MiniMata Jeevan Parichay मिनीमाता जीवन परिचय

मिनीमाता जीवन परिचय



GkExams on 18-12-2018


सन् 1952 में मिनी माता सांसद बनी थीं। उन्होंने देश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण काम किया था। छुआछूत मिटाने के लिए उन्होंने इतना काम किया कि मिनी माता को लोग मसीहा के रुप में देखा करते थे। उनके घर में हर श्रेणी के लोग आते थे और मिनी माता उनकी समस्याओं को हल करने में पूरी मदद करती थीं। ऐसा कहते हैं कि जब वे सांसद के रुप में दिल्ली में रहती थीं तो उनका वास स्थान एक धर्मशाला जैसा था। छत्तीसगढ़ से जो कोई भी दिल्ली में आता, वह निर्जिंश्चत रहता कि मिनी माता का निवास तो है। ठंड के दिनों में मिनी माता ध्यान रखतीं कि कोई भी ठंड से परेशान न हो। अगर किसी को देखतीं कि ठंड से सिकुड़ रहा है तो उसको कंबल से ढंक देतीं। एक बार तो ऐसा हुआ कि उनके पास खुद को ओढ़ने के लिए कंबल नहीं रहा। बहुत ज्यादा ठंड हो रही थी। मिनी माता ने एक सिगड़ी जला कर खाट के नीचे रख दिया, पर सिगड़ी का धुँआ पूरे कमरे में भर गया और बहुत ज्यादा घुटन हो गई, जिसके कारण मिनी माता बेहोश हो गईं। कई दिन तक चिकित्सा चलने के बाद वे ठीक हुईं। ऐसी थीं मिनी माता।


मिनी माता का नाम मीनाक्षी देवी था। वे कैसे मीनाक्षी से मिनी माता बनी, यह जानने के लिए हमें उनके अतीत को जानना पड़ेगा। मीनाक्षी देवी रहती थीं आसाम में अपनी माँ देवबती के साथ। देवबती जब छोटी थीं, तो वे छत्तीसगढ़ में रहती थीं। उनके पिताजी सगोना नाम के गाँव में मालगुज़ार थे। छत्तीसगढ़ में सन् 1897 से 1899 तक अकाल पड़ा जो इतना भयंकर था कि लोग उसे "दुकाल" के नाम से जानने लगे थे । देवबती तब बहुत ही छोटी थीं। उनकी और दो बहनें थीं। एक उनसे बड़ी दूसरी उनसे छोटी। तीन बेटियों को लेकर उनके पिता-माता शहर विलासपुर पहुँचे। वहाँ उन्हें आसाम के एक ठेकेदार मिले जो मज़दूर भर्ती करने वाले थे। उनके साथ देवबती के पिता सपरिवार आसाम जाने के लिए तैयार हो गए। देवबती की दोनों बहनें आसाम नहीं पहुँच पाई। बड़ी बहन मती ट्रेन में ही चल बसी। उस नन्ही-सी बच्ची को गंगा में अपंण करना पड़ा, और छोटी बहन जिसका नाम चांउरमती था, उनको पद्मा नदी में। किसी तरह तीनों मिलकर जब आसाम पहुँचे, तब पिता-माता दोनों चल बसे। देवबती बीमारी से तड़प रही थीं, उसे किसी ने अस्पताल में भर्ती कर दिया। ठीक होने के बाद देवबती अस्पताल में ही रह गईं। नर्सो ने उन्हें बड़े प्यार से बेटी के रुप में पाला। उसी देवबती की बेटी थीं मीनाक्षी देवी। आसाम में उन्होंने मिडिल तक की पढ़ाई की। सन् था 1920 । उस वक्त स्वदेशी आन्दोलन चल रहा था। छोटी-सी मिनी स्वदेशी पहनने लगी। विदेशी वस्तुओं की होली भी जलाई।


उस वक्त गुरु गद्दीनसीन अगमदास जी गुरु गोसाई (सतनामी पथ के) धर्म का प्रचार करने आसाम पहुँचे। वहाँ मिनी के परिवार में ठहरे थे। उन्होंने मिनी के माताजी के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। इसी प्रकार मीनाक्षी देवी मिनी माता बन गईं और छत्तीसगढ़ वापस आईं।


अगमदास गुरु राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग ले रहे थे। उनके रायपुर का घर सत्याग्रहियों का घर बना।


पं. सुन्दरलाल शर्मा, डॉ. राधा बाई, ठाकुर प्यारेलाल सिंह - सभी उनके घर में आते थे। अगमदास गुरु के कारण ही पूरे सतनामी समाज ने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया।


मिनी माता सब के लिए माता समान थीं। वे हमेशा उन लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहती थीं, जिनका कोई नहीं है जिन पर समाज दबाव डाल रहा है। जो कोई भी परेशानी में होता, मिनी माता के पास आ जाता और मिनी माता को देखकर ही उन के मन में शांति की भावना छा जाती। अनेक लोग यह कहते कि क्या जो जन्म देती है, वही माँ है? माँ तोे वह है जिसे देखते ही ऐसा लगे कि अब और किसी बात का डर नहीं। अब तो माँ है हमारे पास।


सन् 1951 में अगमदास गुरु का देहान्त हो गया अचानक। मिनी माता पर अगमदासजी गुरु की पूरी ज़िम्मेदारी आ पड़ी। घर सँभालने के साथ-साथ समाज का कार्य करती रहीं पूरी लगन के साथ। उनका बेटा विजय कुमार तब कम उम्र का था। 1952 में मिनी माता सांसद बनी। तब से उनकी ज़िम्मेदारी और भी बढ़ गई। ऐसा कहते हैं कि हर काम को जब तक पूरा नहीं करतीं, तब तक वे चिन्तित रहती थीं।


नारी शिक्षा के लिए मिनी माता खूब काम करती थीं। सभी को कहती थीं अपनी बेटियों को पढ़ाने के लिए। बहुत सारी लड़कियाँ उनके पास रहकर पढ़ाई करतीं। जिन लड़कियों में पढ़ाई के प्रति रुचि देखतीं, उनके लिए ऊँची शिक्षा का बन्दोबस्त करतीं, उन लड़कियों में से आज डॉक्टर हैंै, न्यायधीश हैं, प्रोफ़ेसर हैं।


छत्तीसगढ़ साँस्कृतिक मंडल की मिनी माता अध्यक्षा रहीं। छत्तीसगढ़ कल्याण मज़दूर संगठन जो भिलाई में है, उसकी संस्थापक अध्यक्षा रहीं। बांगो-बाँध मिनी माता के कारण ही सम्भव हुआ था।


मिनी माता का सभी धर्मों के लिए समान आदर भाव था। मिनी माता सभी से यही कहती थीं कि लोगों का आदर करें, सम्मान करें।


मिनी माता छत्तीसगढ़ राज्य के आन्दोलन में शुरु से ही सक्रिय हिस्सा लेती रही थीं।


सन् 1972 में एक वायुयान भोपाल से दिल्ली की ओर जा रहा था। मिनी माता भोपाल में अपने बेटे विजय के पास आई थीं। उसी वायुयान से दिल्ली वापस जा रही थीं। उस वायुयान में चौदह यात्री थे। वह वायुयान दिल्ली नहीं पहुँच पाया, उसी दुर्घटना में हमारी मिनी माता भी अपना काम अधूरा छोड़ कर चली गयीं। छत्तीसगढ़ में लोग विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि मिनी माता अब उनके बीच नहीं रहीं।




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Comments M8ni on 27-08-2018

मिनी माता कहा कहा से सांसद बानी





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