Shwasan Aur Dahan Me Antar श्वसन और दहन में अंतर

श्वसन और दहन में अंतर



Pradeep Chawla on 12-05-2019

हम घर पर विभिन्न प्रयोजनों के लिए ईंधन के विभिन्न प्रकार के उद्योग में और मोटर वाहन चलाने के लिए उपयोग,. आप कुछ हमारे घरों में इस्तेमाल ईंधन के नाम कर सकते हैं? कुछ व्यापार और उद्योग में इस्तेमाल ईंधन का नाम. क्या ईंधन मोटर वाहन चलाने के लिए उपयोग किया जाता है? अपनी सूची में गोबर की तरह ईंधन, लकड़ी, कोयला, लकड़ी का कोयला, पेट्रोल, डीजल, संपीड़ित प्राकृतिक गैस (सीएनजी), आदि शामिल होंगे



आप एक मोमबत्ती के जलने के साथ परिचित हैं. एक मोमबत्ती के जलने और कोयले की तरह एक ईंधन के जलने के बीच अंतर क्या है? हो सकता है आप सही अनुमान करने में सक्षम थे हो सकता है: एक लौ के साथ मोमबत्ती जला जबकि कोयला नहीं करता है. इसी तरह, आप कई अन्य सामग्री बिना एक लौ जल मिलेगा. हमें जल की रासायनिक प्रक्रिया और इस प्रक्रिया के दौरान उत्पादन लौ के प्रकार का अध्ययन.

6.1 क्या दहन है?



मैग्नीशियम सातवीं कक्षा में प्रदर्शन रिबन के जल की गतिविधि को याद करते हैं. हमने सीखा है कि मैग्नीशियम मैग्नीशियम ऑक्साइड के रूप में जलता है और गर्मी और प्रकाश का उत्पादन छवि (6.1).



हम लकड़ी का कोयला का एक टुकड़ा के साथ एक इसी तरह की गतिविधि प्रदर्शन कर सकते हैं. चिमटे की एक जोड़ी के साथ टुकड़ा पकड़ो और एक मोमबत्ती की लौ या एक Bunsen बर्नर के पास ले आओ. तुम क्या निरीक्षण करते हैं?



हम हवा में है कि लकड़ी का कोयला जलने लगता है. हम जानते हैं कि कोयला भी पता है, हवा में जलता है कार्बन डाइऑक्साइड, गर्मी और प्रकाश उत्पादन.





जब हम सांस लेते हैं, हवा में उपस्थित आक्सीजन फेफेड़ों में पहुंचती है और खून के निकट संपर्क में आती है जो उसे अवशोषित कर लेता है और शरीर के सभी भागों में ले जाता है। साथ ही साथ खून कार्बन डाइआक्साइड को शरीर भर से लाकर फेफड़ों में छोड़ता है जो उच्छवास के साथ फेफड़ों से बाहर निकाल दी जाती है।



फेफड़े पक्षाधात से नहीं प्रभावित होते लेकिन छाती, उदर और डाइएफ्रैम की पेशियां प्रभावित हो सकती हैं। श्वसन से जुड़ी विभिन्न पेशियों के संकुचन के साथ फेफड़े फैल जाते हैं जिससे छाती के भीतर का दबाव बदल जाता है और फेफडों में हवा भर जाती है। यह निश्वास है जिसके लिए पेशीय शक्ति की आवश्यकता होती है। उन्हीं पेशियों के शिथिलन के साथ आपके फेफड़ों से हवा बाहर निकलती है और आप उच्छवास लेते हैं।



अगर सी-3 के स्तर पर या उससे ऊपर फ़ालिज मार जाता है तो मध्यच्छद तंत्रिका (फ्रेनिक नर्व) उद्दीपित नहीं होती और डाइएफ्रैम काम नहीं करता और सांस लेने के लिए यांत्रिक सहायता- यानी संवातक (वेंटिलेटर) की ज़रूरत पड़ती है।



मध्यवक्षीय स्तर पर या इससे ऊपर फ़ालिज के शिकार व्यक्तियों को गहरी सांस लेने और बलपूवर्क श्वांस छोड़ने में परेशानी होती है। क्योंकि वे उदर या अंतरापर्शुक पेशियों (इंटरकोस्टल मसिल्स) का उपयोग नहीं कर पाते। ऐसे लोग दम लगा कर सांख नहीं पाते। इससे फेफड़ों में जकड़न आ सकती है और श्वसन संक्रमण हो सकते हैं।



यही नहीं, स्राव सरेस का काम कर सकते हैं और आपकी श्वांस नली की दीवारें आपस में चिपक सकती हैं और स्वांस नली सही ढंग से फैलती नहीं। इसे एटीलैक्टेसिस या फेफड़े के कुछ हिस्से का निष्किय हो जाना कहा जाता है। पक्षाघात के शिकार बहुत-से लोगों के इससे पीडि़त होने की आशंका रहती है। कुछ लोगों का सर्दी-जुकाम या श्वसनतंत्र के संक्रमण आसानी से ठीक नहीं होते और हमेशा छाती के सर्दी-जुकाम से ग्रस्त रहते हैं। अगर श्वासनली के स्राव में जीवाणु पलने लगते हैं तो उनके न्यूमोनिया का शिकार होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।



समर्थित खांसी एक उपयोगी तकनीक है। कोई व्यक्ति ताकत लगा कर पेट को ऊपर से दबाता है और ऊपर तक दबाता जाता है, यह क्रिया उदर पेशियों का काम करती है जो सामान्य स्थितियों में जोर से खांसने का काम करती हैं। यह क्रिया हीम्लिच मैनुवर से सौम्य होती है और श्वास के प्राकृतिक लय के साथ तालमेल बना कर उदरपेशियों को दबाना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।



एक और तकनीक है थपथपाना:



यह मूलत: पसलियों पर हल्की थपकियां लगाने की क्रिया है जिससे आपके फेफड़ों के ढीले होने में मदद मिलती है।



आसनी अपवाह (पोस्चुरल ड्रेनेज) इससे आपके फेफड़ों के निचले भाग से आपकी छाती में ऊपर की तरफ स्राव के प्रवाह के लिए गुरुत्व बल का इस्तेमाल किया जाता है, जहां से व्यक्ति खांस कर उसे बाहर निकाल सकता है या और ऊपर ला कर निगल सकता है। ऐसा तब होता है जब 15-20 मिनट तक सर पैरों से नीचे रहता है।



श्वासनली के उच्छेदन के साथ संवातक का इस्तेमाल करने वालों के फेफड़ों से खींच कर



स्राव निकालना पड़ता है



यह काम घंटे- घंटे पर या दिन में एक बार करना पड़ सकता है।



संवातक (वेंटिलेटर्स): मूलत: दो तरह के यांत्रिक संवातक होते हैं। नकारात्मक दाब संवातक, जैसे लोहे के फेफड़े, छाती के बाहरी भाग में निर्वात पैदा करते हैं, जिससे छाती फैल जाती है और फेफड़ों में हवा भर जाती है। सकारात्मक दाब संवातक, जो 1940 के दशक से उपलब्ध हैं, सीधे फेफड़ों में हवा भरने के इसके उल्टे सिद्धांत पर काम करते हैं।



सकारात्मक दाब संवातन के लिए नाक या मुंह पर लगाये जाने वाले छोटे-से फेसमास्क का इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे मरीजों में जो अंशकालिक तौर पर सांस लेने के कृत्रिम साधनों का उपयोग करते हैं, इस तरह के अनाक्रामक श्वसन यंत्र स्वासनली, उच्छेदन से पैदा होने वाली जटिलताओं से बचाव करते हैं।



एक और तकनीकी श्वसन में छाती में मध्यच्छद तंत्रिका (फ्रेनिक नर्व) को उद्दीपन देने के लिए एक विद्युतीय यंत्र लगा दिया जाता है ताकि वह डायएफ्रैम को नियमित रूप से संकेत दे और वह सिकुड़े और फेफड़ों में हवा भरे। मध्यच्छद तंत्रिका पेसर 1950 के दशक से उपलब्ध हैं और काफी मंहगे हैं और व्यापक रूप से उनका इस्तेमाल नहीं होता।




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