Vyavasthapika Ke Karya व्यवस्थापिका के कार्य

व्यवस्थापिका के कार्य



Pradeep Chawla on 12-05-2019

भाग V: संघ

अध्याय-1 कार्यपालिका

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति अनुच्छेद (52-73)

मंत्रि-परिषद अनुच्छेद (74-75)

भारत का महान्‍यायवादी अनुच्छेद-76

सरकारी कार्य का संचालन अनुच्छेद(77-78)

अध्याय-2 संसद

संसद(साधारण) अनुच्छेद (79-88)

संसद के अधिकारी अनुच्छेद (89-98)

संसद के कार्य संचालन अनुच्छेद (99-100)

संसद और उसके सदस्‍यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्‍मुक्तियां अनुच्छेद (100-104)

सदस्‍यों की निरर्हताएं अनुच्छेद (105-106)

विधायी प्रक्रिया अनुच्छेद (107-111)

वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया अनुच्छेद (112-117)

साधारणतया प्रक्रिया अनुच्छेद (118-122)

अध्याय-3 राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां

संसद के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्‍यापित करने की राष्ट्रपति की शक्ति अनुच्छेद (123)

अध्याय-4 संघ की न्यायपालिका

न्यायपालिका अनुच्छेद (124-147)

अध्याय-5 भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक

भारत के नियंत्रक-महा लेखापरीक्षक अनुच्छेद (148-151)







संघीय कार्यपालिका



(Union Executive)







भारत मेँ ब्रिटेन की भांति संसदीय शासन व्यवस्था अपनाई गई है। इस व्यवस्था मेँ कार्यपालिका व्यवस्थापिका का एक हिस्सा होती है। भारत का राष्ट्रपति ब्रिटेन की राजा की तरह संवैधानिक शासक है। वास्तविक शक्तियां मंत्रिपरिषद, जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होता है, में निहित होती हैं। भारत मेँ कार्यपालिका के अंतर्गत राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद आते हैं।



राष्ट्रपति





अनुच्छेद 52 मेँ कहा गया है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा।



अनुच्छेद 53 मेँ कहा गया है कि संघ की सभी कार्यपालिका संबंधी शक्ति राष्ट्रपति मेँ निहित होगी।



इस प्रकार भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति मेँ निहित है।



पर भारत मेँ संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है। अतःराष्ट्रपति नाममात्र की कार्यपालिका है। तथा प्रधान मंत्री और उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है।



भारत के राष्ट्रपति, भारत का प्रथम नागरिक कहलाता है।



भारत के राष्ट्रपति पद पर कोई भी भारत का नागरिक, जोकि निर्धारित योग्यताएं पूरी करता है, पदासीन हो सकता है।



भारत का राष्ट्रपति बनने के लिए व्यक्ति की आयु कम से कम 35 वर्ष की होनी चाहिए।



राष्ट्रपति बनने वाला व्यक्ति लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यताएं पूरी करता हो।



राष्ट्रपति किसी भी सदन (व्यवस्थापिका या संसद) का सदस्य नहीँ होता है।



राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रुप से एक निर्वाचक मंडल द्वारा होता है।



निर्वाचक मंडल मेँ राज्यसभा, लोकसभा और राज्यों की विधान सभा के निर्वाचित सदस्य होते हैं। नवीनतम व्यवस्था के अनुसार पुदुचेरी तथा दिल्ली विभानसभा के निर्वाचित सदस्योँ को भी इस निर्वाचक मंडल मेँ सम्मिलित किया गया है।



राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए 50 सदस्य प्रस्तावक तथा 50 सदस्य अनुमोदक होंगे।



राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के अनुसार होता है।



राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। वह पुनर्निर्वाचन का पात्र भी है तथा 5 वर्ष से पूर्व महाभियोग लगाकर ही उसे पद से हटाया जा सकता है। वह अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को देकर स्वयं पद से हट सकता है।



राष्ट्रपति को पद की शपथ भारत का मुख्य न्यायधीश दिलाता है और उसकी अनुपस्थिति मेँ सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम् न्यायाधीश।



महाभियोग संसद के किसी भी सदन द्वारा लाया जा सकता है। यह एक सदन द्वारा लगाया जाता है तथा दूसरा सदन उसका अन्वेषण करता है।



महाभियोग संविधान के उल्लंघन के सम्बन्ध में लगाया जाता है तथा इसके लिए 14 दिन पूर्व लिखित सूचना देकर इस आशय का संकल्प पारित कराया जाता है।



राष्ट्रपति को महाभियोग के अन्वेषण के समय अव्यं उपस्थित होने तथा अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार है।



महाभियोग की प्रक्रिया अर्द्ध न्यायिक होती है।



अन्य किसी कारण से, यथा-राष्ट्रपति की मृत्यु आदि से स्थायी रुप से राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाता है, तो उपराष्ट्रपति तुरंत राष्ट्रपति पद पर कार्य करना प्रारंभ कर देगा, तथा नए राष्ट्रपति द्वारा पद धारण करने पक कार्य करता रहेगा।



यदि किसी कारणवश चुनाव मेँ विलंब हो जाए तो पदासीन राष्ट्रपति पद पर बना रहता है जब तक की नया राष्ट्रपति पद ग्रहण ना कर ले, उल्लेखनीय है कि इस समय उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रुप मेँ कार्य नहीँ करता। राष्ट्रपति का निर्वाचन पद रिक्त होने की अवधि के भीतर हो जाना चाहिए।



राष्ट्रपति का बीमारी या अन्य किसी कारण से राष्ट्रपति पद पर हुई अस्थाई रिक्ति के समय उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रुप मेँ कार्य करता है।



डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वह लगातार दो बार राष्ट्रपति निर्वाचित हुए।



डॉ. एस. राधाकृष्णन लगातार दो बार उपराष्ट्रपति तथा एक बार राष्ट्रपति रहे।



केवल वी. वी. गिरी के निर्वाचन के समय दूसरे चक्र की मतगणना करनी पड़ी। अभी तक दूसरे चक्र की गणना से गिरी ही राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे।



श्री वी.वी. गिरी ही ऐसे राष्ट्रपति निर्वाचित हुए जिन्होंने ने निर्दलीय उम्मीदवार के रुप मेँ चुनाव मेँ सफलता प्राप्त की।



केवल नीलम संजीव रेड्डी ऐसे राष्ट्रपति हुए जो एक बार चुनाव मेँ पराजित हुआ तथा बाद मेँ निर्विरोध निर्वाचित हुए।



डॉ. राजेंद्र प्रसाद, फखरुद्दीन अली अहमद, नीलम संजीव रेड्डी, ज्ञानी जैल सिंह, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, प्रतिभा पाटिल और प्रणव मुखर्जी को छोड़कर अन्य सभी राष्ट्रपति पूर्व मेँ उपराष्ट्रपति के पद पर रहे हैं।





राष्ट्रपति की प्रशासनिक शक्तियां

भारत सरकार की सभी कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति के नाम से किया जाता है।



राष्ट्रपति वास्तविक कार्यपालिका नहीँ है, अपितु वह संवैधानिक प्रधान है।



42वेँ संविधान संशोधन अधिनियम ने राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य कर दिया है।



44वें संविधान संशोधन द्वारा राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह को केवल एक बार पुनर्विचार के लिए प्रेषित करने का अधिकार दिया गया है। यदि मंत्रिपरिषद अपने विचार पर टिकी रहती है, तो राष्ट्रपति उसकी सलाह मानने के लिए बाध्य होगा।



राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की नियुक्ति करता है और प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियोँ की भी नियुक्ति करता है।



राष्ट्रपति भारत के महान्यायवादी की नियुक्ति करता है तथा वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत उत्तरदायी होता है।



इसके अलावा राष्ट्रपति, नियंत्रक महालेखा परीक्षक, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, राज्योँ के राज्यपाल, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, संघ लोक सेवा आयोग तथा राज्योँ के संयुक्त लोक सेवा आयोग, वित्त आयोग, निर्वाचन आयोग के सदस्य तथा मुख्य निर्वाचन आयुक्त, विभिन्न अन्य आयोग-राजभाषा आयोग, अल्पसंख्यक तथा पिछड़ा वर्ग आयोग और अनुसूचित क्षेत्रोँ के लिए आयोग आदि।



राष्ट्रपति संघीय प्रशासन से संबंधित किसी भी प्रकार की सूचना प्रधानमंत्री से प्राप्त कर सकता है।



इसके अलावा राष्ट्रपति प्रत्यक्ष रुप से संघीय राज्योँ का प्रशासन उप-राज्यपाल अथवा आयुक्त के माध्यम से देखता है।



राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां



राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है (अनुच्छेद 79)।



राष्ट्रपति संसद के दोनो सदनों को आहूत करने, सत्रावसान करने और लोकसभा का विघटन करने की शक्ति रखता है।



राष्ट्रपति लोकसभा के प्रति एक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के प्रारंभ मेँ तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ मेँ एक साथ संसद के दोनो सदनोँ मेँ प्रारंभिक अभिभाषण करता है।



राष्ट्रपति को संसद मेँ विधायी-विषयों के संबंध मेँ संदेश भेजने का अधिकार है।



लोकसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के पद खाली होने की स्थिति मेँ राष्ट्रपति उस पद के लिए लोकसभा के किसी भी सदस्य को नियुक्त कर सकता है और यही कार्य राज्यसभा मेँ सभापति तथा उपसभापति की अनुपस्थिति मेँ भी करता है।



राष्ट्रपति को लोकसभा मेँ एंग्लो इंडियन समुदाय के दो व्यक्ति तथा राज्य सभा मेँ 12 सदस्य मनोनीत करने का अधिकार है।



संसद द्वारा वांछित कोई भी विधेयक तभी कानून बनता है, जब उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाते हैं।



राष्ट्रपति वार्षिक वित्तीय वितरण, नियंत्रक महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन, वित्त आयोग की सिफारिश तथा अन्य आयोग की रिपोर्ट संसद मेँ प्रस्तुत करवाता है।



कुछ विषयों से संबंधित विधेयक संसद मेँ प्रस्तुत करवाने से पूर्व राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक होती है, जैसे-राज्योँ की सीमा परिवर्तन और धन विधेयक।



राष्ट्रपति किसी भी विधेयक को अनुमति दे सकता है। उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है, तथा उस पर अपनी अनुमति रोक सकता है। लेकिन धन विधेयक पर राष्ट्रपति को अनिवार्य रुप से अनुमति देनी होती है तथा उसे पुनर्विचार के लिए वापस नहीँ भेज सकता है। संविधान संशोधन विधेयक के लिए भी इसी प्रकार का प्रावधान है।



यदि राष्ट्रपति द्वारा संसद को पुनर्विचार के लिए वापस किया गया विधेयक पुनः विचार करने के पश्चात राष्ट्रपति की अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो इस पर वह अनिवार्य रुप से अनुमति देगा।



संविधान मेँ राष्ट्रपति को किसी विधायक को अनुमति देने या अनुमति न देने के संबंध मेँ कोई समय सीमा निर्धारित नहीँ की गई है।



राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर अनुमति देने या न देने के निर्णय लेने की समय सीमा का अभाव होने के कारण राष्ट्रपति वीटो का प्रयोग कर सकता है।



राष्ट्रपति जब संसद का सत्र न चल रहा हो तथा किसी विषय पर तुरंत विधान बनाने की आवश्यकता हो तो वह अध्यादेश द्वारा विधान बना सकता है।



राष्ट्रपति द्वारा बनाये गए अध्यादेश संसद के विधान की तरह होते हैं, लेकिन अध्यादेश अस्थायी होते हैं।



राष्ट्रपति अध्यादेश अपनी मंत्रिपरिषद की सलाह से जारी करता है।



संसद का अधिवेशन होने पर अध्यादेश संसद के समक्ष रखा जाना चाहिए, यदि संसद उस अध्यादेश को अधिवेशन प्रारंभ होने की तिथि से 6 सप्ताह के भीतर पारित नहीँ कर देती तो वह स्वयं ही निष्प्रभावी हो जाएगा।



44वेँ संविधान संशोधन, 1978 द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि, राष्ट्रपति के अध्यादेश निकालने की परिस्थितियोँ को असदभावनापूर्ण होने का संदेह होने पर न्यायालय मेँ चुनौती दी जा सकती है।



राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां



राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश तथा अन्य न्यायाधीशों की और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करता है।



राष्ट्रपति किसी सार्वजनिक महत्व के विषय पर उच्चतम न्यायालय से अनुच्छेद 143 के अधीन परामर्श ले सकता है। लेकिन वह परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीँ है।



राष्ट्रपति किसी सैनिक न्यायालय द्वारा दिए गए दंड को, कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत दिए गए दंड को को, तथा अपराधी को मृत्युदंड दिए जाने की स्थिति मेँ क्षमादान दे सकता है। दंड को कम कर सकता है। दंड की प्रकृति को परिवर्तित कर सकता है। दंड को निलंबित कर सकता है।



राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां



राष्ट्रपति तीनो सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है, वह तीनों सेनाओं के सेनाध्यक्षों की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति को युद्ध या शांति की घोषणा करने तथा रक्षा बलों को अभिनियोजित करने का अधिकार है। लेकिन राष्ट्रपति के अधिकार संसद द्वारा नियंत्रित हैं।



राष्ट्रपति 3 परिस्थितियो में आपात लागू कर सकता है:



युद्ध वाह्य आक्रमण या विद्रोह से यदि भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा संकट मेँ हो (अनुच्छेद 352)।



किसी राज्य मेँ संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने, केंद्र की आज्ञा का अनुपालन न करने, अथवा संविधान के अनुबंधों का पालन न करने की स्थिति मेँ (अनुच्छेद 356) आपातकाल की घोषणा कर सकता है। विधानमंडल की शक्तियां संसद को सौंप दी जाती हैं।



भारत मेँ वित्तीय संकट उत्पन्न होने पर राष्ट्रपति वित्तीय आपात की उद्घोषणा (अनुच्छेद 360) कर सकता है। जिसके अंतर्गत राज्योँ के व्यय को नियंत्रित करके और लोक सेवकों के वेतन घटाकर तथा अन्य उपाय करके वित्तीय स्थायित्व प्रदान करने का प्रयास करता है।



उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति का निर्वाचन

लोकसभा तथा राज्यसभा के सभी सदस्योँ (मनोनीत सदस्य सहित) वाले निर्वाचक मंडल द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा उपराष्ट्रपति का निर्वाचन होता है।



पदच्युति



राज्यसभा के ‘वास्तविक बहुमत’ द्वारा पारित तथा लोकसभा की सहमति द्वारा प्राप्त संकल्प द्वारा उपराष्ट्रपति को पदच्युत किया जा सकता है।



वास्तविक बहुमत



यह सदन के सदस्योँ की वास्तविक संख्या के 50 % से अधिक होता है (रिक्तियों की गणना नहीँ की जाती है), दूसरे शब्दोँ मेँ, सदन के सदस्यों की कुल संख्या मेँ से रिक्तियोँ की संख्या को घटाकर सदन के सदस्यों की वास्तविक संख्या प्राप्त की जाति है।



राज्यसभा जहाँ सदस्योँ की कुल संख्या 245 है, के परिप्रेक्ष्य मेँ यदि 15 स्थान रिक्त हैं, तो वास्तविक सदस्य संख्या 230 होगी तथा उसके 50 % से अधिक अर्थात 116 या उससे ऊपर की संख्या को वास्तविक बहुमत कहा जाएगा।



भारत के उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए इस आशय के संकल्प को वास्तविक बहुमत द्वारा पारित किया जाना आवश्यक है।



विशेष परिस्थितियोँ मेँ उपराष्ट्रपति के कर्तव्य



अनुच्छेद 65 के अनुसार राष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पदच्युति या अन्य किसी कारण से उसका पद रिक्त हो जाने की स्थिति मेँ न राष्ट्रपति के निर्वाचन होने की तिथि तक उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रुप मेँ कार्य करेगा।



अपनी अनुपस्थिति, रुग्णता या अन्य किसी कारण से जब राष्ट्रपति अपने कृत्योँ का निर्वाह करने मेँ समर्थ नहीँ होता है, तब उपराष्ट्रपति उसके कृत्योँ को संपन्न करेगा जब तक की राष्ट्रपति पुनः अपना कार्य प्रारंभ नहीँ कर देता।



जब तक उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रुप मेँ कार्य करता या या राष्ट्रपति के कृत्योँ का निर्वाह करता है, तब वह राष्ट्रपति की समस्त शक्तियोँ का प्रयोग करेंगा और राष्ट्रपति के वेतन व भत्तों को प्राप्त करेगा।



उपराष्ट्रपति होने की अर्हता



भारत का नागरिक हो।



उसने 35 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो।



वह राज्य सभा के सदस्य के रुप मेँ निर्वाचित होने के योग्य हो।



सरकार के तहत किसी लाभ के पद को धारण करने वाला व्यक्ति उपराष्ट्रपति के रुप मेँ निर्वाचित होने के योग्य नहीँ होगा।



राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल या केंद्र अथवा किसी राज्य के मंत्री का पद लाभ का पद नहीँ माना जाएगा।



उपराष्ट्रपति पद की कार्यविधि (अनुच्छेद 67)

उपराष्ट्रपति 5 वर्षोँ की कार्यविधि के लिए निर्वाचित होता है, अथवा अपने उत्तराधिकारी के पद धारण करने तक पदासीन रहता है।



उपराष्ट्रपति स्व-हस्तलिखित तथा राष्ट्रपति को संबोधित त्यागपत्र द्वारा अपना पद छोड़ सकता है।



कैबिनेट मंत्री

ऐसे मंत्री को मंत्रिमंडल की प्रत्येक बैठक मेँ उपस्थित होने तथा भाग लेने का अधिकार है (अनुच्छेद 352) के अधीन आपात की उद्घोषणा लिए सलाह प्रधानमंत्री और अन्य कैबिनेट मंत्री मिल कर देंगे।



राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)

यह किसी कैबिनेट मंत्री के अधीन काम नहीँ करता।



राज्य मंत्री

इसके पास किसी विभाग का स्वतंत्र प्रभार नहीँ होता और यह मंत्री के अधीन कार्य करता है। ऐसे मंत्री को उसका कैबिनेट मंत्री कार्य आवंटित करता है।



उपमंत्री



ऐसा मंत्री कैबिनेट मंत्री या स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री के अधीन कार्य करता है। जिस मंत्री के अधीन वह कार्य करता है वही उसे कार्य आवंटित करता है। प्रधानमंत्री कैबिनेट मंत्रियोँ को और स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री को विभाग आवंटित करता है। अन्य मंत्रियोँ को कार्य का आवंटन उनके कैबिनेट मंत्री करते हैं।



राज्यसभा के तत्कालीन सभी सदस्योँ के बहुमत द्वारा पारित तथा लोक सभा द्वारा सहमत संकल्प (resolution) द्वारा उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाया जा सकता है। किसी औपचारिक महाभियोग की आवश्यकता नहीँ है। परन्तु इस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की सूचना कम से कम 14 दिन पहले देनी होगी।



यदि उपराष्ट्रपति भी राष्ट्रपति के रुप मेँ कार्य करने मेँ असमर्थ हो तो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायधीश और यदि वह भी अनुपस्थित हो तो उच्चतम न्यायालय का अन्य वरिष्ठ न्यायधीश राष्ट्रपति के पद पर कार्य करता है।



उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक होना आवश्यक नहीँ है।



उपराष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार राज्यसभा के सदस्य के रुप मेँ निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।



उपराष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीँ होता है।



उपराष्ट्रपति पद पर कोई भी व्यक्ति कितनी बार निर्वाचित हो सकता है, इसकी कोई सीमा नहीँ है।



उपराष्ट्रपति 5 वर्ष से पूर्व स्वयं त्यागपत्र राष्ट्रपति को देकर पद से हट सकता है।



उपराष्ट्रपति को 5 वर्ष पूर्व संविधान के उल्लंघन के आरोप मेँ हटाया जा सकता है।



उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। उसकी अनुपस्थिति मेँ राज्यसभा का उपसभापति सभापति के रुप मेँ कार्य करता है।



उपराष्ट्रपति जब राज्यसभा के सभापति के रुप मेँ कार्य करता है। तो उसे राज्य सभा के सभापति का वेतन तथा जब वह राष्ट्रपति के रुप मेँ कार्य करता है तो राष्ट्रपति को मिलने वाले वेतन एवं अन्य उपलब्धियो को प्राप्त करता है।



उपराष्ट्रपति एक समय मेँ एक ही कार्य कर सकता है अर्थात यदि वह राष्ट्रपति के रुप मेँ कार्य कर रहा है तो राज्य सभा के सभापति के रुप मेँ कार्य नहीँ कर सकता, तब राज्य सभा का उपसभापति सभापति के रुप मेँ कार्य करेगा।



राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित संदेह और विवाद का निर्धारण उच्चतम न्यायालय करेगा।



राष्ट्रपति के त्यागपत्र की सूचना उपराष्ट्रपति लोकसभा अध्यक्ष को देगा।



संसद मेँ संशोधन विधेयक पारित कर के उपराष्ट्रपति का राज्य सभा के सभापति के रुप मेँ मिलने वाला वेतन 1,50,000 रुपए कर दिया है।



भारत के महान्यायवादी



अनुच्छेद 76 के कथानुसार, राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने की योग्यता रखने वाले किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त करेगा।



वह भारत सरकार का प्रथम विधि अधिकारी होगा।



यह परंपरा है कि सरकार परिवर्तित होने पर महान्यायवादी त्यागपत्र दे देता है तथा नई सरकार अपनी रुचि के अनुसार किसी व्यक्ति को महान्यायवादी नियुक्त करती है।



वह विधि संबंधी किसी भी विषय पर भारत सरकार को परामर्श देता है। वह भारत के राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गए किसी भी विधि संबंधी कार्य को पूरा करता है। वह संविधान या राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किए गए किसी भी कार्य को संपन्न न करता है।



अपने कर्तव्यों के निर्वाह में वह भारतीय क्षेत्र के सभी न्यायालयों मेँ श्रोता होने का अधिकारी होगा।



जिन वादों मेँ भारत सरकार को परामर्श देने के लिए उसे बुलाया जाता है, उसमेँ वह भारत सरकार के विरुद्ध न तो कोई परामर्श देगा और न ही कोई विवरण देगा। न ही वह भारत सरकार की अनुमति के बिना अपराधिक मामलोँ के किसी अभियुक्त का बचाव करेगा।



वह किसी कंपनी के निदेशक के रुप मेँ नियुक्त नहीँ हो सकता।



महान्यायवादी न्यायालय के समक्ष केंद्र व राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है। परंतु उसे निजी तौर पर (कानून संबंधी) पेशा करने का अधिकार है, बशर्ते कि किसी वाद का एक पक्ष स्वयं राज्य न हो।



भारत के महान्यायवादी नियुक्त होने के लिए एक व्यक्ति के पास वही अहर्ताएं होनी चाहिए जो उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश के रुप मेँ नियुक्ति के लिए अपेक्षित होती हैं। चूँकि यह एक राजनीतिक नियुक्ति है, अतः प्रजा द्वारा सरकार बदलने पर महान्यायवादी का पद त्याग करना बाध्य है।



महान्यायवादी को उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश के बराबर प्रतिधारण शुल्क दिया जाता है और वह विधि व्यवसाय के लिए स्वतंत्र है, बशर्ते की वह राज्य के विरुद्ध न खड़ा हो।



अपने कार्योँ का पालन करने के लिए उसे देश के किसी भी न्यायालय मेँ सुनवाई का अधिकार है।



संसद के किसी भी सदन मेँ या उसकी समिति की बैठक मेँ भाग लेने का अधिकार है।



दो सॉलिसिटर जनरल और 4 एडिशनल सॉलिसिटर जनरल प्रदान किए जाते हैं।





मंत्रिपरिषद



मंत्रिपरिषद के सभी सदस्य मंत्रिमंडल के सदस्य नहीँ होते हैं।



संविधान के अनुच्छेद 74 मेँ उपबंध है कि राष्ट्रपति को उसके कृत्यों का निर्वाह करने मेँ सहायता एवं सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रधान प्रधान मंत्री होगा और राष्ट्रपति उसी की सलाह पर कार्य करेगा।



मंत्री किसी भी सदन राज्यसभा अथवा लोक सभा के सदस्योँ में से चुना जाता है।



मंत्री दोनो सदनो लोक सभा तथा राज्य सभा मेँ बोल सकता है तथा कार्यवाही मेँ भी भाग ले सकता है, लेकिन वह उस सदन में मतदान मेँ भाग नहीँ ले सकता है जिसका वह सदस्य नहीँ होता है, अर्थात् वह केवल उसी सदन मेँ मत दे सकता है जिसका वह सदस्य होता है।



मंत्रिपरिषद मेँ तीन प्रकार के मंत्री होते हैं:



1-मंत्रिमंडल स्तर के मंत्री या मंत्रिमंडल के सदस्य



2-राज्य मंत्री



3-उपमंत्री



संविधान मेँ केवल मंत्रिपरिषद का उल्लेख किया गया है। मंत्रिमंडल शब्द 44वेँ संवैधानिक संशोधन द्वारा 1978 द्वारा अस्तित्व मेँ आया।



मंत्रिमंडल, मंत्रिपरिषद का एक लघु अंश है।



कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करता है।



किसी ऐसे व्यक्ति को जो संसद का सदस्य नहीँ है। मंत्री नियुक्त किया जा सकता है लेकिन उसे 6 मास के अंदर संसद के किसी सदन की सदस्यता ग्रहण कर लेनी चाहिए अन्यथा वह मंत्री नहीँ रहेगा।



मंत्रिपरिषद, लोकसभा के प्रति सामूहिक रुप से उत्तरदायी होती है, इसका अर्थ यह है कि सभी मंत्री एक साथ केवल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी हैं। राज्यसभा के प्रति नहीँ, उत्तरदायित्व का तात्पर्य यह है कि यदि लोकसभा मेँ किसी भी एक मंत्री के प्रति अविश्वास प्रस्ताव पारित होता है तो पूरी मंत्रीपरिषद को त्याग पत्र देना पड़ता है।



मंत्री राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद धारण करते हैं, अर्थात प्रत्येक मंत्री का राष्ट्रपति के प्रति व्यक्तिगत उत्तरदायित्व भी होता है। इसका तात्पर्य यह है कि लोकसभा मेँ मंत्री को विश्वास प्राप्त होते हुए भी उसे राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री की सलाह पर पद से हटा सकता है, यह अधिकार वास्तव मेँ प्रधानमंत्री को ही प्राप्त होता है कि किसे मंत्री रखे या किसे मंत्री पद से मुक्त करे, राष्ट्रपति मात्र संवैधानिक औपचारिकता पूरी करता है।



ऐसा व्यक्ति भी मंत्री नियुक्त किया जा सकता है जो किसी सदन का सदस्य नहीँ है किंतु उसे 6 माह के भीतर संसद के किसी सदन का सदस्य बनना होगा। मंत्रिपरिषद सामूहिक रुप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है-अनुच्छेद 75 (3)।



अनुच्छेद-78 के अंतर्गत प्रधानमंत्री का कर्तव्य है कि वह मंत्रिपरिषद के सभी विनिश्चय राष्ट्रपति को संसूचित करे और जो जानकारी राष्ट्रपति मांगे, वह दे। इस प्रकार प्रधानमंत्री राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद को जोड़ने वाली कड़ी होता है।



यदि राष्ट्रपति यह चाहता है की किसी बात परर मंत्रिपरिषद विचार करे तो वह प्रधानमंत्री को सूचना देगा।



प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति लोकसभा भंग कर सकता है किंतु मंत्रिपरिषद को यदि लोकसभा का बहुमत प्राप्त न हो तो राष्ट्रपति लोकसभा भंग करने मेँ अपने विवेकाधिकार का प्रयोग कर सकता है।



प्रधानमंत्री से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

प्रथम गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई

सबसे लंबे कार्यकाल वाले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु

सबसे छोटे कार्यकाल वाले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी

एक मात्र प्रधानमंत्री, जिन्होंने लोकसभा का कभी सामना नहीँ किया चौधरी चरण सिंह

लोकसभा चुनाव मेँ पराजित होने वाली एक मात्र प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी

अविश्वास प्रस्ताव द्वारा हटाए जाने वाले एक मात्र प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह







संघ की विधायिका

(The Legislature Of The Union)





संघ की विधायिका

भारत की केन्द्रीय विधायिका का नाम संसद है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है। अनुच्छेद 79 के अनुसार भारत की विधायिका सहित दो सदन राज्य सभा एवं लोक सभा हैं।



परिचय

भारत ने संसदीय लोकतंत्र अपनाया है। वेस्टमिंस्टर (इंग्लैण्ड) के नमूने पर ढाला गया है।

भारत शासन अधिनियम 1935 ई. मेँ परिसंघ की स्थापना की और इंग्लैण्ड की संसदीय प्रणाली की नकल की।

संसद के निचले सदन को लोकसभा तथा उच्च सदन राज्यसभा कहते हैं।

लोकसभा मे जनता का प्रतिनिधित्व होता है, राज्यसभा मेँ भारत के संघ राज्योँ का प्रतिनिधित्व होता है।

राज्यसभा मेँ 250 से अधिक सदस्य नहीँ हो सकते, इसमें 238 सदस्य राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्रोँ के प्रतिनिधि एवं 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्दिष्ट किए जाते हैं।

राष्ट्रपति द्वारा नामित 12 व्यक्ति वह होते हैं, जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला, और सामाजिक सेवा के क्षेत्र मेँ विशेष ज्ञान या व्यवहारिक अनुभव हो।

राज्यसभा को कुछ विशेष शक्तियां प्राप्त है। यदि राज्यसभा संसद के राष्ट्रहित मेँ जरुरी राज्य सूची मेँ शामिल किसी मामले के संबंध मेँ कानून बनाए और दो-तिहाई बहुमत से राज्यसभा इस आशय का कोई संकल्प पारित कर देती है तो संसद समूचे भारत या उसके किसी भाग के लिए विधियां बना सकती है।

इसके अलावा यदि राज्य सभा मेँ उपस्थित और मत देने वाले सदस्योँ मेँ कम से कम दो तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा घोषित कर दें कि राष्ट्रीय हित मेँ यह करना आवश्यक या समीचीन है तो संसद विधि द्वारा संघ और राज्योँ के लिए सम्मिलित एक या अधिक भारतीय सेवाओं के सृजन के लिए उपबंध कर सकती है, (अनुच्छेद-312)।

प्रत्येक राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्योँ द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा राज्यसभा के लिए अपने प्रतिनिधियोँ का निर्वाचन किया जाता है।

भारत मेँ राज्योँ को राज्यसभा मेँ समान प्रतिनिधित्व नहीँ दिया गया है।

संघ राज्य क्षेत्रोँ के प्रतिनिधियों के द्वारा निर्वाचन की रीति संसद विधि द्वारा निश्चित करती है।

लोकसभा मेँ अधिक से अधिक 552 सदस्य हो सकते हैं। इनमेँ से राज्योँ के प्रतिनिधि 530 एवं संघ राज्य क्षेत्रोँ के प्रतिनिधि 20 से अधिक नहीँ हो सकते, दो व्यक्ति राष्ट्रपति द्वारा एंग्लो-इंडियन समुदाय मेँ से नाम निर्दिष्ट किए जा सकते हैं।

लोक सभा के सदस्योँ का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर राज्य की जनता के द्वारा किया जाता है।

लोकसभा मेँ केवल अनुसूचित जाति और जनजाति को आरक्षण प्रदान किया गया है, अन्य किसी को नहीँ।

लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष है, लेकिन इससे पूर्व भी इसका विकटन हो सकता है।

लोकसभा के लिए 25 वर्ष और राज्य सभा के लिए उम्मीदवार की उम्र 30 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।

लोकसभा नव-निर्वाचन के पश्चात् अपनी पहली बैठक मेँ जिसकी अध्यक्षता लोकसभा का वरिष्ठतम सदस्य करता है, लोकसभा के अध्यक्ष का चयन करते हैं।

किसी संसद सदस्य की योग्यता अथवा अयोग्यता से संबंधित विवाद का अंतिम विनिमय चुनाव आयोग के परामर्श से राष्ट्रपति करता है।

यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60 दिन की अवधि से अधिक समय के लिए सदन के सभी अधिवेशन से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसकी सदस्यता समाप्त कर सकता है।

संसद सदस्योँ को दिए गए विशेषाधिकारोँ के अंतर्गत किसी भी संसद सदस्य को अधिवेशन के समय या समिति, जिसका वह सदस्य की बैठक के समय अथवा अधिवेशन या बैठक के पूर्व या पश्चात 40 दिन की अवधि के दौरान गिरफ्तारी से उमुक्ति प्रदान की गई है।

संसद सदस्योँ को दी गई यह गिरफ्तारी से उन्मुक्ति केवल सिविल मामलोँ मेँ है, आपराधिक मामलोँ अथवा निवारक निरोध की विधि के अधीन गिरफ्तारी से छूट नहीँ है।

लोकसभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष संसद के जीवन काल तक अपना पद धारण करते हैं। अध्यक्ष दूसरी बार नव-निर्वाचित लोक सभा की प्रथम बैठक के पूर्व तक अपने पद पर बना रहता है।

यदि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष लोक सभा के सदस्य नहीँ रहते हैं, तो वह अपना पद त्याग करेंगे।

अध्यक्ष, उपाध्यक्ष को तथा उपाध्यक्ष, अध्यक्ष को त्यागपत्र देता है।

14 दिन की पूर्व सूचना देकर लोकसभा के तत्कालीन समस्त सदस्योँ के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को पद से हटाया जा सकता है।

अध्यक्ष निर्णायक मत देने का अधिकार है।

कोई विधेयक धन विधेयक है अथवा नहीँ इसका निश्चय लोकसभा अध्यक्ष करता है तथा उसका निश्चय अंतिम होता है।

दोनो सदनो की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।

राज्य सभा का सभापति भारत का उपराष्ट्रपति होता है तथा राज्य सभा अपना एक उपसभापति भी निर्वाचित करती है।

साधारण विधेयक तथा संविधान संशोधन विधेयक किसी भी सदन मेँ प्रारंभ किए जा सकते हैं।

धन विधेयक केवल लोकसभा मेँ ही प्रारंभ किया जा सकता है तथा धन विधेयक मेँ राज्यसभा कोई संशोधन नहीँ कर सकती।

धन विधेयक कि परिभाषा अनुच्छेद 110 में वर्णित है तथा धन विधेयक को राज्यसभा 14 दिन में अपनी सिफारिशोँ के साथ वापस कर देती है।

साधारण विधेयक को छह माह तक रोका जा सकता है तथा किसी विधेयक पर (धन विधेयक को छोड़कर) दोनो सदनोँ मेँ मतभेद हो जाने पर राष्ट्रपति दोनो सदनोँ का संयुक्त अधिवेशन आयोजित कर सकता है।

संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है, लेकिन यदि वह उपस्थित न हो तो सदन का उपाध्यक्ष, यदि वह भी अनुपस्थित हो जाए तो राज्य सभा का उपसभापति, यदि वह भी अनुपस्थित हो तो ऐसा अन्य व्यक्ति अध्यक्ष होगा जो उस बैठक मेँ उपस्थित सदस्य द्वारा निश्चित किया जाए।

लोकसभा मेँ अध्यक्ष की अनुपस्थिति मेँ उपाध्यक्ष, उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति मेँ राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए वरिष्ठ सदस्यों के पैनल मेँ कोई व्यक्ति पीठासीन होता है।

राज्यसभा मेँ सभापति की अनुपस्थिति मेँ उपसभापति तथा उपसभापति की अनुपस्थिति मेँ निर्धारित पैनल का सदस्य अध्यक्ष होता है तथा संविधान संशोधन विधेयक पारित करने के लिए दोनो सदनों की संयुक्त बैठक नहीँ होती है।

साधारण विधेयक पर दोनो सदनोँ मेँ पृथक रुप से तीन वाचन होते हैं, तो वह राष्ट्रपति के अनुमति हस्ताक्षर से अधिनियम बन जाता है।

भारत की संचित निधि पर राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, नियंत्रक महालेखा परीक्षक, लोकसभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, राष्ट्र राज्य सभा के सभापति व उप सभापति के वेतन भत्ते आदि तथा उच्चं न्यायालय के न्यायाधीशों की पेंशन भारित होती है।

संसद राज्य सूची के किसी विषय पर विधि का निर्माण कर सकती है। जब राज्यसभा मेँ उपस्थित और मत देने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्य उस विषय को राष्ट्रीय महत्व का घोषित करेँ।

राज्य सभा, सदन मेँ उपस्थिति एवं मतदान देने वाले सदस्योँ के दो-तिहाई बहुमत से यह संकल्प पारित कि संघ एवं राज्योँ के हित के लिए किसी नई अखिल भारतीय सेवा के सृजन की आवश्यकता है, तो नई अखिल भारतीय सेवा का सृजन किया जा सकता है।



विधेयकों के प्रकार



सामानय विधेयक

धन विधेयक, वित्त और संविधान संशोधन विधेयक से भिन्न अन्य कोई विधेयक।

किसी भी सदन मेँ पुरःस्थापित किया जा सकता है।

अनुच्छेद-3 के अंदर लाए गए विधेयक के अलावा, ऐसे विधेयक की पुरःस्थापना के लिए राष्ट्रपति की अग्रिम सिफारिश की जरुरत नहीँ होती है।

दोनो सदनोँ के पास समान शक्तियां हैं।

साधारण बहुमत द्वारा पारित किया जाता है।

गतिरोध की स्थिति मेँ दोनो सदनो की संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है।

विधेयक पारित होने के बाद जब राष्ट्रपति के पास उसकी अनुमति के लिए भेजा जाता है, तो वह विधेयक पर पुनर्विचार करने के लिए उसे संसद को वापस भेज सकता है।



धन विधेयक

एसा विधेयक जिसमें केवल अनुच्छेद 110 मेँ दिए हुए एक या अधिक विषयों से संबंधित उपबंध होता है।

किसी कर का अधिरोपण, उत्पादन, परिवर्तन या विनियमन।

भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने का विनियमन।

भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा (ऐसी किसी निधि मेँ धन जमा करना या उसमेँ से धन निकालना)।

भारत की संचित निधि मेँ से धन का विनियोग।

किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारत व्यय घोषित करना या ऐसे व्यय की रकम को बढ़ाना।

भारत की संचित निधि या भारत के लोक लेखों से धन प्राप्त करना।

उपरोक्त किसी विषय का आनुषंगिक कोई विषय।

केवल लोकसभा मेँ पुरःस्थापित किया जा सकता है।

इसकी पुरःस्थापना के लिए राष्ट्रपति की अग्रिम सिफारिश जरुरी है।

लोकसभा के पास विशेष शक्ति है। लोकसभा द्वारा पारित होने के बाद विधेयक राज्यसभा को जाता है। राज्यसभा पारित कर देती है, तो विधेयक पारित हो जाता है।

राज्यसभा अस्वीकार कर लेती है, तब विधेयक दोनो सदनो द्वारा पारित मान लिया जाता है।

राज्य सभा 14 दिनोँ तक कोई कार्यवाही नहीँ करती तो विधेयक दोनो सदनों द्वारा पारित मान लिया जाता है।

राज्यसभा संशोधन सुझाती है- विधेयक लोकसभा मेँ वापस आता है। लोकसभा, संशोधन स्वीकार करे या अस्वीकार, विधेयक पारित हो जाता है।

अतः यहाँ गतिरोध पैदा होने की कोई संभावना नहीँ है और इसलिए संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीँ है।

साधारण बहुमत द्वारा पारित किया जाता है। संसद द्वारा पारित होने के बाद जब विधेयक राष्ट्रपति के पास अनुमति के लिए जाता है, तो वह इसे संसद के पास पुनर्विचार के लिए वापस नहीँ भेज सकता है।



वित्त विधेयक

अनुच्छेद 110 मेँ विनिर्दिष्ट मेँ से एक या अधिक विषयों के साथ-साथ अन्य विषयों से संबंधित उपबंध भी होते हैं।

केवल लोकसभा मेँ ही पुरःस्थापित किया जा सकता है।

विधेयक को पुरःस्थापित करने के लिए राष्ट्रपति की अग्रिम सिफारिश जरुरी है।

अन्य बातेँ वही हैं, जो सामान्य विधेयक के लिए हैं।

धन विधेयक वित्त विधेयक

अनुच्छेद 110 से सम्बद्ध श्रेणी क श्रेणी ख

केवल राष्ट्रपति की सिफारिश पर पेश किया जा सकता है धन विधेयक के समान इसे केवल लोक सभा में पेश किया जा सकता है। अन्य बैटन के साथ-साथ भारत की संचित निधि से व्यय का एक या अधिक प्रस्ताव हो लेकिन इसमें अनुच्छेद 110 का विषय भी शामिल न हो

केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है। राष्ट्रपति की सिफारिश पर ही पेश किया जा सकता है। दोनों सदनों में से किसी सदन में पेश किया जा सकता है।

राज्य सभा को अनुमति रोकने का अधिकार नहीं है। धन विधेयक न होने के कारण राज्यसभा स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है, एवं संशोधन साधारण विधेयक के समान कर सकती है। साधारण विधेयक में राज्य सभा को शक्ति प्राप्त है।

राष्ट्रपति पुनर्विचार नहीं कर सकता है। गतिरोध होने पर संयुक्त बैठक पेश करने के लिए राष्ट्रपति की सिफरिश आवश्यक नहीं है

अगर यह प्रश्न उठता है कि, यह धन विधेयक है या नहीं, इसका फैसला लोक सभा अध्यक्ष के द्वारा किया जाता है कुछ वित्त विधेयक धन विधेयक हो सकते है, जिसमें अनुच्छेद 110 के साथ अन्य मामला भी हो लेकिन उसको अध्यक्ष प्रमाणित करे। परन्तु इस पर विचार करने के लिए सिफारिश आवश्यक है। लेकिन धन विधेयक प्रस्तुत करने से पूर्व श्रेणी ख को पेश करने के पूर्व सिफारिश आवश्यक होती है।

कोई भी सदन विधेयक को पास नहीं कर सकता जब तक राष्ट्रपति की सिफारिश न प्राप्त हो

गतिरोध पर संयुक्त बैठक





संसद के दोनो सदनों की संयुक्त बैठक

संयुक्त बैठक राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित उद्देश्योँ के लिए बुलाई जाती है।

प्रत्येक वर्ष संसद के पहले सत्र मेँ सयुंक्त अभिभाषण देने के लिए, सामान्य चुनाव के तुरंत बाद दोनों सदनोँ मेँ संयुक्त अभिभाषण के लिए और अन्य किसी समय, किसी महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा के लिए जब राष्ट्रपति संसद के दोनो सदनो में संयुक्त अभिभाषण देते हैं, तो वास्तव मेँ वो भारत सरकार की नीतियोँ का विवरण प्रस्तुत करते हैं। राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद दोनों सदन अलग-अलग मिलती हैं और राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा करते हैं। इसके बाद राष्ट्रपति के अभिभाषण पर एक धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया जाता है और लोकसभा मेँ इस पर मत कराया जाता है।

इस प्रस्ताव की हार का मतलब सरकार की निंदा करने के बराबर होता है और सरकार को बचाने के लिए लोकसभा मेँ शीघ्र विश्वासमत प्राप्त करना जरुरी होता है।



अध्यादेश की उद्घोषणा

राष्ट्रपति द्वारा उद्घोषित अध्यादेश का वही प्रभाव है, जो संसद द्वारा निर्मित विधि का है।

अध्यादेश तभी उद्घोषित किया जा सकता है, जब संसद का या एक या दोनों सदन सत्र में नहीं है।

संसद के पुनः समवेत होने से 6 सप्ताह (यह अवधि जो सदन बाद मेँ आहूत होती है, तबसे गिनी जाएगी) के अंदर अध्यादेश को दोनो सदनोँ के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए, अन्यथा यह समाप्त हो जाएगा।



भारत की संचित निधि

यह ऐसी निधि है, जिसमेँ भारत सरकार द्वारा प्राप्त सभी राजस्व, सभी आय तथा भारत सरकार द्वारा लिए गए सभी उधार जमा किए जाते हैं।

भारत की संचित निधि मेँ कोई धन जमा करने के लिए या उसमेँ से कोई धन निकालने के लिए संसद के अनुमोदन की जरुरत होती है।



भारत का लोक लेखा

राजस्व उधार और आय के अलावा भारत सरकार द्वारा प्राप्त अन्य सभी धन एक लेखे मेँ जमा किया जाता है, जिसे भारत का लोक लेखा कहा जाता है। उदाहरणार्थ-भविष्य निधि, पेंशन निधि इत्यादि।

यह निधि कार्यपालिका की व्ययाधीन है।



भारत की आकस्मिकता निधि

अनुच्छेद 267, आकस्मिक या अनवेक्षित परिस्थितियो से निपटने के लिए. संसद को विधि द्वारा. भारत की आकस्मिकता निधि सृजित करने की शक्ति देता है।

संसद ने यह निधि 1951 मेँ गठित की।

यह निधि कार्यपालिका के व्ययाधीन है, परंतु इसकी भरपाई संसद के अनुमोदन के बाद ही हो सकती है।

भारत की संचित निधि भारत की आकस्मिता निधि

संविधान द्वारा सृजित (निर्मित) संसद द्वारा विधि द्वारा सृजित

इस निधि की कोई उपरी सीमा नहीं है इसकी उपरी सीमा है|

इस निधि में धन जमा करने के लिए या धन निकालने के लिए संसद के अनुमोदन की जरुरत पड़ती है कार्यपालिका के व्ययाधीन है। परन्तु इसकी भरपाई के लिए संसद के अनुमोदन की जरुरत होती है।



भारत की संचित निधि पर भारित व्यय (अनुच्छेद 112)

यह व्यय संसद के मत के अधीन नहीँ है। यहां कुछ उच्च पदों की स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए किया गया है। ये हैं-

राष्ट्रपति के वेतन और भत्ते तथा उसके पद से संबंधित अन्य व्यय।

राज्य सभा के सभापति और उपसभापति के तथा लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते।

भारत सरकार के ऋण और उस पर ब्याज।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की केवल पेंशन भारत की संचित निधि से, वेतन भत्ते राज्य निधि से।

भारत के नियंत्रक महा-लेखापरीक्षक के वेतन, भत्ते और पेंशन।

किसी न्यायालय या मध्यस्थ अधिकरण के निर्णय, डिक्री या पंचाट की तुष्टि के लिए अपेक्षित राशियां।

कोई अन्य व्यय जो इस संविधान द्वारा या संसद द्वारा, विधि द्वारा, इस प्रकार भारित घोषित किया गया है।

कार्यपालिका पर संसद का वित्तीय नियंत्रण

संसद द्वारा पारित विधि के प्राधिकार के बिना कार्यपालिका द्वारा कोई कर अधिरोपित या संगृहीत नहीँ किया जा सकता है।

संसद की मंजूरी के बिना भारत की संचित निधि में न ही कोई धन जमा किया जा सकता है, न ही उसमेँ से कोई धन निकाला जा सकता है।

संविधान के तहत प्रत्येक वर्ष वार्षिक विवरण (अर्थात बजट) संसद के समक्ष प्रस्तुत करना राष्ट्रपति (अर्थात कार्यपालिका) का कर्तव्य है। संसद मेँ इस बजट भाषण पर चर्चा एवं मतदान होता है।

बजट अगले वित्तीय वर्ष का वार्षिक वित्तीय विवरण है। बजट को दो भागोँ मेँ प्रस्तुत किया जाता है-

राजस्व भाग - इसमेँ कर प्रस्ताव एवं भारत सरकार द्वारा लिए जाने वाले ऋण का ब्यौरा होता है।

व्यय भाग - संसद मेँ बजट प्रस्तुत होने के बाद, राजस्व भाग को एक विधेयक का रुप दिया जाता है, जो वित्त विधेयक कहलाता है और व्यय भाग को अलग विधेयक का रूप दिया जाता है, जो विनियोग विधेयक कहलाता है। ये दोनो विधेयक धन विधेयक हैं और उसी के अनुरुप पारित किए जाते हैं।

वित्त विधेयक, पारित हो जाने के बाद वित्त अधिनियम हो जाता है।

विनियोग विधेयक, पारित हो जाने के बाद विनियोग अधिनियम हो जाता है और यह भारत सरकार को भारत की संचित निधि से उतना धन निकालने के लिए प्राधिकृत करता है।

विनियोग विधेयक

विनियोग विधेयक मेँ व्यय की दो मदें होती हैं-

विभिन्न मंत्रालयोँ के अनुदान की मांग

भारत की संचित निधि पर भारित व्यय

यदि विनियोग विधेयक नामंजूर हो जाता है तो भी सरकार, भारत की संचित निधि पर भारित व्यय को खर्च कर सकती है।

संसद मेँ विभिन्न प्रकार के प्रस्ताव

अविश्वास प्रस्ताव

लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन संबंधी नियमों मेँ इसका प्रावधान है और इसे केवल लोकसभा मेँ ही पुरः स्थापित किया जा सकता है।

इसकी पुरःस्थापना के लिए इसे लोकसभा मेँ कम से कम 50 सदस्योँ का समर्थन प्राप्त होना चाहिए।

एक बार गृहित हो जाने पर इसको लोकसभा की सभी मौजूदा कार्रवाई के ऊपर वरीयता दी जाती है।

इसे विरोधी दल द्वारा सरकार मेँ अविश्वास व्यक्त करने के लिए लाया जाता है।

अविश्वास प्रस्ताव के तहत सरकार की किसी भी नीति, किसी भी भूल या कार्य पर चर्चा हो सकती है।

लोक सभा द्वारा इस प्रस्ताव के पारित हो जाने पर मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना जरुरी होता है।

विश्वास प्रस्ताव - इसका प्रावधान न ही संविधान मेँ है और न ही लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन संबंधी नियमों में है। इसकी उत्पत्ति भारत की संसदीय प्रथा में स्वतः हुई है।

यह अविश्वास प्रस्ताव की तरह ही है, सिर्फ यह छोडकर कि, प्रस्ताव सरकार द्वारा लोकसभा का विश्वास प्राप्त करने के लिए पेश किया जाता है।

निंदा प्रस्ताव - इसका प्रावधान लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन संबंधी नियमो मेँ है।

सरकार को किसी विशिष्ट नीति या कार्य के निरानुमोदन के लिए विपक्ष द्वारा इसे लोक सभा मेँ पुरः स्थापित किया जा सकता है। इस प्रस्ताव मेँ केवल उस विशिष्ट नीति या कार्य पर ही चर्चा होती है।

लोकसभा द्वारा पारित हो जाने का मतलब सरकार की निंदा करना होता है और सरकार को तुरंत एक विश्वास प्रस्ताव लाकर सदन का विश्वास मत प्राप्त करना जरुरी होता है।

संरचनात्मक अविश्वास प्रस्ताव - यह दो प्रस्तावों से मिलकर बना होता है, एक जो सरकार मेँ अविश्वास व्यक्त करता है और दूसरा जो विपक्ष मेँ विश्वास व्यक्त करता है। दोनो प्रस्ताव एक ही साथ स्वीकृत या अस्वीकृत होते हैं। यह प्रथा जर्मनी मेँ प्रचलित है।

स्थगन प्रस्ताव - यह किसी अविलंबनीय लोक महत्व के मामले पर सदन मेँ चर्चा करने के लिए, सदन की कार्यवाही को स्थापित करने का प्रस्ताव है। यह प्रस्ताव लोकसभा एवं राज्यसभा दोनो मेँ पेश किया जा सकता है। सदन का कोई सदस्य इस प्रस्ताव को पेश कर सकता है।

ध्यानाकर्षण प्रस्ताव - इस प्रस्ताव द्वारा, सदन का कोई सदस्य, सदन के पीठासीन अधिकारी की अग्रिम अनुमति से, किसी मंत्री का ध्यान, अविलंबनीय लोक महत्व के किसी मामले पर आकृष्ट कर सकता है। मंत्री उस मामले पर एक संक्षिप्त व्यक्तव्य दे सकता है या बाद की किसी तिथि भी को वक्तव्य देने के लिए समय मांग सकता है।

विशेषाधिकार प्रस्ताव - यह किसी सदस्य द्वारा पेश किया जाता है, जब सदस्य यह महसूस करता है कि सही तथ्यों को प्रकट नहीँ कर या गलत सूचना देकर किसी मंत्री ने सदन या सदन के एक या अधिक सदस्य के विशेषाधिकारोँ का उल्लंघन किया है।

संविधान मेँ संशोधन

संविधान के अनुच्छेद 368 में संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। इसमेँ संशोधन की तीन विधियों को अपनाया गया है-

साधारण विधि द्वारा

संसद के विशेष बहुमत द्वारा

संसद के विशेष बहुमत और राज्य के विधान-मंडलों की स्वीकृति से संशोधन

साधारण विधि द्वारा - संसद की साधारण विधि द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर कानून बन जाता है।

इसके अंतर्गत राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति मिलने पर निम्न संशोधन किए जा सकते हैं-

नए राज्योँ का निर्माण

राज्यक्षेत्र, सीमा और नाम मेँ परिवर्तन

संविधान की नागरिकता संबंधी अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातियो की प्रशासन संबंधी केंद्र द्वारा प्रशासित क्षेत्रोँ की प्रशासन संबंधी व्यवस्थाएं

विशेष बहुमत द्वारा संशोधन – यदि संसद के प्रत्येक सदन द्वारा कुल सदस्योँ का बहुमत तथा और उपस्थित और मतदान मेँ भाग लेने वाले सदस्योँ के 2/3 मतों से विधेयक पारित हो जाए तो राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलते ही वह संशोधन संविधान का अंग बन जाता है।

न्यायपालिका तथा राज्योँ के अधिकारों तथा शक्तियों जैसी कुछ विशिष्ट बातोँ को छोडकर संविधान की अन्य सभी व्यवस्थाओं मेँ इसी प्रक्रिया के द्वारा संशोधन किया जाता है।

संसद के विशेष बहुमत एवं राज्य विधानमंडलों की स्वीकृति से संशोधन - संविधान के कुछ अनुच्छेदों मेँ संशोधन के लिए विधेयक को संसद के दोनों सदनोँ के विश्वास बहुमत तथा राज्योँ के कुल विधानमंडलों से आधे द्वारा स्वीकृति आवश्यक है।

इसके द्वारा किए जाने वाले संशोधन के प्रमुख विषय हैं-

राष्ट्रपति का निर्वाचन, अनुच्छेद-54

राष्ट्रपति निर्वाचन की कार्य पद्धति अनुच्छेद-55

संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार

राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार

केंद्र शासित क्षेत्रोँ के लिए उच्च न्यायालय

संघीय न्यायपालिका

राज्योँ के उच्च न्यायालय

संघ एवं राज्योँ मेँ विधायी संबंध

सातवीँ अनुसूची का कोई विषय

संसद मेँ राज्योँ का प्रतिनिधित्व

संविधान संशोधन की प्रक्रिया से संबंधित उपबंध

संसदीय समितियां और उनके कार्य

समिति कुल सदस्य लोक सभा सदस्य राज्य सभा सदस्य कार्य

लोक लेखा समिति 22 15 7 सरकार के विनियोग तथा वित्त लेखा और लेखा नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट की जाँच करती है

प्राक्कलन समिति 30 30 - वित्तीय नीतियों के सम्बन्ध में सुझाव देना

सार्वजानिक उपक्रम समिति 15 10 5 भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदनों तथा सरकारी प्रतिष्ठानों के लेखा एवं प्रतिवेदनों की समीक्षा करना

विशेषाधिकार समिति 15 10 5 संसद के किसी सदन या अध्यक्ष द्वारा विशेषाधिकार उल्लंघन से सम्बंधित प्रेषित मामलों की जाँच करना

प्रवर समिति 45 30 15 प्रमुख कार्य विधेयकों की समीक्षा करना है

सरकारी आश्वासन समिति 25 15 10 मंत्रियों द्वारा दिए जाने वाले आश्वासनों का पालन किया जा रहा है या नहीं इस बात के सम्बन्ध में जाँच करना

कार्य मंत्रणा समिति - 15 15 विधेयकों विषयों के लिए सदन की कार्यवाहियों में सहायता निर्धारण करना

नियम समिति 31 15 16 संसदीय कार्यवाही की प्रक्रिया पर विचार करना

याचिका समिति 25 15 10 सभी याचिकाओं का परिक्षण करना

सदन समिति 12 - - सांसदों के निवास स्थान सहित अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराना

सामान्य उद्देश्य समिति 20 - - सदन की कार्य प्रणाली के संगठन समिति तथा सुधार से सम्बद्ध परामर्श देना











संघ की न्यायपालिका: उच्चतम न्यायालय

The Union Judiciary: Supreme Court



न्यायपालिका सरकार का महत्वपूर्ण अंग है। सरकार का स्वरूप चाहे कोई भी हो, न्यायपालिका की व्यवस्था किसी-न-किसी रूप में अवश्य की जाती है। संघीय शासन प्रणाली में स्वतंत्र तथा निष्पक्ष न्यायपालिका का होना अनिवार्य है क्योंकि शक्तियों के विभाजन के कारण संघ तथा राज्यों में प्रायः विवाद उत्पन्न होते रहते हैं।इन विवादों का निपटारा करने तथा संविधान की व्याख्या करने के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका का होना आवश्यक है। भारत में संघीय शासन प्रणाली की व्यवस्था होने के कारण संविधान के अंतर्गत स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है।

भारत में संघात्मक शासन प्रणाली है परंतु संघात्मक सिद्धांतों के अनुसार केंद्र तथा राज्यों में पृथक्-पृथक् न्याय प्रबंध नहीं है बल्कि एकात्मक न्याय प्रणाली की व्यवस्था की गई है। इस एकात्मक न्याय प्रणाली में उच्चतम न्यायालय सर्वोच्च है। सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रीय स्तर का एकमात्र न्यायालय है। राज्यों में उच्च न्यायालय एवं अधीनस्थ यायालय हैं (अनुच्छेद-233-237)। राज्यों के अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध उच्च न्यायालयों में अपील की जाती है और उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। इस प्रकार भारत में पिरामिडाकार एकल संगठित न्याय प्रणाली है, जसके शीर्ष पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय है। सर्वोच्च न्यायालय के नीचे विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालय हैं और प्रत्येक उच्च न्यायालय के नीचे अधीनस्थ न्यायालय हैं।

सर्वोच्च न्यायालय

उच्चतम न्यायालय देश का सर्वोच्च न्यायालय है। इसके द्वारा दिये गये निर्णय अंतिम होते है तथा इन निर्णयों के विरुद्ध किसी और न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती है। संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक के अनुच्छेदों का संबंध सर्वोच्च न्यायालय से है। संविधान के अनुच्छेद 124(1) में सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है।

संगठन

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(1) के अनुसार प्रारम्भ में सर्वोच्च न्यायालय के लिए एक मुख्य न्यायाधीशतथा सात अन्य न्यायाधीश निश्चित किये गये थे परंतु इसी अनुच्छेद में संसद को न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने की शक्ति प्रदान की गई है। सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) अधिनियम, 1956 के अनुसार, न्यायाधीशों की संख्या मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त 10 कर दी गई थी। 1960 में संसद द्वारा न्यायाधीशों की संख्या मुख्य न्यायाधीश सहित 14 कर दी गयी। परंतु 1977 में भारतीय संसद ने एक कानून के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की कुल सख्या 18 कर दी। 1986 में संसद ने एक अन्य कानून पारित करके सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 18 से बढ़ाकर 26 कर दी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008-09 में संसद ने एक विधेयक पारित कर न्यायाधीशों की संख्या 30 कर दी है।

वर्तमान में कुल 31 न्यायाधीश हैं जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश एवं 30 अन्य न्यायाधीश हैं। इन 30 न्यायाधीशों के अतिरिक्त यदि राष्ट्रपति उचित समझे तो अन्य तदर्थ न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है।

तदर्थ न्यायाधीश

संविधान के अनुच्छेद 127(1) के अनुसार यदि किसी कारणवश न्यायालय की बैठक करने के लिए निश्चित गणपूर्ति कोरम (गणपूर्ति 3 निश्चित की गई है) पूरा नहीं होता तो राष्ट्रपति की अग्रिम स्वीकृति द्वारा मुख्य न्यायाधीश तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकता है। उस व्यक्ति को, जो किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की योग्यता रखता हो, तदर्थ न्यायाधीश नियुक्त किया जा सकता है।

न्यायाधीशों की नियुक्ति

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति अपने पूर्ण अधिकारों के अंतर्गत करता है और इसके लिए वह आवश्यकतानुसार सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों का भी परामर्श ले सकता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में भी वह सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के चाहे जितने न्यायाधीशों की सलाह ले सकता है। संविधान में स्पष्ट प्रावधान के बावजूद भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राजनीतिक फैसले से प्रभावित होती है। पहले न्यायाधीशों की नियुक्ति के समय वरिष्ठता पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था परंतु विधि आयोग ने अपनी 80वीं रिपोर्ट में यह सिफारिश की है कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के समय वरिष्ठता पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए।

नियुक्ति हेतु अर्हताएं

संविधान के अनुच्छेद 124(3) के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए निम्नलिखित योग्यताएं निश्चित की गई हैं-



वह भारत का नागरिक हो,

वह कम से कम लगातार पांच वर्ष तक किसी एक या दो या इससे अधिक उच्च न्यायालयों का न्यायाधीश रह चुका हो,

उसने कम-से-कम 10 वर्ष तक लगातार किसी एक या दो या इससे अधिक उच्च न्यायालयों में वकालत की हो, तथा

राष्ट्रपति की राय में पारंगत विधिवेत्ता हो।



पदावधि

संविधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर आसीन रहते हैं। उनकी नियुक्ति हेतु कोई न्यूनतम आयु अथवा नियत पदावधि का नित्धारण नहीं किया गया है। 65 वर्ष की आयु से पहले कोई भी न्यायाधीश अपनी इच्छानुसार त्याग-पत्र दे सकता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति किसी भी न्यायाधीश को बुरे व्यवहार या अयोग्यता के कारण 65 वर्ष की आयु से पहले भी पदच्युत कर सकता है। इसके लिए यह अनिवार्य है कि संसद के दोनों सदन अपने-अपने कुल सदस्यों की संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा प्रस्ताव पारित करके राष्ट्रपति के पास भेजें। संसद द्वारा किसी न्यायाधीश के विरुद्ध प्रस्ताव पास किए बिना राष्ट्रपति किसी न्यायाधीश को पद से हटाने का आदेश जारी नहीं कर सकता है [(अनुच्छेद 124(4)]।

ऐसा हटाया जाना केवल निम्नलिखित दो आधारों पर ही हो सकता है-



सिद्ध कदाचार, तथा

असमर्थता



न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 एवं अनुच्छेद-124(4) के प्रावधानों के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को महाभियोग लगाकर तथा निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाकर ही उसके पद से हटाया जा सकता है-



लोक सभा के न्यूनतम 100 अथवा राज्य सभा के न्यूनतम 50 सदस्यों द्वारा राष्ट्रपति को सम्बोधित एक प्रस्ताव लोक सभा के अध्यक्ष अथवा राज्य सभा के सभापति को दिया जाता है।

इस प्रस्ताव का अन्वेषण एक तीन सदस्यीय समिति द्वारा किया जाता है। इन तीन सदस्यों में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं एक प्रख्यात विधिवेत्ता होता है।



अभी तक का प्रथम महाभियोग पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बी. रामास्वामी के विरुद्ध कदाचार (वित्तीय) के आधार पर 1991 में लगाया गया।

लोकसभा में महाभियोग की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। अंततः मतदान में महाभियोग प्रस्ताव पारित नहीं हो सका, फलस्वरूप असफल हो गया।



यदि समिति आरोपित न्यायाधीश की कदाचार का दोषी अथवा कार्य संपादन में असमर्थ पाती है तो प्रस्ताव की समिति के प्रतिवेदन के साथ विचारार्थ उस सदन में भेज दिया जाता है, जिसमें प्रस्ताव लम्बित है।

यदि प्रस्ताव संसद के प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के न्यूनतम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तो राष्ट्रपति को समावेदन प्रस्तुत किया जाता है।

राष्ट्रपति द्वारा समावेदन पर आदेश देने पर न्यायाधीश अपने पद से पदच्युत हो जाएगा।



उल्लेखनीय है कि, सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय दोनों के न्यायाधीशों के लिए महाभियोग की प्रक्रिया एक समान ही है।

अनुच्छेद 124(6) के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अपना पद ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ लेते हैं।

वेतन तथा भत्ते

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा न्यायाधीशों के वेतन आदि संविधान की दूसरी अनुसूची में अंकित किए गए हैं। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्ते भारत की संचित निधि से दिये जाते हैं। यह ऐसी निधि है जो संसद के मतदान के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। सेवानिवृत्ति के पश्चात् न्यायाधीशों को नियमानुसार पेंशन दी जाती है। इसके अतिरिक्त उन्हें आतिथ्य सत्कार भत्ता तथा यात्रा भत्ता भी दिया जाता है। संसद समय-समय पर इस वेतन-भत्ते में बढ़ोतरी कर सकती है लेकिन किसी न्यायाधीश के सेवा काल में उसके वेतन भत्तों में कमी नहीं कर सकती। केवल वित्तीय आपात की स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों के वेतन भत्ते कम किए जा सकते हैं।

उच्चतम न्यायालय की स्वाधीनता सुनिश्चित वाले उपबंध

भारतीय संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की स्वतंत्रता की बनाए रखने के लिए अनेक प्रावधानों का निर्धारण किया है-



उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से करता है, फिर भी राष्ट्रपति इस विषय में भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करता है।

संविधान के अनुच्छेद 124(4) के अनुसार राष्ट्रपति किसी भी न्यायाधीश को बुरे आचरण या अयोग्यता के कारण पदच्युत कर सकता है परन्तु इसके लिए आवश्यक है की संसद के दोनों सदन अपने कुल सदस्यों की संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित तथा मत देने वाले दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित प्रस्ताव राष्ट्रपति को ज्ञापित करें।

संविधान के अनुच्छेद 125(2) के अनुसार न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते, छुट्टी तथा पेंशन में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। परंतु अनुच्छेद 360 (4क) के अनुसार वित्तीय आपातकाल के समय में राष्ट्रपति ऐसा कर सकता है।

संविधान के अनुच्छेद 146(3) के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के प्रशासनिक व्यय, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और अन्य कर्मचारियों के वेतन, भत्ते आदि भारत की संचित निधि से दिये जाते हैं।

संविधान के अनुच्छेद 124(7) के अनुसार जो व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीश के पद पर रह चुका है, वह भारतीय क्षेत्र में पुनः किसी भी न्यायालय या अन्य किसी अधिकारी के समक्ष वकालत नहीं कर सकता है।



संविधान के अधीन सर्वोच्च न्यायालय की स्थिति

संविधान के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय की अत्यधिक शक्तियां एवं प्राधिकार प्रदान किए गए हैं। वस्तुतः भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां किसी भी अन्य देश के सर्वोच्च न्यायालय की तुलना में अधिक हैं। यह परिसंघ न्यायालय भी है, अपीलीय न्यायालय भी है, संविधान का संरक्षक भी तथा उसके द्वारा संविधान के अधीन अपनी अधिकारिता के प्रयोग में घोषित विधि भारत के राज्य क्षेत्र में अन्य सभी न्यायालयों पर आबद्धकर है (अनुच्छेद-141)।

न्यायाधीशों को प्राप्त उन्मुक्तियां

न्यायाधीशों के निर्णयों या व्यवहार को लेकर संसद में महाभियोग के अतिरिक्त आलोचना नहीं की जा सकती। जनता में भी इस प्रकार की आलोचना नहीं की जा सकती। न्यायालय की कार्रवाहियों के समय न्यायाधीशों की प्रकृति पर आलोचनात्मक टीका-टिप्पणी करने पर न्यायालय को उनके विरुद्ध मानहानि का मुकदमा चलाने का अधिकार है।

सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार, शक्ति तथा कार्य

सर्वोच्च न्यायालय भारत का सबसे बड़ा तथा अंतिम न्यायालय है अर्थात् सर्वोच्च न्यायालय एकीकृत न्यायिक व्यवस्था की सर्वोच्च संस्था है। संविधान के अनुच्छेद 141 में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय किये गये सिद्धांत भारतीय सीमा में आने वाले सभी न्यायालयों पर लागू होते हैं। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकारों, शक्तियों तथा कार्यों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं-

आरंभिक अधिकार क्षेत्र

संविधान के अनुच्छेद 131 में सर्वोच्च न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र की व्याख्या की गई है। इस अधिकार क्षेत्र का अभिप्राय उन अभियोगों से है जिन्हें सीधे ही सर्वोच्च न्यायालय में आरंभ किया जा सकता है तथा जिन्हें अन्य निम्न न्यायालयों में आरंभ नहीं किया जा सकता है। आरंभिक अधिकार क्षेत्र में निम्नलिखित अभियोग आते हैं-



एक ओर भारत सरकार तथा दूसरी ओर एक या एक से अधिक राज्य हों

एक ओर भारत सरकार के साथ एक या एक से अधिक राज्य हों तथा दूसरी ओर एक या एक से अधिक अन्य राज्य हो, तथा

दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवाद हो।



भारतीय न्यायिक व्यवस्था एकीकृत एवं पिरामिडाकार है, जिसके शीर्ष पर सर्वोच्च न्यायालय है, जिसके निर्णयों के विरुद्ध किसी अन्य न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती।

इसमें एक मुख्य न्यायाधीश एवं 30 अन्य न्यायाधीश हैं।

सर्वोच्च न्यायालय की बैठक हेतु आवश्यक गणपूर्ति 3 है।

न्यायाधीशों को केवल सिद्ध कदाचार अथवा असमर्थता के आधार पर संविधान में वर्णित महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा ही हटाया जा सकता है।

किसी भी विषय पर राष्ट्रपति को कानूनी परामर्श देने हेतु न्यूनतम 5 न्यायाधीशों की तथा अन्य मुकदमों की अपीलें सुनने हेतु न्यूनतम 3 न्यायाधीशों की बेंच होनी अनिवार्य हैअपवाद

सर्वोच्च न्यायालय के आरंभिक अधिकार क्षेत्र में निम्नलिखित प्रकार के वाद नहीं आते हैं-

सरकारों के मध्य उत्पन्न विवाद किसी न्याय योग्य अधिकार पर आधारित होना अनिवार्य है। अभिप्राय यह है कि विवाद का कारण राजनीतिक नहीं, बल्कि वैधानिक होना चाहिए। जिन सरकारों के मध्य विवाद का आधार वैधानिक न हो, वे सर्वोच्च न्यायालय के आरम्भिक अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आते हैं।

संविधान के 7वें संशोधन के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के आरम्भिक अधिकार क्षेत्र में वे अभियोग नहीं आते हैं जिनका संबंध उन संधियों, समझौतों अथवा सनदों से है जो संविधान के लागू होने से पूर्व की गई थीं और जो अब भी जारी हैं अथवा जिनमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया हो कि उनके संबंध में सर्वोच्च न्यायालय को ऐसा अधिकार प्राप्त नहीं होगा।

संविधान के तीसरे खंड में दिये गये मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए नागरिकों को सर्वोच्च न्यायालय का आश्रय लेने का अधिकार प्राप्त है नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित अभियोग भी सर्वोच्च न्यायालय के आरंभिक क्षेत्र में आते हैं क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 32 के अनुसार, नागरिकों को, मौलिक अधिकारों की अवहेलना पर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका या रिट देने का अधिकार दिया गया है। अर्थात नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सीधे सर्वोच्च न्यायालय में रिट दायर कर सकता है। नागरिक अधिकारों को लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय यथोचित निर्देश, आदेश या लेख जारी कर सकता है। इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय निम्नलिखित लेख जारी कर सकता है-

बंदी प्रत्यक्षीकरण आदेश

परमादेश

प्रतिषेध लेख

उत्प्रेषण लेख

अधिकार पृच्छा लेख

राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवाद सर्वोच्च न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र में आते हैं क्योंकि ऐसे विवादों की सुनवाई कोई अन्य न्यायालय नहीं कर सकता है।

भारतीय एवं अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालयों की तुलना

अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय भारतीय सर्वोच्च न्यायालय

इसकी अपीलीय अधिकारिता परिसंघीय सम्बन्धों से उत्पन्न होने वाले अथवा विधियों एवं संधियों की संवैधानिक विधिमान्यता से सम्बंधित मामलों तक ही सीमित है।



यह परिसंघीय न्यायालय होने के साथ-साथ संविधान का संरक्षक भी है तथा संविधान के निर्वचन के सम्बन्ध में उत्पन्न होने वाले मामलों के अतिरिक्त सिविल एंवं दाण्डिक मामलों के सम्बन्ध में यह देश का सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय है (अनुच्छेद-183-184)।

इसे अमेरिका के राज्य क्षेत्र में किसी भी न्यायालय अथवा अधिकरण के विनिश्चय से अपील ग्रहण करने का अधिकार नहीं है।



इसे भारतीय सीमा क्षेत्र में किसी भी न्यायालय अथवा अधिकरण के विनिश्चय से अपील ग्रहण करने की असाधारण शक्ति है। इस विवेकाधिकार की कोई सीमा नहीं है (अनुच्छेद-136)।

इसने सरकार को परामर्श प्रदान करने सम्बन्धी शक्ति ग्रहण करने से इंकार कर दिया तथा किसी भी विषय के पक्षकारों के मध्य वास्तविक विवाद को निपटाने तक ही स्वयं को सीमित रखा है।



इसे राष्ट्रपति द्वारा उसे निर्दिष्ट किसी तथ्य अथवा विधि के प्रश्न पर परामर्श देने की शक्ति प्रदान की गई है (अनुच्छेद-148)।

अपीलीय अधिकार क्षेत्र

अपीलीय अधिकार क्षेत्र में ऐसे अभियोग आते हैं, जिनका आरम्भ तो निम्न स्तरीय न्यायालयों में होता है, परंतु उनके निर्णय के प्रति सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। अपीलीय अधिकार क्षेत्र को चार भागों में बांटा जा सकता है-

संवैधानिक अभियोगों में अपील

संविधान के अनुच्छेद 132 के अनुसार किसी भी राज्य के उच्च न्यायालय के द्वारा दिये गये निर्णय, डिक्री या आदेश के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है, यदि सम्बंधित उच्च न्यायालय अभियोग के सम्बन्ध में यह प्रमाण-पत्र दे कि अभियोग में संवैधानिक व्याख्या का प्रश्न है। संवैधानिक व्याख्या से संबंधित किसी भी अभियोग में, चाहे वह दीवानी हो या फौजदारी, उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

दीवानी या सिविल अभियोगों में अपील

संविधान के अनुच्छेद 133 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को दीवानी अभियोगों के निर्णय के विरुद्ध भी अपीलें सुनने का अधिकार प्राप्त है।

फौजदारी या दाण्डिक अभियोगों में अपील

संविधान के अनुच्छेद 134 के अनुसार उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध निम्नलिखित फौजदारी अभियोगों में सर्वोच्च न्यायालय को अपील सुनने का अधिकार प्राप्त है-

ऐसा अभियोग, जिसमें निम्न न्यायालयों ने व्यक्ति को रिहा कर दिया हो, परंतु अपील करने पर उच्च न्यायालय ने उसे मृत्यु दण्ड दिया हो।

ऐसा अभियोग, जो निम्न न्यायालयों में चल रहा हो परंतु उच्च न्यायालय उस अभियोग को अपने हाथ में लेकर व्यक्ति को दोषी घोषित कर दे और मृत्यु दण्ड दे दे, तथा

उच्च न्यायालय यह प्रमाण-पत्र दे दे कि अभियोग सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने योग्य है।

संसद कानून द्वारा सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय अधिकार क्षेत्र बढ़ा सकती है।

विशेष अपीलें सुनने का अधिकार

संविधान के अनुच्छेद 136 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय अपील करने की विशेष आज्ञा दे सकता है। अनुच्छेद 136(1) में यह व्यवस्था है कि सर्वोच्च न्यायालय भारत की भूमि पर स्थित किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण द्वारा किसी भी विषय संबंधी दिए गए निर्णय, परिणाम, दण्ड या आदेश के विरुद्ध अपील करने की विशेष आज्ञा स्वेच्छानुसार दे सकता है, परंतु सैनिक कानून के अनुसार स्थापित किये गये किसी सैन्य न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 136 के अंतर्गत भी अपील करने की विशेष आज्ञा देने का अधिकार नहीं है।

परामर्शदात्री अधिकार क्षेत्र

संविधान के अनुच्छेद 143 के अनुसार भारत के राष्ट्रपति को किन्हीं वैधानिक समस्याओं के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श लेने का अधिकार है। जब कभी राष्ट्रपति यह अनुभव करे कि कोई वैधानिक समस्या उत्पन्न हो गई है तो वह समस्या को सर्वोच्च न्यायालय की वैधानिक राय लेने के लिए भेज सकता है। जब राष्ट्रपति की ओर से सर्वोच्च न्यायालय को वैधानिक परामर्श देने के लिए कोई विषय भेजा जाता है तो न्यूनतम 5 न्यायधीशों की बेंच द्वारा उस मामले के प्रति निर्णय करना अनिवार्य है। किसी विषय के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई वैधानिक राय को मानना राष्ट्रपति के लिए अनिवार्य नहीं हैं।

प्रेसीडेंशियल रेफरेंस

भारत के संविधान में प्रेसीडेंशियल रेफरेंस (अध्यक्षीय संदर्भ) का प्रावधान अनुच्छेद-143 में किया गया है। इस प्रावधान के तहत-यदि किसी समय राष्ट्रपति को प्रतीत होता है कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उपस्थित हुआ है, या उत्पन्न होने की संभावना है, जो ऐसी प्रकृति का और ऐसे व्यापक महत्व का है कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना आवश्यक है, तो वह उस प्रश्न पर विचार करने के लिए उसे न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा और न्यायालय ऐसी सुनवाई के पश्चात् जो वह ठीक समझता है, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित कर सकेगा।

राष्ट्रपति द्वारा प्रतिवेदन प्राप्त होने पर भारत के मुख्य न्यायाधीश एक विशेष संवैधानिक पीठ की स्थापना करते हैं। जिसमें कम से कम 5 न्यायाधीश होते हैं, जो सरकार द्वारा उठाए गए मुद्दों पर विचार करते हैं। प्रेसीडेंशियल रेफरेंस के मामले में निर्णय सामान्य निर्णय से भिन्न है, क्योंकि ऐसे मामले में दो पक्षकारों के बीच कोई वाद नहीं होता तथा उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसे निर्देश में दी गई राय सरकार पर आबद्धकारी नहीं होती। यह राय केवल सलाहकारी है और सरकार किसी विषय पर कार्यवाही करने में उस पर विचार कर सकती है, किंतु इस प्रकार की राय के अनुरूप कार्य करने के लिए वह बाध्य नहीं हैं। उच्चतम न्यायालय को यह अधिकार है कि यदि अनुच्छेद-143 के अधीन उससे पूछा गया प्रश्न व्यर्थ या अनावश्यक है तो वह उसका उत्तर देने से मना कर सकता है। वह पूछे गए प्रश्न का उत्तर कभी भी दे सकता है, क्योंकि संविधान में इसके लिए कोई स्पष्ट समय सीमा का उल्लेख नहीं है। अगस्त 2004 में, सरकार ने पंजाब और हरियाणा राज्य के बीच नदी जल बंटवारे को लेकर प्रेसीडेंशियल रेफरेंस लिया था। इससे पूर्व 1991 में कावेरी जल विवाद, 1993 में राम जन्म भूमि मामला, 1998 में न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले आदि में उच्चतम न्यायालय से सलाह मांग चुके हैं।

उल्लेखनीय है कि राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के मामले में मुख्य न्यायाधीश एम.एन. वैकटचेलैया की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्वारा मांगी गई सलाह का कोई जवाब देने से मना कर दिया था। दी गई सलाह राज्य सरकार पर आबद्धकारी नहीं होती।

देश में 2-जी स्पेक्ट्रम और कोल ब्लॉक आवंटन के घोटालों के बीच देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह बताया कि प्राकृतिक संसाधनों को बेचने का एकमात्र जरिया नीलामी ही नहीं है। न्यायालय के अनुसार सरकार व्यापक जनहित में इन संसाधनों को अन्य तरीके से भी वितरित कर सकती है। 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के 2 फरवरी, 2012 के फैसले के संदर्भ में एक प्रेसिडेंशियल रेफरेंस के उत्तर में शीर्ष अदालत ने 27 सितंबर, 2012 को यह व्यवस्था दी। तात्कालिक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस.एच. कपाड़िया की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले में स्पष्ट किया कि संविधान यह निर्देश नहीं देता कि प्राकृतिक संसाधनों का वितरण सिर्फ नीलामी से ही किया जाए। यह संवैधानिक रूप से आवश्यक भी नहीं है। अधिकतम राजस्व के लिए नीलामी सर्वश्रेष्ठ तरीका हो सकता है, लेकिन जनता की भलाई के लिए यह उपयोगी नहीं होती है। प्राकृतिक संसाधनों का आवंटन सरकार की अपनी आर्थिक नीति के तहत् किया जाता है क्योंकि नीति निर्धारण सरकार का विशेषाधिकार है। आवंटन प्रक्रिया में किसी तरह की धांधली होने पर अदालतें हस्तक्षेप करने के लिए स्वतंत्र हैं। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से संवैधानिक स्थिति स्पष्ट हो गई तथा केंद्र सरकार देश की आर्थिक नीतियों के अनुरूप संसाधनों के आवंटन हेतु अब स्वतंत्र है। न्यायालय ने मात्र 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में ही नीलामी की प्रक्रिया अपनाने की सलाह दी। इसका अर्थ है कि स्पेक्ट्रम के अतिरिक्त अन्य प्राकृतिक संसाधन जैसे तेल, गैस, कोयला, लोहा, तथा अन्य अयस्क और खनिजों की सरकार बिना नीलामी के बेच सकेगी। 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन के लाइसेंस रद्द करने का निर्णय न्यायालय के इस निर्णय से अप्रभावित रहेगा।

संविधान की व्याख्या तथा सुरक्षा का अधिकार

संविधान की व्याख्या तथा सुरक्षा का अधिकार भी सर्वोच्च न्यायालय को ही प्रदान किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई संविधान की व्याख्या सर्वोपरि एवं सर्वोत्तम मानी जाती है और साथ ही संविधान के अनुच्छेद 187 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालयको न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार प्राप्त है अर्थात् सर्वोच्च न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गये निर्णय या दिए गए आदेश का पुनर्विलोकन करने की शक्ति है। यदि संसद द्वारा निर्मित कानून या केंद्रीय कार्यपालिका द्वारा जारी किए गए आदेश संविधान के किसी अनुच्छेद की अवहेलना करते हो, तो सर्वोच्च न्यायालय ऐसे कानून या आदेश की अवैध घोषित कर सकता है। यदि केंद्र सरकार या राज्य सरकार अपने अधिकार-क्षेत्र से बाहर किसी कानून का निर्माण करे तो सर्वोच्च न्यायालय ऐसे कानून को रद्द कर सकता है। संविधान देश का सर्वोपरि कानून है, उनकी सुरक्षा करना सर्वोच्च न्यायालय का प्रमुख वैधानिक कर्तव्य है।

न्यायिक पुनर्विलोकन

न्यायालय द्वारा कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के कार्यों की वैधता की जाँच करना अथवा न्यायालय द्वारा व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानूनों एवं प्रशासनिक नीतियों की असंवैधानिक घोषित करना, जो संविधान के किसी अनुच्छेद का अतिक्रमण करती हो, न्यायिक पुनर्विलोकन कहलाता है। भारत में न्यायपालिका को संविधान का संरक्षक घोषित किया गया है। इसके अंतर्गत संविधान के किसी भी अनुच्छेद अथवा भागका अतिक्रमण करने वाली अथवा उसके मूलभूत ढांचे पर आघात करने वाली विधियों को विधि-शून्य करार देने का अधिकार देश के सर्वोच्च न्यायालय एवं राज्यों के उच्च न्यायालयों को प्रदान किया गया है।संसद एवं राज्य विधानमंडलों द्वारा पारित किए गए कानूनों एवं नीतियों की समीक्षा एवं उनकी वैधानिकता की जांच को ही न्यायपालिका का न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार कहा जाता है।

न्यायिक पुनर्विलोकन के सिद्धांत का उद्भव सर्वप्रथम संयुक्त राज्य अमेरिका की शासन व्यवस्था में लगभग 193 वर्ष पूर्व हुआ। बाद में भारत सहित विश्व की विभिन्न शासन व्यवस्थाओं में भी इस सिद्धांत का अंकुरण हुआ। साधारणतः अधिकांश देशों की शासन व्यवस्थाओं के अंतर्गत न्यायपालिका की पुनर्विलोकन की असाधारण शक्ति संविधान द्वारा प्रदान नहीं की गयी है, बल्कि इसे न्यायपालिका द्वारा अनौपचारिक रूप से हस्तगत किया गया है। शनैः-शनैः न्यायिक पुनर्विलोकन के इस अधिकार ने महती परिपाटी का स्वरूप धारण कर लिया। साथ ही वर्तमान समय में यह संवैधानिक विकास के विभिन्न आयामों में गरिमामय स्थान का परिचायक भी बन गया है। भारतीय संविधान के अंतर्गत भी न्यायिक पुनर्विलोकन सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लेख कहीं भी प्राप्त नहीं होता। न्यायिक पुनरीक्षण हेतु आधारभूत तत्वों की वर्तमान स्थिति के कारण इस सिद्धांत का विकास स्वतः ही हुआ है। साधारणतः न्यायिक पुनर्विलोकन हेतु निम्नलिखित शर्ते अपरिहार्य मानी गई हैं-

लिखित एवं कठोर संविधान

संघ एवं राज्यों के मध्य शक्तियों एवं अधिकारों का विभाजन,तथा

मौलिक अधिकारों की व्यवस्था

भारत की शासन व्यवस्था उल्लिखित तीनों अपरिहार्य शर्तों की पूर्ति करती है। अतः तत्सम्बन्धी स्पष्ट संवैधानिक प्रावधानों के अभाव में भी यहां न्यायिक पुनर्विलोकन के सिद्धांत का विकास हुआ तथा सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक अवसरों पर इसका प्रयोग करते हुए कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के उन कार्यों एवं कानूनों को अवैधानिक घोषित किया जो किसी-न-किसी रूप में संविधान के प्रावधानों के प्रतिकूल थे।

सैद्धांतिक दृष्टिकोण से यदि देखा जाए तो हमें सम्पूर्ण संविधान में कहीं भी न्यायिक पुनर्विलोकन के सिद्धांत का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलेगा किंतु व्यावहारिक रूप से देखने पर यह ज्ञात होता है कि भारतीय संविधान के अनेक प्रावधानों के अंतर्गत न्यायिक पुनर्विलोकन के अधिकार का सुदृढ़ आधार उपलब्ध है, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से यह निष्कर्ष प्रतिपादित किया जा सकता है कि संविधान निर्माता न्यायपालिका को इस प्रकार का अधिकार अथवा शक्ति सौंपने के पक्षधर रहे होंगे। ये संवैधानिक आधार हैं।

अनुच्छेद-13: इस अनुच्छेद के अनुसार यदि राज्य द्वारा निर्मित कोई कानून नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है तो उस कानून को न्यायालय द्वारा अवैध घोषित किया जा सकता है।

अनुच्छेद-32: इस अनुच्छेद के प्रावधानों के अनुसार मौलिक अधिकारों के हनन की अवस्था में कोई भी भारतीय नागरिक अपने अधिकारों की रक्षार्थ न्यायालय की शरण ले सकता है। इस प्रकार मौलिक अधिकारों के संरक्षण हेतु न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका एवं संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की समीक्षा अथवा अवलोकन किया जा सकता है।

अनुच्छेद-246: इस अनुच्छेद के माध्यम से संघ एवं राज्यों के मध्य विधायी सीमा का उल्लेख किया गया है। संघ अथवा राज्यों द्वारा संविधान द्वारा प्रदत्त अपने विधायी क्षेत्राधिकार को तोड़कर बनाए गए संविधान में उल्लिखित संघ-सूची में अंकित किसी विषय पर कानून बनाए तो यह संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध होगा और सर्वोच्च न्यायालय राज्य द्वारा निर्मित उस कानून को अवैध करार देकर निरस्त करेगा।

अनुच्छेद-254: इस अनुच्छेद के प्रावधानों के अनुसार समवर्ती-सूची में अंकित किसी विषय पर यदि राज्य एवं संघ द्वारा परस्पर विरोधी कानून बनाएं जाएं तो न्यायालय राज्य द्वारा निर्मित कानून को अवैध घोषित करेगा।

अनुच्छेद-368: यह अनुच्छेद संविधान में संशोधन सम्बन्धी अधिकार एकमात्र संघीय संसद को ही प्रदान न करके उसमें राज्य विधानसभाओं की भी निश्चित भूमिका का उल्लेख करता है। संविधान में उल्लिखित प्रक्रिया के अनुसार न होने वाले किसी संशोधन को न्यायालय अवैध घोषित कर सकता है।

अनुच्छेद-132: इस अनुच्छेद के अनुसार ऐसे मामलों में, जिनमें संविधान की व्याख्या का प्रश्न निहित है, सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। अतः स्पष्ट है कि संवैधानिक मामलों पर निर्णय देने का अंतिम अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को प्राप्त है।

भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनेक अवसरों पर न्यायिक पुनर्विलोकन के अधिकार का प्रयोग करते हुए विभिन्न अभियोगों में निर्णय दिए गए हैं। उदाहरणार्थ, गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पूर्वगामी निर्णयों को पलटते हुए मौलिक अधिकारों को अक्षुण्ण घोषित किया। बैंक राष्ट्रीय अधिनियम को सर्वोच्च न्यायालय ने उसमें निहित क्षतिपूर्ति का सिद्धांत अप्रासंगिक होने के आधार पर अवैध घोषित कर दिया। राजाओं के प्रिवीपर्स एवं विशेषाधिकारों को राष्ट्रपति के अध्यादेश के माध्यम से समाप्त करने की भी सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध घोषित कर दिया। अप्रैल 1973 में सरकार की अखबारी कागज नीति के अंतर्गत समाचार-पत्रों हेतु 10 पृष्ठों की सीमा निर्धारित करने सम्बन्धी नीति को सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध घोषित किया था। इसी प्रकार केशवानंद भारती वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने 24 अप्रैल, 1973 को 25वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम की धारा-III के द्वितीय खण्ड [अनुच्छेद-39(ख)(ग)] को अवैध घोषित किया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा की संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन तो कर सकती है किंतु संविधान के मूल ढांचे पर आघात करने वाले संशोधनों को न्यायालय असंवैधानिक घोषित कर सकता है। जनवरी 2007 में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की नवीं अनुसूची, जो कि न्यायिक समीक्षा से बाहर मानी जाती है, को भी अपनी समीक्षा के दायरे में रखते हुए उसमें सम्मिलित 284 कानून (शुरू में इसमें मात्र 13 कानून थे) की वैधानिकता की जांच हेतु सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की एक पीठ का गठन किया। उल्लिखित उदाहरणों से भारत में न्गायिक पुनर्विलोकन का प्रचलन स्पष्ट हो जाता है।

अभियोगों को स्थानांतरित करने की शक्ति

संविधान के अनुच्छेद 139(क) के अनुसार कुछ अभियोग जिनका संबंध एक या लगभग एक ही प्रकार के कानून के प्रश्नों से है, जो कि एक या एक से अधिक उच्च न्यायालयों के पास निर्णय के लिए पड़े हैं तो सर्वोच्च न्यायालय अपनी पहल के आधार पर या भारत के महान्यायवादी द्वारा दिये अनुरोध-पत्र के आधार पर या अभियोग से संबंधित किसी पक्ष की ओर से किये विनय-पत्र द्वारा संतुष्ट होने पर कि ऐसे प्रश्न असाधारण महत्व वाले महत्वपूर्ण प्रश्न हैंतो सर्वोच्च न्यायालय ऐसे मामले उच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों से अपने पास मंगवा सकता है और उन समस्त अभियोगों का निर्णय स्वयं कर सकता है।

अभिलेख न्यायालय

संविधान के अनुच्छेद 129 के अनुसार, भारत के सर्वोच्च न्यायालय कों एक अभिलेख न्यायालय माना गया है। इसकी सम्पूर्ण कार्यवाहियां तथा निर्णय प्रमाण के रूप में प्रकाशित किये जाते हैं तथा देश के सभी न्यायालयों द्वारा इन निर्णयों को न्यायिक दृष्टांत के रूप में मानना अनिवार्य है। जब किसी न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का स्थान दिया जाता है तो उसे न्यायालय का अपमान करने वाले व्यक्ति को दण्ड देने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय किसी को भी न्यायालय का अपमान करने के दोष में दण्ड दे सकता है।

अपने निर्णयों पर पुनर्विचार का अधिकार

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को कानून के समान मान्यता दी जाती है, पंरतु इसका अभिप्राय यह नहीं कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय स्थायी रूप में स्थिर रहते हैं और उन्हें बदला नहीं जा सकता। अनुच्छेद 137 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय अपने पहले दिये गये निर्णयों पर पुनर्विचार कर सकता है अर्थात् सर्वोच्च न्यायालय अपने पूर्व निर्णयों को बदल सकता है।

प्रकीर्ण अधिकारिता

संविधान के अनुच्छेद 317 आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 257 एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार अधिनियम, 1969 की धारा 7 सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 138क और केंद्रीय उत्पाद-शुल्क और नमक अधिनियम, 1994 की धारा 35ज में उच्चतम न्यायालय को निर्देश करने के बारे में उपबंध है।

लोकं प्रतिनिधित्व अधिनियम, एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार अधिनियम, अधिवक्ता अधिनियम, न्यायालय अवमान अधिनियम, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क और नामक अधिनियम, आतंकवादी क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम, 1984 और आतंकवादी तथा विध्वंसक क्रिया-कलाप निवारण अधिनियम, 1985 में उच्चतम न्यायालयको अपील किए जाने का उपबंध है। राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति निर्वाचन अधिनियम, 1952 के अधीन निर्वाचन अर्जियां सीधे उच्चतम न्यायालय में फाइल की जाती हैं।

विविध कार्य

सर्वोच्च न्यायालय को निम्नलिखित विविध शक्तियां भी प्राप्त हैं-

सर्वोच्च न्यायालय भारत के सभी न्यायालयों के निरीक्षण करने तथा उनके कुशल प्रबंध के लिए नियम बना सकता है।

राष्ट्रपति संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों को तभी अपदस्थ कर सकता है, यदि सर्वोच्च न्यायालय जाँच करके उन्हें प्रमाणित कर दे।

सर्वोच्च न्यायालय विधि विशेषज्ञों के लिए उचित नियम बना सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय सभी प्रशासनिक तथा न्यायिक अधिकारियों से सहायता ले सकता है।

अतः सर्वोच्च न्यायालय को प्रत्येक क्षेत्र में व्यापक शक्तियां प्रदान की गई हैं। संविधान की सुरक्षा, नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को ही प्राप्त है। सर्वोच्च न्यायालय के पास देश में विभिन्न न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील करने की विशेष आज्ञा देने का अधिकार इतना व्यापक है कि सभी न्यायिक शक्तियां सर्वोच्च न्यायालय में ही केंद्रित हो सकती हैं। इसी प्रकार सर्वोच्च न्यायालय के संविधान की व्याख्या करने का अधिकार इतना महत्वपूर्ण है कि संविधान वही रूप धारण कर सकता है, जिस रूप में न्यायाधीश उसकी व्याख्या करें।

सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार

∎ आरम्भिक क्षेत्राधिकार (इसमें वे अभियोग आते हैं, जिन्हें सीधे केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही आरम्भ किया जा सकता है, अन्य न्यायालयों में नहीं)

∎ अपीलीय क्षेत्राधिकार (इसमें वे अभियोग आते हैं, जिनका आरम्भ तो निचले न्यायालयों में होता है, किंतु उनके निर्णयों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है), तथा

∎ परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार (वैधानिक समस्याओं के सम्बन्ध में मांगे जाने पर न्यायालय राष्ट्रपति को उपयुक्त परामर्श दे सकता है)।







नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक

Comptroller and Auditor General (CAG)





नियुक्ति की अर्हताएं

नियंत्रक महालेखा परीक्षक के रुप मेँ नियुक्ति के लिए निम्नलिखित अर्हताएं होनी चाहिए-

भारत का नागरिक हो

उम्र 35 वर्ष से कम और 65 वर्ष से ज्यादा न हो

राज्य के लेखा विषय की अच्छी जानकारी हो

राज्य के शासन का अनुभव हो

नियंत्रक महालेखा लेखा परीक्षक के कृत्य

केंद्र, राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रोँ की लेखाओं की संपरीक्षा करना तथा उसके ऊपर राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल को प्रतिवेदन देना।

विधानसभा वाले संघ राज्य क्षेत्रोँ के लेखाओ की संपरीक्षा, अलग से की जाती है और प्रतिवेदन संबंधित उप राज्यपाल को सौंपा जाता है।

अन्य संघ राज्य क्षेत्रोँ के लेखाओं की संपरीक्षा, केंद्र की लेखाओं के साथ की जाती है।

यह सुनिश्चित करना कि भारत की संचित निधि या किसी राज्य की संचित निधि से क्रमशः संसद या राज्य विधान मंडल की अनुमति के बिना पैसा नहीँ निकाला जाता है।

यह सुनिश्चित करना की धन उसी विषय पर खर्च किया जाता है, जिसके लिए यह दिया गया है।

संवैधानिक उपबंध

नियंत्रक-महालेखा परीक्षक की स्वाधीनता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक उपबंध-

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को जिस रीति से और जिन आधारोँ पर हटाया जाता है, उसी रीति और उन्हीं आधारों पर नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को भी हटाया जा सकता है।

वेतन तथा उनसे उनके सेवा की अन्य शर्ते संसद द्वारा विधि द्वारा निर्धारित की जाएंगी।

वेतन और नियंत्रक महालेखा परीक्षक के अन्य अधिकारोँ मेँ उनकी पदावधि के दौरान अलाभकारी परिवर्तन नहीँ किया जाएगा।

वह सेवानिवृत्ति के पश्चात संघ या राज्य सरकारों के अधीन अन्य पद धारण करने का पात्र नहीँ होगा।

नियंत्रक महालेखा परीक्षक के कार्यालय से संबंधित सभी वेतन और प्रशासनिक व्यय भारत की संचित निधि से भरने होंगें।

नियंत्रक महालेखा परीक्षक की पुनः नियुक्ति के संदर्भ मेँ संविधान मौन है।

आवश्यक तथ्य

संविधान मेँ नियंत्रक महालेखापरीक्षक का प्रावधान अनुच्छेद 148 से अनुच्छेद 151 मेँ है।

नियंत्रक महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा 6 वर्ष के लिए होती है यदि इससे पूर्व 65 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेता है तो वह अवकाश ग्रहण कर लेता है।

भारत की समस्त वित्तीय प्रणाली संघ तथा राज्य स्तरों पर नियंत्रण भारत का नियंत्रक महालेखापरीक्षक करता है|

संविधान मेँ नियंत्रक महालेखापरीक्षक का पद भारत शासन अधिनियम, 1935 के अधीन महालेखा परीक्षक के ही अनुरूप बनाया गया है।

नियंत्रक महालेखा परीक्षक को उसके पद से केवल उसी रीति से और उन्हीं आधारोँ पर हटाया जा सकता है जिस रीति से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जा सकता है।

नियंत्रक महालेखा परीक्षक का वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है।

नियंत्रक महालेखा परीक्षक सेवानिवृत्ति के पश्चात भारत सरकार के अधीन कोई पद नहीँ धारण कर सकता है।

नियंत्रक महालेखा परीक्षक सार्वजनिक धन का संरक्षक होता है।

भारत तथा प्रत्येक राज्य तथा प्रत्येक संघ राज्य क्षेत्र की संचित निधि से किए गए सभी व्यय विधि के अधीन ही हुए हैं।

उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और वे 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले आए) पर धारण करते हैं।

वे विधानमंडल या विधायिका को कार्यपालिका पर वित्तीय नियंत्रण रखने मेँ मदद करते हैं।

उनके प्रतिवेदन पर संसद मेँ केवल सामान्य चर्चा (विस्तार मेँ नहीँ) की जाती है। यह प्रतिवेदन लोक लेखा समिति को अध्ययन के लिए दिया जाता है और लोक लेखा समिति के प्रतिवेदन पर संसद मेँ विस्तार से चर्चा होती है।



उसको सार्वजनिक धन का संरक्षक माना जाता है।

भारतीय संसद : सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी

● भारत की संघीय व्यवस्थापिका को किस नाम से जाना जाता है— संसद

● भारतीय संसद का निर्माण कैसे होता है— लोकसभा + राज्यसभा + राष्ट्रपति

● संसद के कितने सदन है— दो

● संसद के किस सदन को ‘प्रतिनिधि सभा’ कहा जाता है— लोकसभा

● संसद का स्थायी संदन कौन-सा है— राज्यसभा

● भारतीय संसद का तीसरा अंग कौन है— राष्ट्रपति

● संसद के दो क्रमिक अधिवेशनों के मध्य कितना समयांतराल होता है— 6 माह

● भारतीय संसद को कौन भंग कर सकता है— राष्ट्रपति

● भारतीय संसद की संप्रभुत्ता किससे प्रतिबंधित है— न्याय समीक्षा से

● भारतीय संसद की दोनों की संयुक्त बैठक किस संबंध में होती है— साधारण विधेयक

● साधारण विधेयक से संबंधित गतिरोध को दूर करने के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक कौन बुलाता है— राष्ट्रपति

● स्वतंत्र भारत में अब तक कितनी बार संयुक्त अधिवेशन हो चुके हैं— चार बार

● क्या राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति कभी संयुक्त अधिवेशनों की अध्यक्षता करता है— कभी नहीं

● एक वर्ष में कम से कम कितनी बार संसद की बैठक होना आवश्यक है— दो बार

● संसद के दोनों सदनों की संयुक्त अधिवेशनों की अध्यक्षता कौन करता है— लोकसभा अध्यक्ष

● संसद के दोनों सदनों का सत्रावसान कौन करता है— राष्ट्रपति

● संसदीय प्रणाली को कौन-सी प्रथा भारत की देन है— शून्य काल

● संसद की कार्यवाही में प्रथम विषय कौन-सा होता है— प्रश्न काल

● किस विधेयक को संसद में दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग विशेष बहुमत से पारित करना आवश्यक है— संविधान संशोधन विधेयक

● सांसदों के वेतन का निर्माण कौन करता है— संसद

● संसदीय प्रणाली वाली सरकार को अन्य किस नाम से जाना जाता है— संघीय सरकार

● संविधान लागू होने के बाद सर्वप्रथम त्रिशंकु संसद का गठन कब हुआ— 1989 ई.

● अस्थायी संसद भारत में कब तक रही— 17 अप्रैल, 1952 ई.

● संसद भवन (पार्लियामेंट हाउस) का उद्घाटन कब हुआ— 1927 ई.

● संसद भवन (पार्लियामेंट हाउस) का उद्घाटन किसने किया था— लॉर्ड इरविन

● भारत की संचित निधि से धन निर्गम पर किसका नियंत्रण होता है— संसद का

● राज्यसभा और लोकसभा की संयुक्त बैठक कब होती है— लोकसभा और राज्यसभा में मतभेद होने पर

● संसद का निम्न सदन कौन-सा होता है— लोकसभा

● संसद का उच्च सदन कौन-सा होता है— राज्यसभा

● संसद के किस सदस्य को गैर सरकारी सदस्य कहा जाता है— मंत्री के अतिरिक्त अन्य सभी सदस्यों को

भारत के राष्ट्रपति : सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी

● भारत की कार्यपालिका का अध्यक्ष कौन होता है— राष्ट्रपति

● भारत के राष्ट्रपति की तुलना किस देश के सम्राट से की जा सकती है— ब्रिटेन के सम्राट से

● राष्ट्रपति पद्धति में समस्त कार्यपालिका की शक्तियाँ किसमें निहित होती है— राष्ट्रपति

● भारतीय संविधान के अनुसार भारत का प्रथम नागरिक कौन होता है— राष्ट्रपति

● भारत की तीनों सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति कौन होता है— राष्ट्रपति

● भारत के राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार की न्यूनतम आयु कितनी होनी चाहिए— 35 वर्ष

● राष्ट्रपति का चुनाव किस पद्धति द्वारा होता है— समानुपातिक प्रतिनिधित्व एंव एकल संक्रमणीय प्रणाली द्वारा

● भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कौन संचालित करता है— निर्वाचन आयोग

● राष्ट्रपति के चुनाव संबंधी मामले कहाँ भेजे जाते हैं— उच्चतम् न्यायालय में

● भारत के राष्ट्रपति का चुनाव किनते वर्षों के लिए होता है— 5 वर्ष

● राष्ट्रपति को उनके पद से कैसे हटाया जा सकता है— संसद द्वारा महाभियोग चलाकर

● राष्ट्रपति पर महाभियोग किस आधार पर लगाया जाता है— संविधान का अतिक्रमण करने पर

● राष्ट्रपति पर महाभियोग किस आधार पर लगाया जाता है— अमेरिका से

● भारत के राष्ट्रपति को पद एवं गोपनीयता की शपथ कौन दिलाता है— भारत का मुख्य न्यायाधीश

● संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश के समक्ष शपथ ग्रहण करता है— अनुच्छेद-60

● राष्ट्रपति अपना त्यागपत्र किसे सौंपता है— उपराष्ट्रपति को

● राष्ट्रपति के त्यागपत्र की सूचना उपराष्ट्रपति किसे देता है— लोकसभाध्यक्ष को

● भारत के कौन-से राष्ट्रपति निर्विरोध चुने गए थे— नीलम संजीव रेड्डी

● स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति किस राज्य के थे— बिहार से

● भारत के किस राष्ट्रपति की मृत्यु कार्यकाल खत्म होने से पहले हुई— डॉ. जाकिर हुसैन

● भारत का राष्ट्रपति किसकी नियुक्ति नहीं करता है— उपराष्ट्रपति की

● वित्त बिल के लिए किसकी स्वीकृति आवश्यक है— राष्ट्रपति

● लोकसभा व राज्यसभा में राष्ट्रपति कुल कितने सदस्य मनोनीत कर सकता है— 14

● भारत के राष्ट्रपति को कौन सलाह देता है— संघीय मंत्रीपरिषद

● कौन-सा व्यक्ति कार्यवाहक राष्ट्रपति तथा उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश रहा— एम. हिदायतुल्ला

● किस विधेयक को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए नहीं लौटाता है— धन विधेयक को

● युद्ध अथवा बाहरी आक्रमण की स्थिति में आक्रमणकारी के विरुद्ध युद्ध की घोषण कौन कर सकता है— राष्ट्रपति

● किसी व्यक्ति को दोषी पाये जाने पर कौन उसे क्षमादान दे सकता है— राष्ट्रपति

● भारत के राष्ट्रपति ने किस मामले में वीटो शक्ति का प्रयोग किया था— भारतीय डाकघर अधिनियम

● भारत के राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति की अनुप्स्थिति में कार्यभार कौन ग्रहण करेगा— सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश

● अध्यादेश जारी करने का अधिकार राष्ट्रपति का कौन-सा अधिकार है— विधायी अधिकार

● भारत का राष्ट्रपति किसके द्वारा चुना जाता है— सांसदों व विधानसभा सदस्यों द्वारा

● श्रीमति प्रतिभा पाटिल भारतीय गणतंत्र में कौन-सी राष्ट्रपति बनी थीं— 12वीं

● कौन-से राष्ट्रपति दो बार राष्ट्रपति चुने गए— डॉ. राजेंद्र प्रसाद

● किसी भौगोलिक क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने का अधिकार किसको है— राष्ट्रपति को

● भारत का संवैधानिक अध्यक्ष कौन होता है— राष्ट्रपति

● भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का चुनाव कैसे हुआ— संविधान सभा द्वारा

● भारत का राष्ट्रपति राज्यसभा में कितने सदस्य मनोनीत कर सकता है— 12

● भारत के राष्ट्रपति का वेतन कितना है— 1,50,000 रुपए प्रतिमाह

● किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन किसने समय के लिए रह सकता है— 3 वर्ष

● राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा कौन करता है— राष्ट्रपति

● भारतीय संविधान के अनुसार भारत का राष्ट्रपति राज्य का क्या होता है— राज्य का संवैधानिक अध्यक्ष

● भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है— अप्रत्यक्ष रूप से

● राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रस्तावक एवं अनुमोदकों की संख्या कितनी होती है— 50-50

● भारत में किसके चुनाव में अनुपातिक प्रतिनिधित्व चुनाव प्रणाली अपनाई जाती है— राष्ट्रपति के चुनाव में

● राष्ट्रपति पद रिक्त होने पर कितने समय में भरना आवश्यक है— 6 माह में

● भारत के राष्ट्रपति की मर्जी तक किसी राज्य में अपने पद पर कौन रह सकता है— राज्यपाल

● राष्ट्रपति किस सूची के विषय पर अध्यादेश जारी कर सकता है— संघ व समवर्ती सूची पर

● जब किसी विधेयक को संसद में प्रस्तुत किया जाता है तो किसकी अनुमति के बाद वह अधिनियम बन जाता है— राष्ट्रपति की अनुमति के बाद

भारत के उपराष्ट्रपति : सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी

● भारत के उपराष्ट्रपति की तुलना किस देश के उपराष्ट्रपति से की जा सकती है— संयुक्त राज्य अमेरिका

● राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष कौन होता है— उपराष्ट्रपति

● राज्यसभा की बैठकों का सभापति कौन होता है— उपराष्ट्रपति

● उपराष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है— अप्रत्यक्ष रूप से

● उपराष्ट्रपति के चुनाव हेतु कौन-सा प्रणाली अपनाई जाती है— एकल संक्रमणीय प्रणाली

● उपराष्ट्रपति को पद व गोपनीयता की शपथ कौन दिलाता है— राष्ट्रपति

● भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव कौन करता है— संसद के दोनों सदन

● उपराष्ट्रपति अपना त्याग पत्र किसे देता है— राष्ट्रपति को

● उपराष्ट्रपति अपने मत का प्रयोग कब करता है— मतों के बराबर रहने की स्थिति में

● भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति कौन थे— सर्वपल्ली राधाकृष्णन

● कार्यकाल समाप्त होने से पहले उपराष्ट्रपति को हटाने का अधिकार किसको है— संसद को

● किस सदन में उपराष्ट्रपति को पदच्युत करने का प्रस्ताव रखा जाता है— राज्यसभा में

● भारत में लगातार दो बार उपराष्ट्रपति कौन रहा था— सर्वपल्ली राधाकृष्णन

● मोहम्मद हामिद अंसारी क्रम के हिसाब से कौन-से उपराष्ट्रपति हैं— 12वें

● उपराष्ट्रपति के चुनाव में उम्मीदवार के नामाकंन के लिए निर्वाचक मंडल में कम से कम कितने अनुमोदन आवश्यक हैं— 20

● उपराष्ट्रपति के चुनाव संबंधी विवाद को कौन देखता है— सर्वोच्च न्यायालय

● उपराष्ट्रपति का कार्यकाल कितना होता है— 5 वर्ष

● उपराष्ट्रपति पद हेतु कम से कम कितनी आयु आवश्यक है— 35 वर्ष

● उपराष्ट्रपति को किसका समान वेतन मिलता है— लोकसभा अध्यक्ष के समान

● संविधान के किस अनुच्छेद में उपराष्ट्रपति का वर्णन है— अनुच्छेद-63 में

● उपराष्ट्रपति किस सदन का सदस्य नहीं हो सकता— राज्यसभा का

राज्यसभा : सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी

● वर्तमान में राज्यसभा सदस्यों की संख्या कितनी है— 245

● राज्यसभा के लिए प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों का चुनाव कौन करता है— विधानसभा के निर्वाचित सदस्य

● राज्यसभा में राज्यों का प्रतिनिधित्व किस पर निर्भर करता है— राज्य की जनसंख्या पर

● राज्यसभा में किस राज्य के प्रतिनिधियों की संख्या सर्वाधिक है— उत्तर प्रदेश

● राज्यसभा सदस्य का कार्यकाल कितना होता है— 6 वर्ष

● राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु कितनी होनी चाहिए— 30 वर्ष

● किस सदन को भंग नहीं किया जा सकता है— राज्यसभा

● लोकसभा व राज्यसभा में गणपूर्ति संख्या क्या है— कुल सदस्य संख्या का 1/10 भाग

● वह कौन-सा सदन है जिसका अध्यक्ष उस सदन का सदस्य नहीं होता है— राज्यसभा

● लोकसभा द्वारा पारित धन विधेयक राज्यसभा को प्राप्त होने के कितने दिन बाद तक लोकसभा को लौटाया जा सकता है— 14 दिन

● राज्यसभा एक स्थायी सदन है क्यों— क्योंकि यह कभी भंग नहीं होता और इसके एक तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष बाद सेवानिवृत्त हो जाते हैं

● राज्यस्भा के सदस्यों को नामित करने का अधिकार किसको है— राष्ट्रपति को

● राज्यसभा की प्रथम महिला सचिव कौन थी— वी. एस. रमादेवी

● राज्यसभा का पहली बार गठन कब हुआ— 3 अप्रैल, 1952 ई.

● राज्यसभा की प्रथम बैठक कब हुई— 13 मई, 1952 ई.

● भारत में किसकी स्वीकृति के बिना कोई भी सरकारी खर्चा नहीं किया जा सकता है— संसद

● राज्यसभा के सभापति की अनुपस्थिति में राज्यसभा का संचालन कौन करता है— उपसभापति

● राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनावों को अधिसूचना कौन जारी करता है— निर्वाचन आयोग

● केंद्रीय संसद राष्ट्रहित में राज्य सूची के विषयों पर कानून कब बना सकती है— राज्यसभा में उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत पर

● राज्यसभा की दो बैठकों के मध्य समायांतराल कितना होना चाहिए— अधिकतम 6 माह

● किन राज्यों का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व नहीं हैं— अंडमान-निकोबार, चंडीगढ, दादरा-नगर हवेली, लक्षद्वीप एवं दमन-दीव

● राज्यसभा के प्रति उत्तरदायी कौन नहीं होता है— मंत्रीपरिषद

● भारत के कौन-से प्रधानमंत्री राज्यसभा के सदस्य रहे हैं— श्रीमति इंदिरा गाँधी व मनमोहन सिंह

लोकसभा : सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी

● जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदन को क्या कहते है— लोकसभा

● संविधान में लोकसभा के सदस्यों की मूल संख्या क्या है— 552

● वर्तमान में लोकसभा में कितने सदस्य हैं— 545

● राष्ट्रपति आंग्ल-भारतीय समुदाय के कितने प्रतिनिधियों को लोकसभा में नामित कर सकता है— दो

● लोकसभा में किस आधार पर सीटें आवंटित होती है— जनसंख्या के आधार पर

● वर्तमान लोकसभा में प्रत्येक राज्य के लिए स्थानों को आवंटन किस पर आधारित है— 1971 की जनगणना पर

● कौन-सी लोकसभा के चुनाव चार चरणों में हुए— 14वीं

● लोकसभा का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु कितनी होनी चाहिए— 25 वर्ष

● कौन-सा राज्य सबसे अधिक प्रतिनिधि लोकसभा में भेजता है— उत्तर प्रदेश

● किन बड़े राज्यों में लोकसभा सीटें समान हैं— आंध्र प्रदेश व पश्चिमी बंगाल

● उत्तर प्रदेश के बाद सबसे अधिक संसदीय क्षेत्र किस राज्य में है— महाराष्ट्र में

● किस राज्य में लोकसभा सदस्यों की संख्या सबसे कम है— नागालैंड, सिक्किम व मिजोरम

● लोकसभा का नेता कौन होता है— प्रधानमंत्री

● लोकसभा का नेता कौन होता है— लोकसभा अध्यक्ष को

● भूतपूर्व सांसद सदस्यों को पेंशन व्यवस्था कब लागू की गई— 1976 ई.

● लोकसभा में कम से कम कितने सत्र जरूरी होते हैं— वर्ष में दो बार

● लोकसभा को कौन भंग कर सकता है— राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर

● वित्तीय बिल कहाँ पास हो सकता है— लोकसभा में

● अविश्वास प्रस्ताव किस सदन में लाया जाता है— लोकसभा

● बजट किसके द्वारा पारित किया जाता है— लोकसभा द्वारा

● लोकसभा के सदस्यों की निर्योग्यता से संबंधित प्रश्नों का निर्णय कौन करता है— लोकसभा अध्यक्ष

● अस्थाई लोकसभा अध्यक्ष को क्या कहते हैं— प्रोटेम स्पीकर

● प्रोमेट स्पीकर की नियुक्ति कौन करता है— राष्ट्रपति

● कितने दिनों तक अनुपस्थित रहने पर लोकसभा के सदस्य की सदस्यता समाप्त हो जाती है— 2 माह

● किस विधेयक को केवल लोकसभा ही पारित करती है— वित्त विधेयक

● मंत्रीपरिषद् किसके प्रति उत्तरदायी होती है— लोकसभा के

● किस अवस्था में संसद लोकसभा का कार्यकाल बढ़ा सकती है— आपातकाल की स्थिति में

● संसद एक बार में लोकसभा के कार्यकाल में कितने समय के लिए वृद्धि कर सकती है— 1 वर्ष के लिए

● किस वर्ष लोकसभा का कार्यकाल एक-एक करके दो बार बढ़ाया गया— 1976 में

● राजनीतिक शब्दावली में ‘शून्य काल’ का अर्थ क्या है— प्रश्नोत्तर सत्र

● यदि कोई व्यक्ति राज्सभा का सदस्य है तो क्या वह लोकसभा में अपना वक्तव्य दे सकता है— हाँ

भारत के प्रधान मंत्री व मंत्रिपरिषद् : सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी

● भारत के प्रधानमंत्री की नियुक्ति कौन करता है— राष्ट्रपति● योजना अयोग का अध्यक्ष कौन होता है— प्रधानमंत्री

● संघीय मंत्रिमंडल की बैठक का सभापति कौन होता है— प्रधानमंत्री

● प्रधानमंत्री का कार्यकाल कितना होता है— 5 वर्ष

● प्रधानमंत्री पद से त्याग पत्र देने वाले पहले प्रधानमंत्री कौन थे— मोरारजी देसाई

● कौन-से प्रधानमंत्री सबसे अधिक समय तक प्रधानमंत्री रहे— जवाहर लाल नेहरू

● प्रधानमंत्री बनने के लिए न्यूनतम आयु कितनी होती है— 25 वर्ष

● संसदीय शासन प्रणाली सर्वप्रथम किसे देश में लागू हुई— ब्रिटेन

● भारतीय संविधान के अनुसार तथ्यात्मक संप्रभुता किसमें निहित है— प्रधानमंत्री में

● भारत के प्रथम प्रधानमंत्री कौन थे— जवाहर लाल नेहरू

● अभी तक कितने प्रधानमंत्रियों की मृत्यु अपने पद पर रहते हुए हुई है— तीन

● प्रधानमंत्री को पद एवं गोपनीयता की शपथ कौन दिलाता है— राष्ट्रपति

● किस प्रधानमंत्री ने एक बार अपने पद से हटने के बाद दोबारा पद संभाला था— इंदिरा गाँधी

● जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के प्रधानमंत्री कौन बने— गुजजारी लाल नंदा

● संसदीय शासन प्रणाली में वास्तविक कार्यपालिका की शक्ति किसके पास होती है— प्रधानमंत्री के पास

● सबसे कम आयु में प्रधानमंत्री कौन बने— राजीव गाँधी

● लोकसभा में बहुमत दल का नेता कौन होता है— प्रधानमंत्री

● किस प्रधानमंत्री की नियुक्ति के समय वे किसी भी सदन का सदस्य नहीं थे— एच. डी. देवगौड़ा

● कौन-से प्रधानमंत्री एक भी दिन संसद नही गए— चौ. चरण सिंह● यथार्थ कार्यपालिका की समस्त सत्ता किसमें निहित होती है— मंत्रिपरिषद में

● संघीय मंत्रिपरिषद के मंत्री किसके प्रति उत्तरदायी होते हैं— लोकसभा के

● भारत में किसी भी सदन का सदस्य बने बिना कोई व्यक्ति मंत्री पद पर कितने दिनों तक रह सकती है— 6 माह

● संविधान के किस अनुच्छेद में मंत्रिपरिषद की नियुक्ति व पदच्युति का प्रावधान है— अनुच्छेद-75

● मंत्रिमंडल का गठन कौन करता है— केंद्रीय मंत्री

● स्वतंत्र भारत के प्रथम कानूनी मंत्री कौन थे— डॉ. बी. आर. अंबेडकर

● कौन-सा प्रस्ताव संसद में मंत्रिपरिषद रख सकती है— विश्वास प्रस्ताव

● मंत्रिपरिषद् के सदस्यों को गोपनीयता की शपथ कौन दिलाता है— राष्ट्रपति

● भारत के मंत्रिपरिषद् में अधिकतम सदस्य कहाँ से लिये जाते हैं— लोकसभा से

● स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रतिरक्षा मंत्री कौन थे— सरदार पटेल

● स्वतंत्र भारत के प्रथम वित्त कौन थे— डॉ. जॉन मथाई

● क्या राज्यसभा का सदस्य मंत्रिपरिषद का सदस्य बन सकता है— हाँ

लोकसभा अध्यक्ष : सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी

● लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव कौन करता है— लोकसभा सदस्य

● लोकसभा का अस्थायी अध्यक्ष कौन नियुक्त करता है— राष्ट्रपति

● लोकसभा अध्यक्ष अपना त्याग पत्र किसे देता है— लोकसभा उपाध्यक्ष को

● निर्णायक मत देने का अधिकार किसको है— लोकसभा अध्यक्ष को

● लोकसभा का सचिवालय किससे नियंत्रित होता है— लोकसभा अध्यक्ष

● भारत के प्रथम लोकसभा अध्यक्ष कौन थे— जी. वी. मावलंकर

● भारतीय संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता कौन करता है— लोकसभा अध्यक्ष

● लोकसभा में किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में कौन प्रमाणित करता है— लोकसभा अध्यक्ष

● किस समिति का पदेन अध्यक्ष लोकसभा अध्यक्ष होता है— नियम समिति

● लोकसभा महासचिव की नियुक्ति कौन करता है— लोकसभा स्पीकर

● कोई स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया— के. एस. हेगड़े

● लोकसभा का जनक किसे माना जाता है— जी. वी. मावलंकर

● लोकसभा के प्रथम उपाध्यक्ष कौन थे— अनंतशयनम आपंगर

● किस लोकसभा अध्यक्ष का कार्यकाल सबसे लंबा रहा— बलराम जाखड़

● लोकसभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति में लोकसभा की अध्यक्षता कौन करता है— लोकसभा का वरिष्ठतम् सदस्य

● राष्ट्रमंडल अध्यक्षों के सम्मेलन का पदेन महासचिव कौन होता है— लोकसभा महासचिव

● भारत के लोकसभा अध्यक्ष किस देश के हाऊस ऑफ कॉमंस के अध्यक्ष की तरह होते हैं— इंग्लैंड के

● लोकसभा का सचिवालय किसके प्रत्यक्ष पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण का कार्य करता है— लोकसभा अध्यक्ष

● भारत की प्रथम महिला लोकसभा अध्यक्ष कौन हैं— मीरा कुमार

कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परिक्षक) : सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी

● निर्वाचन आयोग का गठन कौन करता है— राष्ट्रपति

● प्रत्यक्ष निर्वाचन क्या है— जनता द्वारा मतदान

● निर्वाचन आयोग का गठन किस अनुच्छेद के अंतर्गत किया जाता है— अनुच्छेद-324

● भारत की निर्वाचन पद्धति किस देश से ली गई है— ब्रिटेन से

● मतदाताओं के पंजीयन का उत्तरदायित्व किसका है— निर्वाचन आयोग का

● निर्वाचन आयोग का चेयरमैन कौन होता है— मुख्य निर्वाचन आयुक्त

● परिसीमन आयोग का अध्यक्ष कौन होता है— मुख्य निर्वाचन आयुक्त

● मतदाता सूची को अद्यतन बनाकर कौन रखता है— निर्वाचन आयोग

● भारत के प्रथम मुख्य चुनाव आयुक्त कौन थे— सुकुमार सेन

● भारत में सार्वजनिक मताधिकार के आधार पर प्रथम चुनाव कब हुए— 1952 ई.

● भारत में पहली बार महिलाओं को मताधिकार कब प्राप्त हुआ— 1989 ई.

● भारत में मतदान की न्यूनतम आयु क्या है— 18 वर्ष

● चुनाव के क्षेत्र में चुनाव प्रचार कब बंद होता है— चुनाव से 48 घंटे पहले

● निर्वाचन आयुक्त को पदच्युत करने का अधिकार किसको है— राष्ट्रपति को

● निर्वाचन आयुक्त को राष्ट्रपति किसकी सलाह पर पदच्युत करता है— मुख्य निर्वाचन आयुक्त की

● निर्वाचन आयुक्त की सेवाशर्त/कार्यकाल कौन निश्चित करता है— संविधान

● लोकसभा/विधानसभा में किसी चुनावी प्रत्याशी की जमानत राशि कब जब्त कर ली जाती है— मतदान का 1/6 भाग मतदान प्राप्त नहीं करने पर

● निर्वाचन आयोग की नियुक्ति कितने वर्ष के लिए की जाती है— 5 वर्ष के लिए

● मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से कैसे हटाया जा सकता है— महाभियोग द्वारा

● विधान परिषद् के चुनावों का संचालन कौन करता है— निर्वाचन आयोग

● दिनेश गोस्वामी समिति किस से संबंधित है— निर्वाचन आयोग से

● चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता कौन तैयार करता है— निर्वाचन आयोग

● इंद्रजीत समिति का मुख्य उद्देश्य क्या था— चुनाव खर्च हेतु सार्वजनिक कोष व्यवस्था

भारत का उच्चतम न्यायालय : सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तर

● संविधान का संरक्षक व व्याख्याकार कौन है— सर्वोच्च न्यायालय

● संविधान के किस भाग में संघीय न्यायपालिका का उल्लेख है— भाग-V

● किस अधिनियम के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई— रेग्युलेटिंग एक्ट 1773

● संविधान में मूल रूप से मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त कितने न्यायाधीशों की व्यवस्था सर्वोच्च न्यायालय में की गई थी— 7

● उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि करने का अधिकार किसको है— संसद को

● वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों की कुल संख्या कितनी है— 31

● सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति कौन करता है— राष्ट्रपति

● उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु क्या है— 65 वर्ष की आयु तक

● सर्वोच्च न्यायालय का गठन एवं उसकी शक्तियाँ व न्यायाधीशों को हटाने की विधि किस देश के संविधान से ली गई है— अमेरिका

● क्या सेवानिवृत्ति के पश्चात् सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश किसी जगह वकालत कर सकते हैं— नहीं

● किस अनुच्छेद में उच्चतम न्यायालय को परामर्शदाती बनाया गया है— अनुच्छेद-143

● न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार किसे है— स्वतंत्र

● सर्वोच्च न्यायालय के जजों का वेतन किससे आहरित होता है— संचित निधि से

● सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसके पद से कैसे हटाया जा सकता है— महाभियोग द्वारा

● भारत के प्रथम मुख्य न्यायधीश कौन थे— हरिलाल जे. कानिया

● किस अनुच्छेद के अंतर्गत् संविधान सर्वोच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का स्थान प्रदान करता है— अनुच्छेद-129

● सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की आधारभूत संरचना की घोषणा किस मामले में की थी— केशवानंद भारतीवाद में

● जनहित याचिका कहाँ दायर की जा सकती है— सर्वोच्च न्यायालय में

● यदि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति अनुपस्थित हों तो भारत के राष्ट्रपति पद को कौन संभालता है— वाई. वी. चंद्रचूड़

● सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायधीश कौन हो सकता है— जिसने कम से कम 10 वर्ष उच्च न्यायालय में वकालत की हो या वह 5 वर्ष किसी उच्च न्यायालय में न्यायाधीश रहा हो

● मौलिक अधिकारों की रक्षा कौन करता है— सर्वोच्च न्यायालय

भारतीय उच्च न्यायालय : सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी

● भारत में कुल कितने उच्च न्यायालय हैं— 21

● भारत के किस उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या सबसे कम है— सिक्किम उच्च न्यायालय

● भारत के किस न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या सबसे अधिक है— इलाहाबाद उच्च न्यायालय

● भारत का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय कौन-सा है— इलाहाबाद उच्च न्यायालय

● पटना उच्च न्यायालय की स्थापना कब हुई— 1916 ई.

● मध्य प्रदेश का उच्च न्यायालय कहाँ स्थित है— जबलपुर

● उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को हटाने या बढ़ाने का अधिकार किसको है— भारतीय संसद को

● उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति कौन करता है— राष्ट्रपति

● उच्च न्यायालय का न्यायाधीश कितनी आयु तक अपने पद पर रह सकता है— 65 वर्ष की आयु तक

● उच्च न्यायालय में प्रथम महिला मुख्य न्यायाधीश कौन थीं— श्रीमती लीला सेठ

● किसी न्यायाधीश को एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में भेजने का अधिकार किसको है— राष्ट्रपति को

● भारत का चलित न्यायालय किसका मानसंपुज है— डॉ. ए.पी.जे. कलाम आजाद

● किस उच्च न्यायालय में सबसे अधिक स्थाई/अस्थाई खंडपीठ है— गुवाहटी उच्च न्यायालय में

● केरल का उच्च न्यायालय कहाँ स्थित है— एर्नाकुलम

● उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसके पद व गोपनीयता की शपथ कौन दिलाता है— राज्यपाल

● संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्देश परिवर्तित किया जा सकता है— अनुच्छेद-226

● ओड़िशा राज्य का उच्च न्यायालय कहाँ स्थित है— कटक

● किसी राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायधीशों के वेतन एवं भत्ते का संबंध किससे होता है— संबंधित राज्य की लोकलेखा निधि से

● केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली का उच्च न्यायालय कहाँ स्थित है— दिल्ली में



Comments Yogita Prajapat on 08-08-2021

Vyavsthapika ke koi paci Mariaya btaiye

Koksingh ahirwar on 30-04-2020

व्यवस्थापिका के चार कार्य लिखिए

Indradev on 21-04-2020

व्यथापिका के कार्य






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