Marusthalikarann Ke Karan मरुस्थलीकरण के कारण

मरुस्थलीकरण के कारण



Pradeep Chawla on 17-10-2018

रेतीले टीलों का स्थिरीकरण: राजस्थान के 58 प्रतिशत क्षेत्र में अलग-अलग तरह के रेतीले टीले पाए जाते हैं। इन्हें पुरानी और नई दो श्रेणियों के अन्तर्गत रखा जाता है। बारचन और श्रब कापिस टीले नए टीलों की श्रेणी में आते हैं और सबसे अधिक समस्या वाले हैं। अन्य रेतीले टीले पुरानी श्रेणी के हैं और फिर से सक्रिय होने के विभिन्न चरणों में हैं। केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान ने अब रेतीले टीलों को स्थिर बनाने के लिए उपयुक्त टेक्नोलॉजी विकसित की है जिसमें ये बातें शामिल हैं: (1) जैव-हस्तक्षेप से रेतीले टीलों का संरक्षण; (2) टीलों के आधार से शीर्ष तक समानांतर या शतरंज की बिसात के नमूने पर वायु अवरोधकों का विकास; (3) वायु-अवरोधकों के बीच घास और बेल आदि के बीजों का रोपण तथा 5×5 मीटर के अंतर से नर्सरी में उगाए पौधों का रोपण। इसके लिए सबसे उपयुक्त पेड़ और घास की प्रजातियों में इस्राइली बबूल (प्रासोफिस जूलीफ्लोरा), फोग (कैलीगोनम पोलीगोनोइड्स), मोपने (कोलोफोस्पर्नम मोपने), गुंडी (कोर्डिया मायक्सा), सेवान (लासिउरस सिंडिकस), घामन (सेंक्रस सेटिजेरस) और तुम्बा (साइट्रलस कोलोसिंथिस) शामिल हैं।

रेतीले टीलों वाला 80 प्रतिशत क्षेत्र किसानों के स्वामित्व में है और उस पर बरसात में खेती की जाती है। इस तरह के रेतीले टीलों को स्थिर बनाने की तकनीक एक जैसी है मगर समूचे टीले को पेड़ों से नहीं ढका जाना चाहिए। पेड़ों को पट्टियों की शक्ल में लगाया जाना चाहिए। दो पट्टियों के बीच फसल/घास उगाई जा सकती है। इस विधि को अपनाकर किसान अनाज उगाने के साथ-साथ रेतीले टीलों वाली जमीन को स्थिर बना सकते हैं।

रक्षक पट्टी वृक्षारोपण: रेतीली जमीन और हवा की तेज रफ्तार (जो गर्मियों में 70-80 कि.मी. प्रतिघंटा तक पहुँच जाती है) की वजह से खेती वाले समतल इलाकों में काफी मिट्टी का कटाव होता है। कई बार तो मिट्टी का क्षरण 5 टन प्रति हेक्टेयर तक पहुँच जाता है। अगर हवा के बहाव की दिशा में 3 से 5 कतारों में पेड़ लगाकर रक्षक पट्टियाँ बना दी जाएँ तो मिट्टी का कटाव काफी कम किया जा सकता है।

रक्षक पट्टियों से हवा की रफ्तार 20 से 46 प्रतिशत कम हो जाती है। इससे मिट्टी का कटाव 184 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो जाता है जबकि बिना रक्षक पट्टियों वाले इलाकों में यह 546 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होता है। (गुप्ता, 1997)। बिना रक्षक पट्टियों वाले क्षेत्र के मुकाबले रक्षक पट्टियों वाले क्षेत्र में जमीन में नमी 14 प्रतिशत अधिक होती है और बाजरे का उत्पादन भी 70 प्रतिशत अधिक होता है। ईंधन और चारे की जरूरत रक्षक पट्टियों में लगाए गए पेड़ों की टहनियों को काटकर पूरी की जाती है। इससे पेड़ों के बीच हवा के आने-जाने के लिए रास्ता भी बना रहता है।





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