Aacharya Ramchandra Shukl Ke Nibandh Utsaah आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध उत्साह

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध उत्साह



Pradeep Chawla on 12-05-2019

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म सन 1884 ई0 में उत्तरप्रदेश के बस्ती जिले के अगौना नामक गाँव में हुआ। उनकी आरम्भिक शिक्षा मिर्ज़ापुर में हुई। सन 1910 ई0 में उन्होंने मिशन हाईस्कूल से स्कूल परीक्षा पास की। फिर वे प्रयाग के कायस्थ इण्टर कॉलेज में एफ. ए. की पढ़ाई करने के लिए आ गए । आचार्य शुक्ल इन परीक्षाओं के अतिरिक्त निरंतर साहित्य, मनोविज्ञान, इतिहास आदि के पं. केदारनाथ पाठक, बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ के संपर्क में आकर उनकी अध्ययनवृत्ति को और बल मिला। इसी समय उन्होंने हिन्दी, उर्दू, संस्कृत तथा अंग्रेजी साहित्य गहन अध्ययन किया।



आरम्भ में उन्होने चित्रकला के अध्यापक के पद पर कार्य किया। सन 1909-10 ई. के लगभग वे ‘हिन्दी शब्द सागर’ के संपादन में वैतनिक सहायक के रूप में काशी आ गए। कोश कार्य समाप्त होने पर शुक्ल जी की नियुक्ति बनारस के हिन्दू विश्वविधालय में हिन्दी के अध्यापक के रूप में हो गई। सन 1937 ई0 में वे हिन्दी विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए । सन 1941 ई0 में हृदय गति बन्द हो जाने से उनका निधन हो गया।



आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का लेखन विविधतापूर्ण है। उन्हें उनके लेखन के आधार पर निबन्धकार आलोचक़ तथा इतिहासकार भी कहा जा सकता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनुवाद कार्य भी किए है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की प्रमुख कृतियाँ निम्न हैं -



कहानी - ग्यारह वर्ष का समय ।



निबन्ध - चितामणि (तीन भागों में संकलित) ।



सैद्धांतिक आलोचना - रस मीमांसा ।



व्यावहारिक आलोचना - जायसी, तुलसीदास तथा सूरदास (क्रमश: जायसी



ग्रंथावली, तुलसी ग्रंथावली तथा भ्रमरगीत सार की



भूमिकाएँ) ।



इतिहास - हिन्दी साहित्य का इतिहास ।



अनूदित - विश्व प्रपंच (रिडल ऑफ द यूनीवर्स),



शशांक (बांग्ला उपन्यास),



कल्पना का आनन्द (प्लेजर्स आँफ इमेजिनेशन - जोसेफ),



बुद्ध चरित (लाईट आँफ एशिया – एडविन अर्नोल्ड)।



आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी के प्रथम साहित्यिक इतिहास लेखक हैं, जिन्होंने सही मायने में इतिहास-लेखन का कार्य किया। उनका ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ पूर्ववर्ती इतिहासों की भांति मात्र कवि-वृत संग्रह मात्र नहीं है। बल्कि उन्होंने इतिहास लेखन में “शिक्षित जनता की जिन-जिन प्रवृतियों के अनुसार हमारे साहित्य के स्वरूप में जो-जो परिवर्तन होते आए है, जिन-जिन प्रभावों की प्रेरणा से काव्यधारा की भिन्न-भिन्न शाखाएँ फटती रही हैं, उन सबके सम्यक निरूपण तथा उनकी दृष्टि से किये हुए सुसंगठित काल-विभाग” की विशेष रूप से ध्यान में रखा है। आचार्य शुक्ल के इतिहास-लेखन ही नहीं, बल्कि आलोचना अन्य ग्रन्थों में उनकी छवि एक गंभीर समीक्षक के रूप में उभरती है। संभवत: वे पहले-समीक्षक हैं, जो किसी कवि अथवा रचना के ग्रंथ-दोष गिनाने में ही नहीं रमते। आलोचना के आदर्श में आमूल परिवर्तन करते हुए उन्होनें कवियों विशेषताओं एवं उनकी “अंत: प्रकृति की छानबीन” की ओर भी ध्यान दिया। किसी भी काल की आलोचना करते हुए आचार्य शुक्ल उसे ‘लोक’ की कसौटी पर परखते है। इसीलिए आचार्य शुक्ल को साहित्य का वहीं पक्ष प्रीतिकर लगता है, जो उनके ‘लोक’ के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है।



आचार्य शुक्ल का तीसरा महत्वपूर्ण व्यक्तित्व एक निबन्धकार का है। आचार्य शुक्ल का मानना था कि गद्य लेखक की कसौटी है, तो निबन्ध गद्य की कसौटी है। निबन्धकार को अपने विचारों व भावों को अभिव्यक्त करने के लिए ऐसी शैली अपनानी होती है, जिससे वह अपने उद्देश्य में सफल हो। आचार्य शुक्ल के निबन्ध भले ही संख्या की दृष्टि से बहुत अधिक ना हो, किंतु नि:संदेह उनके निबन्ध उत्कृष्ट कोटि के हैं। विषय की दृष्टि से उनके निबन्धों को तीन मुख्य भागों में बांटा जा सकता है: - (1) मनोविकार संबंधी, (2) सैद्धांतिक समीक्षा संबंधी, (3) व्यावहारिक समीक्षा संबंधी।



आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने मनोभावों – उत्साह, श्रद्धा और भक्ति, करुणा, लज्जा, क्रोध, ईर्ष्या पर जो निबन्ध लिखे, वे ‘चिंतामणि भाग–1’ में संकलित है। शुक्ल जी ने इन मनोविकारों का विश्लेष्ण किसी मनोवैज्ञानिक सिद्धांत दृष्टि के आधार पर नहीं किया हैं। ‘चिंतामणि भाग-2’ में ‘काक में अभिव्यंजनावाद’ तथा ‘काक में रहस्यवाद’ जैसे अन्य निबन्ध संकलित हैं। इन 1निबन्धों से आचार्य शुक्ल की साहित्य की लोक-संग्रहवादी दृष्टि का परिचय मिलता हैं। ‘चिंतामणि भाग–3’ में आचार्य शुक्ल के कुछ अनूदित एवं प्रारंभिक निबन्ध संकलित हैं। आचार्य शुक्ल के निबन्धों की विशेषता हैं कि उसमें साधारण भाषा का प्रयोग किया हैं। भाषा उनके निबन्ध में व्यक्त विचारों को मूर्त रूप प्रदान करती हैं। तत्सम् भाषा के साथ साधारण बोलचाल के शब्दों का सटीक प्रयोग इन निबन्धों में देखा जा सकता हैं।



समग्रतः कहा जा सकता है कि “साहित्यिक इतिहास लेखक के रूप में उनका स्थान हिन्दी में अत्यंत गौरवपूर्ण हैं, निबन्धकार के रूप में वे किसी भी भाषा के लिए गर्व का विषय हो सकते हैं तथा समीक्षक के रूप में तो वे हिन्दी में अप्रतिम हैं अभी तक”।2




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Satyam on 22-11-2022

उत्साह निबंध का प्रतिपाद

Monalisa meher on 27-09-2021

Which of the most beautiful women in Odisha

Priya giri on 10-05-2021

Mcq krodh lesson by ramchandra shuklay


Utsaah ka saar on 18-11-2020

Utsaah ka saar

Neha kumari on 09-10-2020

उत्साह निबंध में निबंध काल का क्या तात्पर्य है?

Varsha on 27-09-2020

उत्साह निबंध में लेखक के विचारों को अपने शब्दों में लिखिए

Sàñdèép on 10-04-2020

उत्साह निबंध की समीक्षा पर एक पीडीएफ बनाइए


उतसा on 29-03-2020

उत्साह निबंध में लेखक के विचारो को अपने शब्दों में
लिखिए



JAGDISH GOYAL on 29-08-2018

भयः

तरूण कबाङी on 18-09-2018

शुक्ल जी के अनुसार निबंध की परिभाषा

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध संग्रह में प्रकाशित on 13-10-2018

A Acharya Ramchandra Shukla ke kitne nibandh sangrah prakasit hai

Priyanshu singh on 13-10-2018

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के कितने निबंध संग्रह प्रकाशित हुई


Priyanka on 12-05-2019

Nibandh utsah ke questions answer dijiye
Acharya ramchandra shukl

7800 on 30-05-2019

Aacharya ramchandra shukla ke nibandh utsah ka saransh

दिनेश कुमार on 08-10-2019

चिंतामणि भाग-२ व ३ में कितने-कितने निबंध संकलित है?

Anil on 30-01-2020

Ram chandra shukla ke pradham prakashit niwandh kaun hai

Randhir on 31-01-2020

A charity ranchandr Sullivan ka 1 nibadh kon hai



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