हिंदी भाषा का शब्द-भंडार समृद्ध है, उसकी लिपि नागरी वैज्ञानिक है, भाषा की जिस सार्थक स्वतंत्रा लघुतम इकार्इ को 'शब्द कहा जाता है, उसके अनेक भेद है। अर्थ, व्युत्पत्ति, उत्पत्ति, प्रयोग आदि के आधर पर शब्दों का वर्गीकरण विद्वानों ने किया है।
अर्थ के आधर पर सार्थक और निरर्थक भेद किए गए हैं। भाषा के प्रवाह को न रोक पाने के कारण निरर्थक शब्दों का जुड़ जाना स्वाभाविक हैं, किन्तु सार्थक शब्दों के भेद स्पष्ट दिखार्इ देते हैं। एकार्थक- जैसे- रोटी आदि। अनेकार्थक- जैसे- पानी आदि। समानार्थक- (पर्यायवाची), जैसे- भूमि, ध्रती आदि। विपरीतार्थक- (विलोमवाची) जैसे-आदि। अनेक शब्दों के लिए शब्द- जैसे- स्वायत्तता (स्वायत्त व्यापार)
व्युप्तत्ति के आधर पर दो भेद हैं :-
(क) रूढ़ जैसे- घर, अलग, सुविध।
(ख) व्युत्पन्न के दो उपभेद हैं-
(अ) यौगिक, जैसे पुत्रा-पौत्रा, èवनिरहित विचारहीन तथा
(आ) योगरूढ़, जैसे- शतायु।
उत्पत्ति के आधर पर शब्द के चार भेद हैं- तत्सम- जिनका प्रयोग संस्Ñत के शब्दों के रूप में होता है, जैसे- पफल सिद्ध। तदभव- जिनका उव संस्Ñत शब्दों से हुआ है, जैसे-गृह से घर आदि। देशज- जैसे- बचत, गुजराती चालाकी, समझदारी, बढि़या, सेहत, ठीक, किपफायती, मुनापफा, जमीन-जायदाद।
शब्द के दो मुख्य भेद किए गए हैं- विकारी शब्द- जिनमेंवचन, कारक आदि के आधर पर परिवर्तन हो जाता है, जैसे- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया। अविकारी- शब्द में किसी भी अवस्था में कोर्इ परिवर्तन नहीं होता है, जैसे- क्रिया-विशेषण, संबंध्-बोध्क, समुच्चय बोध्क तथा विस्मयादि बोध्क। परिवर्तन न होने के कारण इन्हें अव्यय शब्द भी कहा जाता है।
अविकारी शब्दों में क्रिया की विशेषता प्रकट करने वाले क्रियाविशेषण शब्दों के मुख्य चार भेद हैं- समयवाचक- जैसे- कल, दिन, अभी आदि। स्थानवाचक- जैसे-कहाँ। परिमाणवाचक- जैसे- थोड़ा, बहुत, खूब आदि। संबंध्-बोध्क शब्द संज्ञा या सर्वनाम के बाद वाक्य में दूसरे शब्दों से उसका संबंध् बताते हैं, इन्हें 'परसर्ग भी कहते हैं। परसर्ग सहित अव्यय शब्दों में के बारे, के समान, के सिवा आदि आते हैं। किन्तु कुछ अव्यय परसर्ग रहित भी हैं, जैसे- भर, बिना, पहले, मात्रा, अपेक्षा आदि। अर्थ के आधर पर संबंध् बोध्क अव्यय के भेद हैं।
समयबोध्क- जैसे- से पहले लगभग जल्दी आदि। स्थानबोध्क- जैसे-दूर आदि। दिशा-बोध्क- जैसे-ओर आदि। साध्न बोध्क- जैसे- जरिए। विषय-बोध्क- जैसे-बारे बाबत आदि। सादृश्य बोध्क- जैसे- समान, भाँति, योग्य, की तरह के अनुरूप आदि।
समुच्चयबोध्क अव्यय शब्द का शब्द से, किसी वाक्य का वाक्य से अथवा किसी वाक्यांश का वाक्यांश से संबंध् हैं, इसलिए इन्हें 'योजक भी कहा जाता है। समुच्चयबोध्क के दो प्रमुख भेद हैं- समानाधिकरण योजक- जैसे- और, या, किन्तु, इसलिए आदि। व्याधिकरण योजक- जैसे- कि, यदि, तो आदि।
विस्मयादिबोध्क अव्यय शब्द विस्मय (अरे! क्या! सच! ओह!), हर्ष (वाह, अहा, शाबास, ध्न्य), स्वीÑति (बहुत अच्छा, हाँ हाँ, ठीक), अनुमोदन (हाँ-हाँ, अच्छा), आशीष्य (जीते रहो! दीर्घायु हो!, चिरंजीवी हो!) तथा संबोध्न (हे!, अरे!) को सूचित करते हैं। कभी-कभी विकारी शब्दों (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया) का प्रयोग भी विस्मयादिबोध्क के रूप में होता है, जैसे- क्या! कौन! सुन्दर! अच्छा!, हट!, चुप! आदि।
अवधरक अव्यय शब्द पद में जुड़कर विशेष प्रकार का बल भर देने वाले हैं, जैसे- ही, भी, तक, केवल। मात्रा, भर, तो आदि।
शब्द-रचना या शब्द-निर्माण उपसर्ग, प्रत्यय, संधि, समास के प्रयोग से होता है। शब्द के आदि में आने वाले उपसर्ग होते हैं तथा अंत में आने वाले प्रत्यय कहलाते हैं। वर्णो में संधि होती है तथा शब्दों का समास कहलाता है। वर्णो में संधि स्वर, व्यंजन और विसर्ग के आधर पर होती है जिससे संधि के कर्इ भेद किए गए हैं। समास के समस्त पद है। अव्ययीभाव समास है, जैसे आजन्म, प्रतिदिन आदि। तत्पुरूष, कर्मधरय या द्विगु समास होता है। जहाँ दोनों पद प्रधन होते हैं, वहाँ द्वन्द्व समास होता है, जैसे माता-पिता बाल-बच्चे, भार्इ-बहन। लेकिन जहाँ पूर्वपद और उत्तरपद-दोनों से भिन्न कोर्इ अन्य पद प्रधन होता है तो वहाँ बहुब्रीहि समास होता है, जैसे- पीतांबर आदि।
हिन्दी भाषा का शब्द-भंडार समृ( है तथा नये-नये शब्द-निर्माण की अभूतपूर्व क्षमता है। भाषा-दक्षता की हिन्दी भाषा खरी उतरती है।
रूप विचार
भाषा की स्वतंत्रा, सार्थक, लघुत्तम इकार्इ को जहाँ 'शब्द कहा गया है, वहाँ वह वाक्य में प्रयुक्त होने पर स्वतंत्रा नहीं रह जाता बलिक वाक्य के वचन, कारक और क्रिया के नियमों से अनुशासित हो जाता है और व्याकरण के नियमों में बंध्ने से ये शब्द, शब्द न रहकर 'पद बन जाते हैं। इस परिवत्र्तन के सहायक शब्दांश को व्याकरण में 'विभकित कहते हैं जो वाक्य के प्रत्येक पद में प्रकट रूप से विधमान रहती है।
रूप-परिवत्र्तन अथवा प्रयोग के आधर पर पद के मुख्यत: दो भेद होते हैं- विकारी और अविकारी।
जिन शब्दों में प्रयोगानुसार कुछ परिवत्र्तन उत्पन्न होता है, वे 'विकारी शब्द कहलाते हैं, जैसे- सोना, जागना, तू, मैं आदि। इसके भेद हैं- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया।
संज्ञा
व्याकरण में नाम को 'संज्ञा कहते हैं। परिभाषा-''किसी स्थान, वस्तु तथा भाव के नाम का बोध् कराने वाले शब्द संज्ञा हैं। इसके मुख्यतया तीन भेद हैं- व्यकितवाचक संज्ञा, जातिवाचक संज्ञा तथा भाववाचक संज्ञा।
व्यकितवाचक संज्ञा- व्यकितवाचक संज्ञा 'विशेष का बोध् कराती है 'सामान्य का नहीं। जिस संज्ञा शब्द से एक ही व्यकित, वस्तु या स्थान के नाम का बोध् हो, उसे 'व्यकितवाचक संज्ञा कहते हैं, जैसे- राम, गंगा आदि। व्यकितवाचक संज्ञा में व्यकितयों, देशों, शहरों, नदियों, पर्वतों, जलाशयों-त्यौहारों दिनों-महीनों आदि के नाम आते हैं।
जातिवाचक संज्ञा- परिभाषा ''जिस संज्ञा शब्द से किसी जाति के व्यकितयों वस्तुओं, स्थानों आदि का बोध् होता है, उसे 'जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। इसके उपभेद हैं। द्रव्यवाचक संज्ञा, जैसे- चाँदी। इन शब्दों का प्रयोग प्राय: एकवचन में किया जाता है। समूहवाचक संज्ञा, जैसे- जाति, प्रान्त आदि।
भाववाचक संज्ञा- ''जिस संज्ञा शब्द से गुण, ध्र्म, दशा, मनोभाव, कार्य आदि का संकेत हो, उसे 'भाववाचक संज्ञा कहते हैं। प्राय: अमूत्र्तभाव तथा क्रिया के अश्रव्य, अदृश्य रूप भाववाचक होते हैं। जैसे- सर्वस्व, नम्रता, सुंदरता आदि।
भाववाचक संज्ञाओं की रचना मुख्यत: शब्दों से होती हैं- जातिवाचक संज्ञाओं से, जैसे- प्रांत से प्रांतीय आदि। सर्वनाम से, जैसे- निज से निजत्व आदि। विशेषण से, जैसे- आवश्यक से आवश्यकता आदि। क्रिया से, जैसे- छूटने से छुटकारा, जीना से जीवन, लिखना से लिखावट आदि। अव्यय से, जैसे- दूर से दूरी शीघ्र से शीघ्रता आदि।
व्यकितवाचक संज्ञा का जातिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग, जैसे- परायों से बचकर रहना चाहिए। जातिवाचक संज्ञा का व्यकितवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग। भाववाचक का जातिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग, जैसे- दुनिया में उनके पहनावे हैं।
सर्वनाम
परिभाषा- ''संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द सर्वनाम हैं। सर्वनाम का प्रयोग संज्ञा के स्थान पर होने से कारके के कारण इनमें विकार या परिवर्तन होता हैं। जैसे- हमने, हमको, हमारे, मैंने, मुझको, मुझसे आदि। संज्ञा की तरह इसके वचन बदलते हैं किन्तु किसी भी लिंग के लिए प्रयोग करते समय इसके रूप में कोर्इ परिवत्र्तन नहीं आता, पिफर भी इसके संबंध् रूप जो विशेषण के अर्थ में प्रयुक्त होते है, अपना रूप विशेषण के आधर पर बदल लेते हैं, जैसे मेरा घर, मे परिवार, पुस्तक आदि। संज्ञा के समान इनके मेरी संबोध्न का प्रयोग नहीं होता।
सर्वनाम के भेद : वैयाकरणों ने सर्वनाम के छ: भेद बताये हैं- पुरुषवाचक, जैसे- उत्तम-मèयम-तू, आपऋ अन्य-वे, ये, यह। निश्चयवाचक, जैसे- यह, ये, वह, वे। अनिश्चयवाचक, जैसे- कोर्इ, कुछ संबंध्वाचक, जैसे- जिसने, उसने, जहाँ, वहाँ आदि। प्रश्नवाचक, जैसे- कौन, किन्हें, किस आदि। (छ) निजवाचक, जैसे- आप, खुद, निज आदि।
विशेषण
परिभाषा- ''जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम के पूर्व लगकर उसकी विशेषता बताते हैं, उन्हें विशेषण कहा जाता है। विशेषण शब्द जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, उन शब्दों को 'विशेष्य कहा जाता है। जैसे-लड़की, वह आदि।
अर्थ की दृषिट से विशेषण के मुख्य चार भेद हैं:
गुणवाचक विशेषण, जैसे- अच्छा, सुगंधित, नरम, शहरी आदि।
संख्यावाचक विशेषण, जैसे-
(क) निशिचत संख्यावाचक- आम, नौ कमरे आदि।
(ख) अनिशिचत संख्यावाचक- कुछ आम, थोड़े मकान। मुझे एक खिड़कीवाला मकान चाहिए।
परिणामवाचक विशेषण, मात्राा या तोल बताने वाले होते हैं, जैसे-
(क) निशिचत परिमाणवाचक-नौ मीटर कपड़ा, पाँच किलो सेब आदि।
(ख) अनिशिचत परिमाण वाचक- घी, पनीर बहुत कुछ खरब आदि।
सार्वनामिक विशेषण, परिभाषा ''जिन सर्वनामों का प्रयोग विशेषण के रूप में होता है, वे 'सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं। जैसे वह लड़का भला है, यह पुस्तक मेरी है। इन वाक्यों में वह तथा यह सर्वनाम होते हुए भी विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं, इसलिए सार्वनामिक विशेषण हैं। पुरूषवाचक तथा निजवाचक सर्वनामों के अलावा शेष सभी सर्वनाम सार्वनामिक विशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं। जब सर्वनाम किसी संज्ञा (विशेष्य) के साथ लगकर उस संज्ञा की विशेषता बताते हैं तब वे सार्वनामिक विशेषण कहे जाते हैं। जैसे, अपना मुनापफा।
कुछ शब्द रूप में विशेषण होते हैं। लेकिन कुछ शब्दों (संज्ञा, सर्वनाम तथा क्रिया) की उपसर्ग एवं प्रत्यय लगाकर की जाती है, जैसे- वर्ष से वार्षिक, परिवार से पारिवारिकता, व्यापार से व्यापारी-व्यवसायी।
तुलना की दृषिट से विशेषण की अवस्थाएँ बतार्इ गर्इ हैं- प्रथमावस्था सुदंर है, वह अच्छी है, अंकित लंबा है)। (छवि) सीता से लंबी है, वह उत्तमावस्था (राम सबसे अच्छा लड़का है, इस शहर में यह बाग बेजोड़ है)।
प्रविशेषण: विशेषण की विशेषता बताने वाले शब्द प्रविशेषण हैं। जैसे- बहुत बुद्िधमान है, वह सबसे तेज़ दौड़ता है।
क्रिया
परिभाषा ''जिन शब्द से कार्य का करना या होना पाया जाए, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे- शिक्षित पढ़ रहे हैं, वह कूद रहा है। क्रिया को देखकर ही कत्र्ता या कर्म का अनुमान लगाया जाता है। कत्र्ता के वचन की जानकारी क्रिया से होती हैं। कार्य की जानकारी भी क्रिया से ही होती है। क्रियात्मक जगत की क्रियाएँ ही शब्दात्मक बनी हैं।
क्रिया के रूप को 'धतु कहते हैं। धतु के मूल रूप में 'ना जोड़कर क्रिया का सामान्य रूप बनाया जाता है, जैसे- खाना, पीना, चलना, पढ़ना आदि।
क्रिया की रचना मुख्य शब्दों से होती है। धतु से, जैसे- पढ-पढ़ना, खा-खाना, खाता, खाया। (ख) संज्ञा से- आलस्य से अलसाना, अलसाता आदि। विशेषण से- टिमटिम से टिमटिमाना।
क्रिया के दो भेद हैं- सकर्मक तथा अकर्मक।
सकर्मक क्रिया- जिस क्रिया का पफल कत्र्ता को छोड़कर कर्म पर पड़े, वह क्रिया, सकर्मक क्रिया कहलाती है, जैसे- वह पुस्तक पढ़ रही है। इन वाक्यों के कत्र्ता और क्रिया के बीच यदि 'क्या प्रश्न किया जाय तो उत्तरस्वरूप पुस्तक हैं, जैसे- क्या पढ़ रही है, पुस्तक। सकर्मक क्रिया की पहचान यही है।
कर्म के आधर पर सकर्मक क्रिया के दो भेद मिलते हैं- एककर्मक तथा द्विकर्मक। एककर्मक क्रिया का एक ही कर्म होता है, जैसे- सीता खाना बना रही है। द्विकर्मक क्रिया के दो कर्म होते हैं। गौण कर्म विभकित चिन्ह सहित होता है तथा मुख्य कर्म विभकित चिन्ह रहित होता है। जैसे- पिता ने पुत्रा को पैसे दिए। पिता ने क्या दिए-पैसे दिए। किसको दिए-पुत्रा कों द्विकर्मक क्रिया की पहचान के लिए 'क्या और 'किसे-किसको हैं।
अकर्मक क्रिया- कर्म रहित क्रिया अकर्मक कहलाती है। जिस वाक्य में क्रिया का पफल कत्र्ता पर हो वे क्रियाएँ अकर्मक होती है, जैसे- बच्चा हँसता है, लिखती है, वह गाता है। संरचना की दृषिट से क्रिया के अन्य भेद किए गए हैं-
संयुक्त क्रिया- जिसमें दो या दो से अधिक क्रियाएँ आपस में मिलकर पूर्ण क्रिया बनाती हैं, जैसे- 'वह अपना कार्य कर चुका, में कर चुका संयुक्त क्रियाएँ हैं जिसमें मुख्य क्रिया है तथा सहायक क्रिया। सहायक क्रिया मुख्य क्रिया की पूर्णता में सहायक होती है।
नामधतु क्रिया- क्रिया को छोड़कर अन्य शब्दों में प्रत्यय जोड़ने से जो धतुएँ बनती है, उन्हें 'नामधतु कहते हैं। इस प्रकार संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण शब्द जो धतु की तरह प्रयुक्त होते हैं, वे नामधतु कहलाते हैं। इनमें 'ना प्रत्यय जोड़कर नाम धतु क्रिया बनार्इ जाती है। जैसे सूखा से सुखाना, थपथप से थपथपाना आदि।
प्रेरणार्थक क्रिया- जहाँ कत्र्ता स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे से उस कार्य को करवाता है, तो उस क्रिया को 'प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे- नौकर से काम करवाता है।
पूर्वकालिक क्रिया- जिस क्रिया का पूरा होना किसी क्रिया के पूरा होने से पहले पाया जाय, जैसे- खाना खाकर वह पढ़ने बैठेगा। इसमें 'खाकर पूर्वकालिक क्रिया है। पूर्वकालिक क्रिया का भेद हैं- 'तात्कालिक क्रिया इसमें किसी क्रिया की समापित के बाद ही पूर्ण क्रिया का संपन्न होना पाया जाता है। जैसे- स्कूल से वापस आते ही, वह खेलने चला गया। इसमें धतु के अंत में 'ते प्रत्यय लगाकर उसके आगे 'ही जोड़ने से बनती है। जैसे- वह खाना खाते ही सो गया।
वाच्य- क्रिया का वह रूप है जो यह बताता है कि क्रिया-व्यापार का संचालक कत्र्ता है अथवा कर्म। कत्र्ता क्रिया को करने में समर्थ है अथवा नहीं। वाक्य में कत्र्ता, कर्म अथवा भाव की प्रधनता से वाच्य के भेद माने जाते हैं- कतर्ृवाच्य, कर्मवाच्य तथा भाववाच्य।
कत्तर्ृवाच्य में क्रिया द्वारा कही गर्इ बात का मुख्य विषय कत्र्ता होता है।
कर्मवाच्य में कर्म ही कत्र्ता की सिथति में होता है और क्रिया का रूप कर्म के अनुसार बदलता है। इसकी मुख्य क्रिया सकर्मक होती है।
भाववाच्य इसमें क्रिया का संबंध् कत्र्ता और कर्म से न होकर 'भाव से होता है। इसमें क्रिया के पुरूष, वचन अन्य पुरूष, पुलिलंग, एकवचन में रहते हैं। इसमें अकर्मक क्रिया का प्रयोग होता है। प्राय: निषेधर्थक वाक्य भाववाच्च कहलाते हैं।
हिन्दी भाषा के शब्दभण्डार पर प्रकाश डालिए
Bahut ghatiya hai bhai thik se likhana v nhi aata hai aapko
हिदींं के शब्द भण्डार के कितने पृकार के शब्द पाये जाते है उदाहरण सहित समझाइए
Hindi shabd shamuh ke srot and Hindi shabd shamuh
राजेश
वाक्य संरचना तथा हिंदी के शब्द भंडार का परिचय देते हुए पल्लवन तथा संक्षेपण का अंतर स्पष्ट कीजिए
Bhasha me prayukt shabdo ke bhandar ko kya kahte hai
Devnagri lipi ke manikarad ki samasya
Nisha
Hindi bhasha ki vibhinn saliyon ko udaharan dekar samjhaie
Hindika shabad bandar ki se adhik hai
Hindi ka shabad bandar ki se adhik hai
नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity
Khusi and parsan me kya antar h