Shershah Ki Mahanta शेरशाह की महानता

शेरशाह की महानता



GkExams on 13-01-2019


तारीख-ए-शेरशाही में ज़िक्र है कि फरीद खान यानी शेर शाह ने अपनी सौतेली मां के कहने पर जागीरदारी छोड़ दी थी. पर काबिल को अपनी किस्मत चमकाने के कई मौके मिलते हैं.


फरीद खान हिंदुस्तान के बादशाह बाबर की नज़रों में जितनी तेज़ी से चढ़ा उतनी ही तेज़ी से गिरा भी. बताते हैं कि बाबर उसकी आंखें, उसका ज़बीं (माथा) और चलने के तेवर देखकर समझ गया था कि फरीद की तरफ से लापरवाही बरती तो हिंदुस्तान की गद्दी पर मुग़ल नहीं पठान काबिज़ हो जायेंगे. बहरहाल, यह क़िस्सा आगे के लिए. अभी फ़रीद और उसकी जागीरदारी की बात करते हैं.


बिहार और बंगाल पर कब्ज़ा


शेर शाह का ताल्लुक अफगानों की सूर जाति से था. उसके दादा इब्राहिम सूर 1542 में भारत आए थे जिनके बेटे और शेर शाह के पिता हसन सूर ने बिहार के सासाराम में एक छोटी सी जागीरदारी हासिल कर ली थी. वहीं फरीद खान का जन्म हुआ. बताते हैं कि परिवार से हुई लड़ाई के बाद फरीद खान जौनपुर के मनसबदार के यहां नौकरी करने चला गया था. वहां कुछ समय रहने के बाद वह बिहार के मनसबदार बहार खान की सेना में भर्ती हो गया. फिर एक रोज़ किसी बात पर बहार खान और फरीद खान में मनमुटाव हुआ तो वह बाबर की सेना में भर्ती हो गया. कुछ समय बाद बहार खान की मौत पर वह दोबारा बिहार आ गया और उसके नाबालिग बेटे जलाल खान का सलाहकार बन गया. कुछ समय बाद जलाल खान को रास्ते से हटाकर फरीद खान ने बिहार को अपने कब्ज़े में ले लिया. वह ताक़तवर था और बहादुर भी. उसने बाबर की सेना में रहकर ही हिंदुस्तान की गद्दी के ख़्वाब देखने शुरू कर दिए थे.


मुग़लों को खुली ललकार और हिंदुस्तान की गद्दी


बाबर की हुकमरानी फरीद खान बहुत ज़्यादा पसंद नहीं आती थी. तारीख-ए-शेरशाही में जिक्र है कि वह अक्सर अपने पठान दोस्तों के बीच कहता, ‘अगर किस्मत ने साथ दिया तो हिंदुस्तान के तख़्त पर पठान ही बैठेगा. मैं मुग़लों को इस मुल्क से बाहर निकाल फ़ेंक दूंगा. मुग़ल पठानों से जंग या कुश्ती में कमतर हैं. इन्हें हराना आसान है. बस पठान एक हो जाएं तो बाकी काम मैं कर दूंगा.’

 शेरशाह की महानता

तारीख-ए-शेर शाही में एक किस्सा दर्ज़ है कि एक बार साथ खाने बैठे बाबर और फ़रीद खान के बीच कुछ ऐसा परोसा गया जिसे वह समझ नहीं पाया. उसने फ़ौरन अपनी कटार से उसके टुकड़े कर डाले और बेबाक होकर खाने लग गया. तभी बाबर ने अपने ख़ास सलाहकार ख़लीफा से कहा, ‘इसके तेवर देखे? मैं इसकी पेशानी पर सुल्तान बनने की लकीर देखता हूं. इससे होशियार रहो और अगर हो सके तो गिरफ़्तार कर लो.


ख़लीफा बात को हल्के में ले गया. उसने बाबर को समझाया कि जितना वह सोच रहा है इतना कर पाना फरीद खान के बूते की बात नहीं है. लेकिन फरीद बाबर के इरादे भांप चुका था. वह काम का बहाना बनाकर अपनी जागीर, सासाराम आ गया. बताते हैं कि बाबर को जब इसकी खबर मिली तो उसने कहा, ‘मुझसे गलती हो गयी कि मैंने इसे जाने दिया. जाने अब ये क्या करेगा.’


बात थोड़ी फ़ास्ट फॉरवर्ड की जाए. दिसंबर, 1530 में बाबर की मौत के बाद हिंदुस्तान की गद्दी के कई ख्वाहिशमंद पैदा हो गए थे क्योंकि दूसरा मुग़ल-हुमायूं काबिल न था. उनमें सूर का पठान फरीद शाह सबसे ज़्यादा काबिल था. यहां तक आते-आते फरीद ने खुद को शेर शाह सूरी कहलवाना शुरू कर दिया था.


हुमायूं बंगाल जीतना चाहता था पर बीच में शेर शाह की जागीरदारी थी. हुमायूं ने उससे दो-दो हाथ करने की सोची. 1537 में चौसा, उत्तरप्रदेश में दोनों की सेनाएं आमने-सामने थी. बेम्बर गोस्कोइग्न ने अपनी क़िताब ‘ग्रेट मुगल्स’ में एसके बनर्जी की किताब ‘हुमायूं’ के हवाले से लिखा है कि चौसा के घाट पर दोनों के बीच कूटनीतिक पहल भी हुई. हुमायूं ने अपने दूत मोहम्मद अज़ीज़ को जब शेर शाह सूरी से मिलने भेजा तो उसने देखा कि शेर शाह कुदाली लेकर अपने महल के बंदोबस्त करने में लगा हुआ था.


अज़ीज़ ने दोनों के बीच सुलह करवाई और क़रार हुआ कि मुगलिया परचम के नीचे शेर शाह सूरी को बंगाल और बिहार दे दिए जायेंगे. यह शेर शाह की जीत ही थी. इसको अपने हिस्से की जीत दिखाने के लिए हुमायूं ने एक खेल खेला. उसने शेर शाह को इस बात के लिए राज़ी किया कि दिखावे के तौर पर मुगलिया सेना शेरशाह की सेना को पीछे खदेड़ेगी और तब शेर शाह रहम की गुहार लगायेगा जिसे हुमायूं स्वीकार कर लेगा.


खेल खेला गया और बाबर की सेना के एक टुकड़े ने सूरी की सेना को पीछे धकेल दिया. रात घिर आई थी. शेर शाह सूरी ने इस खेल को बदलते हुए हुमायूं को गंगा तैरकर जान बचाने के लिए मजबूर कर दिया. शेर शाह के लिए हिंदुस्तान की गद्दी बस एक जंग ही दूर रह गयी थी. हुमायूं आगरा पहुंचा भी नहीं था कि कुछ महीने बाद मई,17, 1540 को कन्नौज में दोनों फिर भिड़े. अंजाम वही हुआ जो पहली खेलनुमा जंग का हुआ था. बस इतना फ़र्क था कि इस बार हुमायूं ने हाथी पर बैठकर गंगा पार की और अपनी जान बचाई.


हुमायूं समझ गया था कि तख़्त उसके हाथ से फिसल चुका है. शेर शाह सूरी के सर हिंदुस्तान का ताज़ चमकने लग गया था. हुमायूं भाग रहा था और पीछे-पीछे शेर शाह की सेना. किस्सा है कि सरहिंद पहुंचकर उसने शेरशाह को कहलवाया, ‘मैंने तुम्हे हिंदुस्तान दे दिया है, तुम मुझे लाहौर दे दो और सरहिन्द हमारे बीच में सरहद होगी.’ सूरी से बड़ा ही ठंडा जवाब भिजवाया, ‘काबुल छोड़ दिया तुम्हारे लिए. वहीं जाकर रहो!’


जब मुट्ठी भर बाजरे के लिए शेरशाह दिल्ली की गद्दी लगभग हार गया था.


अब तकरीबन यह बात प्रचलित हो गयी है कि राजपूत हर लड़ाई में अमूमन हार जाते थे. कुछ हद तक यह सही भी है. लेकिन राजपूतों की बहादुरी पर प्रश्नचिन्ह लगाना गलत है. सुमेल की लड़ाई, जो राजपूतों और शेर शाह सूरी के बीच हुई थी, इस बात की गवाह है.


शेर शाह राजपूताना फ़तेह करने के लिए निकला था. जोधपुर का राठौर राजा मालदेव उसके सामने था. मालदेव शेर शाह की टक्कर का लड़ाका था. खानवा की लड़ाई में राणा सांगा बाबर से हार कर अपना वैभव खो बैठा था. इधर मालदेव ने अपनी सीमाओं में बीकानेर, मेड़ता जैतारण, टोंक, नागौर और अजमेर मिला लिए थे. बढ़ते-बढ़ते मालदेव झज्जर तक आ गया था जो दिल्ली से सिर्फ 30 मील दूर है. शेरशाह और मालदेव में लड़ाई अब लाज़मी हो गयी थी. यह लड़ाई चार जनवरी 1544 में राजस्थान में पाली जिले के जैतारण में हुई. जंग भयंकर हुई थी. शेर शाह तकरीबन हार चुका था. पर तभी कुछ ऐसा हुआ कि राजा मालदेव अपने ही लोगों पर अविश्वास कर रात के अंधेरे में लड़ाई के मैदान से चला गया.


बताते हैं कि तब रणभूमि में बाकी बचे छत्तीस कौम के रणबांकुरों ने महावीर राव खीवकरण, राव जैता, राव कुंपा, राव पांचायण और राव अखेराज के नेतृत्व में मारवाड़ के मात्र 20 हजार सैनिकों के साथ शेर शाह सूरी की 80 हज़ार सेना पर हमला बोल दिया. यह इतना भयंकर हमला था कि दिल्ली की सेना में हाहाकार मच गया. शेर शाह ने मैदान छोड़ने का मन बना ही लिया ही था कि उसके सबसे काबिल सेनापति खवास खान मारवात ने राव जैता और राव कुंपा को मारकर जंग का रुख अपनी तरफ कर लिया. जंग में हुई भारी तबाही देखकर शेर शाह को कहना पडा, ‘खैर करो, वरना मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं अपनी दिल्ली की सल्तनत खो देता.’


सूरी की शासन प्रणाली
22 मई, 1545 को शेर शाह सूरी की कलिंजर के किले को जीतने के दौरान मौत हो गयी. इस तरह दिल्ली के तख्त पर वह बस पांच साल रह सका. शेर शाह में महानता के सारे लक्षण मौजूद थे और जानकारों का मानना है कि किस्मत अगर उसका थोड़ा और साथ देती तो यकीनन हिंदुस्तान का इतिहास कुछ और ही होता.


शेर शाह सूरी ने हिंदुस्तान भर में सड़कें और सराए बनवाईं. सडकों के दोनों तरफ आम के पेड़ लगवाए जिससे चलने वालों को छाया रहे. हर दो कोस पर एक सराय बनवाई गयी. इन सरायों में हिंदुओं और मुसलमानों के लिए अलग-अलग व्यवस्था का इंतज़ाम करवाया गया और दो घोड़े भी रखवाए गये जिन्हें हरकारे इस्तेमाल करते. शेर शाह सूरी ने ऐसी कुल 1700 सरायों का निर्माण करवाया. उसने सड़कों पर सुरक्षा व्यवस्था करवाई. मुद्रा के तौर पर उसने 11.53 ग्राम चांदी के सिक्के को एक रुपये की कीमत दी.


शेर शाह ने राज्य संचालन के लिए दीवान-ए-वज़ारत, दीवान-ए- आरिज़, दीवान-ए-रिसालत और दीवान-ए-इंशा जैसे विशेष विभाग बनाए. उसका मानना था कि राज्य में तरक्की तभी संभव है जब अमन कायम हो. उसने मनसबदारी में यह तय करवाया कि सैनिकों की संख्या निश्चित हो, उनको समय पर वेतन मिले और ज़रूरत पड़ने पर मनसबदार अपने सैनिक सुल्तान के सेवा में भेजे.


शेर शाह सूरी मानता था कि किसान ही किसी मुल्क का आधार होते हैं. उसने किसानों के लगान को कम किया और उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा सहूलियतें दीं. उन्हें यह भी आज़ादी दी गयी कि वे जो चाहे उगायें और जैसे चाहे लगान दें. लगान की राशि तय करके पटवारियों को हिदायत दी गई थी कि तयशुदा रकम से ज़्यादा लगान नहीं वसूला जायेगा. किसानों को उससे सीधे मिलकर अपनी तकलीफ सुलझाने का हुक्म सुनाया गया. शेर शाह सूरी किसानों और रियाया का हमदर्द बनकर उभरा शेर शाह सूरी की काबिलियत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अपने पांच साल के शासन में उसने कई ऐसे काम करवाए जिनका अकबर ने भी अनुसरण किया.






सम्बन्धित प्रश्न



Comments Rahul yadav on 22-08-2023

शेरशाह की महानता किसमे निहित है





नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment