उनका योगदान विशेष रूप से भरतपुर और डीग के आधुनिकतम महलों के निर्माण में रहा। डीग में अपने पिता के समय के बने महलों, जो पुराने महलों के नाम से जाने जाते हैं, से पृथक सूरजमल ने सुन्दर जलाशय एवं फव्वारों के साथ आधुनिक सुविधा युक्त महलों का निर्माण करवाया, जो आज भी भव्य एवं दर्शनीय हैं। कवि सोमनाथ ने 'सुजन विलास' और अखैराम ने 'सिंहासन बत्तीसी' में डीग के इन सुन्दर महलों, वाटिका, जलाशय, आदि का श्रेष्ठ एवं सुन्दर वर्णन किया है।
सुन्दर भवनों एवं सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण सुव्यवस्था एवं कुशल योजना विन्यास के माध्यम से ही संभव हुआ। यह निर्माण कार्य महाराजा बदन सिंह एवं सूरजमल को कुशल वास्तुशिल्पी ही नहीं, अपितु कुशल व्यवस्थापक, प्रारूपकार एवं, कलामर्मज्ञ का प्रमाण देता है।
इन महलों के निर्माण में महाराजा सूरज मल ने अपार धन खर्च किया।कहा जाता है कि लखनऊ के नवाब गाजीउद्दीन जो महाराजा सूरजमल के मित्र थे, जब 1759 में डीग आये तो उन्होंने भी उपहारस्वरुप भवनों के निर्माण के लिए धन दिया था।
इन भवनों को देखने पर उस वक्त के मजदूरों व कारीगरों की कुशलता और सौन्दर्यबोध का परिचय मिलाता है। साथ ही यह भी संकेत मिलाता है की उन्हें प्रोत्साहन मिलता था, उचित पारिश्रमिक भी मिलता था। मुग़ल दरबारों से काम छोड़ कर आ रहे कारीगरों को महाराजा सूरजमल द्वारा काम दिया गया। इस योजना को कार्यान्वित करते समय निर्माण मंत्री जीवनराम वनचारी थे।
डीग के भवनों में महलों के साथ मुग़ल शैली के बड़े-बड़े चौकोर उद्यान हैं, जिनमें पानी की कृत्रिम व्यवस्था से चलने वाले फव्वारों की श्रृंखलाएं हैं।
Deeg ke mehelo ka nirman kisne kavaya
Wstavik nirman kis ne marwaya
Mahraja Suraj Mal ne kiya
deeg mahal kab bane the
deeg ke mahal kisane banaye
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