एसिटिक अम्ल को कृत्रिम रूप से और जीवाणुओं के , दोनों तरीकों से उत्पादित किया जाता है। आज विश्व उत्पादन का लगभग 10 प्रतिशत जैविक मार्ग से बनाया जाता है लेकिन ये महत्वपूर्ण है क्योंकि कई देशों के खाद्य शुद्धता कानूनों की बाध्यता है कि खाद्य पदार्थों में प्रयुक्त होने वाला सिरका जैविक मूल का होना चाहिए, रसायन उद्योगों में प्रयुक्त होने वाले एसिटिक अम्ल का 75% मिथेनॉल कार्बोनाइलिकरण से बनाया जाता है जिसे नीचे समझाया गया है। शेष के लिए वैकल्पिक तरीकों का प्रयोग किया जाता है। शुद्ध एसिटिक अम्ल का कुल वैश्विक उत्पादन 50 लाख टन प्रति वर्ष आंका गया है जिसका करीब आधा हिस्सा में उत्पादित होता है। उत्पादन 1 Mt/a के करीब है जिसमें गिरावट आ रही है और का उत्पादन 0.7 Mt/a प्रति वर्ष है। प्रतिवर्ष पुनर्नवीनीकरण से प्राप्त 1.5 Mt को मिलाकर विश्व बाजार में एसिटिक अम्ल का कुल उत्पादन 6.5 Mt/a है। शुद्ध एसिटिक अम्ल के दो सबसे बड़े निर्माता और हैं। दूसरे बड़े निर्माताओं में , , , और शामिल हैं।
ज्यादातर शुद्ध एसिटिक अम्ल मिथेनॉल कार्बोनाइलिकरण से बनाया जाता है। इस प्रक्रिया में रसायनिक समीकरण के अनुसार और क्रिया कर एसिटिक अम्ल बनाते हैं।
ये प्रक्रिया तीन पदों में संपन्न होती है और इसमें एक मध्यवर्ती के रूप में बनता है। कार्बोनाइलिकरण की क्रिया में के लिए आमतौर पर एक धातु की जरूरत पड़ती है (स्टेप 2).
प्रक्रिया की परिस्थितियों में फेर बदल करके एक ही संयंत्र में भी बनाया जा सकता है। क्योंकि मिथेनॉल और कार्बन मोनोऑक्साइड दोनों ही कच्चा माल हैं, एसिटिक अम्ल के उत्पादन के लिए मिथेनॉल कार्बोनाइलीकरण लंबे समय से एक आकर्षक विधि रही है। के हेनरी ड्रेफियस ने सन् 1925 में मिथेनॉल कार्बोनाइलिकरण का प्रायोगिक संयंत्र विकसित किया था। हालांकि व्यावहारिक सामग्री की कमी जो कि संक्षारक प्रतिक्रिया मिश्रण को आवश्यक उच्च (200 या ज्यादा) पर रख सके की कमी ने इसके व्यावसायिकरण को हतोत्साहित किया। सर्वप्रथम 1963 में जर्मन रसायन कंपनी के द्वारा वाणिज्यिक मिथेनॉल कार्बोनाइलिकरण प्रक्रिया विकसित की गई जिसमें उत्प्रेरक का उपयोग किया गया। 1968 में एक आधारित उत्प्रेरक (cis −[Rh(CO)2I2]−) का ईजाद किया गया जो प्रक्रिया को बिना किसी सहउत्पाद के कम दबाव पर कुशलतापूर्वक संचालित कर सकता था। इस उत्प्रेरक का उपयोग करते हुए सन् 1970 में US रसायन ने पहला संयंत्र स्थापित किया और रोडियम उत्प्रेरित मिथेनॉल कार्बोनाइलिकरण एसिटिक अम्ल के उत्पादन का सबसे प्रमुख तरीका बन गया ( देखें). 1990 के दशक के अन्त में रसायन कंपनी ने के द्वारा उन्नत उत्प्रेरक ([Ir(CO)2I2]−) का वाणिज्यिकरण किया। ये ज्यादा और कुशल है और इसने बड़े पैमाने पर अक्सर उन्ही संयंत्रों में मोन्सेंटो प्रक्रिया को प्रतिस्थापित कर दिया।
मोन्सेंटो प्रक्रिया के व्यावसायीकरण से पहले ज्यादातर एसिटिक अम्ल के ऑक्सीकरण से बनाया जाता था। ये दूसरी सबसे महत्वपूर्ण निर्माण पद्धति रही है हालांकि ये मिथेनॉल कार्बोनाइलेशन के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकती.
एसीटैल्डिहाइड को ब्यूटेन या हल्के नेफ्था के या इथाइलीन के हाइड्रेशन से बनाया जा सकता है। के अनुसार जब या हल्का को हवा के साथ विभिन्न धातु जिनमें , और शामिल हैं कि उपस्थिति में गर्म किया जाता है तो बनते हैं और उनके विघटन से एसिटिक अम्ल बनता है।
आमतौर पर यह अभिक्रिया ब्यूटेन को तरल बनाए रखते हुए और दाब के संयोजन को अधिक से अधिक गर्म रखते हुए संचालित की जाती है। विशिष्ट अभिक्रिया परिस्थितियाँ 150 डिग्री सेल्सियस और 55 atm हैं। , , और समेत सह उत्पाद भी बन सकते है। ये सह उत्पाद भी वाणिज्यिक रूप से मूल्यवान हैं और अगर ये आर्थिक रूप से उपयोगी हैं तो इनका ज्यादा मात्रा में उत्पादन करने के लिए अभिक्रिया परिस्थितियों को परिवर्तित किया जा सकता है। हालांकि इन सह उत्पादों से एसिटिक अम्ल को अलग करने की प्रक्रिया, लागत को बढ़ा देती है।
ब्यूटेन के ऑक्सीकरण के लिए उपयोगी परिस्थितियों और को इस्तेमाल कर की से का ऑक्सीकरण कर एसिटिक अम्ल बनाया जा सकता है।
आधुनिक उत्प्ररकों के इस्तेमाल से इसी अभिक्रिया द्वारा एसिटिक अम्ल की उपज बढ़ाई जा सकती है। इसमें बनने वाले प्रमुख सह उत्पादों , और के एसिटिक अम्ल से कम होते हैं और इन्हे द्वारा आराम से अलग कर लिया जाता है।
से एसीटैल्डिहाइड से भी बनाया जा सकता है और फिर ऊपर दर्शाई विधि अनुसार ऑक्सीकृत किया जा सकता है। हाल ही में रसायन कंपनी जिसने 1997 में के में एक एथाइलीन ऑक्सीकरण संयंत्र खोला था ने इथाइलीन से एसिटिक अम्ल रूपांतरण की एक सस्ती एकल चरण प्रक्रिया का व्यावसायिकरण किया। ये प्रक्रिया एक धातु उत्प्रेरक की सहायता से एक जैसे कि पर की गई। इथाइलीन कि स्थानीय कीमतों पर निर्भर करते हुए इसे छोटे संयंत्रों (100-250 किलो टन प्रतिवर्ष) के लिए मिथेनॉल कार्बोनाइलीकरण का प्रतिस्पर्धी माना गया।
मानव इतिहास का ज्यादातर एसिटिक अम्ल जीनस जीवाणुओं द्वारा सिरका के रूप में बनाया गया। पर्याप्त ऑक्सीजन दिये जाने पर ये जीवाणु विभिन्न एल्कोहॉली भोज्य पदार्थों से सिरका का निर्माण कर सकते हैं। सामान्यतया उपयोग में लिए जाने वाले चारे में , और किण्वित , , या का गूदा शामिल हैं। इन जीवाणुओं द्वार संपंन्न की जाने वाली रसायनिक अभिक्रिया कुल मिलाकर इस तरह है:
शराब के एक तरल विलयन में एसीटोबैक्टर जीवाणु डाल कर उसे एक गर्म, हवादार स्थान पर रखने से कुछ महीनों में सिरका तैयार होता है। औद्योगिक सिरका निर्माण विधि में इस प्रक्रिया को जीवाणु के लिए आपूर्ति को बढ़ा कर तेज कर दिया जाता है।
शायद प्रक्रिया में हुई किसी गलती के कारण किण्वण द्वारा प्रथम बार सिरका बना। अगर बहुत ज्यादा तापमान पर किण्वन हो रहा है तो पर स्वाभाविक तौर पर आया एसीटोबैक्टर से भर जाएगा. जैसे जैसे खाद्य, चिकित्सा औऱ स्वच्छता के लिए सिरका की मांग बढ़ी अंगूर की शराब के व्यापारियों ने अंगूरों के परिपक्व होने और शराब निर्मित करने लायक होने से पहले गर्मी के महीनों में दूसरे कार्बनिक पदार्थों से सिरका बनाना सीख लिया। हालांकि ये पद्धति धीमी थी और हमेशा सफल नहीं होती थी क्योंकि शराब के व्यापारी प्रक्रिया को समझ नहीं पाये थे।
जर्मनी में 1823 से पहले काम में ली गई "तीव्र विधि" या "जर्मन विधि" सबसे पहली आधुनिक वाणिज्यिक प्रक्रियाओं में से एक थी। इस प्रक्रिया में लकड़ी की कतरन या से बंद एक गुंबज में किण्वन की क्रिया होती है। शराब से भरी फीड गुंबज के शीर्ष से धीरे धीरे अंदर गिराई जाती है और ताजा की आपूर्ती नीचे से या तो प्राकृतिक या कृत्रिम द्वारा की जाती है। हवा की आपूर्ति में सुधार से सिरका निर्माण की ये प्रक्रिया महीनों की बजाय हफ्तों में संपन्न हो जाती है।
आजकल ज्यादातर सिरका जलमग्न टैंक में बनाया जाता है जिसका वर्णन 1949 में औट्टो ह्रोमोट्का और हैनरिच एब्नर ने किया। इस विधि में लगातार विलोड़ित की जाती हुई टंकी के विलयन में हवा के बुलबुलों द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ती करते हुए शराब को किण्वित कर सिरका में बदला जाता है। इस विधि के आधुनिक अनुप्रयोगों को इस्तेमाल करते हुए बैच प्रक्रिया द्वारा 15 प्रतिशत एसिटिक अम्ल का सिरका केवल 24 घंटों में तैयार किया जा सकता है यहाँ तक 20 प्रतिशत केवल 60 घंटों में फैड – बैच प्रक्रिया से बनाया जा सकता है।
जीनस समेत वात की प्रजातियाँ ईथेनॉल की मध्यस्थता के बगैर ही शक्कर को सीधे एसिटिक अम्ल में बदल सकती हैं। इन जीवाणुओं द्वारा की जाने वाली पूरी रासायनिक क्रिया को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है:
औद्योगिक रसायनज्ञों के दृष्टिकोण से ये और ज्यादा दिलचस्प हैं क्योंकि ये , या और के एक मिश्रण समेत एक-कार्बन यौगिकों से एसिटिक अम्ल निर्मित कर सकते हैं:
क्लोस्ट्रीडियम की सीधे शक्कर या सस्ते आदानों के इस्तेमाल से एसिटिक अम्ल बनाने की क्षमता ये बताती है कि ये जीवाणु ईथेन ऑक्सीकारकों जैसे एसीटोबैक्टर से ज्यादा कुशलता से एसिटिक अम्ल बना सकते हैं। हालांकि क्लोस्ट्रीडियम जीवाणु एसीटोबैक्टर की तुलना में कम अम्ल सहिष्णु हैं। यहाँ तक की सबसे ज्यादा अम्ल सहिष्णु क्लोस्ट्रीडियम उपभेद केवल कुछ प्रतिशत एसिटिक अम्ल वाला सिरका बना सकता है जबकि एसिटोबैक्टर उपभेद 20 प्रतिशत तक एसिटिक अम्ल वाला सिरका बना सकता है। वर्तमान में एसीटोबैक्टस के इस्तेमाल से सिरका बनाना क्लोस्ट्रीडियम के इस्तेमाल से सिरका बना कर उसे सांद्र करने से ज्यादा सस्ता है। परिणामस्वरूप हालांकि एसिटोजेनिक जीवाणु 1940 से ज्ञात होने के बावजूद उनका औद्योगिक इस्तेमाल कुछ आला अनुप्रयोगों तक ही सीमित रहा है।
एसिटिक अम्ल रासायनिक के निर्माण के लिए एक रासायनिक अभिकर्मक है। एसिटिक एनहाइड्राइड और एस्टर के अलावा अकेले विनाइल एसिटेट के निर्माण में ही एसिटिक अम्ल का सबसे बड़ा उपयोग होता है। सिरका में एसिटिक अम्ल का उपयोग तुलनात्मक रूप से कम है।
के निर्माण में एसिटिक अम्ल का प्रमुख उपयोग होता है। ये अनुप्रयोग एसिटिक अम्ल के वैश्विक उत्पादन का 40 से 45 प्रतिशत उपयोग में ले लेता है। की उपस्थिति में और एसिटिक अम्ल की से अभिक्रिया होती है।
विनाइल एसीटेट या दूसरे में बहुलित हो सकता है जो कि और बनाने के काम में आते हैं।
एसिटिक अम्ल के प्रमुख सामान्यत: , और के विलायक बनाने के काम आते हैं। , n- , और एस्टर में इसमें शामिल हैं। ये आम तौर पर एसिटिक अम्ल और संबन्धित की अभिक्रियाओं द्वारा उत्पादित किये जाते हैं:
हालांकि ज्यादातर एसीटेट एस्टर का इस्तेमाल करते हुए द्वारा उत्पादित किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त ईथर एसीटेट का उपयोग , , और लकड़ी के दागों के विलायक के रूप में किया जाता है। पहले या के साथ एल्कोहॉल की क्रिया से ग्लाइकॉल मोनोईथर बनाया जाता है जिसे फिर एसिटिक अम्ल के साथ एस्टरीकृत किया जाता है। तीन प्रमुख उत्पाद हैं, इथाइलीन ग्लाइकॉल मोनोइथाइलीन ईथर एसीटेट (EEA), इथाइलीन ग्लाइकॉल मोनोब्यूटाइलीन ईथर एसीटेट (EBA) और प्रोपाइलीन ग्लाइकॉल मोनोमिथाइल ईथर एसीटेट (PMA). ये अनुप्रयोग एसिटिक अम्ल के वैश्विक उत्पादन का 15 से 20 प्रतिशत उपभोग में ले लेता है। ईथर एसीटेट, उदाहरण के लिए EEA मानव प्रजनन के लिए हानिकारक बताया गया है।
, एसिटिक अम्ल के दो अणुओं का उत्पाद है। एसिटिक एनहाड्राइड का वैश्विक उत्पादन एक प्रमुख अनुप्रयोग है और ये एसिटिक अम्ल के वैश्विक उत्पादन का करीब 25 से 30 प्रतिशत काम में लेता है। एसिटिक एनहाइड्राइड अम्ल के बिना ही के द्वारा सीधा बनाया जा सकता है और एनहाइड्राइड उत्पादन के लिए उत्पादन संयंत्र का उपयोग किया जा सकता है।
एसिटिक एनहाइड्राइड एक मजबूत घटक है। जैसे इसका मुख्य उपयोग जो कि एक कृत्रिम है जो बनाने के काम भी लिया जाता है के लिए है। एसिटिक एनहाइड्रिडाइड , और दूसरे यौगिक बनाने का एक अभिकर्मक भी है।
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