अनुदेशन प्रक्रिया एवं सोपान
Que. : अनुदेशन प्रक्रिया एवं सोपान :
प्रस्तावना :
अनुदेशन पद के अंतर्गत शिक्षण कि प्रक्रिया का वर्णन किया जाता है। शिक्षण के उद्देश्य और छात्र के पूर्वज्ञान को दृष्टि में रखते हुए शिक्षण कि विधियों, प्रविधियों अथवा व्यूहों कि रचना कि जाती है। जो कुछ भी पढ़ना अथवा सीखना होता है। उसे प्रस्तुत करना ही अनुदेशात्मक प्रक्रिया है।
अनुदेशन का अर्थ :
अनुदेशन शब्द का साधारण भाषा में अर्थ है – सूचाना देना अथवा आज्ञा देना। अनुदेशन को अंग्रेजी में Instruction कहते है। अनुदेशन शब्द का वास्तविक रूप हमे कक्षा शिक्षण में मिलता है। कक्षा शिक्षण के समय अध्यापक विषय को छात्र तक पहुँचाने के लिए जो क्रिया करता है, उसे अनुदेशन कहते है। दूसरे शब्दों में, अनुदेशन शिक्षक तथा शिक्षार्थी के मध्य पाठ्यक्रमीय ज्ञान के आदान-प्रदान कि क्रिया है।
अनुदेशन की भाषा :
--> एस.एम्.कोरे (S.M.Corey):- “अनुदेशन एक पूर्वनियोजित शैक्षिक प्रक्रिया है जिसमे शिक्षार्थी के वातावरण को इस प्रकार नियंत्रित किया जाता है कि विशिष्ट परिस्थितियों में वह इच्छित व्यवहार को प्रदर्शित कर सकें।”
--> गेट्स (Gates) :- “अनुदेशन वह प्रक्रिया है, जो शिक्षार्थी को कुछ उदेश्यों की ओर प्रभावित करती है।”
अनुदेशन प्रक्रिया :
अनुदेशन की प्रक्रिया में कम से कम व् किसी न किसी प्रकार से एक प्रकार का वार्तालाप चलता है जिसका उद्देश्य तर्क देना, प्रमाणों की सत्यता बताना, उपयुक्तता सिध्ध करना, व्याख्या करना, निष्कर्ष निकालना आदि आते है, जिसमे समय - सीमा, उपलब्ध साधन और पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए उदेश्यों का निर्धारण किया जाता है। उदेश्यों को प्राय: व्यवहारगत परिवर्तनों के रूप में लिखा जाता है। ये उद्देश्य यदि प्राप्त हो जाते है, तब इसका अर्थ यह है कि अनुदेशन के पश्चात शिक्षार्थी इन व्यवहारों को प्रदर्शित कर सकेगा। अनुदेशन व्यवहारगत परिवर्तन पर आधारित होता है इसमें दो प्रकार के व्यवहार पर बल दिया जाता है :
(अ) न्यूनतम आवश्यक व्यवहार –यह व्यवहार विषयवस्तु को सीखने के लिए आवश्यक पूर्वज्ञान से सम्बन्धित है।
(ब) अंतिम व्यवहार –जिन्हें शिक्षार्थी विषयवस्तु को सीखने के प्रमाणस्वरूप प्रदर्शित करता है।
अनुदेशन देने से पूर्व जिन छात्रों को अनुदेशित किया जाना है, उनकी मानसिक योग्यता तथा सामाजिक – आर्थिक स्टार का ज्ञान भी प्राप्त कर लेना आवश्यक है।
अनुदेशन के सोपान [Steps of Instruction] :
अनुदेशन में प्रयुक्त कि जानेवाली किसी भी प्रणाली जैसे,- व्याख्यान, प्रदर्शन, सामान्य शिक्षण आदि में निम्नलिखित अनुदेशन के सोपान का अनुसरण किया जाना चाहिए :
1. उदेश्यों का निर्धारण : अनुदेशन के उद्देश्य स्पष्ट एवं सुनिश्चित होना चाहिए तथा प्रशिक्षणार्थियों द्वारा प्रशंसनीय होना चाहिए।
2. तैयारी : अनुदेशन की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि अनुदेशन की तैयारी कैसी की गई है, क्योंकि पूर्व सुनियोजित तैयारी ही अधिगमकर्ता (Learner) को सीखने में सहायता प्रदान करती है।
3. प्रस्तुतिकरण : अनुदेशन कि भूमिका एक निर्माता, प्रबंधक, अभिनेता, प्रोत्साहक आदि अनेक रूप में होती है, अत: अनुदेशक को प्रस्तुतिकरण करते समय अत्यंत सावधानी बरतनी पड़ती है।
4. सम्प्रेषण : अनुदेशक के द्वारा अभिव्यक्त किए गए विचार छात्रों तक भली-भांति पहुँचने चाहिए।
5. आत्मिकरण : संप्रेषित विचारों को छात्रों द्वारा आत्मसात किया जाना चाहिए, ताकि अनुदेशक छात्रों में विश्वास जागृत कर, उनके लिए प्रेरणा का स्तोत्र बन सकें।
6. मूल्यांकन : मूल्यांकन के द्वारा छात्रों की कमजोरियों को ज्ञात कर उनके निवारणार्थ ऊपर किया जा सकता है।
7. पृष्ठपोषण [feed-back] : जो भी पाठ विद्यार्थीयों को पढाया जाये, उसमे उनके द्वारा की गई त्रुटियों व उपलब्धियो का ज्ञान अनुदेशक द्वारा करवाया जाना चाहिए।
सारांश : उपरोक्त सभी अनुदेशन के सोपान और प्रक्रिया से यह स्पष्ट होता है कि अनुदेशन एक कक्षा शिक्षण में चलने वाली प्रक्रिया है जिसे व्यवस्थित रूप से कक्षा में शिक्षक द्वारा प्रयुक्त किया जाता है।
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