कृषि, उद्योगों और शहरीकरण से वनों का काफी कटाव हुआ है। वनों के अधिक कटाव से अनेक वन्यजीव जंतुओं की कई प्रजातियाँ या तो लुप्त हो गई हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं। वन्यजीवन के महत्त्व को ध्यान में रखकर व लुप्त होती प्रजातियों को बचाने के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं। सन 1952 में भारतीय वन्यजीवन बोर्ड का गठन किया गया। इस बोर्ड के अंतर्गत वन्य-जीवन पार्क और अभयारणय बनाए गए। 1972 में भारतीय वन्यजीवन संरक्षण अधिनियम पारित किया गया। भारत जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की समाप्त होने के खतरे में पडी प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधी समझौते (1976) का सदस्य बना। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन (युनेस्को ) का ‘मानव और जैव मण्डल’ कार्यक्रम भी भारत में चलाया गया और विलुप्त होती विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण के लिए परियोजनाएँ चलाई गईं। सिंह के संरक्षण के लिए 1972 में, बाघ के लिए 1973 में , मगरमक्वछ के लिए 1984 में तथा भूरे रंग के हिरण के लिए ऐसी परियोजनाएँ चलाई गईं।
वन्यजीवन संरक्षण अधिनियम (1972) में लुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण की व्यवस्था है तथा इन जातियों के व्यापार की मनाही है। इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:
वन्यजीवन संरक्षण अधिनियम, (1972) को अधिक व्यावहारिक व प्रभावी बनाने के लिए इसमें वर्ष 1986 तथा 1991 में संशोधन किए गये। वन्यजीवन संरक्षण अधिनियम को सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने के लिए वन्यजीवन संरक्षण निर्देशक तथा दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता व चे<नई में चार उपनिर्देशकों की व्यवस्था की गई है।
भारत सरकार ने वनों के संरक्षण तथा वनों के विकास के लिए वन संरक्षण अधिनियम (1980) पारित किया। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वनों का विनाश और वन भूमि को गैर-वानिकी कार्यों में उपयोग से रोकना था। इस अधिनियम के प्रभावी होने के पश्चात कोई भी वन भूमि केंद्रीय सरकार की अनुमति के बिना गैर वन भूमि या किसी भी अन्य कार्य के लिए प्रयोग में नहीं लाई जा सकती तथा न ही अनारक्षित की जा सकती है। आबादी के बढने तथा मानव जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वनों का कटना स्वाभाविक है। अत: ऐसे कार्यों की योजनाएँ बनाते समय तथा वनों को काटने हेतु मार्गदर्शिकायें तैयार की गई हैं जिससे वनों को कम से कम नुकसान हो। इन मार्गदर्शिकाओं में निम्न बिन्दुओं पर अधिक ध्यान दिया गया है:
देश की स्वतंत्र ता के पश्चात राष्ट्रीय वन नीति (1952) घाषित की गई लेकिन वनों के विकास पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया। 1970 के दौरान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण के प्रति चेतना की जागृति का विकास होने से वन संरक्षण को भी बल मिला। वन संरक्षण अधिनियम (1980) का इस दिशा में विशेष योगदान रहा। सन् 1951 से 1980 के बीच वन भूमियों का अपरदन 1.5 लाख हैक्टेयर प्रति वर्ष था जबकि इस अधिनियम के लागू होने के पश्चात भूमि का अपरदन 55 हजार हैक्टेयर रह गया है। इस अधिनियम को अधिक प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने के लिए इसमें वर्ष 1988 में संशोधन किया गया।5
Internet kis prakaar ka network hai
Preetam Van sarekchan kanun kab bana
वक संरक्षण अधिनियम कब पारित हुआ
25 अक्टूबर 1980 या 26 नवबर 1980
Question answer
Bhartiya ban adhiniyam sabse pahle kab parit hua
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Van sanrachanaon adhi niyam kab parit hua