Wahan Pradooshann Samasya Wa Upay वाहन प्रदूषण समस्या व उपाय

वाहन प्रदूषण समस्या व उपाय



GkExams on 25-11-2018



प्रदूषण से अभिप्राय प्रकृति को दूषित करने से है। प्रकृति में सभी व्यवस्थाएँ स्वयं संचालित हैं। मनुष्य इन व्यवस्थाओं में विघ्न डालकर प्रदूषण की समस्या उत्पन्न करता है। पेट्रोल एवं डीजल से चलने वाले वाहन एवं ध्वनि प्रसारक यन्त्र वायु एवं ध्वनि दोनों प्रकार के प्रदूषणों को उत्पन्न करते हैं। प्रस्तुत लेख में वायु एवं ध्वनि को संक्षेप में समझा कर डीजल व पेट्रोल से चलने वाले वाहनों तथा ध्वनि प्रसारक यन्त्रों से उत्पन्न समस्याओं का वर्णन कर उनका यथासम्भव समाधान किया गया है।

पेट्रोल एवं डीजल से चलने वाले वाहन उनमें प्रयुक्त ईंधन से उत्पन्न धुएँ से व अपनी गति के कारण धूल उछालकर वायु प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। इंजन के प्रयोग व हॉर्न इत्यादि के उपयोग के कारण ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होता है। इसी प्रकार ध्वनि प्रसारक यन्त्र ध्वनि को तो प्रदूषित करते ही हैं साथ ही साथ परोक्ष रूप से वायु को भी प्रदूषित करते हैं।

वायु प्रदूषण


वायु प्रदूषण का प्रादुर्भाव उसी दिन से हो गया था जब मनुष्य ने सर्वप्रथम आग जलाना सीखा। धीरे-धीरे जनसंख्या में वृद्धि होती गई और जंगल कटते चले गए, इसके साथ ही वायुमंडल में धुआँ भी बढ़ता चला गया, फलस्वरूप वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि होती चली गई। 1870 के बाद के अन्तराल से अब तक वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में 16 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है। जो कि स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।

वायुमंडल में पायी जाने वाली गैसें एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में होनी चाहिए। इस मात्रा एवं अनुपात में वृद्धि या कमी हो जाती है तो यह वायु प्रदूषण कहलाती है। यह स्थिति प्रमुखतः डीजल व पेट्रोल से चलने वाले वाहनों द्वारा छोड़े गये धुएँ, कारखानों की गैसें, भट्टियों में ईंधन के जलने, सूती कपड़े की मिलों, जंगल की आग तथा गंधक युक्त ईंधन के जलने से उत्पन्न धुएँ, घरों के धुएँ, जैट हवाई जहाजों से निकले धुएँ, जंगलों की बेहिसाब तरीके से कटाई, इत्यादि से उत्पन्न होती है।

वायु प्रदूषण के कारण आज हमारे सामने विभिन्न समस्याएँ खड़ी हो गई हैं। समूचा पर्यावरण दूषित हो गया है। मनुष्य को विभिन्न, बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। मोटर गाड़ियों से निकले धुएँ के कारण बच्चों में सांस से सम्बन्धित रोग तथा नजले की शिकायत बढ़ रही है। वाहनों से निकलने वाले धुएँ में कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, अलडीहाइड, लेड ऑक्साइड प्रमुख हैं जो कि वायुमंडल को प्रदूषित करती हैं। 1980 की राष्ट्रीय यातायात नीति सम्बन्धी दस्तावेजों के अनुसार ‘‘भारत की सड़कों पर लगभग 37 लाख मोटर वाहन थे। इनमें से 3 लाख 40 हजार कारें व जीप, 4 लाख 40 हजार ट्रक, 2 लाख 40 हजार बसें तथा 83 हजार टैक्सियाँ सम्मिलित हैं?’’ अब तक इनकी संख्या में निश्चित रूप से वृद्धि हो चुकी है।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. जे.एन. दवे के अनुसार ‘‘बम्बई और दिल्ली के मोटर वाहनों से निकलने वाले धुएँ से 70 प्रतिशत कार्बन मोनोऑक्साइड, 50 प्रतिशत हाइड्रोकार्बन तथा 30 से 40 प्रतिशत भिन्न कण हवा में फैलते हैं।’’ एक अन्य अनुमान के अनुसार हमारे देश में कारें लगभग 5 लाख टन सीसा प्रतिवर्ष वायुमंडल में छोड़ती हैं। एक अन्य राष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार हमारे देश के वायुमंडल में प्रतिवर्ष 10 टन पारा डाला जा रहा है। इसमें से 166 टन पारा केवल कास्टिक सोडा पैदा करने वाले कारखानों के द्वारा वायुमंडल में छोड़ा जा रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक मोटरगाड़ी एक मिनट में इतनी ऑक्सीजन खर्च करती है जितनी 1135 व्यक्ति सांस लेने के लिये उपयोग में लेते हैं। जैट हवाई जहाजों से निकले धुएँ में भी कार्बन के ऑक्साइड होते हैं जो वायुमंडल में फैली ऑक्सीजन ओजोन गैस को विषाक्त बना देते हैं। यह ओजोन गैस सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है।

वाहनों द्वारा छोड़ा गया धुआँ स्मारकों, निर्जीव पदार्थों और मूर्तियों को भी नुकसान पहुँचाता है। ऑयल रिफाइनरी की दूषित गैस से ताजमहल का रंग पीला पड़ गया है। वायुमंडल में सल्फर-डाइ-ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड की अधिकता से इन्हें कैंसर रोग, हृदयरोग इत्यादि के लिये उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। सल्फर-डाइ-ऑक्साइड से एम्फाथसीया नामक रोग हो जाता है। कार्बन-मोनो-ऑक्साइड की वायु में उपस्थिति से रक्त में हिमोग्लोबीन की ऑक्सीकरण करने की क्षमता में कमी आती है। अधिक मात्रा में अधिक समय तक सेवन से दम घुटने से मृत्यु हो जाती है। परिवहन के साधन वायुमंडल में 80 प्रतिशत तक वायु प्रदूषण के हिस्सेदार होते हैं।

वायु प्रदूषण से उत्पन्न समस्याओं का समाधान


पेट्रोल व डीजल से चलने वाले वाहनों से धुएँ के कारण उत्पन्न वायु प्रदूषण को रोकने के लिये भारी वाहनों को शहर में प्रवेश न करने देकर तथा छोटे वाहनों के इंजन को सही स्थिति में रखकर धुएँ को घटाया जा सकता है। पेट्रोल व डीजल से चलने वाले वाहनों का प्रयोग यथासम्भव घटाया जाना चाहिए तथा उनकी वायु प्रदूषण उत्पन्न करने की क्षमता में कमी लानी चाहिए जिससे वायुमंडल में सल्फरडाइऑक्साइड तथा कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी विषैली गैसों की मात्रा घटेगी।

वृक्ष प्रकृति के फेफड़े कहलाते हैं, अतः जिन स्थानों पर अधिक वायु प्रदूषण हो वहाँ अधिकतम वृक्ष लगाए जाने चाहिए।

जन साधारण को वायु प्रदूषण के कारणों को रोकने की विधियों के बारे में आवश्यक जानकारी दी जानी चाहिए एवं उन्हें इस सम्बन्ध में जागरुक बनाया जाना चाहिए।

वायु प्रदूषण का मापने और मॉनिटरिंग की सुविधा उचित स्थान पर होनी चाहिए इसके साथ ही साथ वनों की कटाई पर रोक लगानी चाहिए तथा पर्यावरण संतुलन की विधि, व्यवस्था और नियमों का निर्माण करना चाहिए। प्रदूषण नियंत्रण कानूनों का सख्ती से पालन होना चाहिए। पेट्रोल एवं डीजल से चलने वाले वाहनों में ऐसे यन्त्रों का विकास किया जाना चाहिए जिससे धुएँ एवं गैस का रिसाव कम से कम हो।

वायु प्रदूषण रोकने के लिये उठाए गए सरकारी कदम


केन्द्रीय सरकार ने वायु प्रदूषण के बढ़ते खतरे को देखते हुए सन 1981 में वायु प्रदूषण निवारण व नियंत्रण कानून लागू किया। यह नियम स्थानीय प्रशासन तंत्र को व्यापक अधिकार देता है कि वे आवश्यक कार्य पद्धति निश्चित करें। इसके साथ ही वायु प्रदूषण के स्रोतों पर तथा धुएँ एवं गैस को नियंत्रित करने के उपायों को लागू करने हेतु तथा दबाव का व्यापक अधिकार भी दिया गया है।

भारत के अधिकांश राज्यों में वायु प्रदूषण नियंत्रण कानून का गठन हो चुका है। बिहार राज्य में 1974 में प्रदूषण की रोकथाम के लिये प्रदूषण नियंत्रण परिषद की स्थापना की गई। बिहार के वृहत और लघु उद्योगों की परिषद से जलवायु अधिनियम 1974 के तहत सहमति लेना आवश्यक हो गया है। वायु प्रदूषण मंडल उद्योगपतियों को उद्योगों की अनुमति देने से पहले यह प्रमाण पत्र प्राप्त कर लेता है कि वे प्रदूषण नियंत्रण लगाकर पर्यावरण को दूषित होने से बचाएँगे।

ध्वनि प्रदूषण


पेट्रोल एवं डीजल से चलने वाले वाहनों में ट्रक, मोटर कार, टैक्सी, स्कूटर इत्यादि तथा धवनि प्रसारक यंत्र जैसे लाउडस्पीकर, रेडियो इत्यादि ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। यह ध्वनि प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। इससे रक्तचाप एवं मस्तिष्क से सम्बन्धित विभिन्न बीमारियाँ होने का भय रहता है। अतः यह आवश्यक है कि ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए।

ध्वनि प्रदूषण से शरीर की क्रियाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है अर्थात तीव्र ध्वनि से नींद नहीं आती है। नाड़ी सम्बन्धी तथा अन्य रोग हो जाते हैं और कभी-कभी मनुष्य पागल भी हो जाता है। ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभावों का नवजात शिशुओं पर भी प्रभाव पड़ता है। गर्भ में पल रहे शिशु के हृदय की धड़कन शोर के कारण तेजी से बढ़ती है जिससे जन्मजात विकृतियाँ व कई अन्य असाध्य रोग हो जाते हैं। हमारे देश में जन्मजात विकृत बच्चों की संख्या अधिक होती है। विभिन्न शोधों से यह निष्कर्ष सामने आया है कि शांत स्थानों में रहने वाली महिलाओं की तुलना में अत्यधिक कोलाहल वाले क्षेत्रों के सम्पर्क में रहने वाली महिलाओं के शिशुओं में जन्मजात विकृतियाँ अधिक होती हैं।

ध्वनि प्रदूषण से आँखों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। आँख की पुतली का आकार छोटा हो जाता है। रंग पहचानने की क्षमता में कमी आ जाती है। तथा रात्रि में दृष्टि क्षमता में भी कमी आ जाती है।

तीव्र ध्वनि से श्रवण शक्ति का ह्रास होता है। ध्वनि की तीव्रता 50 डेसीबल से अधिक होने पर कानों पर भी दुष्प्रभाव होने लगता है। सामान्य बातचीत 20 से 30 डेसीबल तक होती है। निरन्तर शोर के मध्य रहने पर कान के भीतरी भाग की तंत्रिकाएँ नष्ट हो जाती हैं।

ध्वनि प्रदूषण को रोकने के उपाय


ध्वनि प्रदूषण को हम निम्न प्रकार से रोक सकते हैं-

- वाहनों में लगे हुए तीव्र ध्वनि वाले हॉर्न को बजाने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
- भारी ट्रकों के आवासी कॉलोनियों में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
- वैवाहिक अवसरों पर या त्योहारों पर आतिशबाजी, लाउस्पीकर आदि के प्रयोगों को सीमित किया जाना चाहिए।
- वाहनों के रख-रखाव व इंजनों की समय-समय पर मरम्मत करनी चाहिए व घटिया किस्म के ईंधन का वाहनों में उपयोग नहीं करना चाहिए।
- वाहनों में तीखी ध्वनि वाले हॉर्न के स्थान पर संगीतमय मधुर ध्वनि वाले हॉर्न प्रयुक्त करने चाहिए।

ध्वनि प्रदूषण को रोकने के वैधानिक प्रयास

ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिये पश्चिमी राष्ट्रों में कठोर कानून बने हुए हैं। भारत में ध्वनि प्रदूषण पर इंडियन पीनल कोड की धारा 290 के तहत वैज्ञानिक प्रतिबंध लगाया गया है। इस अधिनियम के तहत अधिक ध्वनि जो कि सार्वजनिक पीड़ा अथवा कष्टप्रद हो, उत्पन्न करने पर 200 रुपये तक की सजा दी जा सकती है।

राजस्थान में ध्वनि नियंत्रण हेतु राजस्थान कोलाहल नियंत्रण एक्ट 1963 बना हुआ है। इस अधिनियम की विभिन्न धाराओं के अन्तर्गत रात्रि 11 बजे से प्रातः 5 बजे तक ध्वनि विस्तार यन्त्र काम में नहीं लिये जा सकते हैं। राजस्थान कोलाहल नियंत्रण नियम 1964 की धारा में ऐसी व्यवस्था है कि चिकित्सालय, टेलीफोन एक्सचेंज, विद्यालय, विश्वविद्यालय, होस्टल, न्यायालय व सरकारी कार्यालय के परिसर से 150 मीटर की दूरी के अन्दर लाउडस्पीकर ध्वनि विस्तारक यंत्र काम में नहीं लिये जा सकते हैं। वायु अधिनियम 1981 में भी शोर पर नियंत्रण के प्रावधान हैं। कानून में यह प्रावधान है कि इस नियम की अवहेलना करने वाले व्यक्ति या संस्था का दोष प्रथम बार प्रमाणित होने पर 250 रुपये जुर्माना, एक माह की कैद अथवा दोनों ही सजा दी जा सकती हैं। पुलिस को दोषी व्यक्ति को गिरफ्तार करने और न्यायालय में चालान पेश करने का अधिकार है।

सारांश
पेट्रोल एवं डीजल से चलने वाले वाहन एवं ध्वनि प्रसारक यंत्र पर्यावरण को वायु एवं ध्वनि दोनों प्रकार से प्रदूषित करते हैं। वायु में विभिन्न गैसों के प्राकृतिक मिश्रण में परिवर्तन होने पर वायु प्रदूषण होता है जिससे विभिन्न बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। अतः यह आवश्यक है कि लोगों में वायु प्रदूषण के प्रति जागरुकता उत्पन्न कर इसे रोका जाए तथा वाहनों की किस्म में सुधार कर यथा सम्भव वाहनों से निकलने वाले धुएँ पर नियंत्रण किया जाए। पर्यावरण में सामान्य से अधिक ध्वनि होने पर ध्वनि प्रदूषण होता है मस्तिष्क व रक्तचाप सम्बन्धी विभिन्न बीमारियाँ हो सकती हैं इसके लिये यह आवश्यक है कि ध्वनि को नियन्त्रित कर ध्वनि प्रदूषण को रोका जाए।

भारत में केन्द्रीय सरकार ने तथा विभिन्न राज्य सरकारों ने वायु एवं ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रण करने हेतु विभिन्न अधिनियम बनाए हैं। यह आवश्यक है कि इन अधिनियमों में समय-समय पर सुधार किया जाए तथा इनका पालन सख्ती से किया जाए।





सम्बन्धित प्रश्न



Comments



नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment