School Chhodne Ke Karan स्कूल छोड़ने के कारण

स्कूल छोड़ने के कारण



Pradeep Chawla on 15-10-2018


भारत में शिक्षा का अधिकार क़ानून एक अप्रैल 2010 से लागू किया गया। भारत में इस कानून के छह साल पूरे हो गए हैं। इस कानून के तहत प्राथमिक स्तर की शिक्षा पूरी करने वाली बच्चों की एक पीढ़ी छठीं कक्षा में पढ़ाई कर रही हैं। बहुत से बच्चे नौवीं-दसवीं में पढ़ाई कर रहे हैं। बहुत से बच्चे ऐसे भी हैं जो नौवीं में दोबार फेल होकर फिर से नौवीं की पढ़ाई कर रहे हैं।


भारत में शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद ज़मीनी स्तर पर बहुत सारी चीज़ें बदली हैं। मसलन स्कूलों में बच्चों का नामांकन बढ़ा है। हर साल आठवीं पास करने वाले बच्चों की संख्या के आँकड़े तेज़ी से बढ़े हैं। पर इसके साथ ही शिक्षा में गुणवत्ता और स्कूल में बच्चों के ठहराव का सवाल ज्यों का त्यों कायम है। आठ करोड़ से ज्यादा बच्चों के कभी स्कूल नहीं जाने और स्कूल आने के बावजूद काम करने को मजबूर 78 लाख बच्चों की मौजूदगी भारत में प्राथमिक शिक्षा की बदहाली की कहानी दोहराती है।

शिक्षा का अधिकार क़ानून से क्या बदला

  1. सरकारी व निजी स्कूलों में बच्चों का नामांकन बढ़ा है।
  2. शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता आई है।
  3. करोड़ों बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार मिला।
  4. स्कूल से बाहर बच्चों की कुल संख्या में तकरीबन एक करोड़ की कमी आई है।
  5. मगर अभी भी स्कूल से बाहर बच्चों की संख्या 8.4 करोड़ है जो बहुत ज्यादा है। इसे कम करने के लिए गंभीर क़दम उठाने की जरूरत है।
  6. आठवीं तक बच्चों को पास करने वाली नीति के कारण साक्षरता के आँकड़े बेहतर हुए हैं।
  7. स्कूल में बच्चों का डर कम हुआ है।
  8. शिक्षकों का व्यवहार बदला है, वे भयमुक्त माहौल की बात से सहमत हैं।
  9. स्कूल में बच्चों को मुफ्त भोजन और किताबें मिल रही हैं। आदिवासी और ग्रामीण अंचल के गरीब बच्चों के लिए यह बहुत बड़ी बात है।
  10. सरकारी स्कूल में आँकड़ों का काम काफी बढ़ा है। इसके कारण शिक्षण का कार्य भी प्रभावित हुआ है।

क्या नहीं बदला, जिसे बदलने की जरूरत है

  1. सरकारी व निजी स्कूलों में बच्चों का नामांकन बढ़ा है, मगर ठहराव की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। इसके ऊपर ध्यान देने की जरूरत हैं।
  2. सबको समान शिक्षा व गुणवत्ता वाली शिक्षा का सवाल अभी भी कायम हैं।
  3. शिक्षा का अधिकार कानून आने के बाद भी भारत में सिंगल टीचर स्कूलों की मौजूदगी बनी हुई है।
  4. स्कूलों में विभिन्न विषयों के अध्यापक नहीं है, इससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। वे आठवीं के बाद आगे पढ़ने लायक क्षमता का विकास नहीं कर पाते।
  5. स्कूल आने वाले लाखों बच्चों में गणित और भाषा के बुनियादी कौशलों का विकास नहीं हो पा रहा है। इस कारण से स्कूल छोड़ने वाली स्थितियां निर्मित होती हैं।
  6. भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि करोड़ों बच्चों को कुपोषण से बचाया जा सके।
  7. बहुत से सरकारी स्कूलों में शौचालय की स्थिति दयनीय है, बच्चे सम्मान के साथ उनका इस्तेमाल नहीं कर सकते। इस स्थिति में भी बदलाव की जरूरत है।
  8. बहुत से स्कूलों में शिक्षक शराब पीकर आते हैं। या फिर स्कूल में हाजिरी लगाकर स्कूल से चले जाते हैं। ऐसी स्थिति का असर भी बच्चों की पढ़ाई पर पड़ता है। इस पहलू में भी बदलाव की जरूरत है।
  9. शिक्षा का अधिकार कानून शिक्षा को बाल केंद्रित बनाने की बात करता है, जिसकी अनुशंसा कोठारी आयोग के समय से होती रही है। मगर शिक्षकों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करने वाला माहौल बनाने की दिशा में ठस क़दम नहीं उठाए गए हैं।
  10. शिक्षकों को बच्चों की प्रगति और पीछे रहने के लिए जिम्मेदार बनाने वाला सिस्टम नहीं बन पाया है, इस दिशा में भी गंभीर पहल की जरूरत है।

बच्चे स्कूल क्यों नहीं जाते?

मेंहदी में मिलाने वाली पत्ती तोड़ते स्कूली बच्चे।

भारत में स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या आठ करोड़ से भी ज्यादा है। जो यह बताने के पर्याप्त है कि स्थिति काफी गंभीर है। हम और आप अपनी असल ज़िंदगी में रोज़ाना ऐसे बच्चों से मिलते होंगे जो स्कूल से बाहर होटलों में काम करते हुए, जानवरों को चराते हुए या फिर परिवार के साथ शहरों में काम करते हुए दिखाई देते हैं।


वहीं बहुत से बच्चे गाँव और गली मोहल्लों में दिनभर घूमते रहते हैं। या फिर परिवार के साथ खेतों पर काम करने जाते हैं। या फिर बाज़ार में सब्जी बेजने या फिर जंगल में लकड़ियां काटने के लिए जाते हैं।




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Comments Som on 23-11-2022

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रूपाली on 16-01-2022

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आप वियतनाम के एक स्कूल में अध्ययनरत हैं आप के अधिकार सहपाठी स्कूल छोड़ गए है आप भी स्कूल छोडने की सोच रहे है आप अपने इस निर्णय के कारण बताएं


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School chhodane ke karqn



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