Chittorgadh Bolne Laga To Nibandh चित्तौड़गढ़ बोलने लगा तो निबंध

चित्तौड़गढ़ बोलने लगा तो निबंध



Pradeep Chawla on 27-09-2018


Chittorgarh Fort – चित्तौड़गढ़ किला (चित्तोर दुर्ग) भारत के विशालतम किलो में से एक है। यह एक वर्ल्ड हेरिटेज साईट भी है। यह किला विशेषतः चित्तोड़, Chittod Ka Kila मेवाड़ की राजधानी के नाम से जाना जाता है। पहले इसपर गुहिलोट का शासन था और बाद में सिसोदिया का शासनकाल था।


चित्तौड़ी राजपूत के सूर्यवंशी वंश ने 7 वी शताब्दी से 1568 तक परित्याग करने तक शासन किया और 1567 में अकबर ने इस किले की घेराबंदी की थी। यह किला 180 मीटर पहाड़ी की उचाई पर बना हुआ है और 691.9 एकर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस किले से जुडी बहुत सी इतिहासिक घटनाये है। आज यह स्मारक पर्यटको के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
Chittorgarh Fort Chittod Ka Kila

चित्तौड़गढ़ किला वीरता की मिसाल – Chittorgarh Fort History in Hindi

15 से 16 वी शताब्दी के बाद किले को तीन बार लुटा गया था। 1303 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने राना रतन सिंह को पराजित किया था। 1535 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने बिक्रमजीत सिंह को पराजित किया था और 1567 में अकबर ने महाराणा उड़ाई सिंह द्वितीय को पराजित किया था।


जिन्होंने इस किले को छोड़कर उदयपुर की स्थापना की थी। लेकिन तीनो समय राजपूत सैनिको ने जी-जान से लढाई की थी। उन्होंने महल को एवं राज्य को बचाने की हर संभव कोशिश की थी लेकिन हर बार उन्हें हार का ही सामना करना पड़ रहा था। चित्तोड़गढ़ किले के युद्ध में सैनिको के पराजित होने के बाद राजपूत सैनिको की तकरीबन 16,000 से भी ज्यादा महिलाओ और बच्चो ने जौहर करा लिया था। और अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था।

सबसे पहले जौहर राना रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मिनी ने किया था। उनके पति 1303 के युद्ध में मारे गये थे और बाद में 1537 में रानी कर्णावती ने भी जौहर किया था।


इसीलिये यह किला राष्ट्रप्रेम, हिम्मत, मध्यकालीन वीरता और 7 और 16 वी शताब्दी में मेवाड़ के सिसोदिया और उनकी महिलाओ और बच्चो का राज्य के प्रति बलिदान देने का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। उस समय राजपूत शासक, सैनिक, महिलाये और स्थानिक लोग मुग़ल सेना को सरेंडर करने की बजाये लढते-लढते प्राणों की आहुति देना ठीक समझते थे।


2013 में कोलंबिया के फ्नोम पेन्ह (Phonm Penh) में वर्ल्ड हेरिटेज कमिटी के 37 वे सेशन में चित्तोड़गढ़ किले के साथ ही राजस्थान के पाँच और किलो को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल किया गया था।

चित्तोड़गढ़ किले का इतिहास – Chittorgarh Kila Ka itihas

चित्तोड़गढ़ किले – Chittorgarh Fort का निर्माण 7 वी शताब्दी में मौर्य के शासन काल में किया गया था और इसका नाम भी मौर्य शासक चित्रांगदा मोरी के बाद ही रखा गया था। इतिहासिक दस्तावेजो के अनुसार चित्तौड़गढ़ किला 834 सालो तक मेवाड़ की राजधानी रह चूका था। इसकी स्थापना 734 AD में मेवाड़ के सिसोदिया वंश के शासक बाप्पा रावल ने की थी।


ऐसा कहा जाता है की इस किले को 8 वी शताब्दी में सोलंकी रानी ने दहेज़ के रूप में बाप्पा रावल को दिया था। 1568 AD में इस किले को अकबर के शासनकाल में इस किले को लूटकर इसका विनाश भी किया गया था लेकिन फिर बाद में लम्बे समय के बाद 1905 AD में इसकी मरम्मत की गयी थी। इस किले का नियंत्रण पाने के लिये तीन महत्वपूर्ण लढाईयाँ हुई थी।


1303 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने किले को घेर लिया था। 1534 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने किले को घेर लिया था और 1567 में मुग़ल बादशाह अकबर ने किले पर आक्रमण किया था। घेराबंदी के काल को यदि छोड़ दिया जाए तो यह किला हमेशा गुहिलोट के राजपूत वंश के सिसोदिया के नियंत्रण में ही था।


उन्होंने इसे बाप्पा रावल से अवतरित किया था। इस किले की स्थापना को लेकर कई प्राचीन कहानियाँ भी है और हर घेराबंदी के बाद इसके पुनर्निर्माण की भी बहोत सी कहानियाँ है।


चित्तौड़ का महाभारत में भी उल्लेख किया गया है। कहा जाता है की पांडव के भाई भीम अपने विशाल ताकत के लिये जाने जाते थे। इसीके चलते एक बार उन्होंने पानी पर भी अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया था जिससे एक कुंड का निर्माण हुआ था और उस कुंड को भीमलत कुंड के नाम से जाना जाता है।


लेकिन बाद में इसका नाम बदलकर भीमा रखा गया था। प्राचीन गाथाओ के अनुसार इस किले का निर्माणकार्य भीम ने ही शुरू किया था।


बाप्पा रावल – Bappa Rawal


प्राचीन इतिहास में हमें यह किला बाप्पा रावल से जुड़ा हुआ दिखाई देता है। बाप्पा रावल के हुना साम्राज्य का पतन यशोधर्मन ने किया था। लेकिन बाद में क्षत्रिय साम्राज्य टक उर्फ़ तक्षक ने इसे जप्त कर लिया था। प्राचीन समय से ही मोरी चित्तौड़ के भगवान माने जाते थे।


लेकिन कुछ पीढियों के बाद गुहिलोट ने उनकी जगह ले ली थी। 9 वी शताब्दी में जैमल पत्ता सरोवर के किनारे हमें छोटे-छोटे बौद्ध स्तूप भी दिखाई देते है।


विजय स्तंभ – Vijay Stambha


विजय स्तंभ या जय स्तंभ को चित्तौड का प्रतिक माना जाता है और विशेष रूप से इसे विजय का प्रतिक ही माना जाता है। इसका निर्माण 1448 और 1458 के बीच राना कुम्भ ने 1440 AD में मालवा के सुल्तान महमूद शाह प्रथम खिलजी के खिलाफ जीत हासिल करने के उपलक्ष में किया था।


युद्ध के तक़रीबन 10 साल बाद इसके निर्माण की शुरुवात की गयी थी। यह 37.2. मीटर (122 फीट) ऊँचा और 47 वर्ग फीट (4.4 मी वर्ग) आधार पर बना हुआ है। 8 वी मंजिल तक इसकी तकरीबन 157 सीढियाँ है। 8 वी मंजिल से हमें चित्तौड शहर का मनमोहक नजारा दिखाई देता है।


इसपर बने गुम्बद को 19 वी शताब्दी में क्षतिग्रस्त किया गया था। लेकिन वर्तमान में इस स्तंभ को शाम के समय लाइटिंग से सजाया जाता है और और इसकी सबसे उपरी मंजिल से हम चित्तौड़ का मनमोहक नजारा देख सकते है।




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Comments Sanchit on 06-09-2022

Chittorgarh bolane laga to kya hoga

Sanchit on 06-09-2022

Chittorgarh bolane Laga To Kya Hoga nibandh

Mehul on 30-08-2021

चितोंगड बोलणे लगा तो


Shraddha pise on 17-01-2021

Chittorgarh bolne laga toeassy in hindi

Shraddha pise on 17-01-2021

Chittorgarh bolne laga toeassy in hindi

Lavkesh upadhyay on 18-04-2020

Muglo ke bad chittod kila ka Kya hua

Lavkesh upadhyay on 18-04-2020

Muglo ke bad isme kisne shasan. Kiya


Rekha mishra on 22-09-2019

Yadi chitodgad bolta ..speech



Sakshi on 23-09-2018

चितौड गड बोलने लगा तो

Ramniwas on 08-01-2019

किया maharana partab



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