Naitik Moolya Parichay Aivam Vargikarann नैतिक मूल्य परिचय एवं वर्गीकरण

नैतिक मूल्य परिचय एवं वर्गीकरण



Pradeep Chawla on 22-10-2018


मानवीय मूल्य वे मानवीय मान, लक्ष्य या आदर्श हैं जिनके आधार पर विभिन्न्ा मानवीय परिस्थितियों तथा विषयों का मूल्यांकन किया जाता है। वे मूल्य व्यक्ति के लिए कुछ अर्थ रखते हैं और उन्हें व्यक्ति अपने सामाजिक जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण समझते हैं। इन मूल्यों का एक सामाजिक-सांस्कृतिक आधार या पृष्ठिभूमि होती है, इसीलिए प्रत्येक समाज के मूल्यों में हमें भिन्न्ाता मिलती है।1 भारतीय समाजों में हिन्दुओं में विवाह के प्रति एक विशिष्ट सामाजिक मूल्य यह है कि विवाह-बंधन एक पवित्र व धार्मिक बन्धन है, इस कारण इसे अपनी इच्छानुसार तोड़ा नहीं जा सकता है। साथ ही यह पवित्रता तभी बनी रह सकती है जबकि पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति वफादार हों। इन मूल्यों का सामाजिक प्रभाव यह होता है कि हिन्दुओं में विवाह-विच्छेद की भावना पनप नहीं पाती है और विधवा-विवाह को उचित नहीं माना जाता है। इसके विपरीत अमेरिकन समाज में विवाह से सम्बन्धित इन मूल्यों का नितान्त अभाव होने के कारण विवाह विच्छेद या विधवा विवाह निन्दनीय नहीं है। सामाजिक मूल्य सामाजिक मान है जो कि सामाजिक जीवन के अन्तः सम्बन्धों को परिभाषित करने में सहायक होते हैं। मूल्यों के द्वारा सभी प्रकार की ‘वस्तुओं’ का मूल्यांकन किया जा सकता है, चाहे वे भावनाएँ हो या विचार, क्रिया, गुण, वस्तु, व्यक्ति, समूह, लक्ष्य या साधन। मूल्यों का एक उद्वेगात्मक आधार होता है। और भी स्पष्ट रूप में, मूल्य समाज के सदस्यों के उद्वेगों को अपील करता है और उन्हीं के भरोसे जीवित रहता है। व्यक्ति जब किसी चीज के विषय में विचार करता है, निर्णय लेता या मूल्यांकन करता है तो उस पर उद्वेग का प्रभाव स्पष्ट रहता है। एक उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। हिन्दुओं में विवाह से सम्बन्धित एक दृष्टि मूल्य अन्तःविवाह है, अर्थात् इस सामाजिक मूल्य के अनुसार व्यक्ति को अपनी ही जाति या उपजाति में विवाह करना चाहिए। इसके विपरीत यदि कोई अन्तर्जातीय विवाह करता है तो सामान्यतः यह देखने में मिलता है कि उस विवाह की चर्चा दाम्पत्ति के परिवारों में, पड़ोस या गांव में, मित्र-मंडलियों में बड़े उत्साह से उद्वेगपूर्ण शब्दों में की जाती है। उनके वार्तालाप से ऐसा लगता है मानों उन्हीं का सब कुछ छिन गया है या उन्हीं पर कोई आफत आ पड़ी है। उसी प्रकार यदि विवाह के पश्चात् नव-दम्पत्ति संयुक्त-परिवार से अलग हो जाते हैं तो उस दम्पत्ति की विशेषकर वधू की निन्दा होती है क्योंकि हिन्दुओं का सामाजिक मूल्य संयुक्त परिवार के पक्ष में है। इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति धर्म, त्याग, अहिंसा के सिद्धान्तों पर अटल रहकर अपना प्राण तक दे देता है। तो उसकी प्रशंसा में लोग मुखारित हो उठते हैं क्योंकि उस व्यक्ति ने स्वीकृत मूल्यों को मान्यता दी है। सामाजिक जीवन के विभिन्न्ा पक्षों या विभिन्न्ा क्रिया-कलाप से सम्बन्धित विभिन्न्ा प्रकार के मूल्य होते हैं यदि परिवार के पिता से सम्बन्धित कुछ मूल्य होते हैं, तो सम्पूर्ण राष्ट्र के शासन के सम्बन्ध में भी मूल्य हुआ करते हैं। उसी प्रकार विवाह के सम्बन्ध में, सामाजिक, सहवास, धार्मिक आचरण, राजनीति, आर्थिक जीवन आदि के सम्बन्ध में एकाधिकार मूल्य होते हैं। उसी प्रकार, समस्त मूल्यों में एक बोधात्मक तत्त्व होता है और वह इस अर्थ में कि एक व्यक्ति को ‘क्या उचित है’ की धारणा उसके ‘क्या है’ या ‘क्या संभव है’ की धारणा पर निर्भर करती है। अतः स्पष्ट है कि मूल्य आदर्श-नियमों में घनिष्ट रूप से सम्बन्धित होते हैं। इतने घनिष्ट रूप में कि इन दोनों में अंतर करना कभी-कभी कठिन हो जाता है। आदर्श नियमों को, जाॅनसन के अनुसार, विस्तृत दृष्टिकोण से देखने पर मूल्य तथा आदर्श-नियम के बीच पाए जाने वाले अंतर स्वतः ही गायब हो जाते हैं। राधाकमल मुकर्जी ने लिखा है, ‘‘मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त इच्छाएँ एवं लक्ष्य हैं जिनकी अन्तरीकरण सीखने या सामाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से होता है और जो व्यक्तिनिष्ठ अधिमान, मान तथा अभिलाषाएँ बन जाती हैं। आपके विचार से समाज वैज्ञानिकों द्वारा मूल्य को उचित रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। उदाहरणार्थ, मनोविज्ञान में मूल्यों को केवल अधिमानों के रूप में परिभाषित किया गया है, जबकि अन्य सामाजिक विज्ञानों के मूल्यों को क्रियाशील अवश्यकरणीय या कत्र्तव्यों के रूप में प्रस्तृत किया गया है। परन्तु ये सब मूल्यों की वास्तविक प्रकृति को स्पष्ट नहीं करते। मूल्यों की उत्पत्ति एक सामाजिक संरचना विशेष के सदस्यों के बीच होने वाली अन्तःक्रियाओं के फलस्वरूप धीरे-धीरे होती है। वास्तव में मनुष्य को अपने परिस्थितिगत पर्यावरण से एक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता होती है, अपने जीवन-निर्वाह व भरण-पोषण सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना होता है, अपने समाज या समूहों के अन्य लोगों के साथ सामाजिक का सामना करना होता है, अपने समाज या समूहों के अन्य लोगों के साथ सामाजिक-जीवन में भागीदार बनना पड़ता है एवं अपने व्यक्तित्व व संस्कृति के बीच आदान-प्रदान की प्रक्रिया में भी सम्मिलित होना पड़ता है। ऐसी स्थिति में यदि समाज के सदस्यों के लिए समाज द्वारा कुछ अधिमानों, मानदंडों तथा सामूहिक अभिलाषाओं को व्यवहार के आधार के रूप मंे प्रस्तुत न किया जाए तो समाज में अव्यवस्था, असुरक्षा और अशांति का ही राज्य होगा। इस स्थिति को टालने के लिए ही समाज द्वारा मान्यताप्राप्त कुछ मानदंड, इच्छाएँ एवं लक्ष्य विकसित किए जाते हैं। और वे समाज में प्रचलित रहते हैं, जिन्हें कि व्यक्ति सीखने या समाजीकरण की प्रक्रिया के दौरान अपने व्यक्तित्व में सम्मिलित कर लेता हैं। अतः मनुष्य को मूल्य अपने जीवन से, अपने पर्यावरण से, अपने-आप(स्वयं) से, समाज और संस्कृति से ही नहीं अपितु मानव-अस्तित्व व अनुभव से प्राप्त होते हैं।’’2 स्पैंगर ने 6 आधारभूत प्रकार के मूल्यों का वर्णन किया है जो हैं-(1) सैद्धांतिक या बौद्धिक, (2) आर्थिक या व्यवहारिक, (3) सौदर्यबोधी, (4) सामाजिक या परार्थवादी, (5) राजनीतिक या सत्ता-सम्बन्धी, (6) धार्मिक या रहस्यात्मक। मुकर्जी आॅलपोर्ट तथा बरनाॅन के इस मत से सहमत हैं, कि स्पैंगर का उपरोक्त वर्गीकरण समग्र रूप से निर्भरयोग तथा उपयोगी है। फिर भी आपके मतानुसार यह अधिक अच्छा हो यदि मूल्यों को हम दो मुख्य वर्गों में-(1) साध्य मूल्य, (2) साधन मूल्य के रूप में विभाजित करें। यहाँ यह कहना उचित होगा कि मुकर्जी द्वारा प्रस्तुत यह वर्गीकरण लीविस द्वारा उल्लेखित साध्य या अन्तर्निष्ट एवं बाह्य या साधन मूल्यों तथा गोलाइटली द्वारा परिभाषित मौलिक एवं क्रियात्मक मूल्यों की धारणा पर आधारित है।3 मुकर्जी के अनुसार, ‘साध्य मूल्य’ वे लक्ष्य तथा संतोष है जिन्हे मनुष्य तथा समाज जीवन तथा मस्तिष्क के विकास व विस्तार की प्रक्रिया में अपने लिए स्वीकार कर लेता है, जो व्यक्ति के आचरण में अन्तर्निष्ठ होते हैं और जो स्वयं साध्य होते हैं। उदाहरण ‘सत्य’, ‘शिव’ और ‘सुन्दर’ से सम्बन्धित मूल्य मनुष्य के आन्तरिक जीवन से सम्बन्धित हैं जो स्वतः ही पूर्ण हैं। इसके विपरीत, ‘साधन मूल्य’ वे मूल्य हैं जिन्हें मनुष्य और समाज प्रथम प्रकार के मूल्यों की सेवा हेतु एवं उन्हें उन्नत करने के साधन के रूप में मानते हैं। स्वास्थ्य, सम्पत्ति, सुरक्षा, पेशा, प्रस्थिति आदि से सम्बन्धित मूल्य ‘साधन मूल्य’ हैं क्योेकि इनका उपयोग कतिपय लक्ष्यों व संतोषों की प्राप्ति के साधन के रूप में किया जाता है।4 साध्य मूल्यों को अमूर्त या लोकातीत मूल्य एवं साधन मूल्यों को विशिष्ट या अस्तित्वात्मक मूल्य कहकर भी पुकारा जा सकता है। साध्य, अमूर्त या लोकातीत मूल्यों का सम्बन्ध समाज व व्यक्ति के जीवन को उच्चतम आदर्शों तथा लक्ष्यों से होता है, जबकि साधन, विशिष्ट या अस्तित्वात्मक मूल्यों को लौकिक लक्ष्यों की पूर्ति के साधन या उपकरण के रूप में प्रयोग किया जाता है। फिर भी, इन साधन मूल्यों के उचित चुनाव व बद्धिमत्तापूर्वक उपयोग के बिना साध्य या लोकातीत मूल्यों की परिपूर्णता सम्भव नहीं। इस सम्बन्ध में यह भी स्मरणीय है कि औसत रूप में मनुष्य का सम्बन्ध साध्य मूल्यों की अपेेक्षा साधन मूल्यों से अधिक होता है। इसीलिए इन्हीं साधन मूल्यों, उनकी परिस्थितियों एवं परिणामों की विवेचना सामाजिक विज्ञान द्वारा की जाती है। सभी मूल्य एक ही स्तर के नहीं होते अपितु उनमें एक संस्तरण देखने को मिलता है। इस संस्तरण का सम्बन्ध मूल्यों के आयामों से होता है। मूल्यों के तीन आयाम- (1) जैविक, (2) सामाजिक एवं (3) आध्यात्मिक हैं। सामाजिक मूल्य स्वास्थ्य, जीवन-निर्वाह, कुशलता, सुरक्षा आदि से सम्बन्धित होते हैं। सामाजिक मूल्य सम्पत्ति, प्रस्थिति, प्रेम तथा न्याय सम्बन्धी होते हैं तथा अध्यात्मिक मूल्य सत्य, सुन्दरता, सुसंगति तथा पवित्रता विषयक होते हैं। आध्यात्मिक मूल्य का स्तर सबसे ऊँचा होता है क्योंकि इसकी विशेषता आत्म-लोकातीतत्त्व हैं। इसीलिए यह साध्य मूल्य या अन्तर्निष्ट मूल्य या लोकातीत मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है। इसके बाद सामाजिक मूल्यों का स्थान होता है जिसका कि उद्देश्य सामाजिक संगठन व सुव्यवस्था को बनाए रखना होता है। इसीलिए इन्हें साधन मूल्य, ब्राह्य मूल्य या क्रियात्मक मूल्य की सज्ञा दी जाती है। अन्त में, जैविक मूल्यों का स्थान है जोकि जीवन को बनाए रखने तथा आगे बढ़ाने के लिए होते हैं और इसीलिए इन्हें भी साधन, ब्राह्य या क्रियात्मक मूल्य कहा जाता है। इन सभी बातों को मुकर्जी ने एक सारणी के अन्तर्गत प्रस्तुत किया है। मानव जीवन का आरम्भ, अस्तित्व व निरन्तरता जैविक आधार पर ही निर्भर है-शरीर बना रहेगा, स्वस्थ व उपयुक्त होगा तभी जीवन-निर्वाह एवं उसकी अग्रगति सम्भव होगी। इसीलिए मूल्यों के सोपान या संस्तरण में जैविक मूल्यों का उल्लेख पहले किया गया है। पर जैविक जीवन समाज की सहायता के बिना सम्भव नहीं। इसीलिए जीवन मूल्यों के बाद ही सामाजिक मूल्यों का स्थान है पर जैविक व सामाजिक जीवन की वास्तविक सार्थकता ‘सत्यम, शिवम्, सुन्दरम्’ की प्राप्ति में ही निहित है जोकि जैविक व सामाजिक स्तर से गुजरते हुए ही सम्भव है। इसीलिए आध्यात्मिक मूल्यों को सबसे अन्त में, मानव-जीवन के अन्तिम लक्ष्य के रूप में रखा गया है। इस दृष्टि से आध्यात्मिक मूल्य सर्वाेच्च प्रकार का मूल्य है, सामाजिक और जैविक मूल्यों के स्थान क्रमशः उसके बाद हैं। अतः मूल्यों के सोपान में प्राथमिकता एवं आरोहण के सम्बन्ध में डाॅ.मुकर्जी का निष्कर्ष या सामान्यीकरण निम्नवत है।5 मूल्यों का सोपान एवं संस्तरण क्रम मूल्यों के आयाम मूल्यों के गुण मूल्यों का संस्तरण (1) जैविकः स्वास्थ्य,उपयुक्तता,कुशलता,सुरक्षा,निरंतरता साधन मूल्य,ब्राह्य मूल्य,क्रियात्मक मूल्य जीवन-निर्वाह,ंअग्रगति (2) सामाजिकःसम्पत्ति, प्रस्थिति, प्रेम, एवं न्याय साधन मूल्य,ब्राह्य मूल्य,क्रियात्मक मूल्य सामाजिकसंगठन,सुव्यवस्था (3) आध्यात्मिकःसत्य, सौदर्य, सुसंगति तथा पवित्रता साधनमूल्य,अंतर्निष्ठमूल्य,लोकातीतमूल्य आत्म-लोकातीतकरण समाज मूल्यों का एक संगठन व संकलन है। मूल्य सामाजिक क्रिया में सामूहिक अनुभव होते हैं जिनका निर्माण वैयक्तिक तथा सामाजिक दोनों ही प्रकार के सामूहिक दोनों ही प्रकार के प्रत्युत्तरों तथ्यों मनोवृत्तियों द्वारा होता है। ये मूल्य समाजों का निर्माण करते हैं और सामाजिक सम्बन्धों को संगठित। समाज या मानवीय या सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित जो मूल्य होते हैं उनमें एक प्रकार्यात्मक सम्बन्ध होता है जिसके कारण सामाजिक सम्बन्धों का ताना-बाना टूटता नहीं और उनमें एक तालमेल की स्थिति बनी रहती है जिसके परिणामस्वरूप समाज में व्यवस्था व सन्तुलन बना रहता है। उदाहरणार्थ, परिस्थितिगत स्तर पर प्राकृतिक साधनों के उपयोग सम्बन्धी कुछ मूल्य होते हैं जिसके कारण परिस्थितिगत सन्तुलन सम्भव होता है। उसी प्रकार आर्थिक स्तर पर समाज-कल्याण, कीमत, आय का वितरण, उचित वेतन तथा जीवन-स्तर सम्बन्धी मूल्य होते हैं, सामाजिक स्तर पर सामाजिक संगठन व व्यवस्था सम्बन्धी मूल्य, राजनीतिक स्तर पर सत्ता समानता, स्वतन्त्रता, राजभक्ति व नागरिकता के मूल्य, वैधानिक स्तर पर न्याय, समानता, स्वतन्त्रता, सुरक्षा, अधिकर व व्यवस्था के मूल्य, शैक्षिक स्तर पर व्यक्तित्व-विकास, मानसिक, स्वास्थ्य चरित्र तथा जीवन-लक्ष्य विषयक मूल्य तथा नैतिक स्तर पर पारस्परिक आदान-प्रदान, सहयोग, सहानुभूति, न्याय एवं प्रेम के मूल्य समाज के विभिन्न पक्षों और समग्र रूप में पूरे समाज को सन्तुलित व व्यवस्थित करने में महत्त्पपूर्ण योगदान करते हैं। मूल्यों के बिना समाज आदिकालीन बर्बर स्तर पर उतर आएगा। सुसंस्कृत समाज का प्रथम लक्षण उच्च व उत्तम प्रकार के मूल्य ही हैं। जहाँ तक व्यक्ति के जीवन मूल्यों के महत्त्व का प्रश्न है, समाजशास्त्रियों का विचार है कि मूल्य, मनुष्य के सामाजिक जीवन के अनुरूप स्थिर तथा सुसंगत तरीके से उसके आधारभूत आवेगों और इच्छाओं का संगठन व सन्तुष्टि करके, मनुष्य के उद्विकास एवं चुनाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की स्वकेन्द्रित, तत्कालिक तथा अस्थिर आवश्यकताओं को एक स्थायी मानसिक समूहों या मूल्यों में रूपान्तरित किया जाता है जिसके बिना मनुष्य का जीवन, हाॅब्स के शब्दों में, ‘‘घिनावना, पशुवत एवं संक्षिप्त बन गया होता।’’ मूल्यों में आदेशसूचक और, अनिवार्यता के तत्त्व होते हैं जिन्हें कि समाज में प्रचलित नीतियों, प्रथाओं और नौतिक नियमों के कारण उत्तरोत्तर जल प्राप्त होता रहता है। फलतः मूल्य व्यक्ति के व्यवहारों को नियन्त्रित एवं सही मार्ग की ओर निर्देशित करने में महत्त्वपूर्ण होते हैं। मूल्य व्यक्ति की सामाजिक विरासत का एक अंग होता है।6 इसीलिए मूल्यों की व्यवस्था मानव-आस्तित्व के विभिन्न स्तरों या आयामों में व्यक्ति के अनुकूलन की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन प्रदान करती व मार्गदर्शन करती है। यह एक ओर मनुष्य के मानसिक तनावों व संघर्षों को सुलझाते हुए आन्तरिक प्रसंगति व सम्बद्धता को उत्पन्न करता है एवं दूसरी ओर आदर्श आयाम की ओर वैयक्तिक व सामूहिक दोनों ही जीवन की उन्नति को निर्देशित करता है। मूल्य-व्यवस्था व्यक्तित्व की संरचना को परिभाषित तथा नियन्त्रित करती है और इसके बदले में व्यक्त् िअपने आचरणों द्वारा मूल्यों की गुणात्मक परिशुद्धि व परिमार्जन करता है। व्यक्ति मूल्यों के इस आपसी सम्बन्ध के कारण ही मूल्यों में परिवर्तन, परिवर्धन तथा परिमार्जन होता रहता है। व्यक्ति, समाज और मूल्य में पाए जाने वाले पारस्परिक सम्बन्ध व प्रभाव को दर्शाने के लिए मुकर्जी ने इन्हें एक दीपक की बत्ती, तेल और ज्योति कहा है। स्पष्ट है कि तेल (समाज) के बिना बत्ती (व्यक्ति) अधूरी है, और ज्योति (मूल्यों) के बिना बत्ती (व्यक्ति) और तेल (समाज) दोनों ही अर्थहीन हैं। अर्थात् अन्तिम रूप में मूल्य ही समाज और व्यक्ति के जीवन में ज्योति जलाता है। मुकर्जी के सुन्दर शब्दों में, ‘‘मनुष्य और समाज-तैरती हुई बत्ती और गहरे तेल के बीच चलने वाल अनन्त आदान-प्रदान से मूल्य-अनुभव की उजली, स्थिर ज्योति पनपती है जोकि हमारे नीरस और निरानन्द विश्व को निरन्तर प्रकाश और ताप देती रहती है।’’ स्वतंत्रता के पश्चात् निर्मित संविधान एवं समय-समय पर गठित शिक्षा सम्बन्धी आयोगों तथा समितियों का नैतिक मूल्य व नागरिक बोध सम्बन्धित शिक्षा को महत्त्वपूर्ण बताया है। हमारे संविधान में सर्व-धर्म समभाव को प्राथमिकता देकर नैतिक मूल्यों के रूप में सामने लाया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा आयोग-1964-65 ने इस विषय को महत्त्वपूर्ण कहते हुए शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य नैतिक व अध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा को बताया है। आयोग का मानना है कि धर्म एक महान प्रेरक शक्ति है, नैतिक मूल्यों के आकलन का एवं चरित्र निर्माण का वही आधार है। अतः महान धर्माें की नैतिक शिक्षा के द्वारा सामाजिक, नैतिक एवं अध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा देने का प्रयास किया जाना चाहिए।7 डाॅ.राधाकृष्णन ने ठीक कहा है कि भारत सहित सारे संसार के कष्टों का कारण यह है कि शिक्षा का सम्बन्ध नैतिक और अध्यात्मिक मूल्यों की प्राप्ति न रहकर केवल मस्तिष्क रह गया है, यदि शिक्षण का अर्थ हृदय और आत्मा की अवहेलना है तो उसको पूर्ण नहीं माना जा सकता है। 12 सितंबर 2002 के अपने ऐतिहासिक निर्णय में उच्चमत न्यायालय की त्रि-सदस्य खंडपीठ ने कहा कि सदाचार, सत्य, अहिंसा ये शास्वत मूल्य हैं जो कि मूल्य आधारित शिक्षा की नींव है। अतः इसके लिए यह जरूरी है कि यह जाना जाए कि हमारे उपनिषदों के उन तथ्यों को उसी रूप में समझा जाए। निर्णय में संविधान के अनुच्छेद 28 की व्याख्या करते हुए कहा कि विद्यार्थियों को मूल्य आधारित शिक्षा के तहत यह बताया जाए कि सभी का मूल एक है। सत्य, प्रेम, शांति, सदाचरण शास्वत, मूल्य सिक्षा के आधार होना चाहिए क्योंकि इन नैतिक मूल्यों के बिना कोई भी संविधान या लोकतन्त्र कारगर नहीं हो सकता।8 आज भारत की नैतिक और मूलभावना भारत, आदर्श भारत तथा भ्रष्टाचार मुक्त भारत की तस्वीर की परिकल्पना साकार करना है तो नीचे से ऊपर तक अमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है और जितनी जल्दी से यह रिशफिलिंग की जाएगी सार्थक और आपेक्षित परिणाम नजर आने लगेंगे।9 हमें ऐसी राजनीतिक रणनीतियाँ अपनाने के प्रलोभन से बचने की जरूरत है जो रणनीतियाँ हमें विभाजित करतीं हों और नागरिकों के इस या उस वर्ग की पहचान तथा निष्ठा पर सवाल उठातीं हों। नेतृत्व का कार्य नागरिकों के मध्य पारस्परिक विश्वास और समन्वयपूर्ण एकजुटता का निर्माण करना है। ऐसा केवल ऐसे नेतृत्व द्वारा ही किया जा सकता है जिसके पास नैतिक शक्ति हो। अपने नेताओं को उनकी नैतिक आचरणगत दायित्यों के प्रति जागरूक करने के लिए आवश्यकता है कि लोकतान्त्रिक जीवंतता को जगाया जाए।10 यदि समाज अपने अस्तित्व को बनाए रखना चाहता है तो उसके लिए यह आवश्यक है कि वह व्यक्तित्व के परम या सर्वोच्य मूल्यों की नियमित रूप से पूर्ति करता रहे। व्यक्तित्व की सर्वाेत्तम खोज सुन्दरता, अच्छाई तथा प्रेम के उच्चतम आध्यात्मिक मूल्य हैं। इसी सुन्दरता, अच्छाई तथा प्रेम के आधार पर सामाजिक सम्बन्धों व संस्थाओं की सृष्टि और पुनःसृष्टि होती है। सम्पूर्ण मानव-समाज के मानव-कल्याण के लिए इन मूल्यों का संरक्षण आवश्यक है।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Kashik on 16-03-2022

Naitik mulya classification

Arjun on 23-02-2022

Bharat me kitnee durgatna hue ha banana jara

Naitik mulya ka vargikaran on 24-07-2021

Hhhh


Vishesh heading on 21-07-2021

Vishesh heding

Shivam on 18-07-2021

Natik mulya ka vargikaran

Netik molyo ka vargikaran on 15-07-2021

Netik moolayo ka vargikaran

Tahir Ansari on 09-07-2021

नैǓतक मूã यɉ का वगȸकरण कȧिजए।


Rajeshvary on 09-07-2021

Netik muliyo ka varrikard kijiye



Bhanupratap on 26-09-2018

Natick mulaya ka vargikaran

Pooja on 11-10-2018

Netik mulyo ki vargikarn

Lalit Kumar on 18-01-2019

नैतिक मूल्यों में योग की भूमिका पर ppt के लिए कुछ बिन्दुओं की आवश्यकता है

Girraj chsndel on 19-02-2019

Naitik mooly ka vargikaran


Santosh kumar uikey on 15-10-2019

Raja mansingh kon hai

Sana Anjum on 23-01-2020

Baleyvasta me natik मूलय ko unnat karne hatu सुरक्षा avn shujao H.D

SURAJ PARGI on 16-09-2020

नैतिक मूल्यों का वगीकरण कीजिए

Shivam on 17-09-2020

Netik mulyo ka vargikaran kro

Sonu Rawat on 17-09-2020

नैतिक मूल्यों का बर्गी कार्ड कीजिए

Ayush Tanwar on 13-01-2021

Naitik mulya ke prakaar


म on 30-01-2021

Naitikata se hani

Mayank on 31-01-2021

नैतिक मूल्य का परिचय एवं वर्गीकरण बताइए

Amrita Patel on 12-02-2021

नैतिक मूल्य परिचय एवं वर्गीकरण की समीक्षा कीजिए

Pankesh bhalavi on 14-02-2021

नैतिक मूल्यों का वर्गीकरण

Sapna barde on 20-02-2021

नैतिक मूल्य परिचय एवं वर्गीकरण की सीमा छाई दीजिए

Mangilal dudwe on 24-02-2021

Nairik muliy parichaya or wargikaran ki samichha kijiye

Rahul on 19-03-2021

Nitaik mullo ka parichay

Rahul on 19-03-2021

Nitaik mullo ka parichay or bargikaran kighiye

Spal on 07-07-2021

Naitik mulya ka vargikaran

Arvind on 07-07-2021

Jio ka vargikaran ko kitne bhagon Mein Banta gaya hai

Lakki amrute on 07-07-2021

Afhsar namkran ki sarthkta pr prkash daliye

जयकेश on 08-07-2021

नैतिक मूल्यों का लगाकर कीजिए




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